Advertisements

गुरु तेग बहादुर का जीवन परिचय, गुरु तेग बहादुर कौन थे? जानिए जीवन गाथा | Guru Teg Bahadur Biography in Hindi

Guru Teg Bahadur jayanti in hindi, Guru Teg Bahadur Biography in Hindi (गुरु तेग बहादुर जयंति, जीवन परिचय, धर्म की रक्षा के लिये बलिदान देने वाले महान गुरु तेग बहादुर जी को नमन, गुरु तेग बहादुर कौन थे?)

दोस्तों, आज हम बात करेंगे सिखों के नवें धर्मगुरु तेगबहादुर के बारें में जिनका जन्म अमृतसर की पावन धरती पर हुआ जिन्होंने मानव कल्याण के लिये, धर्म की रक्षा के लिये अपने परिवार का बलिदान दे दिया और आखिर में स्वयं भी शहीद हो गए। इन्होंने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए अपना शीश भेंट कर दिया लेकिन मुगलों के धर्म को स्वीकार नहीं किया और अपनी बात पर निर्भिकता से डटे रहें।

उनके त्याग और बलिदान को इतिहास हमेशा याद रखेगा। उनके सभी धर्मों के प्रति प्रेम एवं सद्भावना को देखते हुये उन्हें हिन्द की चादर की उपाधि दी गई। आज हम गुरु तेग बहादुर का जीवन परिचय में सबसे पहले उनके जन्म और शिक्षा से जुड़े सभी महत्वपूर्ण पहलुओं पर बात करेंगे।

Guru Teg Bahadur Biography in Hindi

गुरु तेग बहादुर जी के बारे में जानकारी (Guru Teg Bahadur biography in hindi, Guru Teg Bahadur Jayanti, history, bio, family, father, mother name)

पूरा नाम (Full Name)श्री गुरु तेग बहादुर (सिखों के नवें गुरु)
उपाधिहिन्द की चादर, सिक्खों के नौवें गुरु (1621-1675)
बचपन का नाम (जन्म)त्यागमल
जन्म (Date of Birth)1 अप्रैल, 1621
जन्म स्थान (Place of Birth)अमृतसर, पंजाब, भारत
मृत्यु24 नवम्बर, 1675 (उम्र 54)
मृत्यु का स्थानचांदनी चैक, दिल्ली
समाधि शीशगंज साहिब
पिता (Father Name)गुरु हरगोविंद सिंह जी
माता (Mother Name)माता नानकी
भाई (Brother)अनी राय, सूरज मल, बाबा गुरदित्त, अटल राय
बहन (Sister)बीबी वीरो
पत्नी (Wife)माता गुजरी कौर (4 फरवरी 1633)
पुत्र (Son)गुरु गोविन्द सिंह

गुरु तेग बहादुर का जीवन परिचय (Guru Teg Bahadur Biography in Hindi)

गुरु तेग बहादुर जी का जन्म

गुरु तेग बहादुर जी का जन्म वैशाख कृष्ण पक्ष की पंचमी को 1 अप्रैल 1621 ईसवी को अमृतसर, पंजाब में हुआ। उनकी माता नानकी देवी तथा पिता गुरु सिखों के छठें गुरु हरगोविंद सिंह थे।

भाईयों में सबसे छोटे गुरु तेग बहादुर जी के चार भाई और एक बहन थी, जिनका नाम बाबा गुरदित्ता, सूरज मल, अनी राय, अटल राय और माता वीरो जी (बहन) था। बचपन में उनका नाम त्यागमल रखा गया था बाद में वह गुरु तेग बहादुर के नाम से प्रसिद्ध हुये।

Advertisements

वह शांति प्रिय, गंभीर और धार्मिक स्वभाव के थे उन्होंने अपना सारा बचपन अमृतसर में ही व्यतीत किया। एकांत स्थान पर घंटों ध्यान में लीन रहते थे।

गुरु तेग बहादुर जी ने समाज को धार्मिक और सामाजिक उन्नति की ओर ले जाने का संकल्प लिया था। उन्होंने सिख धर्म को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए, जैसे कि सिख गुरुओं की वाणी का संग्रह करना और उसे एकत्रित करके श्री गुरु ग्रंथ साहिब के रूप में प्रकाशित करना।

उन्होंने सिखों को अपने धर्म के प्रति अधिक जागरूक बनाने के लिए धर्म की शिक्षा देने के साथ-साथ अन्य धर्मों के लोगों से भी अधिक समझदार बनाने का काम किया। उन्होंने बलिहारी कुदरत वस्ते शब्द का बहुत ही गौरवशाली उपयोग किया था, जो मानव जीवन की महत्ता को समझाता है।

गुरु तेग बहादुर जी ने सामाजिक उन्नति की ओर भी गम्भीरता से काम किया। उन्होंने महिलाओं को शिक्षा देने के लिए उनके लिए अलग से अधिकार बनाने की शुरुआत की। उन्होंने दलितों, गरीबों और असहायों को न्याय दिलाने के लिए भी काम किया।

आइये इन्हें भी पढ़ें-

Homepage Follow us on Google News

तेग बहादुर जी की शिक्षा और दीक्षा 

गुरु तेग बहादुर जी ने अपने जीवन में अनेक विषयों की शिक्षा और दीक्षा प्राप्त की थी। जब वह सिर्फ 5 वर्ष के थे, तब भी उन्होंने शास्त्र ज्ञान, घुड़सवारी और शस्त्रविद्या का ज्ञान प्राप्त किया था। इनकी शिक्षा-दीक्षा का कार्य उनके पिता श्री हरगोबिंद जी के नेतृत्व में संपन्न हुआ था। उस समय वे गुरबाणी सहित अन्य धर्म ग्रंथों की भी शिक्षा प्राप्त करते थे।

गुरु तेग बहादुर जी अपने पिता के साथ 1634 ई. में वे करतारपुर चले गए उन्होंने अक्सर अपने पिता के साथ शिकार पर जाया करते थे उन्होंने तलवार चलाने का प्रशिक्षण प्राप्त किया और वह तलवारबाजी का वह घंटों अभ्यास किया करते थे।

जब गुरु तेग बहादुर जी मात्र 14 वर्ष के थे, तब उन्होंने अपने पिता के नेतृत्व में मुग़लों के साथ युद्ध जीता, इस युद्ध में गुरु तेग बहादुर जी की तलवार का जौहर मुगलों द्वारा देखा गया था। उनके पिता ने इनके तलवार के जौहर को देखकर बहुत प्रसन्नता व्यक्त की थी और उन्हें “तेग बहादुर” नाम दिया गया था, जिसका अर्थ होता है “बहादुरी से तलवार चलाने वाला”। उस वक्त से आगे, तेग बहादुर जी ने अपने जीवन को धर्म और सेवा के लिए समर्पित कर दिया।

गुरुद्वारा श्री थड़ा साहिब की स्थापना

गुरुद्वारा श्री थड़ा साहिब की स्थापना एक अनूठी घटना से हुई थी। एक बार मक्खन शाह नाम के व्यक्ति ने गुरुजी से प्रार्थना की थी और उन्हें अमृतसर के दरबार साहिब के दर्शन करने का मौका दिया था। परंतु दरबार के सेवादारों ने उन्हें ढोंगी समझ कर दरबार से बाहर निकाल दिया। इस पर गुरुजी ने वहाँ से चले जाने का फैसला किया और बेरी के पेड़ के नीचे बैठ गए। उनके बैठने के स्थान को बाद में गुरुद्वारा श्री थड़ा साहिब के नाम से जाना जाने लगा।

कुछ समय बाद मक्खन सिंह की प्रतीक्षा के बाद, गुरुजी ने गाँव से निकलकर एक पीपल के पेड़ के नीचे विश्राम किया। उनके विश्राम करने के बाद हरिया की माता नाम की एक महिला ने उन्हें अपने घर में आमंत्रित किया। वहाँ उन्होंने एक रात विश्राम किया और उस स्थान को गुरुद्वारा कोठा साहिब के नाम से जाना जाने लगा। और इसके साथ यहां पर हर साल माघ की पूर्णिमा को मेला का आयोजन होता है।

आनंदपुर साहिब की स्थापना

आनंदपुर साहिब गुरु गोबिंद सिंह जी के सिख समुदाय का एक महत्वपूर्ण स्थान है। इसकी स्थापना की एक कहानी है, जो बताती है कि सतलुज नदी के पास एक गाँव था जिसका नाम माखोवाल था। गुरु जी ने राजा दीपचंद से 2200 रूपए में इस जगह पर ज़मीन खरीदी और 16 जून 1665 ई. में इस जगह पर “चक नानकी” नाम का गाँव बसाया। थोड़ी देर बाद इस गाँव का नाम आनंदपुर साहिब रखा गया।

जब गुरु जी इस जगह पर आए, उन्होंने यहाँ एक सिख समुदाय को बसाया। यहाँ उन्होंने सिखों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए एक समाज बनाया।

गुरु तेग बहादुर की धार्मिक यात्राएं और सिख धर्म का प्रचार

  • गुरु जी ने अपनी तीर्थ यात्राओं के दौरान भूले-भटके लोगों को सच्चे प्रभु से जोड़ने के काम में लीन हो गए।
  • बहादुर जी ने देश विदेश के गांवों और शहरों में भर्मण करके सिख धर्म का प्रचार किया।
  • इन यात्राओं में उन्होंने सिख धर्म के महत्व और सिख समुदाय के अलग-अलग आयामों को प्रचारित किया।
  • अंत में, गुरु जी अपने परिवार सहित पंजाब में जाकर बस गए।
  • उन्होंने अपने जीवन के दौरान दुनिया भर में अनेक लोगों को सिख धर्म के बारे में जागरूक किया और लोगों को सच्चे प्रभु से जोड़ने के लिए काम किया।

गुरु तेगबहादुर के कुछ श्लोक और उनके अर्थ 

कुछ गुरु तेगबहादुर जी के लोकप्रिय श्लोक इस प्रकार हैं और उनके अर्थ हैं:

  • “जो धर्म नहीं सिखाता, वह अधर्म है।” – इसका अर्थ है कि धर्म के बिना जीवन अधूरा होता है और जो धर्म नहीं सिखाता, वह अधर्म है।
  • “जब तक संगत न होती, तब तक धर्म नहीं बचता।” – इसका अर्थ है कि संगत के बिना धर्म की रक्षा नहीं हो सकती।
  • “जीवन जीवन नाम है सभी जीवन धर्म है।” – इसका अर्थ है कि जीवन एक अनमोल उपहार है और सभी जीवन धर्म है।
  • “सभी लोग एक ही परमात्मा के बच्चे हैं।” – इसका अर्थ है कि सभी मनुष्य एक ही परमात्मा के अवतार हैं और सभी भाई-बहन हैं।
  • “सभी मनुष्य एक जैसे ही हैं।” – इसका अर्थ है कि सभी मनुष्य एक समान होते हैं और किसी भी प्रकार का भेदभाव गलत है।

गुरु तेग बहादुर के बलिदान बारे में

गुरु तेग बहादुर जी ने कश्मीरी पंडितों की तकलीफ सुनी जिसमें उन्हें बताया कि तत्कालीन मुगल शासक औरंगजेब सभी जाति धर्मों को इस्लाम कबूल करने के लिये मजबूर कर रहें हैं कि जो भी व्यक्ति अपना धर्म नहीं बदलेगा उसे मौत के घाट उतार दिया जाएगा। इस पर उन्होंने कहां की औरंगजेब को एक संदेशा भेजों कि अगर वह गुरु तेग बहादुर जी का धर्म परिवर्तन करवां लोगें तो वह भी इस्लाम कबूल लेंगे। इस शर्त को वह मान गया। इसके पश्चात उन्हें पकड़ लिया गया और जबरन धर्म परिवर्तन कराने के लिये कई तरीके के प्रलोभन दिये, जातनायें की, अत्याचार किया, उनके शिष्यों की हत्या करवा दी जब वह नहीं मानें तो उनको मृत्यु दण्ड दिया गया। सन 24 नवंबर 1675 में उनका शिश काट दिया गया। दिल्ली का शिशगंज गुरुद्वारा उनके शहीदी स्थल के नाम से जाना जाता है। जहां पर उन्होंने धर्म की रक्षा के लिये अपना शिश समर्पित कर दिया।

सिखों के दस धर्म गुरुओं नाम क्या है?

1.गुरु नानक देव जी1469-1539
2.गुरु अंगद जी1504-1552
3.गुरु अमर दास जी1479-1574
4.गुरु रामदास जी1534-1581
5.गुरु अर्जुन देव जी1563-1606
6.गुरु हरगोविंद जी1595-1644
7.गुरु हर राय जी 1630-1661
8.गुरु हरकृष्णन जी 1656-1664
9.गुरु तेग बहादुर जी1621-1675
10.गुरु गोविंद सिंह जी1666-1706

FAQ

गुरु तेग बहादुर जी कौन थे?

गुरु तेग बहादुर जी सिखों के नौंवे गुरु थे। जिनका जन्म अमृतसर, पंजाब में हुआ। उन्होंने धर्म की रक्षा के लिये अपने परिवार का बलिदान दे दिया, अपना शीश कटवा दिया लेकिन अपना धर्म परिवर्तन नहीं किया। उनके बचपन का नाम त्यागमल था उनकी वीरता और शौर्यता को देखते हुये उनका नाम गुरु तेग बहादुर रखा गया।

गुरु तेग बहादुर का असली नाम क्या था?

त्यागमल

बलिदान दिवस कब मनाया जाता है?

बलिदान दिवस 24 नवंबर मनाया जाता है, इसी दिन 1675 ई. को गुरु तेग बहादुर जी शहीद हुये थे उनके बलिदान व शहादत को याद करके मनाया जाता है।

Leave a Comment