आइये जाने जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा क्यों निकाली जाती है?, क्या है पौराणिक कथा, इतिहास, कहानी एवं महत्व, जगन्नाथ पुरी रथयात्रा महोत्सव कहां होता है? जगन्नाथ पुरी में रथ यात्रा कब शुरु होगी। (Jagannath Rath Yatra 2023 Story, history & Facts in hindi)
जगन्नाथ पुरी धाम हिंदू धर्म के चार पवित्र धामों में से एक है। यह उड़ीसा के पुरी शहर में स्थित है, और अपनी भव्य रथ यात्रा के लिए चारों धामों में से सर्वाधिक प्रसिद्ध है। भारत के चार प्रमुख धाम के नाम क्या हैं? इस बार 20 जून को जगन्नाथ पुरी की रथयात्रा निकाली जाएगी। यह यात्रा हरवर्ष आषाण मास की द्वितीया को निकाली जाती है।
भगवान जगन्नाथ जी भगवान विष्णु व कृष्ण जी के दसवें अवतार माने जाते हैं। हर साल जून या जुलाई महीने में यह रथ यात्रा निकाली जाती है। इस रथ यात्रा के लिये 2 माह पहले अक्षय तृतीया से ही तैयारियां शुरु कर दी जाती है। कहा जाता भगवान जगन्नाथ के रथयात्रा में सम्मिलत होने से भक्तजनों को सौ यज्ञों के बराबर पुण्यफल प्राप्त होता हैं।
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। यहां के मंदिर में भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान है। भगवान जगन्नाथ जी के रथ यात्रा में लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं, यहां सिर्फ भारत से ही नहीं बल्कि अन्य दूसरे देश के जैसे श्रीलंका भूटान नेपाल और बांग्लादेश के हिंदू भी शामिल होते हैं।
यात्रा के दिन किसी भी भक्तों को मंदिर के अंदर जाने की अनुमति नहीं होती है। उस दिन भगवान जगन्नाथ जी और उनके भाई बलभद्र जी और बहन सुभद्रा जी की मंदिर में पूजा कर उन्हें सड़कों पर घुमाया जाता है। जिससे सभी भक्तों को उन्हें देखने का या दर्शन पाने का सौभाग्य प्राप्त होता है, यह त्यौहार समानता और एकता के रूप में भी जाना जाता है।
रथ उत्सव के दिन सभी भक्त बड़ी श्रद्धा से भगवान का पूजन, गीत और नृत्य का आयोजन भी करते हैं। आज के लेख में हम आपकों जगन्नाथ की रथ यात्रा से सम्बंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी देंगे। आज के लेख में हम आपकों जगन्नाथ की रथयात्रा से सम्बंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी देंगे। इसके लियें आपकों यह लेख पूरा पढ़ना होगा। आइये शुरु करते हैं।
विषय–सूची
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा 2023 उत्सव (Jagannath Rath Yatra Story & Facts in hindi)
भगवान जगन्नाथ जी का रथ उत्सव बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है, सभी भक्तों के मन में इस इस रथ उत्सव का बड़ा ही महत्व होता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ जी और उनके भाई बलभद्र जी और बहन सुभद्रा के लिए तीन अलग-अलग रथ अद्भुत संरचनाओं और तकनीकी डिजाइन में बहुत ही सुंदर बनाया और सजाया जाता है।
भगवान जगन्नाथ जी का रथ लगभग 18 पहियों वाला एक विशाल रचना और ऊंचा एक “नंदीघोष” रथ है। और बलभद्र जी का रथ “तलध्वज” है। इस रथ की कलात्मक रचना भी बहुत ही सुंदर है और विशाल है लेकिन यह रथ जगन्नाथ जी के तुलना में छोटी है यह 16 पहियों वाला रथ है और सुभद्रा जी का रथ” देवदलन” है।
यह रथ भी दोनों रथो की तुलना में छोटी है क्योंकि इसमें 14 पहिए है इस रथ की रचना बहुत ही सुंदर और विशाल है यह तीनों रथ मन को मोह लेने वाला कलात्मक रचना है।
यहां के सांस्कृतिक प्रथाओं और धार्मिक निर्देशों के आधार पर यहां के भगवानों की मूर्ति और रथ दोनों लकड़ी से बनाए जाते हैं। इसके अलावा हर 12 साल पर इसे विसर्जित किया जाता है, उसके बाद नई रचनाएं स्थापित की जाती हैं, जिसे नवकलेबारा कहते हैं।
यह त्यौहार ज्यादातर ओड़िशा, झारखंड और उत्तरी भारत में भी मनाया जाता है। यह त्यौहार भारत में आषाढ़ के महीने में द्वितीय तिथि को भव्य आयोजन द्वारा मनाया जाता है। इस पर्व के दिन कई स्थानों पर मेला और नाटकों का भी आयोजन किया जाता है।
जगन्नाथ पुरी के रथ की पूर्ण जानकारी (Jagannath puri rath yatra detail, information in hindi)
जगन्नाथ पुरी के रथयात्रा उत्सव की तैयारी अक्षय तृतीया से प्रारम्भ कर दी जाती है इसी दिन से श्रीकृष्ण, बलराम व सुभद्रा जी के रथों का निर्माण कार्य प्रारम्भ कर दिया जाता है। इन रथों के निर्माण में उत्तम व स्वस्थ्य नीम वृक्ष का चुनाव किया जाता है।
नाम | जगन्नाथ/श्रीकृष्ण | बलराम/दाऊजी | सुभद्रा |
---|---|---|---|
रथ | नंदीघोष/गरुड़ध्वज/ कपिलध्वज | तलध्वज/लंगलाध्वज | देवदलन/पद्मध्वज |
पहियों की संख्या | 16 पहिये | 14 मीटर ( व्यास 7 फीट ) | 12 मीटर |
ऊंचाई | 13.5 मीटर | 13.2 मीटर | 12.9 मीटर |
लकड़ियों की संख्या | 832 | 763 | 593 |
श्रीकृष्ण जगन्नाथ जी का रथ -भगवान श्रीकृष्ण के रथ को नंदीघोष के अलावा गरुड़ध्वज व कपिलध्वज के नाम से जानते हैं। इनके रथ में 16 पहिये तथा ऊंचाई 45 फिट (13.5 मी) होती है। रथ को लाल व पीले वस्त्रों से सजाया जाता है। मान्यता है इसकी रक्षा विष्णुजी के वाहन गरुणजी करते हैं। इनके रथ को दारुका जी चलाते हैं। इस रथ के ध्वज को त्रैयोक्यमोहिनी कहा जाता है। इसे जिसे रस्सी से खींचा जाता है उसे शंखचुडा नागनी कहा जाता है।
बलराम जी का रथ- इनके रथ को तलध्वज कहा जाता है। इस रथ में 14 पहिये तथा ऊंचाई 43 फिट (13.2 मी) होती है। रथ को लाल, हरे व नीले वस्त्रों से सजाया जाता है। इस रथ की रक्षा का दायित्व वासुदेव पर होता है। इस रथ को मताली सारथी चलाते हैं। इनके ध्वज को उनानी कहा जाता है और जिस रस्सी द्वारा इसे खींचा जाता है उसे वासुकी नागा कहा जाता है।
सुभद्रा जी का रथ- इनके रथ को पद्मध्वज कहा जाता है। भारत के चार धामों के नाम कौन-कौन से हैं? रथ में 12 पहिये तथा ऊंचाई 42 फिट (12.9 मी) होती है। रथ को लाल व काले वस्त्रों से सुसज्जित किया जाता है। इस रथ की रक्षा जयमाँ दुर्गा जी करती है। इस रथ के सारथी अर्जुन होते हैं। इनके ध्वज को नंद्विक कहा जाता है और जिस रस्सी द्वारा इसे खींचा जाता है उसे स्वर्णचुडा नागनी कहा जाता है।
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भगवान जगन्नाथ की पौराणिक कथा, कहानी (Jagannath puri rath yatra story hindi)
जगन्नाथ रथ यात्रा को लेकर कई धार्मिक और पौराणिक कथाएं और ऐतिहासिक मान्यताएं प्रचलित है।
प्राचीन समय में एक राजा इंद्रद्युम्न निलांचल सागर के पास अपने परिवार के साथ रहते थे। एक बार उन्होंने देखा कि समुद्र में एक विशालकाय लकड़ी तैर रही है, राजा ने समुद्र से उस लकड़ी को निकलवाया और उस लकड़ी की सुंदरता को देख जगदीश की मूर्ति बनाने का विचार किया।
ऐसा विचार कर ही रहे थे कि तभी वहां बुढे़ बढ़ई के रूप में देवों के शिल्पी विश्वकर्मा जी वहां प्रकट हुए, और उन्होंने कहा कि मेरी एक शर्त है की मुझे एक कमरा चाहिए। और जब तक मैं मूर्ति बनाऊंगा तब तक उस कमरे में कोई भी व्यक्ति नहीं आएगा। राजा ने बूढ़े बढ़ई की बात मान ली, लेकिन राजा को यह नहीं पता था की बढ़नी के रूप में वह स्वयं विश्वकर्मा जी हैं। निर्माण कार्य में कई दिन बीत जाने पर महारानी के मन में यह विचार आया कि कमरे में बूढ़ा आदमी कई दिन भूखा रहने से कहीं मर तो नहीं गया। इस शंका को राजा से बताने पर राजा ने कमरे का दरवाजा खुलवाया तब उन्होंने देखा कि वह बूढ़ा बढ़ाई कहीं नहीं है, लेकिन उसके द्वारा बनाई का काष्ठ की अद्भुत अर्ध निर्मित श्री जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र की मूर्ति बनाई मिली।
यह सब देख राजा और रानी दोनों दुखी हुए तभी वहां आकाशवाणी हुई कि ‘व्यर्थ में दुखी मत हो मूर्तियों को द्रव्य आदि से पवित्र कर स्थापित करवा दो हम इसी रूप में रहना चाहते हैं।’ आज भी वह अर्ध निर्मित मूर्तियां जगन्नाथ जी के मंदिर में विराजमान हैं।
हिंदू धर्म के पौराणिक कथा के अनुसार भगवान जगन्नाथ जी भगवान विष्णु के 10 अवतारों में से एक माने जाते हैं। यह रथ यात्रा बड़े धूमधाम और वार्षिक यात्रा के जश्न के रूप में मनाया जाता है। भगवान का रथ यात्रा इसलिए मनाया जाता है क्योंकि भगवान जगन्नाथ जी और उनके भाई बलभद्र जी, बहन सुभद्रा के साथ अपने पवित्र मंदिर से गुंडिया में स्थित अपनी चाची के मंदिर की यात्रा करते हैं।
उत्सव समाप्त होने के बाद पूरी के गजपति द्वारा पवित्र रथों को भव्य औपचारिकता के साथ विसर्जित या बहा दीया जाता है। अपने मौसी के घर पहुंचने के बाद भगवान जगन्नाथ जी गुंडिचा में आराम करने के लिए 1 सप्ताह वहीं पर रुकते हैं, आज्ञा का पालन करते हुए उपासक वहां एक हफ्ते तक भगवान को प्रसाद चढ़ाते और प्रसाद को वितरण करते हैं।
भगवान जगन्नाथ जी की पुनः वापसी 1 सप्ताह बाद होती है। भगवान जगन्नाथ जी के पूरी में वापस आने 9 दिन की अवधि में रथ यात्रा उत्सव मनाया जाता है। उनके वापस आने पर सभी भक्त उनकी पूजा और अर्चना में लग जाते हैं, सभी लगन से गीत और नृत्य का आयोजन भी करते हैं। और साथ ही साथ ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है, और गरीबों को दान दिया जाता है। ऐसा कहा जाता है, कि भगवान जगन्नाथ जी के रथ उत्सव के दिन उत्सव में शामिल हुए भक्तों की सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह भव्य जगन्नाथ यात्रा अत्यंत रमणीय होती है। दूर-दूर से लोग इस यात्रा में शामिल होने आते हैं और दान आदि करके पुण्य का लाभ उठाते हैं।
भगवान जगन्नाथ के रथ यात्रा का महत्व-
हिंदू धर्म में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का बहुत ही महत्व होता है। इस यात्रा में भारत के अलावा और कई अन्य देशों से लाखों की संख्या में भक्तों की भीड़ लगती है।
इस रथ यात्रा का आयोजन ओडिशा के पूरी में स्थित भगवान जगन्नाथ के मंदिर में किया जाता है। यह रथयात्रा हर साल हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ के महीने में निकाली जाती है। इस रथयात्रा का उल्लेख धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में भी किया गया है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि जो भक्त इस रथयात्रा में शामिल होकर रथ को खींचते हैं, उस भक्तों को 100 यज्ञ के बराबर पुण्य का फल मिलता है। यह रथ यात्रा पूरे भारत में एक पर्व की तरह मनाया जाता है।
यह धाम भारत के चार पवित्र धामों में से एक है इसलिए अपना विशेष महत्व रखता है। हिंदू समुदाय के लोग ऐसा मानते हैं कि जगन्नाथ धाम सहित चारों धामों के दर्शन अपने जीवन में एक बार जरूर कर लेना चाहिए इससे मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उन्हें जीव योनि में नहीं भटकना पड़ता।
भगवान जगन्नाथ के रथ यात्रा का वर्णन कई ग्रंथों में किया गया है, जो इस प्रकार हैं-स्कंद पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण, ब्रह्म पुराण, आदि धार्मिक ग्रंथों में किया गया है। भगवान जगन्नाथ जी का यह रथ यात्रा पूरे भारत में एक पर्व की तरह मनाया जाता है।
जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास (Jagannath rath yatra history)
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा पर्व का इतिहास काफी प्राचीन है, सन् 1150 में गंगा राजवंश द्वारा इसकी शुरुआत की गई थी। यह पर्व पूरे भारत में पूरी की यात्रा से प्रसिद्ध है, इतिहास में भारत का पहला प्रसिद्ध पर्व माना गया था। इस त्यौहार के बारे में मार्कोपोलो जैसे प्रसिद्ध है यात्री ने अपने वृत्तांतो में इस त्यौहार के विषय में वर्णन किया था। यह त्यौहार भारत के अलावा विदेशों और अन्य देशों में भी मनाया जाता है।
इस रथ यात्रा की शुरुआत राजाओं द्वारा पारंपरिक ढंग से मंत्र उच्चारण के साथ होता था। रथ यात्रा शुरू होने पर सैकड़ों भक्त मोटे-मोटे रस्सो से रथ खींचते हुए, इसमें सबसे पहले बलभद्र जी का रथ चलना शुरू होता है, उसके बाद सुभद्रा जी का रथ होता है, अंत में भगवान जगन्नाथ जी का रथ बड़े ही धूमधाम और श्रद्धा पूर्वक खींचते हैं। इस रथ उत्सव का कार्यक्रम कई स्थानों पर किया जाता है, जिसमें कुछ यात्राएं विश्वभर में काफी प्रसिद्ध मानी गई हैं, जो इस प्रकार हैं-
जिसमें सबसे प्रसिद्ध जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा आयोजन है, पश्चिम बंगाल में महेश रथ यात्रा हुगली में आयोजित किया जाता है। अमेरिका के न्यूयॉर्क में भी रथ यात्रा आयोजित की जाती है, आदि कई रथ यात्रा प्रसिद्ध है। यह रथ यात्रा भक्तों की श्रद्धा का प्रतीक और बहुत ही प्राचीन पर्व है।
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FAQ
जगन्नाथ पुरी में रथ यात्रा कब निकलेगी?
जगन्नाथ पुरी में रथ यात्रा हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि को निकलती है और 2023 में यह रथ यात्रा 20 जून को निकाली जाएगी।
जगन्नाथ रथ यात्रा महोत्सव क्यों मनाया जाता है?
रथ यात्रा को मनाने के पीछे एक प्रचलित कथा यह है कि एक दिन सुभद्रा जी ने भगवान श्री कृष्ण से द्वारका भ्रमण करने की इच्छा की थी और कृष्ण जी ने सुभद्रा जी को रथ के द्वारा द्वारका का भ्रमण करवाया था, जिसके कारण यह रथयात्रा निकाली जाती है।
भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम क्या है?
भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष, गरुड़ध्वज, कपिलध्वज कहा जाता है।
प्रतिवर्ष आयोजित होने वाली पुरी रथ यात्रा में कितने रथ भाग लेते हैं?
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा में पूरी तीन रथ निकलती है। सबसे पहला रथ बलराम जी का, जो सबसे आगे होता है, दूसरा रथ सुभद्रा देवी जी का, जो बीच में होता है, और तीसरा रथ श्री कृष्ण जी का, जो सबसे पीछे होता है।
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा के बाद रथ का क्या होता है?
जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा के बाद रथ को तोड़ दिया जाता है क्योंकि हर वर्ष रथ यात्रा के लिए नए रथ बनाए जाते हैं। सभी रथ की लकड़ियों को प्रसाद बनाने के समय प्रयोग में लाया जाता है।