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काशी विश्वनाथ ज्योर्तिलिंग मंदिर का इतिहास | Kashi Vishwanath Mandir history in hindi

काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास हिंदी में, काशी विश्वनाथ की कहानी (Kashi Vishwanath mandir history in hindi, kashi vishwanath mandir story hindi)

Kashi Vishwanath Mandir history in hindi वाराणसी (काशी नगरी) को पुराणों में इसे मोक्ष दायिनी नगरी, शिव द्वारा रचित नगरी बताया गया है। कहां जाता है कि यह शहरी शिवजी के त्रिशुल पर टिकी हुई है और प्रलय के समय पृथ्वी पर यही स्थान बचेगा। इसका उल्लेख प्राचीनतम पुराणों व वेदों (स्कन्ध पुराण, ऋग्वेद, शिवपुराण, महाभारत) में विस्तार से बताया गया है। यहां पर भगवान शिव का सप्तम ज्योर्तिलिंग काशी विश्वनाथ विराजमान है।

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यह काशी विश्वनाथ मंदिर भारत के 12 ज्योतिर्लिंगो में से एक है ज्योर्तिलिंग शिव का वह स्थान है जहां वह स्वयं प्रकट होकर स्थापित हो गये थे। पुराणों के अनुसार भगवान शिव अनंत काल से यहां विराजमान है भगवान शिव ने 5000 साल पूर्व इस नगरी की स्थापना की थी।

इस नगरी को मोक्षदायीनी सप्तपुरीयों (उज्जैन, काशी, हरिद्वार, अयोध्या, द्वारिकाधाम, मथुरा, कांचीपुरम) में प्रमुख स्थान है। धार्मिक ग्रंथों व पुराणों में इस स्थान का इतना अधिक महत्व बताया गया है कि इसे भारत की धाार्मिक राजधानी कहे तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। यह अपनी भव्य मान्यताओं के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है।

काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास (Kashi Vishwanath Mandir history in hindi )

हिंदुओं के प्राचीनतम मंदिरों में से एक बाबा काशी विश्वनाथ का मंदिर गंगा के पश्चिमी तट पर वाराणसी नगर में स्थित है। हिंदू इस मंदिर को मां पार्वती और भगवान शिव का आदि स्थान मानते हैं।

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काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण –

सन 1780 में वर्तमान काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कराया गया था। वैसे तो यहां का ज्योर्तिलिंग मंदिर बहुत ही प्राचीन है और पुराणों व वेदों के अनुसार यह अनंत काल से यहां विद्यमान है। परंतु ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार वर्तमान काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा कराया गया था।

इसके पश्चात सन 1853 में वर्तमान काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण महाराजा रणजीत सिंह ने करवाया था।

महाराजा रणजीत सिंह के कार्यकाल में इस मंदिर के निर्माण में लगभग 1000 किलोग्राम शुद्ध सोने का इस्तेमाल किया गया था।

मोहम्मद गोरी का विश्वनाथ मंदिर पर आक्रमण –

काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार 11 वीं सदी के आसपास माना जाता है। 11 वीं सदी में महाराजा हरिश्चंद्र जी ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था।

लेकिन इस मंदिर के जीर्णोद्धार के मात्र 94 वर्ष बाद ही सन 1194 में मोहम्मद गोरी ने भारत पर आक्रमण किया था और हिंदुओं के तमाम धार्मिक स्थलों को क्षति क्षति पहुंचाई थी जिनमें से एक काशी विश्वनाथ मंदिर पर था।

1194  ईस्वी में मोहम्मद गोरी ने इस मंदिर पर आक्रमण करके इसे गिरवा दिया था।

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कहा जाता है कि मोहम्मद गौरी के आक्रमण के पश्चात एक बार फिर से इस मंदिर का निर्माण कराया गया था लेकिन लगभग 1447 में इसे एक बार फिर से महमूद शाह ने तुड़वा दिया जो उस समय जौनपुर का सुल्तान था।

काशी विश्वनाथ मंदिर पर आक्रमण –

दोबारा क्षति पहुंचाए जाने के बाद भी सन 1585 में राजा टोडरमल से सहायता लेकर पंडित नारायण भट्ट ने इसका पुनर्निर्माण कराया। भारतीय इतिहासकार बताते हैं कि लगभग सन 1632 ईस्वी में जब यहां मुगल साम्राज्य का अधिकार था उस समय शाहजहां के नेतृत्व में फिर से सेना की एक टुकड़ी भेजी गई ताकि इस मंदिर को तोड़ा जा सके लेकिन काशी के हिंदुओं के प्रतिरोध के कारण शाहजहां की सेना अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सकी। परिणाम स्वरूप शाहजहां की सेना ने अवसर पाकर काशी के अन्य 63 मंदिरों पर आक्रमण कर उन्हें तोड़ दिया।

लेकिन एक बार नाकामयाब होने के बाद भी मुगल सल्तनत ने अपनी बर्बरता नहीं छोड़ी और एक बार फिर से औरंगजेब के कार्यकाल में औरंगजेब ने इस मंदिर को तोड़ने के लिए अपनी सेनाओं को आदेश दिए।

18 अप्रैल 1669 ईस्वी को औरंगजेब ने अपनी सेनाओं को आदेश दिया कि काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ दिया जाए और फरमान जारी किया गया की वहां के ब्राह्मणों को मुसलमान बना दिया जाए। औरंगजेब का यह फरमान आज भी कोलकाता में स्थित एशियाटिक लाइब्रेरी में सुरक्षित रखा गया है।

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औरंगजेब का आदेश पाकर उसकी सेना ने काशी विश्वनाथ मंदिर पर आक्रमण कर इसे तोड़ दिया और इसी स्थान पर एक ज्ञानव्यापी मस्जिद की स्थापना की।

सन 1752 से लेकर 1780 के बीच विभिन्न मराठा हिंदुओं ने काशी विश्वनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण और जीर्णोद्धार के लिए विभिन्न प्रयास किए जिनमें सरदार दत्ता जी सिंधिया और मल्हार राव होलकर थे।

लेकिन समस्या की बात यह थी कि उस समय भारत पर ईस्ट इंडिया कंपनी का पूर्ण अधिकार हो गया था इसलिए मंदिर का  जीर्णोद्धार नहीं हो पाया।

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अहिल्याबाई होल्कर के द्वारा हुआ मंदिर का भव्य निर्माण –

सन 1780 महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया। बाद में इस मंदिर का दोबारा उद्धार किया गया और पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह जी ने इस मंदिर के छत्र को 1000 किलोग्राम सोने से निर्मित करवाया।

इसी क्रम में ग्वालियर की महारानी  बैजा बाई ने ज्ञानवापी मंडप का निर्माण करवाया और महाराजा नेपाल जी ने नंदी की प्रतिमा का स्थापन करवाया।

सन 1809 की बात है जब वहां के हिंदुओं ने आक्रोश में आकर ज्ञानवापी मस्जिद पर अपना कब्जा कर लिया और उस पर अपने  पूर्ण अधिकार को संवैधानिक मान्यता देने के लिए ब्रिटिश सरकार से प्रस्ताव रखा गया। वाइस प्रेसिडेंट ऑफ काउंसिल को एक पत्र लिखकर ज्ञानवापी मस्जिद का  क्षेत्राधिकार हिंदुओं को  सौंपने  की मांग की गई लेकिन यह संभव नहीं हो सका।

विश्वनाथ मंदिर का कायाकल्प –

काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित लिंग लगभग 60 सेंटीमीटर लंबा है जिसे चांदी की बेदी से बनाई गई परिधि में रखा गया है। इस मंदिर के अंदर एक  कुआं  स्थित है जिसे ज्ञानवापी  कुआं कहा जाता है।

ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर के पुजारी और अन्य हिंदू आक्रमण के समय ज्योतिर्लिंग को बचाने के लिए इसी कुएं में छुपे हुए थे और जब इन आक्रमणकारियों ने इस मंदिर पर हमला किया तो ज्योतिर्लिंग को बचाने के लिए पुजारी इस ज्योतिर्लिंग को लेकर कुएं में कूद गए।

किस मंदिर में तीन गुंबद है जो सोने के बनाए गए हैं जिसमें लगा हुआ सोना पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह द्वारा लगवाया गया था।

काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर का भव्य निर्माण –

काशी विश्वनाथ मंदिर के कॉरिडोर प्रोजेक्ट का शिलान्यास 8 मार्च सन 2019 को भारतीय प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी जी के द्वारा किया गया था। काशी विश्वनाथ धाम लगभग 500000 स्क्वायर फीट में बसा हुआ है।

प्रधानमंत्री की परियोजना जो कि सन 2019 में शुरू की गई उसके अनुसार इस मंदिर के भव्य कॉरिडोर  का निर्माण हाल ही में संपन्न हुआ है।

आपको बता दें कि मंदिर के  नवनिर्मित कॉरीडोर को दो हिस्सों में बांटा गया है इन कॉरीडोर ओं में चार कॉरिडोर गेट लगे हैं जिसके चारों ओर मंदिर की परिक्रमा करने के लिए स्थान छोड़ा गया है।

इस मंदिर में आदि शंकराचार्य अन्नपूर्णा और काशी विश्वनाथ की स्तुति और उनके अन्य जानकारियों का उल्लेख करने के लिए संगमरमर के 22 शिलालेख लगाए गए हैं।

आपको बता दें कि पिछले 250 साल बाद पहली बार इसका जीर्णोद्धार कराया गया।

मंदिर के कार्य डोर निर्माण की पूरी परियोजना में 900 करोड रुपए की लागत आई है 13 दिसंबर सन 2021 को भारतीय प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी जी ने इस मंदिर के पहले चरण का लोकार्पण किया है।

12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित शिवलिंग –

हिंदू धर्म पुराण ग्रंथों के अनुसार ऐसे 12 स्थान जहां शिव भगवान प्रकट हुए थे उन 12 स्थानों को शिवजी के ज्योतिर्लिंग के स्वरूप में  पूजा जाता है।

शिवजी के इन्हीं 12 भव्य ज्योतिर्लिंगों में से काशी विश्वनाथ मंदिर भी है एक है जो अपनी भव्यता और महानता के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है।

आइये जाने – शिव के 12 ज्योतिर्लिंग के नाम व स्थान अथवा इनका महत्व

पवित्र काशी के पवित्र विश्वनाथ मंदिर से जुड़ी मान्यताएं-

भारत के उत्तर प्रदेश में स्थित वाराणसी  जिसे की काशी के नाम से जाना जाता है  विश्व  और पूरे भारत का का सबसे पवित्र  स्थान माना जाता है।

हिंदुओं की ऐसी अवधारणा है कि काशी में मरना मोक्ष प्राप्त करने का स्थान है हिंदू मानते हैं कि काशी में स्थित मणिकर्णिका घाट पर जिसका दाह संस्कार किया जाता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

तो वही काशी विश्वनाथ मंदिर भी इन अवधारणाओं से  वंचित  नहीं है। हिंदू मानते हैं कि दशाश्वमेध घाट पर गंगा स्नान करने के बाद काशी विश्वनाथ के ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने से अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है और व्यक्ति के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

काशी विश्वनाथ धाम  से जुड़ी कुछ खास बातें –

1. काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती का आदि स्थान माना जाता है इसे भगवान शिव की राजधानी के रूप में भी माना जाता है। अकेले काशी में ही लगभग 511 शिवलिंग प्रतिष्ठित हुए थे।

2. काशी विश्वनाथ मंदिर का गुंबद पूरी तरह से सोने का बना हुआ है। वैसे तो इस मंदिर का भव्य निर्माण सन 1780 में अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था लेकिन सोने के छत्र का निर्माण पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह द्वारा करवाया गया था।

3. इस मंदिर के गुंबद पर एक यंत्र भी स्थापित है।

4. मंदिर का शिखर 15.5 मीटर ऊंचा बना हुआ है इसके गुंबद सोने से बने हुये हैं।

5. हिंदु ग्रंथों के अनुसार काशी नगरी (वाराणसी) आदियोगी शिव के त्रिशूल पर टिका हुआ है।

6. काशी विश्वनाथ मंदिर के अंदर एक ज्ञानवापी कुआं भी है ऐसा माना जाता है कि जब इस मंदिर पर इसे तोड़ने के लिए आए विभिन्न प्रकार के आक्रमण हुए थे तो यहां के पुजारी काशी विश्वनाथ के ज्योतिर्लिंग को लेकर इसी कुएं में कूद गए थे ताकि आक्रमणकारी शिवलिंग को कोई नुकसान ना पहुंचा पाए।

7. काशी विश्वनाथ मंदिर केवल देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बहुत प्रसिद्ध है विदेशी नागरिक इस मंदिर में ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने के लिए आते हैं।

8. काशी विश्वनाथ मंदिर दो भागों में विभाजित है जिनमें से एक भाग में माता पार्वती और दूसरे भाग में भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है।

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