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Dhanteras 2025: जानिए धनतेरस क्यों मनाया जाता है? इसकी पौराणिक कथा और महत्व | Dhanteras Puja Vidhi, Shubh Muhurat, Story in Hindi

धनतेरस की पूजा का महत्व, धनतेरस क्यों मनाया जाता है? धनतेरस से जुड़ी पौराणिक कथाएं, कहानी (Dhanteras puja, Dhanteras Story in hindi, Why Celebrate Dhanteras hindi)

हर साल दीपावली के साथ-साथ धनतेरस का त्यौहार भी आता है। धनतेरस का त्योहार दीपावली के पहले पड़ता है। दीपावली की अमावस्या के पहले त्रयोदशी तिथि को ही धनतेरस मनाया जाता है।

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जैसा कि आप लोग जानते हैं दीपावली के 1 दिन पहले पूरे भारतवर्ष में धनतेरस का त्यौहार हर्षोल्लास और धूमधाम के साथ मनाया जाता है I इस दिन सभी लोग अपने घर में भगवान धन्वंतरी कुबेर और माता लक्ष्मी की पूजा विधि विधान से करते हैं।

धनतेरस के दिन बर्तन और सोने-चांदी के आभूषण खरीदना काफी शुभ माना जाता है क्योंकि अगर आप ऐसा करते हैं तो आपके ऊपर भगवान धन्वंतरी एक कुबेर और माता लक्ष्मी की विशेष कृपा बनी रहेगी और माता लक्ष्मी जिस घर में निवास करती हैं वहां पर कभी भी धन की कमी नहीं होती है ऐसे में बहुत सारे लोगों के मन में सवाल आता है कि धनतेरस का त्यौहार क्यों मनाया जाता है?

आइए जानते हैं कि धनतेरस कब है? 2025 में धनतेरस का शुभ मुहूर्त क्या है? धनतेरस कैसे मनाया जाता है? अगर आप कुछ भी नहीं जानते हैं तो कोई बात नहीं है हम आपसे निवेदन करेंगे कि हमारे साथ आर्टिकल पर आखिर तक बने रहे हैं चलिए शुरू करते हैं।

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धनतेरस कब है 2025

हर साल दिवाली के साथ-साथ ही धनतेरस का त्यौहार भी आता है। इस साल दीपावली का त्योहार 30 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा जबकि धनतेरस उसके दो दिन पहले 18 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा।

धनतेरस 2025 पूजा का शुभ मुहूर्त?

ऊपर हमने आपको बताया इस बार धनतेरस की तिथि 18 अक्टूबर 2025 को पड़ रही है। इस दिन त्रयोदशी तिथि की शुरुआत उदयकाल में हो रही है। इस बार त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 18 अक्टूबर 2025 शनिवार की दोपहर 12:18 पर होगी जबकि इसका समापन अगले दिन 19 अक्टूबर 2025 को दोपहर 01:51 पर होगा।

इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 07 बजकर 16 मिनट से लेकर रात 8 बजकर 20 तक रहेगा इस बीच भगवान धनवंतरि की पूजा की जा सकती है।

आइए जानते हैं धनतेरस क्यों मनाया जाता है?

धनतेरस का पावन त्यौहार प्रत्येक वर्ष हिंदू कैलेंडर के मुताबिक कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष के त्रयोदसी अर्थात तेरहवें दिन मनाया जाता है इस दिन सभी घरों में भगवान धन्वंतरी माता लक्ष्मी और कुबेर की पूजा की जाती है दीपावली का पावन त्यौहार धनतेरस के द्वारा शुरू होता है इसी दिन भगवान धन्वंतरि समुद्र मंथन से हाथ में कलश लेकर प्रकट हुए थे और भगवान धन्वंतरी को विष्णु का अवतार माना जाता है यही कारण है कि उनके नाम पर धनतेरस मनाने की परंपरा शुरू हुई I

धनतेरस की पूजा का महत्व

शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान धन्वंतरी समुद्र मंथन से प्रकट हुए थे जैसा कि आप लोगों को मालूम होगा कि भगवान धन्वंतरी भगवान विष्णु के अंश माने जाते हैं इसी कारण से धनतेरस का पर्व मनाने की यह परंपरा शुरू हुई।

इस दिन घरों में भगवान धन्वंतरि माता लक्ष्मी और कुबेर की पूजा की जाती है और ऐसा कहा जाता है कि भगवान धन्वंतरि की पूजा करने से आपका स्वास्थ्य तंदुरुस्त रहेगा और आप किसी भी गंभीर बीमारी से प्रभावित नहीं होंगे।

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इसकी प्रमुख वजह है कि धन्वंतरि जी को आधुनिक शल्य चिकित्सा का जनक भी कहा जाता हैI धनतेरस पर कुबेर यंत्र, श्री यंत्र और महालक्ष्मी यंत्र अपने घर एवं मंदिर में स्थापित किया जाता है ताकि आपके घर में कोई भी नकारात्मक उर्जा का प्रवेश ना हो पाए।

धनतेरस के दिन पर सोने चांदी और बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि अगर आप इस दिन खरीददारी करते हैं तो आपके धन में 13 गुना की वृद्धि होगी।

इसलिए इस दिन लोग नई चीज खरीदते हैं मान्यता है इस दिन खरीदारी करने से साल भर 13 गुने की वृद्धि होती है। धनतेरस दिवाली के 5 दिवसीय पर्व का पहला एवं बहुत महत्वपूर्ण दिन होता है। धनतेरस की शाम को हिंदू लोग घर के मुख्य दरवाजे और आंगन में दीए जलाते हैं।

धनतेरस कैसे मनाया जाता है?

भारत में धनतेरस काफी धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है धनतेरस के शुभ संध्या पर घर में भगवान धन्वंतरी माता लक्ष्मी और कुबेर की पूजा विधि विधान के साथ की जाती है I इस दिन सोने चांदी और बर्तन खरीदना काफी शुभ माना जाता है।

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क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि अगर धनतेरस के दिन अगर आप कोई भी नई चीज खरीदें देंगे तो आपके जीवन में सभी चीजें शुभ होंगी इस दिन बाजार में काफी भीड़ भाड़ होती है क्योंकि सभी लोग धनतेरस के पावन अवसर पर कोई भी नया चीज खरीदने के लिए बाजार जाते हैं I

धनतेरस के दिन घरों को रंग-बिरंगी लाइटों के द्वारा सजाया जाता है ताकि हमारा घर प्रकाशित दिखाई पड़े इसके अलावा घर के द्वार पर दीपक जलाए जाते हैं ताकि दीपक के द्वारा हम भगवान धन्वंतरी कुबेर और माता लक्ष्मी का स्वागत कर सकें।

धनतेरस की पूजा विधि

धनतेरस के दिन शाम को पूजा करना बहुत ही शुभ माना जाता है इस दिन भगवान धन्वंतरि भगवान कुबेर माता लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्ति उत्तर दिशा में स्थापित की जाती है I इसके अलावा दक्षिण की दिशा में अगर आप दीपक जलाते हैं तो आप अकाल मृत्यु से द सकते हैं I इस दिशा को यमराज की दिशा मानी जाती है यही कारण है कि धनतेरस के दिन दक्षिण दिशा की तरफ जलाया जाता हैI

धनतेरस के दिन ऐसी मान्यता है कि अगर आप भगवान धन्वंतरी को पीला वस्त्र या मिठाइयां अर्पित करेंगे तो आपके ऊपर उनके विशेष कृपा बनी रहेगी क्योंकि भगवान धनवंतरी को पीला रंग बहुत ज्यादा पसंद है इस दिन भगवान कुबेर की भी पूजा की जाती है।

इसलिए उन्हें सफेद रंग की मिठाइयां प्रसाद के रूप में अर्पित की जाती है धनतेरस पूजा में फल फूल के अलावा चावल दाल रोली चंदन धूप आदि का इस्तेमाल करना काफी लाभकारी होता है I इसके अलावा इस दिन भगवान हेमराज की भी पूजा-अर्चना करनी चाहिए ताकि उनकी कुदृष्टि आपके ऊपर ना पड़ेI

धनतेरस से जुड़ी पौराणिक कथाएं

राजा बलि की कथा

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, राजा बलि नाम का पराक्रमी राजा था उनका जन्म महर्षि कश्यप के कुल में हुआ उनके पिता विरोचन व दादा प्रहलाद थे। वह बहुत ही दानी व कर्तव्यपरायण होने के साथ-साथ अहंकारी व अधर्मी भी था।

उनके अत्याचार से परेशान होकर देवताओं नेे भगवान विष्णु से गुहार लगाई कि उनकी रक्षा राजा बलि से की जाए जिसके बाद भगवान विष्णु वामन अवतार का रूप धारण किया और वह राजा बलि के पास गए लेकिन भगवान विष्णु के इस रूप को शुक्राचार्य पहचान लिया और उन्होंने राजा बलि को कहा कि अगर कुछ भी तुमसे यह ब्राह्मण मांगे तो तुम इसे मत देनाI

लेकिन राजा बलि ने भगवान विष्णु के द्वारा मांगे गए तीन पग भूमि का देने का वादा कर दिया और उन्होंने अपने हाथ में लिए हुए कमंडल से जल निकालकर भगवान विष्णु को तीन पग भूमि देने का संकल्प लेना चाहते थे लेकिन शुक्राचार्य कमंडल में लघु रूप धारण कर कर प्रवेश कर लिया जिसके कारण कमंडल से जल निकलने का मार्ग अवरुद्ध हो गया।

तब भगवान विष्णु ने अपने हाथ में लिया हुआ कुशा को कमंडल में ऐसे रखा कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई उसके बाद शुक्राचार्य कमंडल से बाहर निकल गए और राजा बलि ने इस प्रकार तीन पग भूमि भगवान विष्णु को दान किया जिसके कारण राजा बलि के पास कोई भी संपत्ति नहीं बची और पूरी संपत्ति देवताओं को प्राप्त हुई जिसके उपलब्ध में धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है I

समुद्र मंथन की कहानी

शास्त्रों के अनुसार जब समुद्र मंथन हुआ तो उस समय भगवान धन्वंतरी हाथ में कलश लेकर प्रकट हुए जिसके बाद ही धनतेरस मनाने की परंपरा शुरू हुई क्योंकि इस दिन भगवान धन्वंतरी का जन्म हुआ था और भगवान धन्वंतरी भगवान विष्णु के अंश थे उन्होंने इस संसार में आधुनिक शल्य चिकित्सा का प्रचार किया जिसके कारण उन्हें शल्य चिकित्सा का जनक भी कहा जाता है यही कारण है कि धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा करने से आपका स्वास्थ्य हमेशा निरोग रहेगा और आपकी उम्र भी लंबी होगी I

यमराज की कहानी

प्राचीन काल में एक राजा हुआ करता था उसका एक पुत्र था जब राजा ने अपने पुत्र की शादी की कुंडली अपने पंडित को दिखाई तो पंडित ने इस बात की भविष्यवाणी की कि राजा के बेटे की पत्नी शादी के 4 दिन बाद सांप काटने से मर जाएगी क्योंकि उसके कुंडली मे सांप काटने से मरने का योग है

राजा ने जब इस भविष्यवाणी को जाना तो रात भर उन्हें नींद नहीं आई इसके बाद उन्होंने अपने पुत्र की शादी कर दी और इस अकाल मृत्यु से बचने के लिए उन्होंने एक उपाय निकाला उन्होंने सबसे पहले अपने पुत्र वधू के सोने की जगह सोने चांदी के आभूषण रख दिए ताकि जब आप घर में प्रवेश करे तो उसकी आंखें सोने चांदी के आभूषण से निकलने वाले प्रकाश से चकाचौंध हो जाए हो ताकि सबको समझ में ना आया की पुत्रवधू कहां पर सोई है।

इसके अलावा सांप से बचने के लिए राजा ने मधुर संगीत का भी आयोजन किया ताकि सांप का ध्यान भटके जिसके फलस्वरूप जब सांप घर में पुत्र वधू को काटने आया तो उसे समझ में नहीं आया कि कहां पर पुत्रवधू है और वह वापस चला गया इस प्रकार राजा ने अकाल मृत्यु से अपने पुत्र वधू को बचा लिया इसलिए यह मान्यता है कि अगर आप इस दिन यमराज की पूजा करेंगे तो आप अकाल मृत्यु से बच सकते हैंI

FAQ

धनतेरस कब है?

धनतेरस का त्यौहार इस बार 18 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा।

धनतेरस पर भगवान धनवंतरी के अलावा किसकी पूजा की जाती है?

धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि के अलावा भगवान कुबेर और माता लक्ष्मी और गणेश की पूजा की जाती है I

धनतेरस के दिन क्या करना चाहिए?

धनतेरस के दिन सोने चांदी और बर्तन खरीदने चाहिएI

धनतेरस क्यों मनाया जाता है?

धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था जिसके कारण धनतेरस मनाने की परंपरा शुरू हुईI

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