Facts about International Space Station in Hindi : आज इस लेख के जरिए हम आपके साथ इंटरनेशनल स्पेश स्टेशन के विषय में बात करने जा रहे हैं।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन मानव द्वारा निर्मित एक बड़ा अंतरिक्ष यान होता है जिसमें कई लोग एक साथ रह सकते हैं। इस इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में उनकी जरूरत का सारा प्रबंध भी किया रहता है।
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा करता रहता है। इसी स्पेस स्टेशन में अंतरिक्ष यात्री ठहरते हैं और अंतरिक्ष पर अपना शोध करते हैं। सही मायने में इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन एक प्रयोगशाला की तरह ही होता है जिसमें रहने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के लिए अध्ययन तथा प्रयोग की सारी व्यवस्थाएं उपलब्ध रहती हैं।
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पृथ्वी के नजदीकी बाहरी कक्षा में स्थापित किया जाता है। यह मानव निर्मित अब तक का सबसे बड़ा उपग्रह है जिसे विश्व की कई बड़ी स्पेस एजेंटीयों ने मिलकर बनाया है।
आसान भाषा में समझिए कि जिस तरह से धरती पर हम सभी लोग अपने घर में रहते हैं, ठीक उसी तरह से अंतरिक्ष में भी अंतरिक्ष यात्रियों के रहने के लिए एक घर बनाया जाता है, जिन्हें हम स्पेस स्टेशन या फिर अंतरिक्ष स्टेशन के नाम से जानते हैं।
इसी स्टेशन में रहकर वैज्ञानिक लंबे वक्त तक अंतरिक्ष में काम करते हैं। इस समय भी अंतरिक्ष में इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन मौजूद है, जिसके बारे में आज हम यहां बात करने जा रहे हैं।
आज हम यहां यह जानेंगे कि इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन कैसे काम करता है? इसका निर्माण कब हुआ और इसे किसने बनाया?
विषय–सूची
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन क्या है? (International Space Station in Hindi)
अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन को ISS के नाम से भी जाना जाता है यानी इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन।
यह एक बहुत बड़ा स्पेसक्राफ्ट है, जो धरती के चारों तरफ घूमता रहता है। यह स्टेशन एक तरह का घर है, जिसमें अंतरिक्ष यात्री रहते हैं। इस स्टेशन में एक साइंस लेब भी है।
अब अगर आप यह सोच रहे हैं कि यह भारत का स्पेस स्टेशन है, तो हम आपको बता दें कि इस स्पेश स्टेशन को किसी एक देश नहीं बल्कि कई सारे देशों ने मिलकर एक साथ बनाया है और सभी देश मिलकर इसका इस्तेमाल भी करते हैं।
इस स्पेस स्टेशन को ‘low earth orbit’ में स्थापित किया गया है और यह धरती से 250 मील यानी 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर परिक्रमा करता है। इस स्पेस स्टेशन को तैयार करने के बाद सन 2000 के बाद से एक भी दिन ऐसा नहीं गया है, जब इसमें अंतरिक्ष मौजूद ना रहे हों। इस स्पेस स्टेशन में अंतरिक्ष से जुड़ी सभी रिसर्च की जाती है।
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से जुड़ें महत्वपूर्ण तथ्य (Facts about International Space Station in Hindi)
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन लांच | 20 नवंबर 1998 (Launch Date) |
स्थापित कक्षा | लगभग 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर (Low Orbit of Earth) |
लागत (Cost) | 160 अरब डॉलर |
पृथ्वी की परिक्रमा | 16 बार (1 परिक्रमा = 90 मिनट) |
वजन (Weight) | 420,000 किग्रा (925,000 पौंड) लगभग |
क्षमता (Capacity) | 6 अंतरिक्ष यात्री |
क्षेत्रफल | 357 वर्ग फीट (फ़ुटबॉॅल ग्राउंड के बराबर) |
गति (Speed) | 27600 किलोमीटर मिनट प्रति घंटें |
दुनियां में कितने स्पेस स्टेशन मौजूद हैं?
- अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (परिचालन और स्थायी रूप से निवास करता है।)
- चीन का Tiangong-2 (परिचालन है लेकिन स्थायी रूप से निवास नहीं करता है।)
- अल्माज़ और Salyut series
- स्काइलैब
- मीर
- Tiangong-1
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को बनाने वाले देश कौन-कौन से हैं?
जैसा कि हमने आपको पहले भी बताया इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को बनाने वाला कोई एक देश नहीं बल्कि 5 देश हैं, जिन्होंने मिलकर इस स्पेस स्टेशन को बनाया है।
- अमेरिका (National Aeronautics and Space Administration) (NASA)
- रूस (Russian Federal Space Agency) (Roscosmos)
- जापान (Japan Aerospace Exploration Agency) (JAXA)
- कनाडा (Canadian Space Agency) (CSA)
- यूरोपीय देश (European Space Agency) (ESA)
वैज्ञानिक स्पेस स्टेशन में किस तरह रहते हैं?
यह तो आमतौर पर सभी जानते होंगे कि अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण बल नहीं पाया जाता जिसके कारण सभी चीजें बिना सतह पर उड़ती रहती हैं।
सीधे शब्दों में समझाया जाए तो सभी चीजें अंतरिक्ष में हवा में तैरती रहती हैं यहां तक की अंतरिक्ष यात्री भी अंतरिक्ष की गुरुत्वाकर्षण की अनुपस्थिति में खड़े नहीं हो सकते।
ऐसे में चलने से लेकर खाना खाने तक और अपने दैनिक क्रियाओं को करना अंतरिक्ष में आसान नहीं होता है। इसलिए स्पेस में जिन वैज्ञानिकों को भेजा जाता है, उन्हें पहले अंतरिक्ष के माहौल में रहने की ट्रेनिंग दी जाती है।
अंतरिक्ष में खाने पीने की चीज भी हवा में उड़ती रहती हैं। इसी वजह से खाने-पीने की चीजों को रखने के लिए एक खास पैकेट बनाया जाता है और अंतरिक्ष में खाना खाने का अलग तरीका सिखाया जाता है। वहीं, अंतरिक्ष यात्रियों को टॉइलट की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए खास तरह के वैक्यूम पंप से निर्मित टॉयलेट बनाए जाते हैं।
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स्पेस स्टेशन में कैसे होता है खाने-पीने का प्रबंध?
आपको जानकार हैरानी होगी कि अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन में लोग आज से नहीं बल्कि 2 नवंबर सन् 2000 से रह रहे हैं। तब से लेकर अब तक बहुत से अंतरिक्ष यात्री इस स्पेस स्टेशन में रह चुके हैं।
ऐसे में बहुत से लोगों के मन में यह सवाल होता है कि अंतरिक्ष में रहने वाले लोगों के पास खाना कैसे पहुंचाया जाता होगा? तो आपको बता दें कि अंतरिक्ष यात्रियों और वैज्ञानिकों को समय-समय पर पृथ्वी पर वापस आना पड़ता है, क्योंकि वहां लगातार लंबे समय तक रहना अंतरिक्ष यात्रियों के लिए ठीक नहीं होता।
ऐसे में जब वैज्ञानिक नीचे आते हैं, तभी उन्हें समय-समय पर खाने-पीने की वस्तुएं भेजी जाती हैं तथा उनके भोजन और दैनिक जरूर का प्रबंध किया जाता है।
भारत का स्पेस स्टेशन
जिस तरह से भारत देश अपने आपको वैश्विक शक्ति बनने के प्रयास में लगा हुआ है, ऐसे में भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में भी अपना कदम बढ़ा रहा है। भारत की योजना है कि साल 2030 तक वह अपना खुद का स्पेस स्टेशन स्थापित करेगा।
इस स्टेशन में 4 से 5 अंतरिक्ष यात्री करीब 15 से 20 दिनों के लिए रुक सकेंगे। इस स्टेशन को पृथ्वी की लो ऑर्बिट में लगभग 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थापित किया जाएगा और इस स्टेशन का वजन लगभग 20 टन के आस-पास होगा।
चीन अब तक दो स्पेस स्टेशनों को कक्षा में भेज चुका है।
बता दें कि चीन अब तक अपने 2 स्पेस स्टेशनों को कक्षा में भेज चुका है, जिनमें Tiangong-1 और Tiangong-2 शामिल है। यह दोनों ट्रायल स्टेशन थे। हालांकि, इन स्टेशनों में अंतरिक्ष यात्री बेहद कम समय तक ही रह पाए थे। भारत के साथ-साथ चीन ने भी 2030 तक दुनिया में एक प्रमुख अंतरिक्ष का निर्माण करने की योजना बनाई है।
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशनों के पार्ट्स
- अंतरिक्ष स्टेशन को कई टुकड़ों को जोड़कर बनाया जाता है, जिन्हें मॉड्यूलस के नाम से जाना जाता है। इन मॉड्यूलस में अंतरिक्ष यात्री रहते हैं।
- स्पेस स्टेशन में एक लैब होता है, जिसमें अंतरिक्ष यात्री रिसर्च करते हैं।
- अतंरिक्ष स्टेशन के साइडों में सोलर रेस (Solar Arrays) लगी होती हैं, जिनका काम सूर्य से ऊर्जा लेना होता है और फिर यही सूर्य की रोशनी बिजली में बदल जाती है।
- इस स्टेशन में रोबॉट आर्म्स होते हैं, जो स्टेशन के बाहर की तरफ जुड़े होते हैं। इनकी मदद से स्पेस स्टेशन का निर्माण किया जाता है। अंतरिक्ष यात्री इन आर्म्स की मदद से बाहर घूमते हैं।
- स्पेस स्टेशन में एयरलॉक भी होता है, जो दरवाजों की तरह इस्तेमाल किया जाता है। इसकी मदद से अंतरिक्ष यात्री स्टेशन से बाहर से निकलते हैं।