राजा विक्रमादित्य का इतिहास व गौरव कथाएं, विक्रम संवत की शुरुआत, महाराजा विक्रमादित्य से जुड़ी रोचक बातें (Maharaja Vikramaditya history facts in hindi)
भारत की पवित्र भूमि पर बहुत से राजाओं महाराजाओं और चक्रवर्ती सम्राटों ने जन्म लिया जो अपने शौर्य पराक्रम और उदारता के लिए जाने जाते हैं। भारत में चक्रवर्ती सम्राट की संज्ञा उसे दी जाती है जिसने संपूर्ण भारत पर अपना प्रभुत्व बनाया हो। ऋषभदेव भारत के पहले चक्रवर्ती सम्राट राजा भरत थे जिनके नाम से ही भारत का नाम पड़ा है।
भारत के ऐसे ही एक महान शूरवीर चक्रवर्ती सम्राट महाराजा विक्रमादित्य भी थे। महाराजा विक्रमादित्य कैसे सम्राट थे जिन्होंने भारत के साथ-साथ अरब पर भी अपना अधिकार स्थापित कर लिया था। सम्राट विक्रमादित्य एक आदर्श राजा थे जिन्होंने अपनी बुद्धि और पराक्रम के बल से भारतीय राजाओं के इतिहास में अपना नाम अमर कर लिया।
महाराजा विक्रमादित्य के शौर्य और पराक्रम से जुड़ी हुई कहानियां बहुत प्रचलित है उनकी ऐसी सैकड़ों कहानियां है जो लोगों को जिंदगी की हर एक मुसीबत से लड़ने का हौसला देती हैं। उनके इन्हीं कहानियों में बेताल पच्चीसी और सिंहासन बत्तीसी बेहद प्रसिद्ध है।
विषय–सूची
महाराजा विक्रमादित्य का जीवन परिचय (Maharaja Vikramaditya history facts in hindi)
राजा विक्रमादित्य कौन थे?
महाराजा विक्रमादित्य उज्जैन के सम्राट थे जिन्होंने संपूर्ण भारत पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया और एक चक्रवर्ती सम्राट के रूप में जाने गए इतना ही नहीं इन्होंने अरब के कई हिस्सों पर भी अपना प्रभुत्व जमाया था।
महाराजा विक्रमादित्य के जीवन को लेकर इतिहासकारों में काफी मतभेद है। अलग-अलग इतिहासकार उनके जीवन से जुड़ी हुई अलग-अलग अवधारणाएं प्रस्तुत करते हैं।
लेकिन ज्यादातर इतिहासकारों द्वारा समर्थित एकमत है जिसके अनुसार महाराजा विक्रमादित्य का जन्म 102 ईसा पूर्व में हुआ था। महाराजा विक्रमादित्य के पिता का नाम गंधर्व सेन था जो नाबोवाहन के पुत्र थे। महाराजा विक्रमादित्य के पिता गंधर्व सेन भी एक चक्रवर्ती सम्राट थे। आपको बता दें कि मध्य प्रदेश के सोनकच्छ के आगे एक गंधर्वपुरी नाम का गांव स्थित है जहां पर गंधर्व सेन का मंदिर भी बना है।
महाराजा विक्रमादित्य के पिता राजा गंधर्व सेन को कई नामों से पुकारा जाता था जैसे कि उन्हें महेंद्रादित्य, गर्द भिल कह कर पुकारा जाता था। महाराजा विक्रमादित्य की माता का नाम सौम्यदर्शना था। इस नाम के अलावा उन्हें मदन रेखा और वीरमति के नाम से भी संबोधित किया जाता था। राजा गंधर्व सेन के 2 पुत्र थे पहले पुत्र महाराजा विक्रमादित्य थे और दूसरे पुत्र भर्तहरि थे। इनकी एक बहन भी थी जिसका नाम मौनवती था।
महाराजा विक्रमादित्य की 5 पत्नियां थी जिनका नाम क्रमश मलयावती, मदनलेखा, पद्मिनी, चेल्ल और चिल्लमहादेव था इसके अलाव उनकी दो पुत्र विक्रमचरित और विनयपाल थे साथ ही साथ उनकी दो पुत्रियां प्रियंगुमंजरी (विद्योत्तमा) और वसुंधरा थीं। महाराजा विक्रमादित्य के जीवन में उनका भट्ट मात्र नाम का एक मित्र भी था।
महाराजा विक्रमादित्य ने राजा बनने के पश्चात लगभग 100 वर्षों तक राज्य किया और हिंदू वर्ग के लोगों को दुष्ट शासकों के अत्याचार से मुक्त कराया।
महाराजा विक्रमादित्य का इतिहास (Maharaja Vikramaditya history)
महेश्वरा सूरी नाम के एक जैन साधु के अनुसार कहां गया है कि महाराजा विक्रमादित्य के पिता गर्द भिल्ल ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करके सरस्वती नाम की एक संयासिनी स्त्री का अपहरण कर लिया था। अपरहण हो जाने के पश्चात उस सन्यासिनी सरस्वती का भाई शक शासकों के पास पहुंचा और उनसे मदद मांगी जिसके पश्चात शक शासकों ने गर्द भिल्ल के साम्राज्य पर आक्रमण कर दिया और युद्ध में उसे पराजित कर उस सन्यासिनी को मुक्त करा दिया।
युद्ध हारने के बाद गर्द भिल्ल अर्थात गंधर्व सेन जंगलों में भटकते रहे और कुछ समय पश्चात ही जंगली जानवरों ने उनकी हत्या कर दी। शक शासकों से इसी बात का बदला लेने के लिए महाराजा विक्रमादित्य ने प्रण लिया।
शक शासकों ने अपनी प्रभुत्व था और शक्ति का उपयोग करके भारत के उत्तर पश्चिमी हिस्से पर अधिकार जमाना शुरू कर दिया और हिंदू संप्रदाय के साथ दुर्व्यवहार करने लगे एवं उन्हें उतपीड़ित करने लगे।
कहा जाता है कि हिंदुओं को उत्पीड़न से मुक्त करने के लिए और अपने पिता का प्रतिशोध लेने के लिए महाराजा विक्रमादित्य ने शक शासकों पर आक्रमण कर दिया और करूर नाम के स्थान पर उस शक शासक की हत्या कर दी। यही कारण था कि कई ज्योतिषी और उनके राज्य की प्रजा ने उन्हें शकारी नाम की उपाधि दे दी। और इसी घटना के पश्चात विक्रम संवत की शुरुआत हुई।
विक्रम संवत की शुरुआत –
लगभग 34 ईसा पूर्व एक ग्रंथ लिखा गया जिसका नाम था ज्योतिर्विद्याभरण। इस ग्रंथ के अनुसार यह माना जाता है कि विक्रम संवत की स्थापना महाराजा विक्रमादित्य ने 57 ईसा पूर्व की थी। इसीलिए महाराजा विक्रमादित्य को विक्रम संवत का प्रवर्तक माना जाता है।
भारतवर्ष के अलावा अरब पर भी था महाराजा विक्रमादित्य का प्रभुत्व –
महाराजा विक्रमादित्य के साम्राज्य का वर्णन भविष्य पुराण और स्कंद पुराण में मिलता है। इसके अलावा प्राचीन अरब साहित्य में भी महाराजा विक्रमादित्य का परिचय मिलता है।
कहा जाता है कि नहा राजा विक्रमादित्य का शासन अरब और मिश्र तक फैला हुआ था। कई इतिहासकार मानते हैं कि महाराजा विक्रमादित्य का राज्य उज्जैन के अलावा ईरान इराक और अरबी देशों पर भी था। एक अरबी कवि जरहाम किंतोई ने अपनी पुस्तक सायर उल ओकुल में महाराजा विक्रमादित्य के अरब विजय का वर्णन किया है।
राजा विक्रमादित्य की गौरव कथाएं (Maharaja Vikramaditya story in hindi)
वैसे तो भारतीय समाज में महाराजा विक्रमादित्य से जुड़ी हुई बहुत सारी कथाएं प्रचलित हैं जो उनके शौर्य एवं पराक्रम का प्रतीक है लेकिन उनकी तीन मूल गौरव गाथाएं हैं जिनका नाम क्रमशः बृहतकथा बेताल पच्चीसी और सिंहासन बत्तीसी है।
बृहतकथा –
यह ग्रंथ लगभग 10 वीं से 12 वीं सदी का रचित है जिसमें महाराजा विक्रमादित्य की कई सारी गौरव गाथाएं संग्रहित की गई हैं।
इस ग्रंथ में राजा विक्रमादित्य की पहली गौरव गाथा महाराजा विक्रमादित्य और परिष्ठान के सम्राट के बीच युद्ध से संबंधित है। इस संवाद में महाराजा विक्रमादित्य की राजधानी उज्जैन के स्थान पर पाटलिपुत्र बताई गई है।
एक कहानी के अनुसार कहा गया है कि महाराजा विक्रमादित्य बहुत ही न्याय प्रियता और पराक्रमी राजा थे। कहां जाता है कि महाराजा विक्रमादित्य की न्याय प्रियता और पराक्रम से प्रभावित होकर देवता के महाराजा इंद्र ने उन्हें स्वर्ग में आने के लिए आमंत्रित किया। महाराजा विक्रमादित्य ने इंद्र का यह आमंत्रण स्वीकार किया और उनसे मिलने के लिए स्वर्ग चले गए। वहां जाने के पश्चात इंद्र ने अपनी सभा में दो नृत्यांगना ओं को बुलाया था जिनका नाम क्रमशः रंभा और उर्वशी था। दोनों के नृत्य कला प्रदर्शन के बाद इंद्र ने महाराजा विक्रमादित्य से पूछा कि उन्हें कौन सी नर्तकी ज्यादा बेहतर लगी।
इस पर महाराजा विक्रमादित्य ने रंभा और उर्वशी दोनों की परीक्षा ली। महाराजा विक्रमादित्य ने दोनों को एक-एक पुष्प दिया और उस पर बिच्छू रखवा दिए लेकिन बिच्छू के डंक के कारण रंभा ने उसको को फेंक दिया जबकि उर्वशी उसे लेकर नृत्य करती रही। महाराजा विक्रमादित्य उर्वशी के सौंदर्य आकर्षण से सम्मोहित हो गए। महाराजा विक्रमादित्य और उर्वशी के अंतः आकर्षण को कई कवियों ने अपने काव्य में दर्शाया है जैसे कि रामधारी सिंह दिनकर ने विक्रम उर्वशी नाम के ग्रंथ की रचना की है जिसमें उन्होंने महाराजा विक्रमादित्य और उर्वशी के बीच स्नेह आकर्षण को प्रतिबिंबित किया है।
बेताल पच्चीसी –
बेताल पच्चीसी महाराजा विक्रमादित्य की पराक्रम की 25 कहानियों का संग्रह है जो कि महाराजा विक्रमादित्य की कहानियों में सर्वाधिक प्रसिद्ध है। इस कहानी में एक बेताल का वर्णन किया गया है एक साधु के परामर्श पर महाराजा विक्रमादित्य बेताल को पेड़ से उतारकर अपने कंधे पर बिठा लेते हैं। महाराजा विक्रमादित्य के कंधे पर बैठ कर बेताल उन्हें यह श्राप दे देता है कि अगर उन्होंने उसके किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं दिया तो उनका सर धड़ से अलग हो जाएगा। ऐसा कहने के बाद बेताल उनसे कई सारी कहानियां बताता है और उन कहानियों के अंत में महाराजा विक्रमादित्य का अंतिम न्यायिक निर्णय पूछता है। बेताल द्वारा पूछी गई ऐसी ही 25 कहानियां इस बेताल पच्चीसी में संग्रहित की गई है।
सिंहासन बत्तीसी –
सिंहासन बत्तीसी भी महाराजा विक्रमादित्य के पराक्रम की कहानियों में से अत्यंत प्रसिद्ध है। इस कथा संग्रह में महाराजा विक्रमादित्य के राज्यों पर विजय से संबंधित कहानियां संग्रहित की गई हैं। कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य जब इंद्र के दरबार में गए थे तो उन्होंने राजा विक्रमादित्य को 32 मूर्तियां भेंट स्वरूप दी थी। यही 32 बोलने वाली मूर्तियां राजा विक्रमादित्य के साथ रहती हैं।
जब राजा भोज सिंहासन पर बैठने वाले होते हैं तो यह 32 मूर्तियां 32 बार राजा भोज से सवाल करती हैं और राजा भोज इन 32 कहानियों के सवालों का जवाब देते हैं उसके पश्चात सिंहासन पर बैठते हैं।
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महाराजा विक्रमादित्य के नवरत्न –
कहा जाता है कि महाराजा विक्रमादित्य के दरबार में नवरत्न शामिल थे। यह नौ व्यक्ति अत्यंत विद्वान पुरुष थे। इन नवरत्नों का नाम क्रमशःधन्वन्तरी, क्षपंका, अमर्सिम्हा, शंखु, खाताकर्पारा, कालिदास, भट्टी, वररुचि, वराहमिहिर था जो अत्यंत ही विद्वान थे।
अन्य सम्राट जिन्हें दी गई विक्रमादित्य नाम की उपाधि व संज्ञा- भारत में महाराजा विक्रमादित्य के बाद कई ऐसे सम्राट भी हुए जिन्हें विक्रमादित्य की संज्ञा दी गई। राजा, श्रीहर्ष शुद्रक हल और चंद्रगुप्त द्वितीय को विक्रमादित्य की संज्ञा दी गई थी।
यही कारण है कि विक्रमादित्य नाम को लेकर आज भी इतिहासकारों में बहुत से मतभेद हुए हैं कुछ लोग मानते हैं की कालिदास महाराजा गंधर्व सेन के पुत्र महाराजा विक्रमादित्य के राज्यसभा में नवरत्न इनके थे जबकि कुछ लोग यह मानते हैं की कालिदास महाराजा समुद्रगुप्त के पुत्र चंद्रगुप्त द्वितीय जिन्हें की विक्रमादित्य के नाम से संबोधित किया जाता था उनकी सभा के नवरत्न थे।
आपको बता दें कि 15वीं सदी में हेमचंद्र हेमू को भी विक्रमादित्य की उपाधि दी गई थी।
महाराजा विक्रमादित्य से जुड़ी कुछ रोचक बातें (Interesting facts about Vikramaditya hindi)
महाराजा विक्रमादित्य उज्जैन के सम्राट थे जिस का प्राचीन नाम अवंतिका था। वर्तमान समय में यह मालवा क्षेत्र में पड़ता है जो कि मध्यप्रदेश का हिस्सा है। यह एक ऐसा स्थान है जहां पर महाराजा गंधर्वसेन चक्रवर्ती सम्राट ने राज्य किया और उनके पश्चात उनके पुत्र महाराजा विक्रमादित्य ने भी अपना साम्राज्य स्थापित किया इसके पश्चात महाराजा भोज ने इसी सिंहासन पर राज किया था।
तो आइए आज आपको हम महाराजा विक्रमादित्य से जुड़ी हुई रोचक बातें बताते हैं –
- महाराजा विक्रमादित्य ने ही विक्रम संवत की शुरुआत की उन्होंने 57 ईसा पूर्व विक्रम संवत की नीव रखी।
- विक्रमादित्य पहले ऐसे राजा थे जिनके दरबार में नवरत्न सुशोभित हुए। महाराजा विक्रमादित्य के बाद ही राजाओं ने नवरत्न को दरबार में रखने की परंपरा शुरू की जिसके बाद कृष्णदेव राय और अकबर ने अपने दरबार में नवरत्न रखें।
- भारत के अलावा कई अरबी देशों ईरान, इराक, नेपाल और अन्य स्थानों पर महाराजा विक्रमादित्य के शासन के साक्ष्य मिलते हैं। अरब के एक कवि ने अपने काव्य ने लिखा है कि हम बहुत ही खुशनसीब हैं जो हमने महाराजा विक्रमादित्य के शासन में अपना जीवन व्यतीत करने का मौका मिला।
- महाराजा विक्रमादित्य अपनी प्रजाजनों के कुशलता के लिए सदैव समर्पित रहते थे वह अपनी प्रजा के बीच छद्म वेश धारण करके घूमा करते थे और उनके बीच चल रही समस्याओं और उनकी जरूरतों को समझा करते थे।
- महाराजा विक्रमादित्य अत्यंत न्याय प्रिय राजा थे उन्होंने अपनी नया प्रियता से ही महाराजा इंद्र को प्रभावित कर दिया था जिसके पश्चात इंद्र ने उन्हें स्वर्ग के लिए आमंत्रित किया था। इंद्र ने उन्हें 32 बोलने वाली मूर्तियां भी भेंट स्वरूप दी थी।
- कई धार्मिक ग्रंथों में कहा जाता है कि महाराजा विक्रमादित्य को भगवान शिव ने पृथ्वी पर भेजा था और महारानी पार्वती ने बेताल को विक्रमादित्य की रक्षा करने के लिए उनके साथ भेजा था।
आज इस आर्टिकल के जरिया हमने महाराजा विक्रमादित्य के जीवन से जुड़ी हुई चीजों के बारे में जाना। उम्मीद करते हैं कि आप ही विक्रमादित्य के जीवन चरित्र से काफी प्रभावित हुए होंगे और आपको यह आर्टिकल भी पसंद आया होगा।