भारत की सांस्कृतिक विरासत आश्चर्यजनक रहस्य से भरी पड़ी है। वाराणसी भारत का एक ऐसा स्थान है सबसे ज्यादा सांस्कृतिक स्थल विराजमान है जिसके कारण यह काशी नगरी भारत की सांस्कृतिक राजधानी भी कहीं जाती है।
वाराणसी में गंगा नदी के तट पर भोलेनाथ का एक विश्व विख्यात मंदिर स्थित है जिसे रत्नेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है।
इस मंदिर की सबसे खास व रोचक बात यह है कि यह मंदिर पृथ्वी के क्षैतिज तल से 9 डिग्री कोण बनाते हुए तिरछा झुका हुआ है। इस मंदिर से जुड़ी एक और खास बात यह भी है कि काशी और भारत भर में विराजमान भोलेनाथ के मंदिरों की तरह यहां उनकी पूजा-अर्चना नहीं की जाती और ना ही उन्हें किसी प्रकार का पुष्प अर्पित किया जाता है।
हैरानी की बात यह है कि इस देव स्थल के भीतर स्थित शिवलिंग का अभिषेक भी नहीं किया जाता और ना ही मंदिर के पास दूर-दूर तक घंटे की ध्वनि सुनाई देती है।
स्वाभाविक है कि इन बातों को सुनकर आपके मन में यह जिज्ञासा उठ रही होगी कि आखिर इस मंदिर से जुड़े रोचक तथ्यों के पीछे की वजह क्या है। आइए चर्चा करते हैं और आपको बताते हैं कि काशी के रत्नेश्वर मंदिर का रहस्य व प्राचीन इतिहास क्या कहता है।
विषय–सूची
रत्नेश्वर मंदिर का रहस्य व इतिहास (Facts about Ratneshwar Temple in hindi)
अपनी आश्चर्यजनक विशेषताओं के कारण लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाला यह रत्नेश्वर महादेव मंदिर वाराणसी शहर में मणिकर्णिका घाट के करीब स्थित दत्तात्रेय घाट के किनारे स्थित है।
कितना प्राचीन है यह मंदिर और क्यों है भक्तों के आकर्षण का केंद्र –
दरअसल इस मंदिर के प्रचलन के पीछे भारतीय हिंदुओं के धार्मिक मान्यता लगी हुई है जबकि विदेशी पर्यटकों के लिए यह इसलिए आकर्षण का केंद्र है क्योंकि इसकी संरचना बिल्कुल पीसा की मीनार की जैसी है जो कि इटली के पीसा शहर में स्थित है और 5 डिग्री पर अपनी झुकाव और वास्तुकला के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है।
पीसा का मीनार झुकाव में रत्नेश्वर महादेव मंदिर से कम है फिर भी यह विश्व भर में इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि इसकी वास्तु कला स्पष्ट रूप से दिखाई देती है जबकि रत्नेश्वर महादेव मंदिर वर्ष में ज्यादातर गंगा नदी के जल में डूबा रहता है जिसके कारण इसके दीवाल पटल पर बालू आदि के कारण बैठे रहते हैं और पानी में डूबे होने के कारण इसकी वास्तुकला अच्छी तरह दिखाई नहीं देती वरना यह पीसा की मीनार से भी ज्यादा झुका हुआ है और इसकी वास्तुकला भी अलौकिक है।
दत्तात्रेय घाट के किनारे स्थित यह रत्नेश्वर महादेव मंदिर लगभग 500 वर्ष पुराना है।
इस मंदिर की विशेष बात यह है कि यह पृथ्वी के क्षेत्रफल से 9 डिग्री पर झुका हुआ है एक ऐसी भारी-भरकम संरचना का 9 डिग्री कोण पर पृथ्वी की ओर झुका होना दर्शकों के लिए बेहद आश्चर्यजनक है और आश्चर्य की बात यह भी है कि इसके पीछे का रहस्य कोई भी नहीं जानता।
रत्नेश्वर महादेव मंदिर की ऊंचाई लगभग 13 मीटर के करीब है।
इस मंदिर को विशेष वास्तु कला से अलंकृत करके बनाया गया है लेकिन यह मंदिर वर्ष भर के अधिकांश समय में जलमग्न रहता है इसलिए प्रायः पर्यटक इस की वास्तुकला को पूरी तरह देख नहीं पाते।
जब गंगा नदी अपने उफान पर आती है तो मंदिर का शिखर भी जलमग्न हो जाता है बार बार गंगा नदी के जल के साथ बहुत से अपशिष्ट पदार्थ भी इस मंदिर में प्रवेश कर जाते हैं इसलिए इस मंदिर के भीतर अक्सर कीचड़ जमा रहता है।
रत्नेश्वर महादेव मंदिर के निर्माण का इतिहास –
रत्नेश्वर महादेव मंदिर के निर्माण के इतिहास के संबंध में लोगों की अलग-अलग अवधारणाएं मशहूर हैं।
लोगों की प्रचलित इन्हीं में से एक अवधारणा के अनुसार माना जाता है इस मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्या बाई होल्कर की दासी ने कराया था।
दरअसल ऐसा कहा जाता है कि जब रानी अहिल्या बाई होलकर अपने शासनकाल के दौरान अपने नगर में धार्मिक स्थलों यानी कि मंदिर और कुण्डों का निर्माण करा रही थी तो उस समय उनकी एक दासी रत्ना बाई भी इस काम में उनका सहयोग कर रही थी।
कहा जाता है कि इसी दौरान अहिल्याबाई की दासी रत्ना बाई ने उनके नगर में मणिकर्णिका घाट के निकट एक शिव मंदिर बनाने की मंशा जताई जिसके बाद रानी अहिल्याबाई होल्कर ने उन्हें इस मंदिर के निर्माण के लिए कुछ धनराशि उधार में दी जिसे लेकर उन्होंने इस रत्नेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण कराया।
इस मंदिर के निर्माण के पश्चात जब अहिल्याबाई होलकर पर्यटन करने के लिए मंदिर के समीप आए तो इसे देखकर वह बहुत प्रसन्न हुई लेकिन रानी अहिल्याबाई होलकर यह नहीं चाहती थी कि उनके शासनकाल में उनके द्वारा बनाए गए इस शिव मंदिर का नाम उनकी एक दासी के नाम पर रखा जाए।
लेकिन चुकी इस मंदिर का निर्माण रत्नाबाई ने कराया था इसलिए इस मंदिर को रत्नेश्वर महादेव मंदिर के नाम से संबोधित किया जाने लगा।
कहा जाता है कि इसी बात से नाराज होकर रानी अहिल्याबाई होल्कर ने अपनी दासी रत्ना बाई को श्राप दे दिया और कहा कि इस मंदिर में कभी पूजा-अर्चना नहीं होगी।
इसीलिए इस महादेव मंदिर का नाम रत्नेश्वर महादेव मंदिर के नाम से विख्यात हुआ और यही कारण भी माना जाता है है कि अहिल्याबाई के दिए गए श्राप के कारण इस मंदिर में पूजा अर्चना के बीच में बाधाएं उत्पन्न हो जाती हैं।
इन्हें भी पढ़े – क्या हैं भीमकुंड का रहस्य इतिहास, पौराणिक कहानी
क्यों कहा जाता है रत्नेश्वर महादेव मंदिर को “मातृ ऋण ” –
हिंदू धर्म के विविध मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर से जुड़ा एक और मत प्रचलित है कई लोग मानते हैं कि रत्नेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण किसी दूसरे प्रदेश के राजा के सेवक ने करवाया था जो अपनी मां के साथ यहां पर्यटन करने आया था।
दरअसल ऐसा कहा जाता है कि जब वह राजा का सेवक अपनी मां के साथ यहां पर्यटन करने आया तो उसने अपने मां को उपहार भेंट करने की एक योजना बनाई।
उसने बहुत सारे शिल्प कला में निपुण शिल्पकारों को बुलाकर मणिकर्णिका घाट के समय दत्तात्रेय घाट पर इस मंदिर का निर्माण कराया कहा जाता है कि उनकी मां का नाम रत्ना था इसलिए उन्होंने अपनी मां के नाम पर इस मंदिर का नाम रत्नेश्वर महादेव मंदिर रखा।
जब मंदिर का निर्माण संपन्न हुआ है तो मंदिर की भव्य संरचना को देखकर उसके मन में अहंकार जागृत हो गया और अहंकार बस उसने अपनी मां से कहा कि आज मैंने आपके नाम से इस भव्य मंदिर का निर्माण करा कर अपने ऊपर से आपके दूध का कर्ज उतार दिया है।
जब उसने अपने मां से यह बात कही तो उनकी मातृत्व को इस बात से गहरी ठोस पहुंची जिसके कारण तुरंत ही भव्य रूप से बनाया गया यह रत्नेश्वर महादेव मंदिर मिट्टी में धंसने लगा जब उसने इस मंदिर को मिट्टी में जाते हुए देखा तो उसे अपनी भूल का अहसास हुआ और अपनी मां से क्षमा याचना करने लगा।
कहा जाता है कि जैसे ही उसने अपने मां से क्षमा याचना की मंदिर का जितना हिस्सा मिट्टी में धसा हुआ था उतने पर ही रुक गया और यह मंदिर पृथ्वी के क्षेत्रफल से 9 अंश का कोण बनाते हुए पीछे की ओर झुक गया।
इन्हें भी पढ़े – केदारनाथ मंदिर का इतिहास, रहस्य व कहानी
संत के श्राप से टेढ़ा हुआ रत्नेश्वर महादेव मंदिर –
काशी में प्रचलित एक लोक कथा के अनुसार कहा जाता है कि दत्तात्रेय घाट के किनारे रत्नेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण 18 वीं शताब्दी के करीब यहां के राजा द्वारा कराया गया था।
इसी मंदिर पर एक संत निवास करते थे जो मंदिर पर भगवान शिव की आराधना किया करते थे।
कहा जाता है कि एक बार संत ने राजा से इस मंदिर के रख रखाव और पूजा अर्चना करने की जिम्मेदारी मांगी।
लेकिन उस राजा ने संत को रत्नेश्वर महादेव मंदिर की पूजा अर्चना और रखरखाव की जिम्मेदारी देने से इनकार कर दिया।
लोग कहते हैं कि राजा के इस कुटिल व्यवहार से क्रोधित होकर उसे संत ने राजा को यह श्राप दिया कि इस मंदिर में कभी भी पूजा-अर्चना नहीं हो सकेगी।
यह भी कहा जाता है कि उनके इसी श्राप के कारण यह रत्नेश्वर महादेव मंदिर मिट्टी में धंस गया और झुककर टेढ़ा हो गया।
पीसा की मीनार से भी अधिक झुका है काशी का रत्नेश्वर महादेव मंदिर (Facts about ratneshwar temple in hindi)
1. इटली देश के पसा शहर में में स्थित पीसा की मीनार अपनी वास्तुकला और पृथ्वी के क्षैतिज तल की ओर झुकाव के लिए पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध है।
2. पीसा की मीनार की ऊंचाई लगभग 54 मीटर है और यह पृथ्वी के क्षैतिज तल 5.5 अंश का कोण बनाते हुए झुकी हुई है।
3. लेकिन काशी के दत्तात्रेय घाट के किनारे स्थित रत्नेश्वर महादेव मंदिर ने अपनी वास्तुकला और झुकाव के कारण पीसा की मीनार को भी को भी पिछे छोड़ दिया है भले ही रत्नेश्वर महादेव मंदिर की लंबाई 13 मीटर ही है।
4. इस मंदिर के पटल पर बनी वास्तुकला अलौकिक है और जो झुकाव में 9 डिग्री भूमि में पीछे की ओर झुका हुआ है जोकि मापन में पीसा की मीनार से अधिक है।
5. धीरे-धीरे यह मंदिर और इस मंदिर से जुड़ी आश्चर्यजनक रोचक तथ्य लोगों के सामने उभर कर आ रहे हैं जिसके बाद लोग इसे पीसा की मीनार से भी अद्भुत संरचना मानते हैं।
6. हालांकि आज तक इसका कोई वैज्ञानिक कारण नहीं पता चला इतने वर्षों पूर्व निर्माण और पानी में डूबे होने के बावजूद भी यह मंदिर 9 डिग्री पर कैसे झुका हुआ है।
7. ब्रिटिश सरकार से ही इस बात को लेकर बहुत से रिसर्च होते रहे हैं लेकिन अब तक इस बात की कोई पुख्ता जानकारी नहीं मिल पाई है।