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Gupta Dynasty History in Hindi: गुप्त काल को क्यों कहा जाता है भारत का स्वर्ण युग? जानिए गुप्त वंश का इतिहास –

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प्राचीन भारत में मौर्य वंश के विशाल शासन के पश्चात संपूर्ण भारत अलग अलग राज्यों में बट गया था।

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मौर्य वंश के शासन की कई शताब्दी बाद तक अखंड भारत विभिन्न खंडों में बैठा हुआ था जिसे एक करने का प्रयास विभिन्न राजवंशों ने अपने अपने तरीके से किया।

इन वंशो में संपूर्ण भारत को एक करने का श्रेय गुप्त वंश को दिया जाता है। गुप्त साम्राज्य में दो महान राजा हुए एक समुद्रगुप्त जिन्हें भारत का नेपोलियन कहा जाता है तथा दूसरे चंद्रगुप्त द्वितीय जिन्हें विक्रमादित्य की उपाधि मिली थी।

गुप्त साम्राज्य भारतीय राजवंशों का ऐसा साम्राज्य था जो आर्थिक सामाजिक राजनीतिक वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक सभी प्रकार से संपन्न था यही कारण है कि आज भी गुप्त साम्राज्य के इस इतिहास को भारत का स्वर्ण काल कहा जाता है।

गुप्त काल के दौरान वैश्विक विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी, साहित्य, स्थापत्य कला, मूर्तिकला तथा चित्रकला के क्षेत्र में भारत ने नई-नई उपलब्धियां हासिल की इसी कारण इस राजवंश को भारतीय राजवंशों में सबसे समृद्ध माना जाता है।

गुप्त वंश का इतिहास काफी रोचक है। तो आइए आज इस लेख के जरिए हम गुप्त वंश का इतिहास जानते हैं।

Gupta Dynasty History in Hindi

गुप्त वंश का इतिहास (Gupta Dynasty History in Hindi)

आपको बता दें की गुप्त वंश का उदय लगभग तीसरी शताब्दी के उत्तरार्ध के अंतिम चरणों में हुआ था जोकि उत्तर प्रदेश तथा बिहार के प्रांतों में फैला हुआ था।

गुप्त वंश की स्थापना श्री गुप्त ने की थी जिन्होंने प्रयागराज के निकट कौशांबी को इसकी राजधानी बनाया था।

जब भारत में बौद्ध तथा जैन धर्म का प्रभाव भारत में अधिक बढ़ रहा था तथा वैदिक सनातन धर्म पतन की ओर जा रहा था।

तब भारत में इस वंश ने ही वैदिक धर्म का न केवल प्रचार किया बल्कि वैदिक धर्म को अपने शिखर तक पहुंचाने का कार्य भी किया।

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इस साम्राज्य तथा गुप्त वंश ने सनातन धर्म का झंडा पूरे भारत में फैलाने का प्रयास किया।

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श्री गुप्त – गुप्त वंश का संस्थापक –

गुप्त वंश के संस्थापक के रूप में श्री गुप्त का नाम आता है। प्राचीन अभिलेखों की माने तो गुप्त वंश के संस्थापक श्री गुप्त प्रारंभ में अधीर राजाओं के अधीन प्रयाग नामक एक छोटे से राज्य के राजा थे।

जिन्होंने बाद में स्वतंत्र गुप्त वंश के नींव रखी। प्रारंभ में संपूर्ण भारत को एक करने के उद्देश्य से श्री गुप्त ने लिच्छवी की राजकुमारी से विवाह किया जिससे उनका साम्राज्य और बढ़ा हुआ।

आगे चलकर अपने संबंधों तथा युद्ध नीतियों से श्री गुप्त तथा श्री गुप्त  के पश्चात इनके पुत्र घटोत्कच गुप्त वंश का सम्राट बना।

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घटोत्कच को ही गुप्त वंश का प्रथम स्वतंत्र शासक भी कहा गया। इसका शासन उत्तर प्रदेश बिहार के आसपास के क्षेत्रों तक सीमित था।

घटोत्कच लगभग 280 इसमें से लेकर 320 ईसवी तक गुप्त वंश के सिंहासन पर बैठा रहा कथा अपने साम्राज्य की देखरेख करता रहा। गुप्त वंश में स्वतंत्र भारत काफी विवरण एवं आर्थिक रूप से मजबूत था इसलिए गुप्त वंश को भारत का स्वर्ण युग या स्वर्ण काल भी कहा जाता है।

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चंद्रगुप्त प्रथम-

अपने पिता घटोत्कच की मृत्यु के पश्चात चंद्रगुप्त प्रथम गद्दी पर बैठा जिसने स्वयं महाराजाधिराज की उपाधि धारण की तथा इसी नाम से वह शासन करता था।

चंद्रगुप्त प्रथम के जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी  कि उसने लिच्छवी संघ को गुप्त वंश के अधीन कर लिया था।

इसका शासनकाल 320 ईसवी से 335 ईसवी तक रहा। चंद्रगुप्त प्रथम में लगभग 320 ईसवी के आसपास गुप्त संवत की भी स्थापना की।

शक संवत तथा गुप्त संवत में लगभग 341 वर्षों का अन्तर है। इतिहासकारों की मानें तो लिच्छवीओ को गुप्त वंश में मिलाने के लिए चंद्रगुप्त प्रथम उनकी  राजकुमारी कुमार देवी से विवाह किया जिससे कि लिच्छवी संघ गुप्त वंश में मिल गया तथा गुप्त वंश की सीमा का विस्तार हुआ।

कुमार देवी से विवाह के पश्चात ही चंद्रगुप्त ने वैशाली राज्य प्राप्त किया तथा मगध की सीमा के समीप आ गया। चंद्रगुप्त ने अपने शासनकाल में चांदी के सिक्के चलाएं जिसमें की चंद्रगुप्त प्रथम तथा कुमार देवी के चित्र अंकित थे।

इतिहासकार हेमचंद्र राय चौधरी के अनुसार चंद्रगुप्त प्रथम अपने पूर्ववर्ती राजा बिंबिसार के पद चिन्हों पर चलकर ब्लैक छवियों की राजकुमारी कुमार देवी से विवाह की जिससे कि उसका साम्राज्य  राजनीतिक रूप से और मजबूत हो गया तथा आर्थिक रूप से भी समृद्ध हो गया।

इसने लिच्छवी की राजकुमारी कुमार देवी से विवाह करके द्वितीय गुप्त वंश की स्थापना की।  हेम चंद्र राय चौधरी की माने तो चंद्रगुप्त ने कौशांबी और कौशल के राजाओं को जीतकर उनका साम्राज्य अपने में मिलाया तथा पाटलिपुत्र को अपनी राजधानी बनाया।

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समुद्रगुप्त भारत का नेपोलियन –

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि चंद्रगुप्त प्रथम तथा लिच्छवी की राजकुमारी कुमार देवी के पुत्र का नाम समुद्रगुप्त था जिन्हें भारत के नेपोलियन के नाम से भी जाना जाता है।

समुद्रगुप्त ने 335 ईसवी में गुप्त वंश का सिंहासन संभाला। उन्होंने गुप्त वंश के साम्राज्य का सर्वाधिक विस्तार किया । समुद्रगुप्त को भारत के सबसे महान शासकों में गिना जाता है।

अपने शासनकाल के दौरान समुद्रगुप्त को परक्रमांक कहा जाता था। समुद्रगुप्त का शासन काल राजनीतिक एवं आर्थिक दृष्टि से गुप्त वंश का उत्कर्ष समय माना जाता है।

समुद्रगुप्त का सबसे प्रमुख अभियान दक्षिण की तरफ जिसे की दक्षिणा पथ के नाम से जाना जाता है था। इस अभियान में 12 विजयों का उल्लेख मिलता है।

समुद्रगुप्त एक असाधारण सैनिक योग्यता वाला वीर राजा था इसमें अपने जीवन में किसी भी युद्ध में पराजय का मुंह नहीं देखा। अंग्रेजी विद्वान विंसेंट स्मिथ ने समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन की उपाधि दी थी।

समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन इसलिए कहा जाता है क्योंकि इन्होंने अपने जीवन में कभी कोई युद्ध ऐसा नहीं लड़ा जिसमें की इनकी हार हुई हो, अर्थात इन्होंने प्रत्येक युद्ध में विजय हासिल की।

ऐसा माना जाता है की उत्तर तथा पूर्व की दिशा में साम्राज्य का विस्तार समुद्रगुप्त के समय ही अधिक हुआ था।

लोक श्रुतियों में यह भी कहा जाता है की समुद्रगुप्त का घोड़ा 3 समुद्रों का पानी पीता था जिससे कि यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने दक्षिण भारत में भी अपनी विजय पताका को फहराया था।

अपने पिता के पश्चात लिच्छवियो का द्वितीय राज्य नेपाल जिसे की समुद्रगुप्त ने गुप्त वंश में मिला लिया।

समुद्रगुप्त एक अच्छा राजा होने के साथ-साथ संगीत एवं कला में भी निपुण था। उसे कला मर्मज्ञ के नाम से भी जाना जाता था।

समुद्रगुप्त ने अपने शासनकाल में सोने और चांदी के सिक्के चल बाय जिसमें कि उसे वीणा बजाते हुए दिखाया गया है जिससे कि यह पता चलता है समुद्रगुप्त संगीत में भी रूचि रखता था और एक अच्छा वादक  भी था।

समुद्रगुप्त की मृत्यु 385 ईस्वी में हुई जिसके पश्चात उसका पुत्र चंद्रगुप्त द्वितीय राजा बना। समुद्रगुप्त ने प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान वसुमित्र को अपना महामंत्री नियुक्त किया था।

हरिशेन समुद्रगुप्त का मंत्री एवं दरबारी कवि था जिसकी रचना प्रयाग प्रशस्ति में समुद्रगुप्त के राज्यारोहण राज्य विजय वीणा वादन तथा संपूर्ण जीवन परिचय मिलता है।

समुद्रगुप्त ने अपने शासनकाल के दौरान एक महान तथा विशाल साम्राज्य की स्थापना किया जों की उत्तर में हिमालय पर्वत से लेकर दक्षिण में विंध्य पर्वत तक तथा पूर्व में बंगाल की खाड़ी से लेकर पश्चिम में पूर्वी मालवा तक विकसित था।

कश्मीर पश्चिमी पंजाब पश्चिमी राजस्थान तथा सिंध राज्यों को छोड़कर समस्त उत्तर भारत के राज्य समुद्रगुप्त के साम्राज्य में शामिल थे।

समुद्रगुप्त के शासनकाल में सदियों से पतन की ओर जा रहे आर्यावर्त तथा वैदिक धर्म का  भैतिक ,बौद्धिक तथा आर्थिक रूप से विकास हुआ और अपने चरम उत्कर्ष पर पहुंचा। समुद्रगुप्त ने अपनी विजय के पश्चात अश्वमेध यज्ञ करवाया।

चंद्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य)-

चंद्रगुप्त द्वितीय 385 ईस्वी में भारत के सिंहासन पर बैठा जो की समुद्रगुप्त तथा महेशी देवी का पुत्र था।

इसने भारत पर लगभग 40 वर्षों तक शासन किया। चंद्रगुप्त द्वितीय अपने शासनकाल में विक्रमादित्य के नाम से शासन किया जो कि आगे चलकर विक्रमादित्य के नाम से बहुत विख्यात हुआ।

चंद्रगुप्त द्वितीय ने शकों पर अपनी विजय हासिल की तथा उन्हें भारत से बाहर खदेड़ दिया जिसके पश्चात गुप्त वंश और अधिक प्रभावशाली तथा मजबूत राजवंश हो गया। चंद्रगुप्त द्वितीय के समय ही भारत में क्षेत्रीय तथा सांस्कृतिक विकास हुआ।

 चंद्रगुप्त द्वितीय अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए नागवंश ,वाकाटक वंश तथा कदंब वंश के साथ  विवाह संबंध स्थापित किया जिससे इस साम्राज्य पर होने वाले आक्रमणों का खतरा टल गया और इस साम्राज्य का विस्तार भी हुआ।

शकों पर विजय के पश्चात गुप्त वंश ना केवल मजबूत हुआ बल्कि पश्चिमी पट्टनो पर गुप्त वंश का एकाधिकार हो गया तथा इस समय गुप्त वंश की राजधानी उज्जैन को बनाया गया।

चंद्रगुप्त द्वितीय अर्थात विक्रमादित्य का काल ब्राह्मण धर्म अथवा वैदिक धर्म के चरमोत्कर्ष का काल था इस समय विक्रमादित्य के प्रधान सचिव शैव तथा सेनापति बौद्ध थे।

चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के काल में ही चीनी यात्री फाह्यान 414 ईसवी में भारत आया जिसने अपनी रचना में भारत को एक सुखी और समृद्ध राष्ट्र बताया है।

गुप्त काल को भारत का स्वर्ण युग क्यों माना जाता है?

भारतीय इतिहास में गुप्त काल को भारत का स्वर्ण युग कहा जाता है क्योंकि इसी राजवंश की सत्ता दौरान भारत ने विश्व जगत में एक से बढ़कर एक उपलब्धियां हासिल की फिर चाहे वह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का क्षेत्र रहा हो, स्थापत्य और मूर्तिकला का क्षेत्र रहा हो या फिर साहित्य गुप्त राजवंश शासन के दौरान भारत में संपूर्ण विश्व को अपनी उपलब्धियों के बल पर एक नया आयाम दिया।

गुप्त काल के दौरान विश्व भर में व्यापक स्तर पर भारतीय संस्कृति का प्रचार प्रसार हुआ, धार्मिक सहिष्णुता की भावनाएं जागृत हुई तथा आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ सुव्यवस्थित शासन प्रणाली की स्थापना हुई।

गुप्त काल के दौरान ही स्थापत्य कला के बेहतरीन नमूने सांची का स्तूप तथा देवगढ़ का दशावतार मंदिर का निर्माण हुआ था। अगर बात की जाए चित्रकला की तो गुप्त राजवंश के शासन के दौरान ही अजंता और एलोरा की गुफाओं में चित्रकला बनाई गई।

गुप्त राजवंश में ही चंद्रगुप्त द्वितीय नाम के एक महान शासक हुए जिन्हें विक्रमादित्य की उपाधि मिली थी। विक्रमादित्य की उपाधि धारण करने वाले चंद्रगुप्त द्वितीय ने ही अपने सभा रत्नों में से महाकवि कालिदास जैसा साहित्यकार भारत को दिया जिन्होंने अभिज्ञान शाकुंतलम् मेघदूतम और ऋतुसंहर जैसी उत्कृष्ट रचनाएं की।

इसी युग के दौरान भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की दुनिया में भी कई नई उपलब्धियां हासिल की जिनमें आर्यभट्ट द्वारा पृथ्वी की त्रिज्या की गणना और ब्रह्मांड का सिद्धांत शामिल है। केवल इतना ही नहीं स्वर्ण युग के दौरान ही वाराह्मीहिर ने चंद्र कैलेंडर की भी शुरुआत की थी।

भारतीय इतिहास का गुप्त काल विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से लेकर स्थापत्य तथा मूर्ति कला एवं साहित्य ने भी बेहद समृद्ध था यही कारण है कि भारतीय इतिहास में गुप्त काल की गणना स्वर्ण युग के नाम से की जाती है।

तो दोस्तों आज इसलिए के जरिए हमने आपको गुप्त साम्राज्य का इतिहास बताया। उम्मीद करते हैं कि यह लेख आपको पसंद आया होगा।

FAQ

गुप्त वंश को क्यों कहा जाता है स्वर्ण युग?

भारत में अपने धार्मिक सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से समृद्धि के कारण इस वंश को भारत का स्वर्ण युग कहा जाता है।

गुप्त वंश का संस्थापक कौन थे?

गुप्त वंश के संस्थापक श्री गुप्त थे।

गुप्त वंश के किस राजा को विक्रमादित्य की उपाधि मिली थी?

गुप्त वंश के राजा चंद्रगुप्त द्वितीय को विक्रमादित्य की उपाधि मिली थी।

गुप्त वंश के किस राजा को भारत का नेपोलियन कहा जाता है?

गुप्त वंश के राजा समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कह कर संबोधित किया जाता है।

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