अगस्त में सावन शिवरात्रि 2023 कब है?, सावन की शिवरात्रि 2023 तारीख, शिवरात्रि तिथि, मुहूर्त, सावन की शिवरात्रि का महत्व (Importance of Sawan ki Shivratri kab hai 2023, Puja Muhurt, Date, story in hindi, Kanwar yatra in hindi) (Sawan Shivratri Kab Hai 2023, Sawan Shivratri date, date and time in Hindi, Sawan Shivratri 2023 August)
सावन का महीना शुरु हो चुका है यह माह भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है, सावन में भगवान शिव की पूजा एवं जलाभिषेक का अत्यधिक महत्व है। हिंदू पंचाग के अनुसार हर माह एक शिवरात्री आती है लेकिन इनमें फाल्गुन माह की महाशिवरात्री और सावन के पवित्र माह की शिवरात्री का अत्यधिक पौराणिक महत्व बताया गया है।
इस बार सावन का महीना लगभग 2 माह तक चलेगा इसलिए सावन में कुल दो सावन शिवरात्रियां पड़ रही हैं। जिनमें से सावन की पहली शिवरात्रि 15 जुलाई 2023 को ही मनाई गई थी जबकि सावन की दूसरी शिवरात्रि 14 अगस्त 2023 को मनाई जा रही है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सावन की यह दूसरी शिवरात्रि मलमास अर्थात अधिक मास में पड़ रही है इसलिए इसका महत्व कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है। सावन की शिवरात्रि में कई महत्वपूर्ण शुभ संयोग बन रहे हैं जिनमें सिद्धि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग भी शामिल हैं।
सावन के महीने में विधिवत पूजा व व्रत करने से शिवजी बहुत ही शीघ्र प्रसंन्न हो जाते हैं। शिव की पूजा के लिए सबसे अच्छा व उत्तम समय श्रावण मास यानी सावन का महिना ही है।
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सावन के महिने में करें भगवान शिव का रुद्राभिषेक, जानें कैसे करें रुद्राभिषेक, पूजा की विधि
सावन में शिव के असंख्य भक्त सैकड़ों किमी की कांवड़ यात्र करके गंगाजल लाकर, शिवरात्री के दिन गंगाजल से शिवलिंग का जलाभिषेक किया जाता है। तो चलिए आज के इस लेख में हम सावन माह की शिवरात्रि के महत्व एवं इससे जुड़ी पौराणिक कथा, पूजा, मुहूर्त, तिथि के बारे में विस्तार पूर्वक जानते हैंः-
विषय–सूची
2023 में कब से शुरु होगा सावन?
इस बार सावन में 30 नहीं 59 दिन है जिससे इसबार 4 की बजाय 8 सोमवार के व्रत व उपासन की जाएगी। 19 सालों में यह दुलर्भ संयोग बन रहा है हिंदी कैलेंडर में इसवर्ष (विक्रम संवत 2080) में एक माह बढ़ गया है जिसे अधिकमास कहते हैं। शिव भक्तों के लिये यह महिना अपना विशेष महत्व रखता है भगवान शिव को प्रसन्न करने का इस बार दुर्लभ संयोग बन रहा है। इस बार सावन का महिना 3 जुलाई से प्रारंभ होकर 31 अगस्त तक रहेगा।
सावन की दूसरी शिवरात्रि 2023? (Sawan Shivratri 2023 August)
हिंदू केलेंडर पंचांग के अनुसार सावन शिवरात्रि हर साल सावन के महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है।
सावन की पाली शिवरात्रि 15 जुलाई 2023 को मनाई गई थी। हालांकि इस बार सावन का महीना 2 मास का होने वाला है इसलिए श्रावण मास में कुल 2 सावन शिवरात्रि पड़ेगी।
सावन की दूसरी शिवरात्रि इस अगस्त मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि अर्थात 14 अगस्त 2023 को मनाई जाएगी।
इस दिन शिवलिंग का जलाभिषेक, रुद्राभिषेक करने से भगवान शिव शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते है।
सावन की शिवरात्रि 2023 तिथि, मुहूर्त (Sawan Shivratri 2023 Puja Muhurt, Date)
इस वर्ष सावन की दूसरी शिवरात्रि 14 अगस्त 2023, सोमवार के दिन है।। चतुर्दशी तिथि का आरंभ 14 अगस्त 2023 को सोमवार को सुबह दस बजकर पच्चीस मिनट (10:25 AM) पर होगा और इसका समापन 15 अगस्त 2023 मंगलवार को दिन दोपहर 12:42 PM पर होगा।
शिवरात्रि पूजा के अन्य शुभ मुहूर्त नीचे सूची में दिए गए है।
क्र. | शुभ संयोग | तिथि | मुहूर्त |
1 | सिद्धि योग। | 14 अगस्त 2023 | शाम 4:40 PM तक |
2 | सर्वार्थ सिद्धि योग आरंभ। | 14 अगस्त 2023 | सुबह 11:07 AM से शुरु |
3 | सर्वार्थ सिद्धि योग समापन। | 15 अगस्त 2023 | सुबह 5:50 AM तक |
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सावन शिवरात्रि पूजा विधि
- सुबह जल्दी उठ कर स्नान करें और शिव का ध्यान करके व्रत का संकल्प लें।
- शिवलिंग का घी, गंगा जल, दूध, शहद, शक्कर और गन्ने के रस से रुद्राभिषेक करें।
- इसके बाद शिवलिंग पर फूल, धतूरा, बेल पत्र, फल, सफेद चंदन अर्पित करें और धूप व दीप जलाएं।
- शिव चालीसा, शिवअष्टक, शिवस्तुति और शिवपंचाक्षर स्त्रोत मंत्र का जाप करें।
- इसके बाद सावन शिवरात्रि की कथा सुने और भगवान शिव की आरती करके प्रसाद अर्पित करें और सबको बांटे।
- शिवलिंग पर केतकी के फूल, कुमकुम, हल्दी अर्पित नहीं करना चाहिये।
- तांबे के पात्र से ही जल अर्पित करें।
सावन की शिवरात्रि का महत्व (Importance of Sawan Shivratri 2023)
सावन शिवरात्रि के दिन शिव की पूजा करने का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु सावन के महीने में योग निद्रा में जाते हैं, तो सृष्टि का संचालन करने के लिए भगवान शिव उत्तरदायित्व संभाल लेते हैं इसीलिए सावन मे शिव की पूजा महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन भगवान शिव का जलाभिषेक करने से जीवन में सौभाग्य समृद्धि प्राप्त होती है व्यक्ति की सभी मुश्किले समाप्त हो जाती है।
ऐसा मान्यता प्रथम स्थान सरस्वती पूजा अर्चना है की इस दिन व्रत रखने से, शिवलिंग पर जल चढ़ाने से और शिव की पूजा अर्चना विधि विधान के साथ करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। भगवान शिव स्वास्थ्य का, सौभाग्य का, सुख शांति का आशीर्वाद देते हैं।
कहा जाता है कि इस दिन व्रत रखने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है और वैवाहिक जीवन की भी सभी समस्याएं दूर हो जाती है। कुंवारी कन्याओं को शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से मनवांचित फल की प्राप्ति होती है।
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सावन शिवरात्रि की व्रत कथा (Sawan Shivratri Story hindi)
पुराने समय में चित्रभानु नाम का एक शिकारी था। चित्रभानु साहूकार का कर्जदार था। वह कर्ज में पूरी तरह डूबा हुआ था। परंतु समय पर कर्ज न चुका पाने के कारण साहूकार ने उसे शिव मठ में कैदी बना लिया।
जिस दिन उसे बन्दी बनाया उस दिन शिवरात्रि थी। शिकारी ने मठ में कैद होने के कारण शिवरात्रि व्रत कथा सुनी। जब शाम हुई तो साहूकार ने उससे कहा की उसनें उसनें ऋण चुकाने के लिए कुछ और समय कि मोहलत दे दी है।
वह भूखा था, तो वह वहां से निकल कर सबसे पहले शिकार ढूंढने गया। शिकार ढूंढते उसे रात हो गई। वह रात बिताने के लिए एक बेलपत्र पेड़ के उपर चढ़ गया।
उस पेड़ के नीचे एक शिवलिंग पत्तों से ढका हुआ था, जिसके बारे में शिकारी को मालूम नहीं था। शिकारी भूखा प्यासा था और पेड़ पर चढ़ते हुए कुछ टहनियां टूट कर उस शिवलिंग पर गिर गई, जिससे शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए।
रात के समय एक गर्भवती हिरणी तालाब के पास पानी पीने आई। शिकारी उसका शिकार करने ही वाला था कि हिरनी बोली मैं मां बनने वाली हूं, मैं वादा करती हूं मैं जल्द से जल्द बच्चे को जन्म देकर तुम्हारे समक्ष आ जाऊंगी।
तुम फिर मुझे मार लेना। शिकारी ने हिरनी को जाने दिया। इस दौरान शिवलिंग पर फिर से बेलपत्र गिर गए और इस तरह से शिकारी से अनजाने में प्रथम प्रहर की पूजा संपन्न हो गई।
इसके पश्चात एक अन्य हिरणी वहां से निकली। जैसे ही शिकारी ने शिकार करना चाहा तो हिरनी बोली कि मैं अभी कुछ समय पहले ही में ऋतु से छूटी हूं। कामासुर विरहिणी हूं। मैं अपने प्रिय की तलाश में हूं। अपने पति से मिलकर मैं तुम्हारे पास वापस आ जाऊंगी, तो शिकारी ने उसे भी जाने दिया।
उस समय रात का आखिरी पहर था, तब भी कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर जा गिरे और अनजाने में शिकारी ने अंतिम पहर की पूजा भी कर ली। इसके बाद एक हिरनी वहां पर अपने बच्चों के साथ आई। जब शिकारी ने शिकार करना चाहा, तो हिरनी के निवेदन करने पर शिकारी ने उसे भी जाने दिया।
कुछ समय बाद शिकारी के सामने एक हिरण आया। शिकारी ने उसका शिकार करने का ठान लिया, परंतु फिर हिरण ने शिकारी से आग्रह किया कि उसे कुछ समय का जीवन दान चाहिए।
शिकारी ने हिरण को पूरी रात की घटना सुना दी, फिर हिरण ने आग्रह किया कि जिस तरह से मेरी तीनों पत्नियां प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई है, मेरी मृत्यु हो जाने पर वह अपनी प्रतिज्ञा और धर्म का पालन नहीं कर पाएगी, इसलिए मुझे जाने दीजिए। मैं स्वयं ही अपने परिवार के साथ आपके सामने उपस्थित होता हूं और शिकारी ने उसे जाने दिया।
इस तरह से सुबह हो गई। भूखे प्यासे रहने के कारण उपवास, रात भर जागने और शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से अनजाने में ही सही, परंतु शिकारी से शिवरात्रि की पूजा पूर्ण हो गई और उस पूजा का फल उसे तत्काल ही मिल गया।
थोड़ी देर में हिरण अपने परिवार के साथ उसके सामने आया, तो शिकारी को जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता और सात्विकता देखकर बहुत ग्लानि हुई और उसने सम्पूर्ण परिवार को छोड़ दिया।
अनजाने में ही सही उस शिकारी ने भगवान शिव की विधिवत पूजा एवं व्रत किया। जिससे शिव भगवान बहुत प्रसन्न हुये और उसे दर्शन दिये। जिसके पश्चात उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई। जब मृत्यु के समय उसे यमदूत लेने आए लेकिन शिव गणों ने उन्हें वापस लौटा दिया और चित्रभानु शिवलोक चले गए।
इसके पश्चात शिव जी की कृपा से चित्रभानु श्रावण मास की शिवरात्रि की पूजा की महिमा को याद रखा और अपने पिछले जन्म में हुये कृत्यों का याद रखते हुये इस दिन के महत्व को जन-जन तक पहुंचाया।
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सावन की शिवरात्रि का महत्व एवं जलाभिषेक करने के पौराणिक मान्यताएं एवं तथ्य
सावन शिवरात्रि मे शिव का जलाभिषेक करने के कुछ पौराणिक तथ्य भी है। आइए इनके बारे में जाने:-
पहला पौराणिक तथ्य
ऐसा माना जाता है कि जब अमृत की प्राप्ति के लिए देवताओं और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया, तब सावन का महीना था। समुद्र मंथन में सबसे पहले विष प्रकट हुआ था। विष निकलते ही धरती पर भूचाल आ गया। वातावरण प्रदूषित हो गया, पशु पक्षी मरने लगे, हर तरफ हाहाकार मच गई थी।
तब भगवान शिव ने उस विष को अपने कंठ में ग्रहण कर लिया था, परंतु इससे उनके शरीर में बहुत ज्यादा गर्मी पैदा हो गई। उनका शरीर लाल पडने लगा। यह देखकर सभी देवताओं ने उन पर जल की वर्षा की अर्थात शिव को शांत करने के लिए उन पर जल चढ़ाया और शिव भगवान बहुत ज्यादा प्रसन्न हुए। तब से यह मान्यता है कि जल चढ़ाने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।
दूसरा पौराणिक तथ्य
ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित हुए थे, इसीलिए भगवान शिव को जलाभिषेक करके प्रसन्न करने का सावन एक उत्तम महीना कहा गया है।
तीसरा पौराणिक तथ्य
एक अन्य तथ्य के अनुसार भगवान शिव स्वयं ही जल है, इसीलिए जल से भगवान शिव का अभिषेक करना बहुत ही अच्छा और फलदायी माना गया है।
कावड़ यात्रा, इसकी कथा और प्रकार (Kanwar yatra in hindi)
सावन का महीना 3 जुलाई 2023 से शुरू हो गया है और इसमें कावड़ यात्रा 3 जुलाई 2023 से आरंभ होकर 31 अगस्त 2023 तक चलेगी। इस कावड़ यात्रा में हजारों लाखों की संख्या में शिव भक्त गंगा नदी से पवित्र जल भरकर शिव मंदिर मे जलाभिषेक कहते हैं। इस बार कावडियों को महारुद्र महादेव को प्रसन्न करने जलाभिषेक करने का दुगुना मौका मिलेगा।
इस बार सावन में कावड़िए इन दिनों करें जलाभिषेक।
1 | प्रदोष व्रत | शिवरात्रि- 15 जुलाई, 2023 |
2 | प्रदोष व्रत | रविवार – 30 जुलाई, 2023 |
3 | प्रदोष व्रत | रविवार – 13 अगस्त, 2023 |
4 | शिवरात्रि | सोमवार – 14 अगस्त, 2023 |
5 | प्रदोष व्रत | सोमवार – 28 अगस्त, 2023 |
कावड यात्रा के पीछे माना जाता है कि गंगाजल से रुद्राभिषेक करने पर महादेव बड़ी से बड़ी इच्छा को बहुत जल्दी पूरा कर देते हैं। जो शिवभक्त कावड़ यात्रा पर निकलते हैं, उन्हें कावड़िया कहा जाता है। आइए कावड़ यात्रा से जुड़ी कथा और इसके प्रकार के बारे में जानते हैं:-
कावड़ से जुड़ी पौराणिक कथा (Kanwar yatra in hindi)
मान्यता है कि जब समुद्र मंथन से विष निकला, तो दुनिया को उसके बुरे प्रभाव से बचाने के लिए महादेव ने विष कंठ में रोक लिया, जिसकी वजह से शिव का पूरा शरीर नीला हो गया और शरीर में नकारात्मक उर्जा से गर्मी उत्पन्न हो गई। तब शिव के परम भक्त रावण ने कांवड़ में गंगाजल लेकर शिवलिंग पर चढ़ाया और उनका अभिषेक किया था। उस समय से कावड से शिव का जलाभिषेक किया जाता है और माना जाता है कि ऐसा करने से सभी प्रकार के दुष्प्रभाव से मुक्ति मिलती है।
कावड़ यात्रा के प्रकार
समय के साथ कावड़ यात्रा में कई बदलाव आए हैं। अब तीन तरह की कावड़ यात्रा प्रचलन में है:-
- झांकी वाली कावड़– इस तरह की कावड़ यात्रा में कावड़िए किसी खुले वाहन में भगवान शिव का दरबार सजा कर इस पावन यात्रा को पूरी करते हैं।
- खड़ी कावड़ खड़ी कावड़ सबसे कठिन कावड़ यात्रा मानी जाती है, क्योंकि इस यात्रा में कावड़ को कहीं जमीन पर नहीं रखना होता है। यदि किसी कावड़िए को भोजन या आराम करना है, तो वह अपनी कावड़ किसी दूसरे को थमा देता है या फिर किसी स्टैंड पर रख सकता है।
- डाक कावड़– इस तरह की कावड़ यात्रा में शिव भक्त जलाभिषेक वाले दिन तक लगातार बगैर रुके चलते हैं।
निष्कर्ष
दोस्तों, इस लेख के माध्यम से आपने सावन शिवरात्रि कब है, इसकी तिथि, पूजा मुहूर्त और महत्व के बारे में विस्तार पूर्वक जाना है। आशा करते हैं कि हमारे द्वारा दी गई यह जानकारी आपको पसंद आई होगी। यदि इस लेख से संबंधित कोई भी प्रश्न आपके मन में है तो हमें कमेंट करके जरूर बताएं।
FAQ
-
सावन की शिवरात्रि 2023 कब है?
14 जुलाई 2023
-
सावन की शिवरात्रि में पूजा का मुहूर्त कब है?
जुलाई 2023, शनिवार रात 11:21 मिनट से शुरू होकर 15 जुलाई 2023, शनिवार रात 12:04 मिनट तक होगा।
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2023 सावन महीना शुरू कब से कब तक है?
03 जुलाई 2023 से 31 अगस्त तक है।
-
सावन 2023 की दूसरी शिवरात्रि कब है?
सोमवार 14 अगस्त के दिन है इसका शुभ मुहूर्त रात्रि 11ः19 से 12ः03 तक है।