जिसने बंधन से मेरी लंबी उम्र मांगी है।उसे ताउम्र मुसीबत से बचा रखूंगा।।शादी के बाद बहन की विदाई से ज्यादा।भाई की सुनी कलाइयां उसे पीड़ा देती हैं।।- सौरभ शुक्ला
रक्षाबंधन पर कविता
सुनी पड़ी कलाई, राखी के आज दिन।बहनों की याद आई, राखी के आज दिन।।सरहद पर जब सुना, राखी का जिक्र तो,रोने लगा था भाई, राखी के आज दिन।।
माथे में लाल टीका, हाथों में बांध धागा।खिलाती थी मिठाई, राखी के आज दिन।।दिन रात जहां लड़ते थे, एक-दूसरे से हम।उस घर की याद आई, राखी के आज दिन।।
माथे में लाल टीका, हाथों में बांध धागा।खिलाती थी मिठाई, राखी के आज दिन।।दिन रात जहां लड़ते थे, एक-दूसरे से हम।उस घर की याद आई, राखी के आज दिन।।
रक्षाबंधन पर कविता
- सौरभ शुक्ला
उन बहनों पर आख़िर, क्या बीत रही होगी।जिनका नहीं है भाई, राखी के आज दिन।।ना जाने यह अजीब सी, तड़प क्यों लगी है।कि बांधे कोई कलाई, राखी के आज दिन।।बहनों की याद आई, राखी के आज दिन।रोने लगा था भाई, राखी के आज दिन।।