रामेश्वरम मंदिर कहा है? रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथाएं, रामेश्वरम धाम का धाार्मिक महत्व (Rameshwaram Jyotirlinga History Story in hindi)
भारत में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग हैं जो हिंदू धर्म को मानने वाले लोगों के लिए अत्यंत पूजनीय हैं। इन्हीं 12 ज्योतिर्लिंगों में रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग भी शामिल है। यह 11वां ज्योतिर्लिंग है जो रामेश्वरम में स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग को राम लिंगेश्वरम ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है जो अपने शिल्प कला कृतियों के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है।
रामेश्वरम ज्योर्तिलिंग शिव के द्वादश ज्योर्तिलिंग के अलावा बद्रीनाथ, द्वारकाधीश, और जगन्नाथ पुरी धाम के बाद चौथे प्रमुख धाम रामेश्वरम धाम के नाम से भी जाना जाता है।
भारत के उत्तर में स्थित वाराणसी अथवा काशी विश्वनाथ ज्योर्तिलिंग की मान्यताओं के अनुरूप दक्षिण में स्थित रामेश्वरम तीर्थ स्थल की मान्यताएं हैं। यह चेन्नई से लगभग सवा 400 मील दूर रामनाथपूरम में स्थित है।
विषय–सूची
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की कथा और इतिहास (Rameshwaram Jyotirlinga History Story in hindi)
रामेश्वरम धाम का धाार्मिक महत्व एवं स्थापना
रामेश्वरम में प्रतिवर्ष इस ज्योतिर्लिंग को सजाकर वार्षिकोत्सव बड़े ही धूमधाम और भव्यता के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्तियों को तैयार करके सोने और चांदी के वाहनों के ऊपर स्थापित करके उनकी शोभा यात्रा निकाली जाती है।
इस वार्षिकोत्सव के अवसर पर उत्तराखंड के गंगोत्री से गंगाजल लाकर ज्योतिर्लिंग का स्नान कराया जाता है जिसका बहुत विशेष महत्व होता है।
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग जिस धाम में स्थापित है उसे रामेश्वरम चार धाम के अलावा रामनाथ स्वामी मंदिर भी कहा जाता है।
शिव पुराण के कोटिरूद्र संहिता के अनुसार इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना भगवान श्रीराम ने पूजन के लिए की थी। जब रावण ने सीता जी का हरण किया था और उन्हें लंका ले गया था उस समय भगवान श्री राम बहुत व्याकुल होकर उनकी खोज में दक्षिण की ओर निकले थे।
रामेश्वरम में समुद्र तट पर भगवान शिव की आराधना और उन्हें प्रसन्न करने के लिए प्रभु श्री राम ने इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी। क्योंकि यह ज्योतिर्लिंग रामेश्वरम के तट पर स्थित था इसलिए इसे रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग या राम लिंगेश्वरम ज्योतिर्लिंग कहा गया।
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों के अलावा रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग भारत के चार प्रमुख धामों में से एक है जहां प्रत्येक वर्ष लाखों श्रद्धालु भगवान शिव की आराधना के लिए जाते हैं।
रामेश्वरम तीर्थ हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से घिरा हुआ है। कहा जाता है कि आज से 400 वर्ष पूर्व रामेश्वरम जाने के लिए एक लंबा चौड़ा पुल बनवाया था जिनका नाम कृष्णप्पा नायकम था।
लेकिन भारत में अंग्रेजी हुकूमत के दौरान राजा द्वारा बनवाए गए इस पुल के स्थान पर एक एक रेलवे पुल बनाने का विचार किया गया। इस समय पुल की स्थिति भी काफी जर्जर हो चुकी थी। परिणाम स्वरूप अंग्रेजों के दिशा निर्देश में गुजरात के कच्छ से आए हुए बेहतरीन कारीगरों ने एक बेहद ही सुंदर और आकर्षक नया रेलवे पुल बनाकर तैयार किया। इस ब्रिज को पंबन ब्रिज नाम से जाना जाता है जो 145 स्तंभों पर टिका हुआ है जिसे कंक्रीट से बनाया गया है। इसी पुल के निर्माण के साथ रामेश्वरम का संबंध रेल सुविधाओं से हो गया।
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के इतिहास से जुड़ी पौराणिक कथाएं (Rameshwaram Jyotirlinga Story in hindi)
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के इतिहास संबंधी कई सारी कथाएं प्रचलित हैं लेकिन इनमें से एक कथा पर सबसे ज्यादा बल दिया जाता है जिसके अनुसार,
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की पहली कथा –
कहा जाता है कि जब रावण ने सीता जी का हरण किया और उन्हें अपने साथ लंका ले गया उस समय सीता जी की तलाश में प्रभु श्री राम बन बन भटक रहे थे तब उन्हें उसे जंगल में घायल अवस्था में गिद्ध जटायु मिले। जब भगवान श्रीराम ने जटायु से सीता माता के बारे में पूछा तो जटायु ने बताया कि रावण नाम के राक्षस ने सीता माता को हर लिया है और उन्हें दक्षिण की ओर लंका नगरी में ले गया है।
गिद्ध राज जटायु का यह संदेश पाकर प्रभु श्री राम अपने सेनापति हनुमान अपने छोटे भाई लक्ष्मण और अपनी पूरी वानर सेना के साथ सीता माता की खोज के लिए दक्षिण की ओर निकल गए। जब वह भारत के दक्षिणी छोर पर पहुंचे तो उन्होंने रामेश्वरम के तट पर देखा कि भारत और लंका के बीच एक अथाह समुद्र है जिसे लांग कर उस पार जाना अत्यंत कठिन है।
भगवान श्री राम प्रत्येक दिन भगवान शिव की पूजा आराधना करते थे और तब उसके बाद ही वे अन्य और जल ग्रहण करते थे लेकिन उस दिन वह भगवान शिव की आराधना करना भूल गए।
अचानक से उन्हें प्यास लगी और वह पानी पीने के लिए समुद्र तट पर गए तब वहीं अचानक उन्हें भगवान शिव की याद आई। तभी उन्होंने भगवान शिव की आराधना करने के लिए रामेश्वरम के इसी तट पर भगवान शिव के पार्थिव लिंग की स्थापना की और उनकी आराधना करने लगे।
भगवान शिव राम जी की आराधना और तपस्या में उनकी निष्ठा को देखकर और प्रसन्न हुए और प्रकट होकर कहा कि राम क्या वर चाहिए। प्रभु श्री राम ने भगवान शिव से कहा कि वह भविष्य में जो युद्ध लड़ने जा रहे हैं उसमें उनकी जीत सुनिश्चित हो तथा लोक कल्याण के लिए भगवान राज्य से इसी तट पर विराजमान हो तभी से सभी सत्य सनातन को मानने वाले यह मानते हैं कि रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग में भगवान शिव वास करते हैं इसीलिए प्रत्येक वर्ष लाखों श्रद्धालु यहां पर दूर-दूर से इनकी पूजा आराधना करने के लिए आते हैं।
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की दूसरी कथा –
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की स्थापना के संबंध में कुछ लोग एक दूसरा मत भी रखते हैं इस मतानुसार,
लंका में रावण से युद्ध और उसका संघ यार करके सीता माता को अपने साथ लेकर भगवान श्रीराम वापस लौट रहे थे। समुद्र पार करते करते माता सीता और प्रभु श्रीराम दोनों थक गए थे इसलिए थोड़े समय के लिए विश्राम करने के लिए वह गन्ध मादन पर्वत पर चले गए।
उसी समय वहां के सभी ऋषि महर्षियों को यह पता चला कि प्रभु श्रीराम गंधमादन पर्वत पर विश्राम कर रहे हैं तो वे भगवान के साक्षात दर्शन के लिए उनके पास चले गए। ऋषि महर्षियों से विचार-विमर्श के दौरान भगवान श्रीराम से ऋषियों ने कहा कि उन पर ब्रह्म हत्या का पाप लगा है क्योंकि उन्होंने पुलस्ति कुल के ब्राह्मणों की हत्या की है।
तब प्रभु श्री राम ने उन ऋषि महर्षि ओं से इस समस्या का समाधान पूछा परिणाम स्वरूप उन्हें कहा गया कि आप एक शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शिव की पूजा आराधना कीजिए इससे आपका पाप कट सकता है।
कहा जाता है कि तभी तत्काल उसी समय सभी ऋषि महर्षि यों के दिशा निर्देश में प्रभु श्री राम ने भगवान शिव के पार्थिव लिंग की स्थापना की और उसकी आराधना करने लगे से भगवान शिव प्रसन्न हुए।
हालांकि यह कथा पहली कथा से ज्यादा प्रचलन में नहीं है लेकिन अब भी कुछ श्रद्धालु इस कथा पर विश्वास करते हैं।
आइए अब आपको रामेश्वरम धाम से जुड़े हुए कुछ रोचक तथ्यों के बारे में बताते हैं।
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग से जुड़े रोचक तथ्य (Facts about Rameshwaram Jyotirlinga in hindi)
1. रामेश्वरम मंदिर 1000 फुट लंबा तथा चौड़ाई में 650 फुट चौड़ा है।
2. रामेश्वरम मंदिर के निर्माण के समय इसके निर्माण में लगे पत्थरों को नाव के जरिए श्रीलंका से लाया गया था।
3. रामेश्वरम मंदिर में प्रवेश करने के लिए काफी लंबा चौड़ा गलियारा बनाया गया है यह गलियारा विश्व के किसी मंदिर के गलियारे में से सबसे बड़ा है। यह गलियारा 1212 स्तंभों पर टिका हुआ है जिनपर बहुत सुंदर कलाकृतियां बनी हुई हैं।
4. रामेश्वरम मंदिर के अंदर 24 कुएं स्थित है लोग मानते हैं कि इनको का सृजन प्रभु श्री राम ने अपने अमोघ वाणों से किया था।
5. इस स्थान पर दो शिवलिंग स्थापित है जिनमें एक तो माता सीता द्वारा रेत बालू से निर्मित है और दूसरा हनुमानजी द्वारा कैलाश से लाया हुआ शिवलिंग हैं।
6. रामेश्वरम मंदिर के अंदर कुल 22 कुंड हैं जिनमें से 21 कुंडों का स्नान कराया जाता है जिनमें अलग-अलग जल हैं जबकि सभी 22 कुंडों में जल भरा हुआ है। इन्हें 22 तीर्थों के नाम से भी जाना जाता है इसमें से सबसे पहला तीर्थ अग्रितीर्थ है।
कहा जाता है कि जब भगवान श्रीराम ने अपने अमोघ वाणों से इन कुडों की स्थापना की थी तो इन कुंडों में अलग-अलग तीर्थों के जल लाकर डाला गया था। इसीलिए यहां आकर सभी लोग इन कुंडों के जल से स्नान को अत्यधिक महत्व देते हैं और यही कारण है कि इससे 22 तीर्थों का स्नान भी कहा जाता है।
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