भारत में बहुत से ऐसे महान राजा पैदा हुए जो अपने शौर्य पराक्रम और प्रजा की सेवा के लिए जाने जाते हैं उन्हीं राज्यों में से महाराजा भोज भी शामिल है जो अपने पराक्रम और हिंदू धर्म उद्धार के लिए जाने जाते हैं।
आज इस लेख के जरिए हम आपको राजा भोज का इतिहास (Raja Bhoj History in hindi) और उनके जीवन के बारे में बताएंगे।
भारतवर्ष में हजारों राजाओं की कीर्तियां लोकोक्ति और लोक कथाओं के माध्यम से सुनाई जाती है। उन्हीं लोकोक्तियों में से राजा भोज के विषय में एक लोकोक्ति बहुत प्रचलित है।
भारत में लोकोक्ति के माध्यम से अक्सर कहा जाता है कि ” कहां राजा भोज, कहां गंगू तेली ” जो राजा भोज के उच्च आदर्श और उनकी उदार प्रकृति की ओर संकेत करता है।
विषय–सूची
राजा भोज का जीवन परिचय व इतिहास (Raja Bhoj biography, history, story hindi)
हिंदुओं के महान पराक्रमी राजा भोज का जन्म उज्जैन नगरी में 980 इस्वी में हुआ था जो अत्यंत प्रसिद्ध महाराजा विक्रमादित्य की राजधानी थी। महाराजा भोज भी उन्ही के वंशज थे जिममे उन्ही की तरह पराक्रम और कुशल नेतृत्व भरा हुआ था।
राजा भोज अपने पराक्रम और सुशासन के बल पर भारत ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में नव विक्रमादित्य की ख्याति प्राप्त की।
साहित्य में हुए कई शोधों के अनुसार राजा भोज के साम्राज्य विस्तार से जुड़ी बहुत सी जानकारियां मलयालम भाषा में मिली है जिनके अनुसार राजा भोज का साम्राज्य मालवा से केरल तक फैला हुआ था जो अपने आप में बहुत विस्तृत क्षेत्र है।
राजा भोज के साम्राज्य की राजधानी धार मालवा क्षेत्र में उपस्थित थी जहां परमार वंश के राजाओं ने आठवीं शताब्दी से 14 वी शताब्दी तक राज्य किया और धार को अपनी राजधानी के रूप में घोषित किया था।
इनके भीतर केवल कुशल शासन ही नहीं अपितु ये एक विद्वान राजा भी थे जिनकी राजसभा में तकरीबन 500 विद्वान शामिल रहते थे।
महाराजा भोज साहित्यिक प्रतिभा के बहुत धनी थे उनके भीतर सहित्य के प्रति बहुत लगाव भरा हुआ था उन्होने साहित्य मे बहुत सारी रचनाएं की हैं और साहित्य के गौरव को बढाया है।
भारतीय इतिहास में महाराजा विक्रमादित्य को हिंदू कैलेन्डर के जन्मदाता के रुप में माना जाता है जिससे उनके धार्मिक प्रेम की पुष्टि होती है ठीक उसी प्रकार धर्म और अपनी प्रजा के कल्याण से संबंधित अच्छे कार्यों के लिए उन्हें उनके पूर्वज महाराजा विक्रमादित्य के नाम पर नव विक्रमादित्य की संज्ञा दी गई थी।
राजा भोज के साम्राज्य और उसके विस्तार से संबंधित कई शिलालेख और ताम्रपत्र पाए गए हैं जो 1010 से लेकर 1050 के बीच तक लिखे गए थे।
महाराजा भोज का संबंध ( Relations of Raja Bhoj )
महाराजा भोज भारतीय इतिहास की गाथाओं में अमर महाराजा विक्रमादित्य के वंश के थे और अपने पूर्वजों की भाति इन्होंने भी अपने शौर्य के बल पर दुनिया भर में अपनी कीर्ति स्थापित की।
महाराजा भोज के पिता का नाम सिंधु राज और उनकी पत्नी का नाम लीलावती था।
इनके पिता सिंधुराज विक्रमादित्य के वंशजों की श्रेणी में प्रसिद्ध राजा मुन्जराज के भाई थे।
महाराजा भोज का धार्मिक प्रेम
महाराजा भोज आज हिंदू धर्म से घनिष्ठ स्नेह था जिसके कारण वह लगातार हिंदू धर्म और उनके उद्धार के लिए प्रयास करते रहे।
महाराजा भोज को हिंदुओं के पूजनीय भगवान शिव से अत्यधिक लगाव था, वह बहुत बड़े शिव भक्त थे।
अपने जीवन काल में महाराजा भोज ने रामेश्वर केदारनाथ सोमनाथ और महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर जैसे महान धार्मिक स्थलों का नवीनीकरण जीर्णोद्धार करवाया।
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल का नाम महाराजा भोज के नाम के आधार पर रखा गया है।
यह महाराजा भोज हिंदू धर्म महान पक्षधर और संरक्षक थे जिन्होंने हिंदू धर्म के उद्धार के लिए आजीवन प्रयास किया और अपने संपूर्ण जीवन काल में बहुत से हिंदुओं के सांस्कृतिक स्थलों का जीर्णोद्धार करवाते रहे।
महाराजा भोज में इस्लाम के प्रभाव से धूमिल हो चुकी सनातन संस्कृति को फिर से नया आयाम दिया और इसके प्रकाश को सभी दिशाओं में बिखेर दिया जिसके बल पर हिंदू धर्म और हिंदुत्व की भावनाओं को बहुत बल मिला।
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इस्लामी आक्रमणकारियों से संघर्ष
महाराजा भोज कट्टर हिन्दू राजा थे उन्होने सदैव हिंदूत्व के उत्थान के लिए प्रयास किया जिसके कारण उनका ज्यादातर संघर्ष अफ़गानी इस्लामी आक्रमणकारियो से हुआ जो हिंदूओ पर आक्रमण कर उन्हें प्रताणित करते थे और उनका धार्मिक स्थानन्तरण करवाते थे।
महाराजा भोज हिंदू धर्म को बचाने के लिए इस्लाम के आक्रमणकारियों से हमेशा लड़ते रहे और उन्हें पराजित भी करते रहे।
भारतीय इतिहासकारों का मानना जब महमूद गजनवी ने 1025 में सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण कर उसे पूरी तरह लूट लिया था तब राजा भोज शासन कर रहे थे।
भारत का यह प्राचीन सोमनाथ मंदिर भारतीय हिंदू सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक था।
सोमनाथ पर आक्रमण करने बाद महमूद गजनवी ने मन्दिर मे उपस्थित बहूमुल्य चीजो को लूट लिया।
जब उन्हे इस बात की खबर लगी तो उन्होने हिंदू राजाओ और सेनाओ के साथ मिलकर महमूद गजनवी पर आक्रमण कर दिया और और उसे यहा से भगा दिया।
साहित्य मे हुए शोध के मुताबिक इन्होने तुर्को पर भी विजय हासिल की थी।
इस्लामिक विरोध के कारण इनके साम्राज्य पर बहुत से इस्लामी आक्रमण कारियो ने हमला किया लेकिन इन्होने उन्हे हावी नहीं होने दिया।
राजा भोज की निर्माण व उपलब्धियां
भारत के पुरातन इतिहास में महाराजा भोज की बहुत सारी उपलब्धियां सम्मिलित हैं जिनका साहित्य ताम्रपत्र और शिलालेख के जरिए कई प्रमाण पाए गए हैं। हिंदूओ के महान राजा भोज ने अपने शासनकाल में बहुत से निर्माण कार्यों को संपन्न कराया जिनका विवरण नीचे दिया गया है
1. महाराजा भोज ने ही मध्य प्रदेश की वर्तमान राजधानी भोपाल नगर की स्थापना थी जिसका नाम उन्ही के नाम के आधार पर रखा गया था।
2. महाराजा भोज ने महाकालेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया जो अपने 12 ज्योतिर्लिन्ग के लिए सम्पूर्ण विश्व मे विख्यात है।
3. महाराजा भोज ने भोजपुर में शिव मंदिर का निर्माण करवाया था जो अपनी शिल्पकला और विशेष पत्थरो के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है।
4. इस्लामी आक्रमण कारियो ने भारतीय हिंदू धर्म के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल को आक्रमण करके बहुत हानि पहुचाई जिससे इन स्थलो की गरिमा मलीन होने लगी।
लेकिन राजा भोज ने इसे नवीन करने के लिए हर सम्भव प्रयास किया और सोमनाथ और केदारनाथ जैसे प्रख्यात धार्मिक तीर्थ का जीर्णोद्धार करवाया।
यह उपर्युक्त निर्माण कार्य राजा भोज द्वारा करवाए गए थे जो आज सनातन संस्कृति के धार्मिक सुंदरता के प्रतीक हैं।
महाराजा भोज की साहित्य में गहरी रुचि
एक पराक्रमी राजा होने के साथ-साथ महाराजा भोज को साहित्य में भी अत्यंत रूचि थी अपने जीवन काल में महाराजा भोज में बहुत सारी रचनाएं की।
इन्होंने भोज प्रबंधन के नाम से अपनी जीवनी की रचना की है जिसमे उन्होने अपनी जीवन और उसके उद्देश्य के बारे में सुन्दर रचना की है।
केवल इतना ही नहीं महाराजा भोज में गद्य काव्य में चम्पू रामायण की रचना भी की जो उनकी की गई रचना में सबसे ज्यादा लोकप्रिय है।
साहित्यिक शोध के मुताबिक महाराजा भोज के दरबार में 500 से अधिक विद्यवान रहते थे।
अपनी इन चर्चित रचनाओं के अलावा महाराजा भोज ने अन्य बहुत सारी रचनाएं भी की जिनमें ” चारु चर्चा, तत्वप्रकाश और प्राकृत व्याकरण जैसी रचनाए भी शामिल है।
महाराजा भोज के साम्राज्य का पतन और मृत्यु
महाराजा भोज भले ही हिंदू धर्म के शूरवीर और महान राजा थे लेकिन मृत्यु के पहले अपने जीवन के आखिरी दिनों में उन्हें चालुक्य वंश और अन्य कुछ वंश के राजाओं से पराजय का सामना करना पड़ा।
सन 1060 इस्वी में राजा चालुक्य के साथ युद्ध मे महाराज भोज को बुरी तरह पराजय का सामना करना पड़ा जिससे उनका स्वास्थ्य संतुलन बिगड़ता गया और इसी दौरान उनकी मृत्यु भी हो गयी।
महाराजा भोज ने इस्लाम के चंगुल में फ़से हिंदू धर्म को उबारने के लिए आजीवन प्रयास किया जिसके अंतर्गत उनके द्वारा हिंदू धर्म के धार्मिक स्थल का नवीनिकरण कराया गया।
निष्कर्ष
आज इस लेख के जरिए हमने महाराजा भोज का इतिहास (Raja Bhoj History in hindi) और उनके विषय में बहुत सारी बातें बताई। महाराजा भोज को आज भी उनके इन महान कार्यों के लिए उन्हें याद किया जाता है। आशा करता हूं कि इस महान व्यक्तित्व के जीवंन से जुड़ा हुआ लेख आपको बेहद पसंद आया होगा।
FAQ
राजा भोज किसके वंशज थे?
राजा भोज परमार वंश से संबंध रखते थे। वह चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य के वंश के नवें नरेश थे।
राजा भोज का शासनकाल कब तक रहा था?
उनका शासनकाल 1000 से 1055 ई- तक रहा था। इतिहासकारों को तभी तक के शिलालेख प्राप्त हुये है।
राजा भोज की पत्नी का क्या नाम था?
लीलावती देवी