बोधि दिवस कब और क्यों मनाया जाता है?, बोधि दिवस का इतिहास, बोधि वृक्ष का इतिहास (Bodhi Tree history & Facts in hindi)
Bodhi Diwas 2024: बोधि वृक्ष पीपल का एक पेड़ है जो बिहार राज्य के गया जिले में एक महाबोधि मंदिर के अंदर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि गौतम बुद्ध इसी वृक्ष के नीचे बैठकर अपना बोध (ज्ञान) ग्रहण किया था, इसलिए इस वृक्ष को बोधि वृक्ष कहा जाता है। बौद्ध धर्म के लोगो के लिए यह वृक्ष बहुत ही पवित्र माना जाता है और वह इस वृक्ष की पूजा भी करते हैं ताकि गौतम बुद्ध के आत्मा को शांति मिल सके।
ग्रंथो के अनुसार ऐसा माना जाता है कि गौतम बुद्ध ने इस वृक्ष के नीचे सात सप्ताह तक अपने स्थान से बिना हिले एक ही जगह ध्यान केंद्रित किया था। बुद्ध पूर्णिमा के दिन श्रद्धालु दूर-दूर से आकर इस वृक्ष की पूजा करते हैं और गौतम बुद्ध को याद करते हैं। सभी श्रद्धालु एक दूसरे के साथ गले मिलकर ‘बुदु सरनाई’! बोलकर खुशियां बांटते हैं। इसलिए हर साल 8 दिसंबर को बोधि दिवस के रूप में मनाया जाता है।
विषय–सूची
बोधि वृक्ष की पूजा का क्या महत्व है? (Bodhi Tree history & Facts in hindi)
बोधि वृक्ष के नीचे ही गौतम बुद्ध ने अपने ज्ञान की प्राप्ति की थी इसलिए बौद्ध धर्म के लोग इस वृक्ष को पवित्र मानते हैं और इस वृक्ष की पूजा करते हैं ताकि गौतम बुद्ध के आत्मा को शांति मिल सके। बोधि वृक्ष की पूजा के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से यहां आते हैं और पीपल के इस वृक्ष की पूजा कर गौतम बुद्ध के उपदेशों का पालन करते हैं। और उनके द्वारा बताए गए सही मार्गों पर चलने की प्रतिज्ञा लेते हैं। बौद्ध धर्म के लिए यह पूजा बहुत हि पवित्र माना जाता है उनके लिए यह वृक्ष शांति का प्रतीक है इसलिए गौतम बुद्ध की याद में इस वृक्ष की पूजा की जाती है।
बोधि वृक्ष की पूजा किस तरीके से होती है?
- बुद्ध पूर्णिमा के दिन सभी श्रद्धालु शांति, प्रेम, ध्यान और मेधा से इस वृक्ष के पास जाकर बैठकर ध्यान केंद्रित करते हैं।
- बोधि वृक्ष की पूजा के लिए दीप, पुष्प, फल, नीरजन, धन्य आदि सामग्रियों का उपयोग पूजा में किया जाता है।
- सभी श्रद्धालु इस पेड़ के चारों ओर परिक्रमा करते हुए धूप बत्ती जलाते हैं।
- सभी श्रद्धालु हाथ जोड़कर बोध मंत्र का जाप करते हुए ध्यान में जुट जाते हैं।
- पूजा खत्म होने के बाद सभी लोग गौतम बुद्ध के बताए गए सही रास्तों पर चलने की प्रतिज्ञा लेते हैं। उनके द्वारा किए गए अध्ययन को ग्रहण करते हैं।
8 दिसंबर को क्यों मनाया जाता है बोधि दिवस
बोधि वृक्ष के नीचे ही गौतम बुद्ध ने अपने ज्ञान की प्राप्ती की थी इसीलिए उन्ही की याद में हर साल 8 दिसंबर को बोधि दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन बौद्ध धर्म के लोग उनकी याद में इस वृक्ष की पूजा करते हैं और एक दूसरे के साथ गले लगा कर ‘बुदु सरनाई’ बोलकर जश्न मनाते हैं और एक दूसरे को बधाई देते हैं। इस दिन लोग गौतम बुद्ध की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। इस दिन बहुत से स्कूलों में अवकाश भी रहता है ओर बौद्ध धर्म के लोग इस वृक्ष की पत्तियां पर भोजन ग्रहण करते है और भोजन का कुछ अंश भगवान गौतम बुद्ध के प्रतिमा के सामने रखती है।
बोधि वृक्ष का वैज्ञानिक महत्व
बोधि वृक्ष एकमात्र ऐसा पेड़ है जो 24 घंटे ऑक्सीजन देता है। यह वृक्ष रात के समय भी कार्बन डाइऑक्साइड गैस को ग्रहण करके ऑक्सीजन छोड़ता है। इस वृक्ष के अंदर बहुत से ऐसी औषधि गुण है जिसके कारण प्राचीन समय में कई रोगों का इलाज करने में भी मदद मिलती थी। बौद्ध धर्म के लोग इस पेड़ को बहुत ही पवित्र मानते हैं। इस वृक्ष के पतियों से टकराकर गुजरी हुई हवाओ से आसपास का माहौल शुद्ध रहता है और कीड़े और खतरनाक जीवाणु भी मर जाते हैं।
बोधि वृक्ष को नष्ट करने के किए गए सैकड़ो प्रयास
गया में स्थित भगवान बुद्ध का प्रतीक माने जाने वाले बौद्ध वृक्ष को नष्ट करने के सैकड़ो प्रयास किए गए थे। कहा जाता है कि इस वृक्ष को तीन बार नष्ट करने के प्रयास किए गए थे। पहली बार अशोक सम्राट के समय इसे नष्ट करने का प्रयास किया गया था। तीसरी शताब्दी में अशोक सम्राट का मगध के क्षेत्र में शासन था। यूं तो सम्राट अशोक बौद्ध धर्म के अनुयाई थे लेकिन कहा जाता है कि उनकी एक रानी तिष्यरक्षिता ने चोरी छुपे बौद्ध वृक्ष को कटवा दिया था। उस समय सम्राट अशोक दूसरे प्रदेश की यात्रा पर गए थे। हालांकि पेड़ जड़ से नष्ट न होने के कारण कुछ वर्षों में फिर से एक नया वृक्ष वहां पर उग आया जिसे दूसरी पीढ़ी का वृक्ष माना गया और वह वृक्ष तकरीबन 800 सालों तक रहा।
बौद्ध वृक्ष को नष्ट करने का दूसरा प्रयास
बौद्ध वृक्ष को कटवाने का दूसरा प्रयास बंगाल के शासक राजा शशांक के द्वारा सातवीं शताब्दी में किया गया था। कहा जाता है कि वह राजा बुद्ध धर्म का कट्टर दुश्मन था जिसके कारण उसने इस वृक्ष को जड़ से ही नष्ट कर देने का सोचा। लेकिन, इसका प्रयास विफल रहा तब उसने इस पेड़ को कटवा कर उसके जड़ में आग लगा दी। लेकिन भगवान बुद्ध की चमत्कार से जले हुए जड़ से भी एक नया पेड़ ऊग आया जिसे तीसरी पीढ़ी का माना गया और यह वृक्ष 1250 सालों तक रहा।
बौद्ध वृक्ष को नष्ट करने का तीसरा प्रयास
तीसरी बार बौद्ध वृक्ष को नष्ट करने के प्रयास में किसी इंसान का हाथ नहीं था बल्कि प्राकृतिक आपदा के कारण वर्ष 1873 में यह वृक्ष नष्ट हो गया जिसके बाद 1880 में अंग्रेज लॉर्ड कनिंघम ने श्रीलंका के अनुराधापुरा से बोधि वृक्ष की शाखा को मंगवा कर बोधगया में फिर से स्थापित किया। इस तरीके से वर्तमान में मौजूद बोधगया का वृक्ष चौथी पीढ़ी का वृक्ष माना जाता है। दरअसल अशोक ने तीसरी शताब्दी में अपने बेटे महेंद्र और बेटी संघमित्रा को बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार करने के लिए श्रीलंका भेजा था। उस समय उन्होंने उनको बुद्ध वृक्ष की टहनियों दी थी। इस तरह श्रीलंका में अनुराधापुरा में बोध वृक्ष की एक शाखा को लगाया गया। वही वृक्ष की शाखा को दोबारा बोधगया में लगाया गया।
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FAQ
बोधि दिवस कब है?
बोधि दिवस क्यों मनाया जाता है?
इसी दिन भगवान बुद्ध को बोधि वृक्ष (पीपल का एक पेड़) के नीचें आत्म ज्ञान प्राप्त हुआ था। बोधि दिवस 8 दिसंबर मनाया जाता है।
महाबोधि मंदिर कहां है?
बोध गया, बिहार में स्थित है।