महाराणा प्रताप जयंति 2024 कब है? , महाराणा प्रताप इतिहास, जीवन परिचय, हल्दीघाटी का युद्ध, चेतक का इतिहास (Maharana Pratap History And Biography in Hindi) Maharana Pratap Jayanti 2024 In Hindi
महाराणा प्रताप का इतिहास (Maharana Pratap History In Hindi) भारतीय इतिहास की वह शौर्य गाथा है जिसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता।
भारत की पवित्र भूमि अपने वीर सपूतों की वीरगाथा से भरी पड़ी है। इतिहास गवाह है कि जब जब भारत की अस्मिता पर आंच आई है भारत के किसी ना किसी वीर सपूत ने अपने प्राणों की आहुति देकर इसकी रक्षा की है।
भारत के इन महान वीर सपूतों में भारत के वीर पुत्र महाराणा प्रताप का नाम भी शामिल है जिन्होंने भारत की अस्मिता को बचाने के लिए मुगलों से संघर्ष किया और उनकी ईट से ईट बजा दी।
वीर महाराणा प्रताप ने आजीवन भारत की अस्मिता को बचाने के लिए मुगलों से संघर्ष किया और मुगलों के हर आक्रमण का मुंहतोड़ जवाब दिया। महाराणा प्रताप आजीवन मुगलों से संघर्ष करते रहे तथा मुगलों से भारतीय सभ्यता और संस्कृति की रक्षा की।
आज भी वीर महाराणा प्रताप को सबसे महान भारतीय योद्धाओं में गिना जाता है जिन्होंने अपने प्राणों की चिंता किए बगैर भारत की अस्मिता के लिए संघर्ष किया।
वीर महाराणा प्रताप का नाम सुनने के बाद मुगल सम्राट अकबर तक की रूह कांप उठती थी। भारतीय इतिहास में मुगल सम्राट अकबर तथा वीर महाराणा प्रताप दोनों के बीच संघर्ष का वर्णन मिलता है।
महाराणा प्रताप जी मेवाड़ के राजा थे जो इस समय राजस्थान में पड़ता है। भारतीय इतिहास में महाराणा प्रताप जी के के साथ-साथ उनके घोड़े चेतक का भी वर्णन किया गया है। केवल इतना ही नहीं वीर महाराणा प्रताप और चेतक के ऊपर हिंदी साहित्य में कविताएं भी लिखी गई है।
आज इस लेख के जरिए हम आपको महाराणा प्रताप का इतिहास (History Of Maharana Pratap In Hindi) बताने वाले हैं।
विषय–सूची
महाराणा प्रताप का इतिहास, जीवनी एवं 2024 जयंती (Maharana Pratap Life History in Hindi)
भारतीय विक्रम संवत कैलेंडर के मुताबिक वीर महाराणा प्रताप का जन्म जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हुआ था। हालांकि अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 ई. को हुआ था। महाराणा प्रताप जी राजस्थान के कुंभलपुर में पैदा हुए थे।
वीर महाराणा प्रताप जी का जन्म एक राजपूत राजघराने में हुआ था। महाराजा उदय सिंह द्वितीय महाराणा प्रताप जी के पिता थे। जबकि इनकी माता महारानी जयवंता बाई जी थी
वीर महाराणा प्रताप अपने पिता महाराजा उदय सिंह द्वितीय के सबसे बड़े पुत्र थे और राणा सांगा के पोते भी थे। इनके पिता उदय सिंह द्वितीय ने ही उदयपुर, राजस्थान शहर की स्थापना की थी।
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महाराणा प्रताप का वैवाहिक जीवन –
महाराणा प्रताप का पहला विवाह महारानी अजबदे पुनवार के साथ हुआ था। महाराणा प्रताप के दो पुत्रों का नाम भगवानदास तथा अमर सिंह था। महारानी अजबदे के अलावा महाराणा प्रताप की दश रानियां और थी। अर्थात महाराणा प्रताप ने कुल मिलाकर 11 विवाह किए थे।
महाराणा प्रताप का राजतिलक–
रानी जयवंता बाई के अलावा महाराणा प्रताप जी के पिता उदय सिंह द्वितीय की दूसरी रानी धीरबाई भी थी जिन्हें राजस्थान राज्य इतिहास में रानी भटियाणी के नाम से भी जाना जाता था। महारानी धीरबाई राजाउदय सिंह की प्रिय पत्नी थी और अपने बेटे कुंवर जगमाल को मेवाड़ की राज्य सत्ता का उत्तराधिकारी बनाना चाहती थी।
जब महाराणा प्रताप जी को मेवाड़ का अगला उत्तराधिकारी घोषित किया गया तो धीरबाई पुत्र कुंवर जगमाल ने इसका विरोध किया तथा अकबर का साथ देने लगा।
28 फरवरी 1572 ई. को पहली बार महाराणा प्रताप जी का राजतिलक गोगुंदा में किया गया। हालांकि कहा जाता है कि बाद में विधि विधान पूर्वक दुबारा इनका राजतिलक 1 मार्च 1572 ई. को कुंभलगढ़ में ही हुआ।
राजपूतों ने किया विरोध–
महाराजा राणा प्रताप जी का राज्याभिषेक होने के बाद कई सारे राजपूत राजाओं ने मुगल सम्राट अकबर के सामने अपने घुटने टेक दिए।
अकबर ने कभी राजपूत राजाओं को सत्ता का लोभ देकर महाराणा प्रताप के खिलाफ खड़ा कर दिया। उसने राजा मानसिंह को अपनी सेना का नेतृत्व करने के लिए चुना और सेनापति का दर्जा दे दिया। इसके अलावा उसने भगवान दास और राजा टोडरमल को भी अपने साथ मिला लिया और 1576 ईस्वी में उदय सिंह तथा महाराजा राणा प्रताप के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया।
इस युद्ध को भारतीय इतिहास में हल्दीघाटी का युद्ध कहा जाता है।
हल्दीघाटी का युद्ध–
हल्दीघाटी का युद्ध महाराणा प्रताप तथा मुगल सम्राट अकबर के बीच हुआ था। मुगल सम्राट अकबर ने कई राजपूत राजाओं को अपने साथ मिलाकर महाराणा प्रताप जी के ऊपर आक्रमण कर दिया।
परिणाम स्वरूप अकबर और महाराणा प्रताप हल्दीघाटी के मैदान में आमने-सामने हो गए। 18 जून सन् 1576 को हल्दीघाटी का युद्ध शुरू हुआ महाराणा प्रताप ने मेवाड़ का नेतृत्व किया और इस लड़ाई में उनके साथ केवल एक मुस्लिम सरदार हकीम खां सूरी ने महाराणा प्रताप का साथ दिया।
इस लड़ाई में महाराणा प्रताप जी का साथ भील जनजाति के 400 धनुर्धारीयों ने भी दिया। महाराणा प्रताप जी ने लगभग 3000 घुड़सवारों के साथ मेवाड़ सिंहों तथा भीलों को हल्दीघाटी युद्ध के मैदान में उतारा और अपनी मातृभूमि की सुरक्षा के लिए उन्होंने युद्ध में अपनी जान झोंक दी।
भले ही युद्ध के दौरान कई सारे राजपूत राजाओं ने महाराणा प्रताप के साथ गद्दारी की लेकिन इन वीरो ने अपनी अंतिम सांस तक हल्दीघाटी युद्ध के मैदान में महाराणा प्रताप का साथ दिया।
मुगल सेना का नेतृत्व करते हुए सेनापति मानसिंह ने लगभग 5000 मुगल सैनिकों का नेतृत्व किया और 3000 सैनिकों को हल्दीघाटी के मैदान पर तैनात कर दिया। 18 जून सन 1576 को या युद्ध आरंभ हुआ और एक ही दिन चला लेकिन कहा जाता है कि इस भयंकर युद्ध में तकरीबन 17000 लोगों की जानें गई।
युद्ध के दौरान मेवाड़ के किले के भीतर मेवाड़ की आम जनता को पनाह दी गई। भले ही मुगल सेना राजपूतों सेना से बहुत बड़ी थी लेकिन केवल मुट्ठी भर राजपूत सेना ने ही मुगलों की विशालकाय सेना के छक्के छुड़ा दिए।
कुछ इतिहासकार मानते हैं कि इस युद्ध में किसी की विजय नहीं हुई लेकिन अगर युद्ध का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो पता चलता है कि जिस प्रकार मुगलों की विशालकाय सेना के आगे मुट्ठी भर राजपूतों ने उन्हें कदम पीछे हटाने के लिए मजबूर कर दिया।
सही मायने में इस युद्ध में महाराणा प्रताप की विजय हुई। हालांकि वह इस युद्ध के दौरान बुरी तरह से जख्मी हो गए जिसके उपरांत उन्हें युद्ध स्थल से दूर भेज दिया गया।
महाराज महाराणा प्रताप का मेवाड़ पर पुनः अधिपत्य –
बुरी तरह जाने के बाद महाराणा प्रताप को युद्ध स्थल से राजपूत राजाओं ने बाहर निकाल दिया।
इस दौरान तकरीबन कई सालों तक महाराणा प्रताप ने जंगल में अपना जीवन व्यतीत किया और वहां चावंड नाम की राजधानी बसाई।
कहा जाता है कि धीरे-धीरे साल सन् 1579 तक मेवाड़ पर मुगलों का अधिपत्य बिल्कुल प्रभावहीन हो गया जिसके बाद महाराणा प्रताप ने पुनः आक्रमण करके मेवाड़ को अपने अधीन कर लिया।
महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक –
भारतीय इतिहास में महाराणा प्रताप जैसे वीर भारतीय सपूत के साथ उनके घोड़े चेतक का नाम भी स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। हिंदी साहित्य की कविताओं में भी राणा प्रताप और चेतक से जुड़ी हुई कविताएं पढ़ने को मिलते हैं।
चेतक महाराणा प्रताप का घोड़ा था। हल्दीघाटी के मैदान में युद्ध के दौरान ही चेतक की मौत हो गई थी।
इतिहासकार बताते हैं कि महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक ने उन्हें हल्दीघाटी के मैदान से बाहर निकलने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी।
महाराणा प्रताप की मृत्यु –
19 जनवरी सन् 1597 को भारत के वीर सपूत और मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप जी की मृत्यु हो गई। महाराणा प्रताप जी की मृत्यु के बाद उनका पुत्र अमर सिंहासन पर बैठा।
महाराणा प्रताप का नाम आज भी भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है जिन्हें कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने भारत की अस्मिता को बचाने के लिए जीवन पर्यंत संघर्ष किया।
दोस्तों आज इस आर्टिकल के जरिए हमने आपको महाराणा प्रताप का इतिहास (Maharana Pratap History in Hindi) के विषय में बताया। साथ ही साथ हमने आपके साथ उनके घोड़े चेतक से जुड़ी जानकारियां भी साझा की। उम्मीद करते हैं कि यह लेख आपको पसंद आया होगा।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ) –
महाराणा प्रताप के घोड़े का नाम क्या था?
महाराणा प्रताप के घोड़े का नाम चेतक था।
महाराणा प्रताप का पूरा नाम क्या था?
महाराणा प्रताप जी का पूरा नाम महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया था। वह सिसोदिया वंश के राजपूत परिवार में पैदा हुए थे।
महाराणा प्रताप का भोजन क्या था?
मुगलों के साथ हो रहे संघर्ष के दौरान महाराणा प्रताप ने कई साल अपना जीवन घास की रोटियां, और जंगल की वनस्पतियां खाकर व्यतीत किया।
महाराणा प्रताप का वंश कौन सा था?
महाराणा प्रताप मेवाड़ के राजा वंश सिसोदिया से संबंध रखते थे।
हल्दीघाटी का युद्ध किसके किसके बीच हुआ?
हल्दीघाटी का युद्ध महाराणा प्रताप और मुगल सम्राट अकबर के बीच हुआ।
महाराणा प्रताप का सबसे बड़ा शत्रु कौन था?
महाराणा प्रताप का सबसे बड़ा शत्रु मुगल सम्राट अकबर माना जाता है जिसके साथ उन्होंने हल्दीघाटी का युद्ध लड़ा।
महाराणा प्रताप कहां के राजा थे?
महाराणा प्रताप मेवाड़ के राजा थे।