शरद पूर्णिमा कब है? : आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को हर साल शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। यह रात साल की सबसे उजली और शुभ रात मानी जाती है। कहते हैं कि इस रात चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से पूर्ण होकर अमृत की वर्षा करता है। इसी दिन समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ था, इसलिए इस दिन लक्ष्मी माता की विशेष पूजा का विधान है। मान्यता है कि जो भी व्यक्ति इस रात सच्चे मन से माता लक्ष्मी की पूजा करता है और घर को रोशनी से सजाता है, उसके घर में कभी धन और सुख की कमी नहीं होती।
इस कारण ही शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। संस्कृत में “को जागर्ति” का अर्थ होता है “कौन जाग रहा है?” यानी मां लक्ष्मी इस रात पृथ्वी पर घूमती हैं और देखती हैं कि कौन जागकर उनकी पूजा कर रहा है। जो भक्त इस रात जागरण कर माता की आराधना करता है, उसके घर मां लक्ष्मी स्थायी रूप से वास करती हैं।
विषय–सूची
शरद पूर्णिमा कब है? 6 या 7 अक्टूबर 2025
शरद पूर्णिमा 2025 तिथि और शुभ मुहूर्त (Sharad Purnima 2025 Tithi and Muhurat)
इस साल शरद पूर्णिमा का पावन त्योहार 6 अक्टूबर 2025, सोमवार को मनाया जाएगा। हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 6 अक्टूबर की सुबह 11 बजकर 24 मिनट पर होगी और इसका समापन 7 अक्टूबर की सुबह 9 बजकर 35 मिनट पर होगा। इसका मतलब है कि पूजा, व्रत और चंद्र दर्शन का सबसे शुभ समय 6 अक्टूबर की रात को रहेगा।
शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रोदय का समय (Sharad Purnima 2025 Moon Rise Time)
शरद पूर्णिमा की खासियत ही यही है कि इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होकर धरती पर अमृत की वर्षा करता है। साल 2025 में शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा का उदय शाम 05 बजकर 31 मिनट पर होगा।
शरद पूर्णिमा पूजा एवं चंद्र अर्घ्य विधि
शरद पूर्णिमा के दिन करके स्वच्छ भारत स्वच्छ वस्त्र धारण करें, दीपक जलाएं पंचामृत से भगवान विष्णु एवं लक्ष्मी जी की पूजा करें, और पुष्प अर्पित करें ।
रात्रि के समय चंद्र देव को दूध और अक्षत अर्पित करें रात्रि में कटोरी में खीर रखें चंद्रमा की चांदनी में रखने की प्रथा है और इसको अगले दिन लक्ष्मी जी क भोग लगाकर प्रसाद के रुप में ग्रहण करें।
इस दिन चंद्रदेव को दूध और अक्षत एवं जल अर्पित करें, ॐ सोमाय नमः का मंत्र का जाप करें।
माँ लक्ष्मी के मंत्र
माँ लक्ष्मी जी पूजा के समय मंत्र का जाप करें।
"ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च। धीमहि तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्"
शरद पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी का आगमन
हिंदू धर्मग्रंथों में बताया गया है कि शरद पूर्णिमा की रात मां लक्ष्मी स्वयं पृथ्वी पर आती हैं। यह वह समय होता है जब चारों ओर प्रकाश और शुद्धता का वातावरण होता है। ऐसा कहा जाता है कि मां लक्ष्मी स्वच्छ, उजाले और श्रद्धा से भरे घरों में प्रवेश करती हैं। इसीलिए इस दिन लोग अपने घर की सफाई करते हैं, दीयों से सजाते हैं और रातभर जागरण करते हैं ताकि मां लक्ष्मी प्रसन्न होकर उनके घर में आएं।
इस दिन पूजा का महत्व
शरद पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी की पूजा करने से जीवन में धन, सुख और समृद्धि आती है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति आलस्य छोड़कर इस रात मां की आराधना करता है, उसके जीवन से आर्थिक संकट दूर हो जाते हैं और आध्यात्मिक उन्नति भी होती है। इस दिन लक्ष्मी पूजन के साथ-साथ चंद्रमा की पूजा भी की जाती है। लोग दूध और खीर का भोग लगाते हैं और उसे चांदनी में रखते हैं।
खीर रखने की परंपरा
शरद पूर्णिमा की रात खीर बनाने और उसे चांदनी में रखने की परंपरा बहुत प्राचीन है। इसे “क्षीर भोग” भी कहा जाता है। मान्यता है कि जब खीर को चंद्रमा की रोशनी में रखा जाता है, तब उसमें अमृत समान औषधीय गुण आ जाते हैं। सुबह इस खीर को माता लक्ष्मी को अर्पित कर परिवार के सभी लोग प्रसाद के रूप में खाते हैं। यह न सिर्फ धार्मिक रूप से शुभ है बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी बहुत लाभदायक है।
खीर रखने का धार्मिक महत्व
चंद्रमा को हिंदू धर्म में शीतलता और अमृत का देवता माना गया है। शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा सोलह कलाओं से युक्त होता है, जिससे उसकी किरणों में अमृत तत्व प्रवाहित होता है। जब खीर को खुले आसमान में रखा जाता है, तो चंद्रमा की किरणें उसमें अमृत समान गुण भर देती हैं। इस खीर को खाने से शरीर में ठंडक, मन में शांति और विचारों में स्थिरता आती है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, खीर को दूध और चावल से बनाया जाता है जो क्रमशः सत्त्व और शुद्धता का प्रतीक हैं। ये दोनों तत्व चंद्र किरणों की ऊर्जा को अपने अंदर समाहित कर लेते हैं। इसलिए यह खीर सिर्फ प्रसाद नहीं बल्कि शरीर और मन को संतुलन देने वाली प्राकृतिक औषधि मानी जाती है।
खीर रखने का वैज्ञानिक कारण
अगर वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो शरद ऋतु के दौरान दिन और रात के तापमान में अचानक अंतर आ जाता है। इस समय शरीर को हल्का, ठंडा और पौष्टिक आहार चाहिए होता है। दूध और चावल का मिश्रण यानी खीर इस जरूरत को पूरा करता है।
जब खीर को खुले आसमान के नीचे रखा जाता है, तो चांद की किरणों में मौजूद ultraviolet elements उसके रासायनिक गुणों को शुद्ध करते हैं। इससे खीर अधिक हल्की, पचने योग्य और सेहतमंद बन जाती है। यही कारण है कि शरद पूर्णिमा की खीर को प्राकृतिक औषधि कहा गया है।
शरद पूर्णिमा पर करने योग्य कार्य
- रात को घर को अच्छे से साफ-सुथरा रखें और दीपक जलाएं।
- लक्ष्मी माता और भगवान विष्णु की पूजा करें।
- खीर बनाकर उसे चंद्रमा की रोशनी में रखें।
- रातभर जागरण करें और भक्ति गीत गाएं।
- सुबह खीर का प्रसाद बांटें और स्वयं ग्रहण करें।
शरद पूर्णिमा और आध्यात्मिक ऊर्जा
शरद पूर्णिमा की रात को ब्रह्मांड की ऊर्जाएं सबसे सक्रिय होती हैं। चंद्रमा की किरणें मनुष्य के मन, शरीर और आत्मा पर सीधा प्रभाव डालती हैं। अगर कोई व्यक्ति ध्यान लगाता है, तो उसकी मानसिक शक्ति बढ़ती है। इसी कारण आयुर्वेदाचार्य इस रात जड़ी-बूटियों को चांदनी में रखते हैं ताकि उनमें जीवनदायिनी ऊर्जा समाहित हो सके।
शरद पूर्णिमा को क्या न करें
- इस दिन घर में झगड़ा या विवाद न करें।
- पूजा के दौरान मोबाइल या टीवी का उपयोग न करें।
- बिना स्नान किए पूजा स्थल में प्रवेश न करें।
- खीर को ढककर न रखें, उसे खुला छोड़ें ताकि चांदनी सीधे पड़े।
शरद पूर्णिमा का आध्यात्मिक संदेश
शरद पूर्णिमा हमें सिखाती है कि जीवन में प्रकाश यानी सकारात्मकता बहुत जरूरी है। जिस तरह चंद्रमा अंधकार में उजाला फैलाता है, उसी तरह हमें भी अपने जीवन में ज्ञान और भक्ति का प्रकाश जलाए रखना चाहिए। यह दिन सिर्फ धन प्राप्ति का प्रतीक नहीं, बल्कि आत्मिक शुद्धि और मानसिक संतुलन का संदेश देता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
Sharad Purnima 2025 की रात कोजागरी पूर्णिमा के नाम से जानी जाती है, जब मां लक्ष्मी स्वयं पृथ्वी पर आती हैं। जो व्यक्ति इस रात श्रद्धा से पूजा करता है, उसका जीवन धन, सुख और समृद्धि से भर जाता है। खीर को चांदनी में रखने की परंपरा धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों दृष्टियों से फायदेमंद है। यह दिन हमें सिखाता है कि अगर हम जागरूक और सकारात्मक रहें, तो जीवन में कभी अंधकार नहीं छा सकता।