समानता की मूर्ति रामानुजाचार्य का जीवन परिचय, संत रामानुजाचार्य कौन थे? Facts about Statue of Equality in hindi, ramanujacharya biography in hindi
हाल ही में भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने हैदराबाद में संत रामानुजाचार्य जी की प्रतिमा का उद्घाटन किया है। महान संत और समाज सुधारक रामानुजाचार्य की इस मूर्ति को Statue of Equality स्टैचू आफ इक्वलिटी (समानता की मूर्ति) का नाम दिया गया है।
ऐसे में स्वाभाविक सी बात है कि लोग संत रामानुजाचार्य के जीवन के बारे में जानना चाहेंगे। तो आइए इस लेख के जरिए हम स्टैचू आफ इक्वलिटी से जुड़ी बातों के साथ ही साथ विश्व को समानता का पाठ पढ़ानें वाले महान संत रामानुजाचार्य के जीवन (Ramanujacharya Biography in Hindi) के बारे में भी जानेंगे।
विषय–सूची
रामानुजाचार्य की 1000 वी जयंती पर स्टैचू आफ इक्वलिटी (Statue of Equality) का उद्घाटन
भारत के महान संत और वैष्णव संत रामानुजाचार्य की 1000 वी जयंती पर हैदराबाद में सहस्राब्दी समारोह का आयोजन किया गया और इसी अवसर पर भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने हैदराबाद में स्टैचू आफ इक्वलिटी अर्थात समानता की मूर्ति का उद्घाटन किया जिसमें संत रामानुजाचार्य की प्रतिमा बनाई गई हैं।
संत रामानुज की प्रतिमा को क्यों कहा गया है स्टैचू आफ इक्वलिटी?
संत रामानुज वैष्णव परंपराओं को मानते थे उनका कहना था कि भगवान के लिए सब एक समान हैं ईश्वर सभी को एक दृष्टि से देखता है उसकी दृष्टि में न कोई जाति होती है ना कोई संप्रदाय होता है उसके लिए सब उसकी संतान हैं। इसलिए हर जाति के हर वर्ग के लोगों को भगवान का नाम लेने का अधिकार है और सभी के लिए मंदिर में प्रवेश करने का अवसर है।
संत रामानुज एक संत होने के साथ-साथ एक समाज सुधारक भी थे जिन्होंने जातीय विविधता जैसी चीजों का खुलकर विरोध किया यही कारण है कि इस मूर्ति को स्टैचू आफ इक्वलिटी का नाम दिया गया है।
समानता की मूर्ति से जुड़ी हुई कुछ खास बातें (Facts about Statue of Equality in hindi)
1. आपको बता दें कि रामानुजाचार्य की स्टैचू आफ इक्वलिटी लगभग 216 फीट ऊंची है और लगभग यह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सीटिंग स्टेचू है।
2. स्टैचू आफ इक्वलिटी को पंच धातुओं के मेल से बनाया गया है या नहीं इसमें पांच अलग-अलग प्रकार की धातुओं का इस्तेमाल किया गया है जिनमें लोहा सोना चांदी तांबा और कांसा शामिल।
3. मूर्ति के ऊपरी हिस्से को स्थापित करने के लिए प्रतिमा के नीचे लगभग 54 फीट ऊंची वेदी बनाई गई है।
4. इस मूर्ति के साथ स्टैचू आफ इक्वलिटी के परिसर में 108 प्रकार की दिव्यदेश बनाए गए हैं। दरअसल ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि संत रामानुज वैष्णव वाद को मानने वाले थे और हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के 108 अवतार माने जाते हैं इसलिए इसे यह संख्या दी गई है।
5. स्टैचू आफ इक्वलिटी दुनिया की सबसे ऊंची मूर्तियों में से एक है और साथ ही साथ यह दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची मूर्ति है जो बैठी मुद्रा में बनाई गई है। इसके अलावा थाईलैंड में बनी बुध की बैठी हुई मुद्रा में मूर्ति दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है।
6. स्टैचू आफ इक्वलिटी की कल्पना और डिजाइनिंग के रामानुजाचार्य आश्रम के स्वामी चिन्ना जीयर की सहायता से की गई है।
7. स्टैचू आफ इक्वलिटी का उद्घाटन रामानुजाचार्य की एक हजार वीं जयंती पर किया गया है। उनकी जयंती के अवसर पर 12 दिनों की रामानुज सहस्त्राब्दी समारोह का आयोजन किया गया था।
कौन थे संत रामानुजाचार्य –
संत रामानुजाचार्य एक महान संत, समाज सुधारक, हिंदू धर्म शास्त्रज्ञ और एक दार्शनिक भी थे जिन्हें हिंदू धर्म शास्त्रों में अद्भुत ज्ञान था। संत रामानुज आचार्य जी का जन्म 1017 मे तमिलनाडु में हुआ था।
संत रामानुजाचार्य हिंदू धर्म के वैष्णववाद परंपरा को मानने वाले थे और उनके प्रमुख व्याख्याताओं में गिने जाते थे।
संत रामानुजाचार्य का जन्म तमिलनाडु में हुआ था। वह एक तमिल ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे।
वैष्णववाद कि यह मान्यता है कि रामानुज हिंदू परंपराओं की अद्वैतीय वेदांत अथवा गैर द्वैतीय मान्यताओं से सहमत नहीं थे यही कारण था कि वह अद्वैतीय वेदांत की मान्यताओं को मानने वाले अपने गुरु से भी असहमत थे।
संत रामानुज आचार्य जी के गुरु का नाम यादव प्रकाश था जो एक प्रचंड विद्वान थे और हिंदू धर्म की अद्वैत वेदांत मठ वासी परंपरा का पालन करते थे।
क्योंकि रामानुज शुरू से ही अद्वैत वेदांत से विमुख थे इसलिए वह अपने जीवन काल में भारतीय अलवर संस्कृति, यमुनाचार्य और नाथमुनि के पद चिन्हों पर चलें और भक्ति आंदोलन में अपनी महती भूमिका निभाई।
रामानुजाचार्य के शिष्यों को शांतियानी जैसे उपनिषद का रचनाकार माना जाता है। जबकि संत रामानुज ने संस्कृत में ब्रह्म सुत्र और ‘भागवत गीता पर भक्ति’ जैसे महान ग्रंथो की रचना की थी। उस समय सहस्त्राब्दि के तीन प्रमुख दर्शन थे जिनमें शंकराचार्य का अद्वैत दर्शन (अद्वैतवाद) माधवाचार्य के द्वैता दर्शन ( ईश्वरीय द्वैत्वाद ) और विशिष्टाद्वैत दर्शन शामिल है। आचार्य रामानुजाचार्य शंकराचार्य के अद्वैतवाद से बिल्कुल सहमत नहीं थे बल्कि वे विशिष्टाद्वैत वाद के पक्षधर थे।
रामानुजाचार्य का प्रारम्भिक जीवन –
रामानुजाचार्य अपने विवाह के पश्चात कान्चीपुरम चले गए।
कान्चीपुरम में वह अपने गुरु यादव प्रकाश के साथ अद्वैत वेदांत मठ में शिक्षा ग्रहण करने लगे। हिंदू ग्रंथ और उपनिषदों में कई ऐसे विषय थे जिनसे रामानुजाचार्य और कही कही उनके गुरु यादव प्रकाश भी इनसे असहमत थे।
विचारो की भिन्नात्मक प्रवृत्ति के कारण कई बार रामानुज अपने गुरु से असहमत हो जाते थे। कुछ समय बाद असहमति के कारण रामानुज अपने गुरु से अलग हो गए लेकिन उसके बाद भी इनकी शिक्षा स्थगित नहीं हुई।
संत रामानुज 11 वी शताब्दी के एक महान विद्वान और वेदांत यमुनाचार्य से बहुत प्रभावित थे वह उनसे मिलना भी चहते थे लेकिन कभी मिले नहीं क्योंकि उत्तरार्ध के सम्मेलन के पहले ही उनकी मौत हो गयी।
सन्यास लेने के पश्चात संत रामानुज कांचीपुरम के पेरुलम मंदिर के पुजारी बन गए और वैष्णव परंपरा के माध्यम से लोगों को अध्यात्म दर्शन का ज्ञान देने लगे।
रामानुजाचार्य के ग्रंथ –
रामानुज ने अपने जीवन काल में बहुत सारे ग्रंथों की रचना की साथ-साथ उनके शिष्यों ने भी बहुत से ग्रंथ लिखे।
उन्होंने संस्कृत भाषा में वेदार्थ संग्रह, श्री भाष्य, भागवत गीता भाष, और वेदांतपिड़ा वेदांतसारा और गडिया त्रयम जैसे ग्रंथ लिखे थे।
वेदार्थ संग्रह में उन्होंने वेदों का सारांश दिया जबकि भागवत गीता भाष्य में भागवत गीता ग्रंथ की समीक्षा की है और उस पर टिप्पणी भी की है। संत रामानुजाचार्य ने अपने ग्रंथ श्री भाष्य में ब्रह्म सूत्रों की रचना की है।
संत रामानुजाचार्य ने हिंदू विशिष्ट अद्वैत या वैष्णव वाद की नींव रखी।
रामानुज के शिष्य –
रामानुज के कई ऐसे थे जो उनके साथ वैष्णव वाद की मान्यता को मानते थे। उनके प्रमुख किदांबी आचरण, दादुर अझवान, मुदलियानंद, कुराथा झवान थे।
बहुत से विद्वान मानते हैं कि आचार्य रामानुजाचार्य के शिष्यों ने मिलकर शांतियायन उपनिषद की रचना की थी।
संत रामानुजाचार्य की मृत्यु 1137 में श्रीरंगम नामक स्थान पर हुई।
रामानुजाचार्य के दार्शनिक विचार –
हिंदू ग्रंथों और उपनिषदों में कई ऐसे विषय आ जाते थे जिनसे रामानुज काफी असंतुष्ट थे यही कारण था कि उन्होंने अपने गुरु यादव प्रकाश से विमुख होकर वैष्णो बाद की शुरुआत की। संत रामानुजाचार्य भले ही एक संत थे लेकिन साथ ही साथ एक समाजसेवी और समाज सुधारक भी थे।
वह छुआछूत उच्च एवं नीची जाति की मान्यताओं से खिलाफत में थे उनका मानना था कि ईश्वर ने सभी को संसार में जीवन जीने का एक स्वर्णिम अवसर दिया है फिर चाहे वह उसी जाति का हो या नीची जाति का।
और केवल सवर्ण ही नहीं बल्कि सभी का यह अधिकार है कि वह ईश्वर की कृतज्ञता व्यक्त करें और ईश्वर की कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए सभी को मंदिर में जाने का भी अधिकार है।