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मौर्यवंश साम्राज्य का इतिहास : वैदिक संस्कृत के पतन के पश्चात भारत में कई राजवंशों का उदय हुआ यद्यपि राज्यों में मुख्य रूप से हर्यंक और नंद राजवंश प्रमुख थे।
मगर इनमें से किसी भी राजवंश में इतनी क्षमता नहीं थी कि वह संपूर्ण भारत पर अपना पूर्ण आधिपत्य स्थापित कर सकें।
तत्पश्चात चाणक्य की राजनीतिक एवं कूटनीति नीतियों के प्रभाव से मौर्य साम्राज्य का उदय हुआ।
मौर्य साम्राज्य का प्रारंभ 322 ईसा पूर्व में चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य के राज्याभिषेक से प्रारंभ होता है अपने 32 वर्षाे के अपने शासनकाल में मौर्य साम्राज्य ने पूरे भारत पर विजय पताका फहराई। इसका विस्तार कंधार, अफगानिस्तान, काबुल से लेकर बंगाल की खाड़ी तक 5 मिलियन वर्गकिमी तक फैला हुआ था।
184 ईसा पूर्व में मौर्य वंश का पतन इसके अंतिम शासक बृहद्रथ के मंत्री पुष्यमित्र शुंग द्वारा धोखे से उसकी हत्या के बाद हुआ।
यह राजवंश 137 वर्ष तक अपने कुशल प्रभाव से अखंड भारत पर शासन करने में सक्षम बना रहा।
विषय–सूची
मौर्य साम्राज्य की स्थापना (Maurya Dynasty History in Hindi)
मौर्य साम्राज्य की स्थापना तथा नंद वंश के अंतिम शासक धनानंद के पतन का प्रारंभ घनानंद द्वारा चाणक्य के अपमान से प्रारंभ हो गया।
यद्यपि अगर देखा जाए तो धनानंद सिकंदर का समकालीन था और वह मगध पर शासन कर रहा था। वैसे तो उसकी विशाल सेना थी इसका सामना सिकंदर करने में अक्षम था परंतु उसके विजय नीतियों से डरकर एक बार चाणक्य धनानंद के दरबार में सिकंदर के बारे में उसे सचेत करने के लिए पहुंच गए।
धनानंद ने अपने विशाल सेना के घमंड में स्वयं को सिकंदर से श्रेष्ठ बतलाते हुए युद्ध नीतियों के संदर्भ में चाणक्य को मूर्ख बताया साथ ही अन्य कई मामलों में उन्हें अपमानित किया। तभी से इस अपमान का बदला लेने के लिए चाणक्य ने धनानंद के संपूर्ण साम्राज्य का पतन करने की कसम खाई और एक ऐसे योद्धा की तलाश में निकल पड़े जो साहसी निडर व युद्ध कौशल में निपुण हो।
एक स्थान पर उन्होंने एक बालक को अपने संपूर्ण युद्ध कलाओं का अभ्यास करते हुए देखा और तभी से या निश्चय कर लिया यही नंद वंश के पतन का कारण बनेगा।
चाणक्य के आदेशानुसार चंद्रगुप्त मौर्य ने कई बार मगध पर आक्रमण किया और अंततः मगध पर विजय प्राप्त किया और 322 ईसा पूर्व में चाणक्य द्वारा चंद्रगुप्त मौर्य का राज्याभिषेक हुआ।
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मौर्यकाल के शासकों के नाम व शासनकाल (Maurya Empire Names and reign of the rulers of Mauryan period hindi)
शासनकाल | मौर्य साम्राज्य के शासक |
---|---|
322 – 298 ईसापूर्व | चन्द्रगुप्त मौर्य |
298 – 272 ईसापूर्व | बिन्दुसार |
268 – 232 ईसापूर्व | अशोक |
232 – 224 ईसापूर्व | दशरथ मौर्य |
224 -215 ईसापूर्व | सम्प्रति |
215 – 202 ईसापूर्व | शालिसुक |
202 – 195 ईसापूर्व | देववर्मन |
195- 187 ईसापूर्व | शतधन्वन मौर्य |
187- 185 ईसापूर्व | बृहद्रथ मौर्य |
मौर्यसाम्राज्य के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
मौर्य साम्राज्य की स्थापना | 322 ईसापूर्व |
शासनकाल | 137 वर्ष |
संस्थापक | चंद्रगुप्त मौर्य |
प्रथम सम्राट | चंद्रगुप्त मौर्य |
अंतिम सम्राट | बृहद्रथ (2 वर्ष) |
सबसे प्रभावशाली व लंबा शासनकाल | सम्राट अशोक (37 वर्ष) |
राजधानी | पाटलिपुत्र |
क्षेत्रफल | 50 लाख वर्ग किमी |
मुद्रा | पण |
मौर्य साम्राज्य के शासक (Maurya Dynasty Kings)
1. चंद्रगुप्त मौर्य
चंद्रगुप्त मौर्य मौर्य वंश का प्रथम शासक जिसने 322 ईसा पूर्व में अपनी राजधानी पाटलिपुत्र को बनाकर अपने शासन का पदभार संभाला और अपने 32 वर्ष के शासनकाल में उसने संपूर्ण भारत पर अपने विजय पताका को फहरा दिया।
सर्वप्रथम 316 ईसापुर में चंद्रगुप्त मौर्य ने संपूर्ण उत्तर भारत को जीतने की योजना बनाई और अपनी नीतियों के परिणाम स्वरूप इसमें सफल भी रहा।
305 ईसा पूर्व का युद्ध चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल का सबसे रोचक युद्ध माना जा सकता है जिसमें उसने सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस निकेटर को बुरी तरह पराजित किया था।
लेकिन बाद में एक समझौते के तहत उसने से सेल्यूकस निकेटर की बेटी हिलना से विवाह कर लिया और सेल्यूकस निकेटर को 500 हाथी देकर विदा कर दिया।
चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में ही सलूकस निकेटर ने अपना एक राजदूत मेगास्थनीज को भारत भेजा मैं गुस्से में इतने भारत भ्रमण में मौर्य कालीन शासक चंद्रगुप्त मौर्य के विषय में अनेक जानकारियों को इकट्ठा करके अपनी पुस्तक इंडिका व्यवस्थित किया।
जैसा कि इतिहासकारों का मानना है कि चंद्रगुप्त मौर्य ने मात्र 32 वर्ष तक शासन किया था उसके बाद उसने जैन धर्म को स्वीकार कर लिया और अपने जीवन के अंतिम समय में जैन अनुयाई भद्रबाहु के साथ कर्नाटक की श्रवणबेलगोला में जाकर जैन सिद्धांतों के आधार पर बिना अन्न जल ग्रहण की अपने प्राणों का त्याग कर दिया।
2. बिंदुसार –
चंद्रगुप्त मौर्य के पश्चात मौर्य वंश का दूसरा शासक बिंदुसार हुआ जो कि चंद्रगुप्त मौर्य की एक पत्नी दुर्धरा का पुत्र था।
वैसे चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने शासनकाल में भारत के अधिकांश भाग पर पर्याप्त विजय प्राप्त कर लिया था परंतु दक्षिणा पर के कुछ क्षेत्रों पर विजय प्राप्त करना अभी बाकी था और इतिहास का इस विजय का श्रेय बिंदुसार को ही देते है।
परंतु इनमें कई मतभेद हैं कुछ इतिहासकारों का मानना है कि बिंदुसार ने अपने शासनकाल के दौरान कोई भी युद्ध नहीं लड़ा सभ्यता आजीवक संप्रदाय का समर्थक था और उसने 25 वर्ष तक शासन किया।
यूनानी ग्रंथों में बिंदुसागर को अमित्रोकट्स कहा गया है यानी कि दुश्मनों का संहार करने वाला! इन सब के अतिरिक्त बिंदुसार के विषय में कोई विशेष शासन के स्रोत नहीं प्राप्त होते।
3. सम्राट अशोक –
सम्राट अशोक केवल मौर्य वंश का ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व का एक महान शासक था जिसने अपने शासनकाल में केवल साम्राज्य विस्तार को ही नहीं बल्कि साहित्य एवं कला को भी विशेष तौर से ध्यान दिया।
अशोक का राज अभिषेक 269 ईसा पूर्व हुआ था और अपने पद ग्रहण के 8 वर्ष पश्चात 261 ईसा पूर्व में उसने कलिंग मैं अपने जीवन का प्रथम एवं अंतिम युद्ध लड़ा।
यद्यपि विश्व युद्ध में हुए व्यापक नरसंहार की वजह से अशोक का ह्रदय पूर्ण रूप से निकल गया और उसने भविष्य में कभी भी युद्ध ना करने की कसम खाई साथ ही अहिंसा का मार्ग बतलाने वाले बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लिया।
बौद्ध धर्म अपनाने के पश्चात अशोक ने कई धार्मिक व सामाजिक कार्य किए जिसमें अशोक के मंत्री द्वारा सुदर्शन झील का निर्माण करवाना, पशुओं के बली पर प्रतिबंध लगाना ऐतिहासिक साक्ष्यों के विशेष संदर्भ में 84000 स्तूपों को 30 स्तंभ लिखो व शिलालेखों का निर्माण करवाना आदि कई महत्वपूर्ण कार्य शामिल थे।
पाटलिपुत्र के ऐतिहासिक महेंद्र घाट का नाम अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र के नाम पर ही रखा था अशोक ने अपने शासनकाल में मात्र एक ही युद्ध लड़ा था लेकिन फिर भी उसे कई सामाजिक कार्यों के कारण इतिहासकारों द्वारा अशोक को महान शासक माना जाता है।
4. कुणाल –
कुणाल मौर्य वंश का चौथा शासक था।
जिसने मात्र 8 वर्षों तक ही शासन किया जो कि अशोक की रानी पद्मावती का बड़ा पुत्र था।
इतिहासकारों द्वारा ऐसा माना जाता है कि कुणाल की सौतेली माता कुणाल के राज्याभिषेक का विरोध कर रही थी।
परंतु कुणाल द्वारा शासन सत्ता का पदभार संभाल लेने के पश्चात उनके मन में उसके पति इतनी इच्छा जागृत हुई थी उसने कुणाल को इस योजना के तहत अंधा बना दिया था।
5. दशरथ मौर्य –
मौर्य वंश का पांचवा शासक था और अशोक का पौत्र था इसने 232 ईसा पूर्व से 224 ईसापुर तक शासन किया यद्यपि अपने दादा अशोक के समान ही सामाजिक धार्मिक नीतियों का प्रतिपालक था।
6. सम्प्रति –
संप्रति अशोक का पुत्र व कुणाल का चचेरा भाई था जिसने 224 से 215 ईसा पूर्व लगभग 9 वर्ष तक मगध पर शासन किया।
7. शालिशुक –
गार्गीसंहिता में इसे अधर्मी शासक माना जाता है
इसमें मौर्य साम्राज्य पर 215 शाहपुर से लेकर 202 ईसा पूर्व तक यानी 13 वर्ष तक शासन किया वैसे देखा जाए तो इसके शासनकाल के दौरान से ही मौर्य वंश का पतन प्रारंभ होने लगा था।
8. देववर्मन –
शालिशुक के बाद मौर्य वंश का आठवां शासक देववर्मन हुआ जिसने 202 ईसा पूर्व से 195 ईसा पूर्व तक मौर्य साम्राज्य पर शासन किया यद्यपि यह भी अपने पिता के समान ही धर्म हीनता के कार्यों को प्राथमिकता देने लगा।
9. सतधनवान मौर्य –
देवबर्मन के पश्चात सात धनवान मौर्य मैं 195 ईसा पूर्व से 187 ईसा पूर्व तक मॉल समाज पर शासन किया दोस्तों इतने अपने शासनकाल के दौरान अपने कई राज्यों को खो दिया मौर्य वंश के पतन की चरम अवस्था माना जा सकता है।
10. बृहद्रथ –
यह मौर्य वंश का अंतिम शासक था जिसने 187 ईसा पूर्व से 184 ईसा पूर्व तक शासन किया। इसकी मूर्खता व अकुशल शासन प्रणाली की वजह से इसके अपने ही सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने धोखे से उसकी हत्या कर दी अपने एक नए समाज शुंग वंश की स्थापना किया।
इस प्रकार अंतिम शासक के रूप में बृहद्रथ मौर्य वंश के पतन का कारण बना।
मौर्य साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था –
जैसा कि हमें पता है मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र और उसके प्रशासनिक व्यवस्था के निर्धारण में चंद्रगुप्त मौर्य का ही नहीं बल्कि विशेष तौर पर चाणक्य का योगदान था।
मौर्य कालीन प्रशासनिक व्यवस्था में यह साम्राज्य चार प्रांतों व आठ जिलों में बैठा हुआ था इन चार प्रांतों में उत्तर तथा दक्षिण प्रांत की राजधानी कमश: तक्षशिला व उज्जैन थी। इसी प्रकार पूर्वी व पश्चिमी प्रांत की राजधानी वैशाली स्वर्णगिरि थी।
वैसे अगर बात कौटिल्य की की जाए तो उसने अपने अर्थशास्त्र में मौर्य कालीन प्रशासनिक व्यवस्था के विषय में एक संपूर्ण अध्याय ही लिख डाला है।
यहां तक कि कौटिल्य के अतिरिक्त सेल्यूकस निकेटर का राजदूत मेगास्थनीज ने भी अपने इंडिका पुस्तक में मौर्य वंश के प्रशासनिक व्यवस्था का विस्तृत उल्लेख किया है उसने यहां की गुप्तचर व्यवस्था को काफी बेहतर बताने का प्रयत्न किया है।