एकात्मता की मूर्ति आदि शंकराचार्य कौन थे? आदि शंकराचार्य का जीवन परिचय, प्रमुख कार्य तथा उनसे जुड़ी हुई कुछ खास बातें। आदि शंकराचार्य की प्रतिमा ओंकारेश्वर एकात्म धाम, आदि शंकराचार्य के चार मठ, (Statue of Oneness Adi Shankaracharya Biography in Hindi, Facts About Shankaracharya Murti in Hindi, Facts About Statue Of Oneness In Hindi)
मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में ओंकारेश्वर धाम के मांधाता पर्वत पर आदि शंकराचार्य की 108 फीट ऊंची अष्टधातु से निर्मित बहुत भव्य प्रतिमा बनाई गई है। इस भव्य प्रतिमा का वजन करीब 100 तन है।
आदि शंकराचार्य की इस प्रतिमा को एकात्मता की प्रतिमा (Statue Of Oneness) नाम दिया गया है। इस भव्य प्रतिमा की चर्चा संपूर्ण भारत में हो रही है।
आदि शंकराचार्य जी की प्रतिमा का अनावरण होने के बाद लाखों लोग इंटरनेट पर उनकी जीवनी तलाश कर रहे हैं। अगर आप भी यह जानना चाहते हैं कि आदि शंकराचार्य कौन थे?
तो बिल्कुल सही जगह आए हैं क्योंकि आज इस लेकर जरिए हम आपको आदि शंकराचार्य कौन थे? उनकी जीवनी तथा उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें बताने वाले हैं।
विषय–सूची
आदि शंकराचार्य का जीवन परिचय (Adi Shankaracharya Biography In Hindi)
आदि शंकराचार्य जी भारत के महान दार्शनिक धर्मप्रवर्तक तथा अद्वैत वेदांत के प्रणेता थे। वह
भगवत गीता, उपनिषद तथा वेदांत सूत्रों पर की गई अपनी टीकाओं के लिए जाने जाते हैं।
आदि शंकराचार्य जी ने ही चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की थी जिनके सन्यासी आज भी ‘शंकराचार्य’ की उपाधि से सम्मानित किए जाते हैं।
आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित इन चार मठों का नाम ज्योतिष्पीठ बदरिकाश्रम, श्रृंगेरी पीठ, द्वारिका शारदा पीठ तथा पुरी गोवर्धन पीठ है। आज भी यह पीठ सनातन संस्कृति का सतत प्रवर्तन करती हैं।
आदि शंकराचार्य जी द्वारा स्थापित इन चार मठों ने मध्यकालीन इस्लामिक आक्रमणों के उपरांत भी भारत में सनातन संस्कृति का गौरव अस्तित्व सुरक्षित बचाए रखा।
आदि शंकराचार्य को भगवान शंकर का अवतार माना जाता है। ब्रह्म सूत्रों पर लिखे गए इनका भाष्य के लिए यह जाने जाते हैं।
आदि शंकराचार्य जी ने 788 ईस्वी में केरल राज्य में स्थित कालड़ी गांव में जन्म लिया था। इनकी माता का नाम अय्यांबा तथा इनके पिता का नाम शिवगुरु था।
भगवान शिव की आराधना से शिवगुरु व अयंबा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी इसलिए उनका कृपा स्वरूप मानकर उन्होंने बालक का नाम शंकर रखा।
जब शंकराचार्य जी 3 वर्ष के हुए तो उनके पिता का देहांत हो गया। अपने बाल्यकाल से ही शंकर अत्यंत मेधावी और प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के थे।
6 वर्ष की आयु तक आते-आते आदि शंकराचार्य जी को धर्म शास्त्र का अद्भुत ज्ञान मिल गया था और यह प्रकांड विद्वान बन गए थे।
महज आठ साल की अवस्था में इन्होंने सन्यास का जीवन चुन लिया। लेकिन कहा जाता है कि उनकी माता इनके संन्यास धारण के खिलाफ थी क्योंकि यह अपने माता-पिता की इकलौती संतान थे।
लेकिन बाद में इन्हें इनकी मां से सन्यास धारण करने की आज्ञा मिल गई। और उन्होंने गोविंद भागवतपाद से सन्यास की दीक्षा ले ली।
आदि शंकराचार्य की ज्ञान दीक्षा –
आदि शंकराचार्य जी केवल 8 साल की अवस्था में संन्यास लेकर केरल से मध्य प्रदेश आए तथा नर्मदा नदी के तट पर स्थित ओंकारेश्वर में उन्हें गुरु गोविंदपाद से योग तथा अद्वैत ब्रह्म ज्ञान प्राप्त हुआ।
तीन साल तक लगातार अद्वैत तत्व की साधना करने के बाद गुरु की आज्ञा पाकर शंकराचार्य जी काशी विश्वनाथ जी का दर्शन करने निकल पड़े और वाराणसी आ गए।
कहा जाता है कि जब आदि शंकराचार्य काशी पहुंचे तो उनके मार्ग में एक चांडाल आ गया था। शंकराचार्य जी ने क्रोधित हो चांडाल को अपना मार्ग छोड़ने के लिए कहा।
इस पर चांडाल ने शंकराचार्य जी से कहा कि वह एक अब्राह्मण है, क्योंकि उन्होंने जीवों के शरीर में रहने वाले परम ब्रह्म की अपेक्षा की है।
उस चांडाल की वाणी सुनकर आदि शंकराचार्य काफी प्रभावित हुए और उन्होंने उसे अपना गुरु मान लिया। जब उन्होंने चांडाल को प्रणाम किया तो उन्हें भगवान शिव के दर्शन हुए।
कहा जाता है कि काशी में रहने के दौरान आदि शंकराचार्य एक बार आचार्य मंडन मिश्रा के घर पहुंचे। आदि शंकराचार्य ने आचार्य मंडन मिश्रा को शास्त्रार्थ में परास्त कर दिया।
लेकिन जब आचार्य मंडन की अर्धांगिनी ने देखा कि आचार्य शास्त्रार्थ में आदि शंकर से हार रहे हैं तो वह बोल पड़ी।
उन्होंने आदि शंकराचार्य को शास्त्रार्थ के लिए आमंत्रित किया और कहां की महात्मन! अभी आपने केवल आधे अंग को जीता है आधा अंग जितना अभी विशेष है।
जब तक आप आचार्य मंडन के अर्धांग अर्थात मुझे परास्त नहीं करेंगे तब तक आप विजई नहीं होंगे। इस शास्त्रार्थ के दौरान आचार्य मंडन मिश्र की पत्नी ने आदि शंकर से कामशास्त्र के प्रश्न पूछने शुरू कर दिए।
लेकिन आदि शंकराचार्य बचपन से ही ब्रह्मचारी थे इसलिए उन्हें कामशास्त्र का ज्ञान नहीं था। इस बात पर उन्होंने आचार्य मंडन मिश्र की पत्नी भारती से कुछ दिनों का समय मांगा तथा काम शास्त्र का अध्ययन किया।
कहा जाता है कि आदि शंकर जी ने दूसरी काया में प्रवेश करके कामशास्त्र का ज्ञान प्राप्त किया था सपा भारती को शास्त्रार्थ में हरा दिया था।
आदि शंकराचार्य जी के प्रमुख कार्य –
महज सोलह साल की अवस्था में बद्रीका आश्रम में इन्होंने ब्रह्मसूत्रों पर भाष्य की रचना की थी।
ब्रह्मसूत्रों पर शंकर भाष्य की रचना के जरिए उन्होंने संपूर्ण विश्व को एक सूत्र में बांधने का प्रयास किया। बद्रीकाश्रम में उन्हीं द्वारा स्थापित किया गया ज्योतिर्पीठ आज भी भारत की एकात्मता का प्रतीक बना हुआ है।
आदि शंकराचार्य ने संपूर्ण भारत में भ्रमण किया और बौद्ध धर्म के पाखंडों को उजागर कर वैदिक धर्म का पुनर्जागरण किया। उसे समय बौद्ध धर्म के लोग इन्हें अपना शत्रु भी समझते थे क्योंकि इन्होंने कई बौद्ध ज्ञानियों को शास्त्रार्थ में परास्त कर दिया था।
धार्मिक उत्थान के इस क्रम में आदि शंकराचार्य जी ने वैदिक धर्म में व्याप्त कुरीतियां एवं पाखंड पर भी कठोर प्रहार किया और वैदिक धर्म का पुनरुद्धार किया।
शंकराचार्य जी ने चार दिशाओं के चार मठों की स्थापना की थी। आज भी यह चारों मठ सनातन संस्कृति और वैदिक धर्म के समग्र उत्थान हेतु सतत कार्य कर रहे हैं।
820 ई. में केवल 32 वर्ष की अल्प आयु में शंकराचार्य जी ब्रह्म में विलीन हो गए। आदि शंकराचार्य द्वारा दिखाए गए दर्शन में सगुण ब्रह्म और निर्गुण ब्रह्म दोनों में एकात्मता है।
इसीलिए उन्हें एकात्मता की सरकार और सजीव प्रतिमा की तरह माना जाता है। उनकी एकात्मता की इस छवि को विश्व सामने के रखने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज चौहान जी के नेतृत्व में मध्य प्रदेश की सरकार ने 108 फीट ऊंची एकात्मता की प्रतिमा बनाकर उनका सम्मान किया है।
एकात्मता की मूर्ति (Statue Of Oneness) –
मध्य प्रदेश के ओंकारेश्वर में मांधाता पर्वत पर स्थित एकात्मता की मूर्ति किसी और कि नहीं बल्कि आदि शंकराचार्य जी की ही 108 फीट ऊंची प्रतिमा है। जिसका वजन तकरीबन 100 टन है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस प्रतिमा में आदि शंकराचार्य जी की 12 वर्ष की अवस्था का चित्रण किया गया है।
भारत एवं संपूर्ण विश्व के लिए एकात्मता के प्रति आदि शंकराचार्य जी को श्रद्धांजलि देने के लिए मध्य प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी सरकार ने ओंकारेश्वर में एकात्म धाम का निर्माण कराया है जहां एकात्मता की मूर्ति और अद्वैत लोक संग्रहालय की स्थापना की गई है।