अगर दुनिया में मौजूद किसी को भी लगता है कि उन्होंने धरती का पूरा कोण नाप लिया है और अब इस पृथ्वी पर कोई ऐसी चीज नहीं है जो उनसे छुपा है तो वह बिल्कुल गलत है। आज भी इस धरती पर बहुत चीज ढूंढना बाकी हैं जिसके बारे में किसी को भी पता नहीं है।
इस बात में सच्चाई तब दिखी जब 375 साल के लंबे इंतजार के बाद वैज्ञानिकों को पृथ्वी पर आठवां महाद्वीप जीलैंडिया मिला। यह इतना बड़ा महाद्वीप है कि इसमें कई सारे छोटे-छोटे देश समा सकते हैं। तो चलिए इस महाद्वीप के बारे में और सारी कई बातें बताते हैं।
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375 साल पहले हुई थी आठ महाद्वीपों की भविष्यवाणी
375 साल पहले, एक भविष्यवाणी की गई थी कि दुनिया में आठ महाद्वीप हैं। लेकिन 2017 में, एक नई खोज ने हमें दिखाया कि यह पुरे तरीके से गलत था। ऑस्ट्रेलिया के दक्षिण-पूर्वी इलाके में एक टुकड़ा मिलने के बाद, हमें एक नया महाद्वीप मिला, जिसे हम जीलैंडिया कहते हैं। यह आश्चर्यजनक खोज है।
जीलैंडिया को धरती के भूले हुए आठवें महाद्वीप के रूप में जाना जाता है। वैज्ञानिकों ने काफी पहले ही इस अज्ञात दक्षिणी भूभाग की भविष्यवाणी की थी लेकिन यह 375 वर्षों तक गायब रहा क्योंकि यह पूरी तरीके से एक से दो किलोमीटर पानी के अंदर था। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने इसका पर्दा उठाने लगे हैं।
वैज्ञानिकों ने बनाया जीलैंडिया का मानचित्र।
इसी महीने वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने जीलैंडिया का एक बेहतर नक्शा जारी किया है। इस नक्शे में पूरे जीलैंडिया के नीचे के क्षेत्र को शामिल किया गया है, जो 50 लाख वर्ग किलोमीटर का है। इस से हमें यह समझ में आया कि महाद्वीप कैसे बना और यह कैसे ढाई करोड़ सालों से पानी के नीचे छुपा हुआ था।
वैज्ञानिकों ने बनाया जीलैंडिया का मानचित्र।
किसी महीने वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने जीलैंडिया का अब तक का सबसे बेहतर नक्शा जारी किया है। इस नक़्शे में पानी के नीचे के क्षेत्र के सभी 50 लाख वर्ग किलोमीटर और भूविज्ञान को शामिल किया है। इसी के अनुसार उन्होंने यह पता लगाया कि महाद्वीप कैसे बना और यह महाद्वीप पिछले ढाई करोड़ सालों से पानी के नीचे क्यों छुपा हुआ है।
पहली बार साल 1642 में खोजा गया था महाद्वीप।
आपको बता दें कि सबसे पहली बार जीलैंडिया की खोज साल 1642 में डच व्यापारी और नाविक एबेल तस्मान ने किया था। लेकिन, वह इस महाद्वीप के स्थान को खोजने का दोबारा खोजने में विफल रहे थे। इसके बाद वैज्ञानिकों ने साल 2017 में जीलैंडिया महाद्वीप की खोज की थी। वैज्ञानिकों ने 375 साल की खोज के बाद इसमें सफलता हासिल की है।
8 करोड़ साल पहले हुआ था जीलैंडिया महाद्वीप का निर्माण।
लगभग 8 करोड़ 30 लाख साल पहले, जीलैंडिया महाद्वीप का निर्माण हुआ था, जब लेट क्रेटेशियस युग था। लेकिन इसकी यात्रा 10 करोड़ साल पहले शुरू हुई, जब गोंडवाना महाद्वीप के विभाजन की शुरुआत हुई। उस समय, गोंडवाना महाद्वीप आज की भूमि को एक बड़े खंड में समेटे हुए था।
जब गोंडवाना विभाजित हुआ, तो इससे जीलैंडिया महाद्वीप बना, जो दुनिया का सबसे छोटा, सबसे पतला, और सबसे नया महाद्वीप था। साथ ही, गोंडवाना के क्षेत्र, जो पहले इसके पश्चिमी और दक्षिण पश्चिमी हिस्से में थे, वे आज के ऑस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका बन गए।
ढाई करोड़ साल पहले डूबा था जीलैंडिया।
कहा जाता है कि जीलैंडिया महाद्वीप कुछ समय के लिए एक बड़े द्वीप के रूप में मौजूद था, फिर लगभग 25 मिलियन साल पहले यह पूरी तरह से समुद्र के नीचे डूब गया। इससे सुझाव मिलता है कि न्यूजीलैंड एक बड़े गुप्त भू-भाग का एक छोटा हिस्सा हो सकता है।
2022 में, वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र के अध्ययन के लिए पानी के नीचे की गहराई का जांच किया। अब यह क्षेत्र जीलैंडिया के नाम से जाना जाता है। यहां के महासागर की गहराई अपने आस-पास के महासागर के मुकाबले काफी कम है, जिससे स्पष्ट होता है कि यह क्षेत्र दुनिया के अधिकांश महासागरों की तरह नहीं था, बल्कि यह एक महाद्वीप था।
जीलैंडिया महाद्वीप को पानी में डूबने का कारण क्या था?
वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने साल 2019 में दक्षिण जीलैंडिया के भू विज्ञान का मानचित्रण किया। इनके एक्सपेरिमेंट यह पता चला कि कुछ जगहों पर जीलैंडिया खींच गया था, मतलब टेक्टोनिक प्लेटों पर लगने वाले बल ने उन्हें अलग कर दिया था। जिसके कारण और महाद्वीपीय प्लेटो की तुलना में जीलैंडिया महाद्वीप पतला हो गया और दरारें पैदा हो गई, जो बाद में समुद्री परत बन गई।
इस प्रक्रिया में, महाद्वीप बदले बदले हो गए थे और उसका इतिहास फिर से सजाकर उसे और ज्यादा रोचक बना दिया। वैज्ञानिकों ने खोए हुए महाद्वीप के पत्थरों की जाँच की और पता चला कि इसका बदलाव दो चरणों में हुआ था। पहला चरण लगभग 89-101 मिलियन साल पहले हुआ था, जिससे एक दरार बन गई जो ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच तस्मान सागर को जन्म दिया। दूसरा चरण 80-90 मिलियन साल पहले शुरू हुआ था और उसके परिणाम जीलैंडिया पश्चिमी अंटार्कटिका से अलग हो गई और प्रशांत महासागर का निर्माण हुआ।