आइये जाने बद्रीनाथ धाम का इतिहास और कहानी और इससे जुड़ी धार्मिक मान्यताऐं (Badrinath Temple History in Hindi)
बद्रीनाथ मंदिर भारत के चार प्रमुख धामों में से एक है। यह मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। बद्रीनाथ धाम अलकनंदा नदी के बाए तट के किनारे बसा हुआ है और इसकी स्थिति दो पर्वत श्रृंखलाओं के बीच है जिन्हें नारायण श्रेणी कहा जाता है।
बद्रीनाथ मंदिर श्रद्धालुओं के लिए बहुत विशेष महत्व रखता है इस मंदिर में बद्रीनारायण के रूप में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। यह मंदिर ऋषिकेश से लगभग 240 किलोमीटर दूर है।
भगवान बद्रीनाथ का यह मंदिर समुद्री तल से लगभग 3133 मीटर की ऊंचाई पर है। इससे बद्रीधाम या छोटा चार धाम कह कर भी बुलाया जाता है। यह भारत में स्थित चार धामों में से एक प्रमुख धाम है जिसे हिंदुओं द्वारा विशेष मान्यता दी जाती है। इसके अलावा यह मंदिर वैष्णवतीयों का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है और यह वैष्णव के 108 दिव्य दिवस में शामिल है।
मंदिर में स्थित भगवान बद्रीनाथ की प्रतिमा भगवान विष्णु को समर्पित है जो कि 3.3 फीट की शालिग्राम की बनी हुई है, आपको बता दें कि यह प्रतिमा स्वयंभू है। बद्रीनाथ की यात्रा लगभग 6 महीने तक चलती है जिसकी शुरुआत अप्रैल से होती है और लगभग नवंबर में यात्रा समाप्त होती है।
विषय–सूची
बद्रीनाथ मंदिर का इतिहास (Badrinath Temple History in Hindi)
बद्रीनाथ मंदिर के इतिहास से संबंधित विभिन्न प्रकार की मान्यताएं हैं। हालांकि बद्रीनाथ मंदिर के उत्पत्ति संबंध में कोई ठोस प्रमाण नहीं है लेकिन विभिन्न प्रकार के साहित्य और ग्रंथों में बद्रीनाथ मंदिर का उल्लेख मिलता है। बद्रीनाथ मंदिर में सनातन संस्कृति के वैदिक देवता की पूजा की जाती है जिससे एक बात तो स्पष्ट है कि इस मंदिर की स्थापना वैदिक काल के दौरान ही हुई होगी।
बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण –
बद्रीनाथ मंदिर में बद्रीनाथ की स्थापना सोलहवीं सदी के गढ़वाल के राजा ने की थी जिसने भगवान बदरीनाथ की मूर्ति को जिस मंदिर में स्थापित कराया था।
इसके साथ ही साथ यह मान्यता भी काफी प्रचलित है कि बद्रीनाथ धाम का निर्माण आठवीं सदी में आदि गुरु शंकराचार्य ने कराया था। कहा जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य के अनुसार इस मंदिर का पुजारी केवल दक्षिण भारत के केरल राज्य का हो सकता है।
इस मंदिर को तीन भागों में विभाजित किया गया है जिसमें मंदिर का गर्भगृह, दर्शन मंडप और सभा मंडप शामिल हैं। इस मंदिर के भीतर कुल 15 मूर्तियां स्थापित हैं जिनमें से एक मूर्ति भगवान विष्णु की शालिग्राम की काली प्रतिमा है। इस बद्रीनाथ धाम को धरती का बैकुंठ कह कर भी संबोधित किया जाता है।
लोक कथाओं के अनुसार बद्रीनाथ धाम की स्थापना –
अगर लोक कथाओं की बात करें तो कहा जाता है कि पहले इस मंदिर में भगवान शिव का वास हुआ करता था। एक बार भगवान विष्णु ध्यान मग्न होने के लिए कोई स्थान ढूंढ रहे थे उसी दौरान भगवान नारायण इस केदार भूमि में आए और उन्हें यह जगह बहुत भा गई।
जब भगवान विष्णु यहां आए तो उन्होंने अलकनंदा नदी और ऋषि गंगा के संगम के पास पहुंच कर एक छोटे से बालक का रूप धारण कर लिया और बहुत तेज तेज रोने लगे। जिसे सुनकर भगवान शिव और माता पार्वती उनके पास आए और उनसे रोने का कारण पूछा जिस पर उन्होंने कहा कि उन्हें ध्यान योग के लिए यही जगह चाहिए तत्पश्चात भगवान से उन्हें उन्हें ध्यान योग के लिए यह स्थान दे दिया। तभी से यह पवित्र स्थान बद्री विशाल के नाम से संबोधित किया जाता है।
बद्रीनाथ मंदिर की कहानी (Badrinath Temple Story in Hindi)
कथा 1 –
पहली कथा के अनुसार हमारे कुछ ग्रंथों और साहित्य में यह माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने आठवीं सदी में की थी कहा जाता है कि इससे पहले यह मंदिर एक बौद्ध मठ था जिससे शंकराचार्य ने बद्रीनाथ धाम में परिवर्तित कर दिया।
कहा जाता है कि बौद्धों को यहां से निकालने के लिए शंकराचार्य ने यहां के राजा परमार शासक कनक पाल से मदद ली थी। इसी दौरान इस मंदिर को पार करने से पूर्व भक्तों ने मिलकर इस मंदिर में अनुष्ठान किया था।
तब से आज तक यह मंदिर कई बार क्षतिग्रस्त हुआ लेकिन बताया जाता है कि सन 18०3 में भयंकर हिमानी भूकंप आया था जिसमें मंदिर को बहुत ज्यादा नुकसान हुआ जिसके बाद जयपुर के राजा ने इस मंदिर का निर्माण कराया।
कथा 2 –
दूसरी कथा यह है कि जब भगवान विष्णु इस स्थान पर तपस्या कर रहे थे तब माता लक्ष्मी भी उनके साथ यही थी। कहा जाता है कि उस समय लक्ष्मी माता ने बेड़ के वृक्षों का रूप ले लिया था कि खराब मौसम की वजह से भगवान विष्णु का ध्यान योग भंग ना हो।
कथा 3 –
कहा जाता है कि इसी स्थान पर नर और नारायण ने तपस्या की थी।
नर और नारायण भगवान शिव के अंश थे और धर्म के पुत्र थे जो तपस्या करने के लिए एक उपयुक्त स्थान ढूंढ रहे थे। यहां आकर उन्होंने पंच बद्री के अन्य चार धामों की अपेक्षाकृत अलकनंदा तट के किनारे होने के कारण इस स्थान को अधिक शीतल और उपयुक्त पाया इसलिए यहीं पर तपस्या करने लगे।
लोग मानते हैं कि यही नर महाभारत काल में अर्जुन के रूप में अवतरित हुए और नारायण ने कृष्ण का अवतार लिए।
मंदिर का नाम कैसे पड़ा बद्रीनाथ –
इस मंदिर का नाम बद्रीनाथ रखे जाने के पीछे एक रोचक कथा काफी मशहूर है कहा जाता है कि एक बार माता लक्ष्मी भगवान विष्णु से रूठ गई और रूठ के मायके चली गई। भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी को मनाने के लिए इसी स्थान पर बेर के वनों में जिन्हें बदरी कहा जाता है उसी के वृक्ष पर बैठकर तपस्या करने लगे।
जब कुछ समय बाद माता लक्ष्मी मानकर लौट आई तो उन्होंने देखा कि भगवान विष्णु बेर के जंगलों में एक वृक्ष पर बैठकर तपस्या कर रहे थे।
क्योंकि भगवान विष्णु ने बेर अर्थात बद्री के वृक्ष पर बैठकर तपस्या की थी इसलिए इस स्थान का नाम लक्ष्मी जी ने बद्रीनाथ रख दिया।
बद्रीनाथ से जुड़ी मान्यताएं –
1. बद्रीनाथ से जुड़ी पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब गंगा जी को पृथ्वी पर लाया गया था उस समय गंगा जी 12 भागों में बट गई थी जिसमें से उनकी एक धारा अलकनंदा नदी भी है जहां पर भगवान विष्णु ने बेल के वनों में तपस्या की।
2. बद्रीनाथ धाम के क्षेत्रों में प्राचीन काल से ही बेर के वृक्ष भरे हुए थे इस कारण इस जगह को बद्री वन कह कर भी बुलाया जाता था।
क्योंकि भगवान विष्णु ने इस स्थान पर तपस्या की और यही उनकी प्रतिमा स्थापित की गई इसलिए इसे बद्रीनाथ कह कर संबोधित किया गया।
3. बद्रीनाथ धाम के बारे में एक मान्यता अत्यंत प्रसिद्ध है जिसके अनुसार यह कहा जाता है कि अगर कोई व्यक्ति एक बार बद्रीनाथ धाम के दर्शन कर लेता है तो उसे दोबारा से माता के उधर में नहीं आना पड़ता। कहने का अर्थ है कि बद्रीनाथ धाम के दर्शन करने से आत्मा पूर्ण रूपेण मुक्त हो जाती है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
4. कहा जाता है कि बद्रीनाथ धाम में भगवान शिव को ब्रहम हत्या से मुक्ति मिली थी।
5. बद्रीनाथ धाम में पहले शिवजी निवास किया करते थे लेकिन बाद में उन्होंने यह स्थान भगवान विष्णु को दे दिया।
6. कहा जाता है कि बद्रीनाथ धाम में भगवान शिव के अंश नर और नारायण ने तपस्या की थी जिसके बाद महाभारत काल में नर ने अर्जुन का अवतार और नारायण ने कृष्ण का अवतार लिया था।
7. बद्रीनाथ मंदिर में एक ब्रह्म कपाल शिला है, कहा जाता है कि यही भगवान शिव को ब्रहम हत्या से मुक्ति मिली थी इसलिए यहां पर पितरों का तर्पण और श्राद्ध भी किया जाता है।
बदरीनाथ धाम में स्थित अन्य धार्मिक स्थल –
1. इस धाम में अलकनंदा नदी के तट पर एक गर्म पानी का झरना है जिसे तप्त कुंड कहा जाता है।
2. इसी मंदिर में एक समतल चबूतरा भी है जहां पर पितरों का तर्पण और श्राद्ध किया जाता है जिसे ब्रह्म कपाल कहते हैं।
3. इस मंदिर में भगवान विष्णु के पैरों के निशान भी हैं जिसे चरण पादुका कहा जाता है।
बद्रीनाथ धाम से जुड़े रोचक तथ्य (Badrinath Temple Facts in Hindi)
1. कहा जाता है कि बद्रीनाथ धाम में शंख नहीं बजाया जाता क्योंकि भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी के लिए इसी स्थान पर शंखचूड़ नाम के राक्षस का वध किया था इसलिए ताकि लक्ष्मी जी को शंख चूर्ण का स्मरण ना हो इस वजह से यहां पर शंख नहीं बजाया जाता।
2. बदरीनाथ धाम में एक कुंड है जिसमें सदैव गर्म पानी रहता है l देखने में तो यह पानी खौलता रहता है लेकिन वास्तविकता में यह उतना गर्म नहीं रहता लोग इस कुंड में स्नान करके तब भगवान बद्रीनाथ के दर्शन करते हैं। इसे तप्त कुंड कहा जाता है।
3. बद्रीनाथ मंदिर की यात्रा के लिए 6 महीने मंदिर खुला रहता है और 6 महीने तक बंद रहता है इस मंदिर को बंद करने के पूर्व इस में अखंड ज्योति जलाई जाती है जो 6 महीनों तक जलती रहती है।
4. कहा जाता है कि गुरु शंकराचार्य ने इस मंदिर के लिए केवल दक्षिण भारत के केरल के पुजारियों को नियुक्त किया था यही कारण है कि इस मंदिर के पुजारी जिनके हाथ में मंदिर की देखरेख और कार्यभार होता है वे सदैव केरल के ब्राह्मणों के होने चाहिए।
इन्हें भी जाने - > शिव के 12 ज्योतिर्लिंग का महत्व, कहानी > केदारनाथ धाम व इतिहास पौराणिक कहानी > उज्जैन महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास व कहानी > काशी विश्वनाथ ज्योर्तिलिंग मंदिर का इतिहास > भारत के चार प्रमुख धामों के नाम, इतिहास और महत्व > सोमनाथ मंदिर का इतिहास व रोचक तथ्य > काशी के रत्नेश्वर मंदिर का रहस्य व इतिहास > अमरनाथ गुफा की पौराणिक अमर कथा का रहस्य > रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथाएं