कब है अहोई अष्टमी व्रत कथा 2025: अहोई अष्टमी मातृत्व, आस्था और प्रेम का पर्व है। भारत में हर व्रत और त्योहार के पीछे एक गहरी भावना छिपी होती है। अहोई अष्टमी व्रत भी ऐसा ही एक पर्व है जो माँ के निस्वार्थ प्रेम और अपने बच्चों की लंबी आयु की कामना का प्रतीक है। इस दिन महिलाएँ पूरे दिन उपवास रखकर अहोई माता की पूजा करती हैं और संतान की रक्षा व सुख-समृद्धि की प्रार्थना करती हैं।
लेकिन यह व्रत केवल परंपरा नहीं है — यह एक माँ के दिल की सच्ची कहानी है, जिसमें त्याग, पश्चाताप और प्रेम का अनोखा संगम है।
विषय–सूची
अहोई अष्टमी क्या है — नाम “अहोई” का असली अर्थ
बहुत कम लोग जानते हैं कि “अहोई” शब्द संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है — ‘अह’ यानी पाप या भूल, और ‘ओई’ यानी पुकार या क्षमा याचना।
इसका अर्थ हुआ — “वह पुकार जो अनजाने में हुई गलती के लिए क्षमा माँगती है।” इसलिए अहोई अष्टमी सिर्फ उपवास नहीं, बल्कि पश्चाताप और आत्मशुद्धि का पर्व है। इस दिन माँएं यह मानती हैं कि जीवन में कभी भी जाने-अनजाने में हुई भूलों के लिए क्षमा माँगकर संतान की रक्षा की जा सकती है।
कब है अहोई अष्टमी व्रत कथा 2025 शुभ मुहूर्त?
2025 में अहोई अष्टमी का व्रत सोमवार, 13 अक्टूबर 2025 को रखा जाएगा।
🪔 अष्टमी तिथि प्रारंभ | 13 अक्टूबर, दोपहर 12:24 बजे |
🕓 अष्टमी तिथि समाप्त | 14 अक्टूबर, सुबह 11:09 बजे |
🌙 अहोई पूजा का शुभ मुहूर्त | शाम 5:53 बजे से 7:08 बजे तक |
🌟 तारों का दर्शन (पारण समय) | लगभग 6:17 बजे शाम |
🌕 चंद्र उदय (Moonrise) | 11:20 मिनट |
नोट: अलग-अलग शहरों के अनुसार ये समय कुछ मिनटों का अंतर ला सकते हैं। इसलिए पूजा से पहले अपने स्थानीय पंचांग या DrikPanchang पर समय अवश्य जाँचें।
अहोई अष्टमी की पौराणिक कथा — एक माँ की करुण पुकार
बहुत समय पहले एक नगर में एक साहूकार की पत्नी रहती थी। उसके सात बेटे थे। एक दिन वह अपने घर की दीवार रंगने के लिए मिट्टी लेने जंगल गई। वहाँ गलती से उसके फावड़े से एक नन्हे शेर के बच्चे की मृत्यु हो गई।
यह घटना उसके दिल को चीर गई। पश्चाताप में डूबी वह घर लौटी, लेकिन कुछ ही समय में उसके सातों पुत्र एक-एक करके असमय मृत्यु को प्राप्त हो गए।
वह माँ टूट चुकी थी, लेकिन उसने भगवान शिव और माता पार्वती से क्षमा माँगते हुए कठोर तपस्या की। माता पार्वती उसके सच्चे पश्चाताप से प्रसन्न हुईं और उसे वरदान दिया —
“हर साल अष्टमी के दिन अहोई माता की पूजा करो, तुम्हारे सभी बच्चे दीर्घायु होंगे।”
तब से ही अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाने लगा। यह कथा हर माँ को यह संदेश देती है कि सच्चे मन से की गई प्रार्थना और पश्चाताप से कोई भी संकट टल सकता है।
पूजा विधि — हर कदम का एक अर्थ है
अहोई अष्टमी की पूजा केवल नियम नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव है। आइए जानें कैसे करें यह पूजा सही तरीके से और उसका गूढ़ अर्थ क्या है:
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और संकल्प लें कि आप आज अहोई माता की आराधना अपने बच्चों की सुख-समृद्धि के लिए कर रही हैं।
- दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाएं — परंपरा है कि इसमें सात छेद बनाए जाते हैं, जो सात पुत्रों का प्रतीक हैं।
- गेहूँ का ढेर रखकर उस पर कलश रखें। यह समृद्धि और परिवार की जड़ का प्रतीक है।
- अहोई माता को सिंदूर, रोली, चावल और दूध अर्पित करें। दूध से पूजा करना मातृत्व और शुद्धता का प्रतीक माना गया है।
- संतान के वस्त्र या खिलौने रखें — यह उस माँ के आशीर्वाद का प्रतीक है जो अपने बच्चों को सुरक्षित देखना चाहती है।
- संध्या के समय तारे या चंद्रमा के दर्शन करें और फिर व्रत खोलें।
तारे और चंद्र दर्शन — विश्वास और विज्ञान का संगम
कई लोग सोचते हैं कि आखिर “तारों के दर्शन” का क्या महत्व है।
वास्तव में, यह प्रकृति के प्रति कृतज्ञता और स्थिरता का प्रतीक है।
जब एक माँ आसमान में टिमटिमाते तारे देखती है, तो वह अपने बच्चों की तरह उज्ज्वल भविष्य की कल्पना करती है।
वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो यह समय शरीर के सर्कैडियन रिदम के अनुरूप होता है — शाम का समय मन और शरीर को शांत करने वाला होता है। इसलिए अहोई व्रत का “पारण” (व्रत खोलना) इसी समय को चुना गया है।
व्रत में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं
अहोई अष्टमी में महिलाएँ दिनभर उपवास रखती हैं, लेकिन कुछ बातें विशेष ध्यान देने योग्य हैं:
✅ खाने योग्य (फलाहार): | ❌ परहेज़ करें: |
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सूखे मेवे, फल, दूध, दही | लहसुन-प्याज |
साबूदाना खिचड़ी, कुट्टू या सिंघाड़े का आटा | अनाज और दालें |
सेंधा नमक का प्रयोग | सामान्य नमक (लवण) |
👉 यह व्रत शरीर को डिटॉक्स करने और आत्म-संयम की शक्ति बढ़ाने का एक माध्यम भी है।
माँ का अनुभव — एक सच्ची कहानी
दिल्ली की सीमा देवी कहती हैं — “जब मेरा बेटा बीमार था, मैं अहोई अष्टमी का व्रत कर रही थी। पूरी रात मैंने भगवान से केवल एक ही प्रार्थना की — ‘मेरा बच्चा ठीक हो जाए।’
अगली सुबह डॉक्टर ने कहा कि अब वह खतरे से बाहर है। तब मुझे एहसास हुआ कि यह व्रत सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि माँ के विश्वास की ताकत है।” ऐसी कहानियाँ दिखाती हैं कि अहोई अष्टमी हर माँ के भीतर मौजूद अविचल प्रेम का प्रतीक है।
स्वास्थ्य और सावधानियाँ
अगर आप गर्भवती या किसी रोग से ग्रस्त हैं, तो निर्जला व्रत न रखें — फलाहार या दूध का सेवन कर सकती हैं।
पूरे दिन जल अवश्य पिएँ, ताकि शरीर हाइड्रेट रहे।
पूजा के बाद हल्का भोजन करें — खिचड़ी या फल सबसे अच्छा विकल्प है।
👉 याद रखें, व्रत का अर्थ स्वयं को कष्ट देना नहीं, बल्कि संयम और श्रद्धा के साथ जीवन जीना है।
भारत के विभिन्न हिस्सों में अहोई माता की पूजा
भारत के अलग-अलग राज्यों में यह पर्व अलग तरीक़ों से मनाया जाता है —
उत्तर प्रदेश में महिलाएँ मिट्टी से अहोई माता की प्रतिमा बनाती हैं। पंजाब और हरियाणा में “सात बिंदियों” की दीवार पूजा प्रसिद्ध है।
बिहार में इसे “अहोई माता की चौकी” कहा जाता है, जहाँ पूरा परिवार शाम को साथ बैठकर कथा सुनता है। महाराष्ट्र में यह पर्व अधिकतर माताएँ परिवार की स्त्रियों के साथ सामूहिक रूप में मनाती हैं।
वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण
अहोई अष्टमी व्रत का एक गहरा वैज्ञानिक पक्ष भी है। उपवास शरीर की डिटॉक्स प्रक्रिया को बढ़ाता है। ध्यान और संकल्प मानसिक एकाग्रता बढ़ाते हैं। परिवार के साथ पूजा करने से ऑक्सिटोसिन हार्मोन (bonding hormone) का स्राव होता है, जिससे प्रेम और सकारात्मकता बढ़ती है।
बच्चों को अहोई अष्टमी से क्या सीख मिलती है
यह पर्व बच्चों को सिखाता है — माँ का प्रेम निस्वार्थ होता है। परिवार की सुरक्षा और साथ रहना सबसे बड़ा आशीर्वाद है। पश्चाताप और क्षमा माँगना कमजोरी नहीं, बल्कि शक्ति है।
निष्कर्ष — अहोई माता का संदेश
अहोई अष्टमी केवल एक धार्मिक व्रत नहीं, बल्कि एक माँ की आत्मा की गहराई में झाँकने का पर्व है। यह हमें सिखाता है कि प्रेम, क्षमा और विश्वास से बड़ा कोई वरदान नहीं।
जब एक माँ अपने बच्चों के लिए उपवास रखती है, तो वह केवल भोजन नहीं त्यागती — वह अपना अहम, स्वार्थ और भय त्यागकर प्रार्थना में बदल जाती है। इस अहोई अष्टमी पर, हर माँ के दिल में वही भावना जागे — “मेरे बच्चों का जीवन उज्ज्वल रहे, और मेरा विश्वास अडिग रहे।” 🌸
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
अहोई अष्टमी 2025 कब है?
👉 13 अक्टूबर 2025, सोमवार को।
पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है?
👉 शाम 5:53 से 7:08 बजे तक (नई दिल्ली समय अनुसार)।
क्या अहोई अष्टमी सिर्फ महिलाओं के लिए है?
👉 परंपरागत रूप से माताएँ रखती हैं, लेकिन आजकल कई पिता भी संतान की भलाई के लिए यह व्रत रखते हैं।
व्रत खोलने का सही समय क्या है?
👉 तारों के दर्शन या चंद्र उदय के बाद, अपने क्षेत्रीय पंचांग के अनुसार।
क्या गर्भवती महिलाएँ व्रत रख सकती हैं?
👉 हाँ, लेकिन डॉक्टर की सलाह लेकर फलाहार रूप में रख सकती हैं।