प्रेमानंद महाराज जी का जीवन परिचय, आश्रम वृंदावन, जन्म, गुरु, उम्र, परिवार | Premanand ji Maharaj Biography in hindi

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भारत की इस पावन भूमि पर न जाने कितने संतों एवं महापुरुषों ने जन्म लिया। यही कारण है की मां भारती की इस पुण्य भूमि को संतों की भूमि कहा जाता है।

मौजूदा समय में भी भारत की इस पावन धरा पर कई संत महात्मा मौजूद है जिनकी तुलना महापुरुषों से की जाती है।

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प्रेमानंद जी महाराज भी उन्हीं में से एक हैं जिनका प्रवचन आज लाखों करोड़ों भारतीयों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गया है। सोशल मीडिया पर उनकी क्लिप्स और वीडियोज खूब साझा किए जा रहे हैं।

दोस्तों आप सभी ने वृंदावन में रहने वाले प्रेमानंद जी महाराज का नाम तो जरूर सुना होगा। प्रेमानंद जी महाराज वही वृंदावन वाले महाराज है जो हमेशा पीले वस्त्र धारण करते हैं।

आजकल इंटरनेट और सोशल मीडिया पर उनके ढेर सारे प्रेरणादायक वीडियो वायरल होते रहते हैं जिसमें वह लोगों की समस्याएं सुनते हैं तथा उन्हें सही मार्ग दिखा कर उनका मार्गदर्शन करते हैं।

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कई बार इन्हें प्रेम वश सभी लोग पीले बाबा के नाम से पुकारते  है। कई वर्षों से प्रेमानंद महाराज जी की दोनों किडनीया खराब है।

एकांत वार्ता के माध्यम से एक गुरु के रुप में यह लोगों के सभी प्रश्नों का उत्तर देते हैं। तो आइए आज हम अपने इस लेख के जरिए प्रेमानंद महाराज जी के जीवन की संपूर्ण जानकारी आपको विस्तार में देंगे।

प्रेमानंद महाराज जी का जीवन परिचय (Premanand ji Maharaj Biography in hindi)

प्रेमानंद महाराज जी का जन्म कानपुर उत्तर प्रदेश में एक सात्विक और विवेक ब्राह्मण परिवार में हुआ। प्रेमानंद महाराज जी के पिता का नाम श्री शंभू पांडे और माता का रामा देवी था। प्रेमानंद महाराज जी के बचपन का नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे है। परंतु कई बार प्रेमानंद जी महाराज को सभी लोग पीले बाबा के नाम से भी संबोधित करते हैं।

प्रेमानंद महाराज जी के घर का वातावरण बुजुर्गों के आशीर्वाद से भक्तिपूर्ण ,अत्यंत निर्मल और शुद्ध रहता था इनके दादा जी एक सन्यासी थे। इनके यहां हमेशा संत, महात्माओं का आना जाना लगा ही रहता था। और घर के सभी लोग बैठकर उनके मुख से सत्संग सुना करते थे।

प्रेमानंद महाराज जी का जीवन परिचय | Premanand-ji-Maharaj-Biography-in-hindi

प्रेमानंद महाराज जी का प्रारंभिक जीवन –

बचपन से ही सत्संग का स्मरण करते हुए प्रेमानंद महाराज जी के मन में अध्यात्म ज्ञान जागृत होने लगा था। और प्रेमानंद महाराज जी बचपन से ही नित्य मंदिर जाकर 10 से 15 चालीसा का पाठ करके पूजा करते और तिलक लगाकर स्कूल जाया करते थे।

सत्संग का श्रवण करने के पश्चात बचपन से ही पीले बाबा अपने मन में अक्सर यह विचार करते थे। एक-एक करके एक दिन इस घर के सभी सदस्य मर जाएंगे तो मेरा कौन रहेगा। मैं किसके पास रहूंगा और मेरा कौन सहारा है। पूर्वजों के आशीर्वाद और बचपन से ही सत्संग से मिले ज्ञान से इन्हें यह प्रेरणा मिली कि भगवान के अलावा मेरा कोई नहीं है।

क्योंकि प्रेमानंद महाराज जी के दादा संत थे और उनके बाद उनके पिताजी भी संत हुए और अब समाज को जगाने के लिए प्रेमानंद महाराज भी संत बने।

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पूरा नाम (Full Name)अनिरुद्ध कुमार पाण्डेय
प्रसिद्ध नामप्रेमानंद जी महाराज
जन्म स्थान (Birth Place)अखरी गांव, सरसोल ब्लॉक, कानपूर, उ.प्र.
जन्म (Date of Birth)ज्ञात नहीं
उम्र (Age)60 वर्ष
गुरु जी का नामश्री हित गोविंद शरण जी महाराज
पता (Address)वृंदावन आश्रम
व्यवसाय/पेशासंत, योगी, लेखक, कवि, वक्ता
धर्म (religion)हिंदू
जाति (Caste)ब्राह्मण
राष्ट्रीयता (Nationality)भारतीय
पिता (Father’s Name)श्री शंभु पाण्डेय
माता (Mother’s Name)श्रीमती रमा देवी
ऑफिसियल यूट्यूबBhajan Marg
ऑफिसियल वेबसाइ्टvrindavanrasmahima.com

प्रेमानंद महाराज जी का ब्रह्मचारी जीवन –

प्रेमानंद महाराज ने जब  9वी कक्षा उत्तीर्ण की तभी से यह निश्चय कर लिया कि वे घर छोड़कर भगवान की भक्ति में लीन हों जाएंगे क्योंकि ईश्वर के सिवाय इस संसार में अपना कोई नहीं है, यह ज्ञान उनको हो चुका था।

महाराज जी अपनी माता से बहुत ही स्नेह करते थे उन्होंने अपने मन की यह बात अपने माता से कहीं तो उनकी माता ने कहा भागकर भगवान नहीं मिलते। अगर तुम भगवान को प्राप्त करना चाहते हो तो बैठकर उनका भजन करो।

परंतु मां की ऐसी बात सुनकर पीले बाबा ने कहा नहीं मैं बाबाजी बनना चाहता हूं और यह बात मैं सिर्फ आपको बता रहा हूं।मां ने सोचा कि बच्चा कोई सत्संग सुनकर ऐसा विचार किया है। ऐसा सोच कर वह अपने कामों में व्यस्त हो गई

प्रेमानंद महाराज जी बताते हैं कि, अपने मां से संत होने के बारे में बात करने के बाद अगले दिन महाराज के मन में भगवान के चरणों में न्योछावर होने की व्याकुलता उठी और सुबह 3:00 बजे महाराज ने घर छोड़कर यात्रा पर निकल गए उस समय महाराज की आज सिर्फ 13 वर्ष थी।

प्रेमानंद महाराज जी ने कैसे लिया संन्यास –

सन्यास में प्रवेश करने के बाद प्रेमानंद महाराज जी ने अपना शुरुआती तपोस्थली वाराणसी ली। वहां नित्य प्रतिदिन महाराज जी गंगा स्नान करके तुलसी घाट पर एक विशाल पीपल के वृक्ष के नीचे आसन लगाकर महाराज जी गंगा मां और भगवान शिव का कुछ देर ध्यान किया करते थे।

उसके बाद वहां से उठकर 10 से 15 मिनट के लिए भिखारियों की लाइन में बैठकर एक बार भिक्षा मांगते थे। यदि उतने समय में इनको किसी ने भिक्षा दिया तो ठीक नहीं तो वहां से उठकर जल पीकर ही भगवान शिव के ध्यान के लिए एकांतवास में 24 घंटे के लिए चले जाते थे।

प्रेमानंद महाराज जी को इसी प्रकार के दिनचर्या के अनुसार कई  दिनों तक सिर्फ गंगा जल पीकर रहना पड़ता था।उस दौरान इनको अगर कोई रोटी खाता बिक जाए तो यह मन में सोचते कि यह कितना भाग्यशाली हैं जो इसको रोटी खाने को मिल रहा है।महाराज जी को शुरुआती दिनों में ऐसे ही कई सारी कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा था।

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प्रेमानंद महाराज जी के वृंदावन से जुड़ें कुछ रोचक प्रसंग (Interesting Facts About Premanand ji Maharaj hindi)

हर रोज की तरह महाराज ध्यान में बैठे थे की अचानक भगवान शिव की कृपा से उनके मन में यह प्रेरणा हुई। की वृंदावन की महिमा के बारे में बहुत सुना है, परंतु कभी गए नहीं, कैसा होगा वृंदावन?

मन ही मन ऐसा विचार करते हुए कहां की, जैसा भी हो देखा जाएगा ऐसा कह कर भिक्षा मांगने भिखारियों की लाइन में बैठ गये और फिर वहां से एकांतवास के लिए उठ कर चले गए।

अगले दिन नित्य नियम के अनुसार ही महाराज जी तुलसी घाट पर बैठे थे कि तभी एक अपरिचित संत उनके पास आकर बोले भाई जी, काशी में स्थित अंध विश्वविद्यालय में हनुमान प्रसाद पोद्दार जी का एक धार्मिक कार्यक्रम श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा प्रबंध किया गया है।

उस आयोजन में श्री चैतन्य लीला दिन में और रासलीला का रात्रि में मंचन किया जाएगा। “महात्मा चलो हम दोनों लीला का दर्शन करने चलते हैं।”

महाराज जी ने कभी रासलीला नहीं देखी थी उन्होंने सिर्फ गांव का रामलीला देखा था। तो उनको लगा कि वैसा ही होता होगा। ऐसा सोच कर उन्होंने कहा आप जाइए मुझे इसकी आवश्यकता नहीं है। क्योंकि बाबा को हमेशा एकांत वास और एकांत में रहना ही पसंद था।

तब उस बाबा ने कहा, अरे महात्मा इस धार्मिक कार्य का मंचन करने के लिए धाम वृंदावन से कलाकार आए हैं। और यह रासलीला पूरे 1 महीने तक चलेगा। चलो दर्शन कर लो बड़ा आनंद आएगा।

तब प्रेमानंद महाराज जी ने कहा, आपको दर्शन करना है, तो आप जाइए मुझे इसकी आवश्यकता नहीं है। मैं अपने में ही मस्त हूं, मुझे क्यों छोड़ रहे हो। परंतु बाबाजी नहीं माने और बोले अरे महात्मा, सिर्फ एक बार मेरी बात मान कर मेरे कहने पर साथ चलो, दोबारा कभी नहीं कहूंगा।

महाराज जी सोचे इनके हट करने की वजह कहीं महादेव की मर्जी तो नहीं है, महादेव की इच्छा समझकर महाराज बाबा के साथ लीला देखने चल दिए। उस समय दिन होने के नाते चैतन्य लीला का मंचन हो रहा था।

चैतन्य लीला का मंचन देखकर महाराज को बड़ा आनंद आया। महाराज को इतना आनंद आया कि शाम के समय रासलीला देखने वह पहले ही पहुंच गए बाबा को कहने की भी आवश्यकता नहीं पड़ी।

महाराज जी चैतन्य लीला मंचन और रासलीला से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने पूरा एक महीना नित्य नियम से चेतन लीला और रासलीला के दर्शन का आनंद लिया। महीना कब बीत गया महाराज को पता ही नहीं चला और जब लीला समाप्त हो गया।

महाराज को ज्ञात हुआ कि अब तो सभी कलाकार वृंदावन चले जाएंगे। तो मैं क्या करूंगा? ऐसा सोच कर उनके मन में हलचल सी मच गई, अब मैं कैसे रहूंगा ऐसा सोच कर उन्होंने वृंदावन जाने का विचार किया।

महाराज जी सोचे कि वृंदावन में भी ऐसी लीला तो हमेशा होती होगी। तो अगर मैं भी साथ जाऊं तो मुझे हमेशा ऐसी लीलाएं देखने को मिलेंगी। और मैं इनकी सेवा भी कर लूंगा।

ऐसा भाव लेकर महाराज टीम के संचालक के पास पहुंच कर दंडवत प्रणाम करते हुए अपने मन की बात कही कि,

मैं बहुत गरीब बाबा है, मेरे पास पैसा नहीं है, मैं आपकी लीला देखने के बदले में आप की सेवा करना चाहते हैं।

ऐसा सुनकर बड़े विनम्र भाव से संचालक ने कहा, अरे नहीं बाबा, ऐसा संभव नहीं, तब महाराज ने कहा रासलीला देखना है।

संचालक महोदय ने कहा,”एक बार बाबा तु वृंदावन आजा, तुझे बिहारी जी नहीं छोड़ेंगे।” इस वाक्य ने महाराज को बदल के रख दिया। और उन्हें अपना गुरु मानते हुए महाराज ने वृंदावन जाने का निश्चय कर लिया।

वृंदावन जाने में प्रेमानंद महाराज की किसने की मदद ?

1 महीने की रासलीला खत्म होने के बाद बाबा फिर से अपने नित्य नियम अनुसार तुलसी घाट पर बैठकर भगवान का ध्यान करने लगे। परंतु तब से उनके दिनचर्या में एक नई बात जुड़ गई थी। कि मुझे वृंदावन जाना है, मुझे वृंदावन जाना है।

कुछ दिन ऐसा ही चलता रहा उसके बाद एक दिन प्रातः काल महाराज जी गंगा स्नान करके तुलसी घाट पर ध्यान में बैठे थे।कि तभी प्रसाद लेकर संकट मोचन मंदिर के बाबा युगल किशोर जी वहां आए और उन्होंने प्रेमानंद महाराज जी से कहा, बाबा प्रसाद ले लो।

एकांत वासी बाबा प्रेमानंद महाराज जी का किसी से कोई परिचय तो नहीं था। ऐसे किसी अपरिचित से कोई खाने की सामान लेना उचित ना समझ कर बोले की क्यों ले लूं।

तो बाबा बोले की अंदर से आपको प्रसाद देने की प्रेरणा  हुई  इस बात पर प्रेमानंद महाराज जी बोले, यहां और लोग भी है, मुझे ही प्रसाद देने की प्रेरणा तुम्हारी क्यों हुई। तब युगल किशोर बाबा जी ने कहा, यह संकट मोचन का प्रसाद है, मेरे अंदर आपको ही प्रसाद देने की प्रेरणा हुई इसलिए आप ले लीजिए।

फिर महाराज ने बाबा से प्रसाद लेकर खाया और अपने कमंडल से गंगाजल लेकर ग्रहण किया। उसके बाद बाबा ने महाराज को अपनी कुटिया में ले जाने के लिए आग्रह किया बहुत आग्रह करने के बाद बाबा उनके साथ गए। और युगल किशोरी जी ही उन्हें वृंदावन ले जाने के लिए तैयार हुए ऐसा सुनने के बाद महाराज काफी प्रसन्न हुए।

बनारस से सीधा वृंदावन के लिए कोई रेलगाड़ी नहीं थी इसलिए दोनों लोग चित्रकूट आ गए और दो-तीन दिन वहां रहने के बाद बाबा ने महाराज को मथुरा के लिए रेलगाड़ी पकड़ा दी।

यात्रा के दौरान उनके पास कोई पैसा नहीं था वहां पहुंचने पर भी इनके साथ कुछ घटनाएं घटी उसके बाद यह वृंदावन पहुंचकर यमुना जी में स्नान करके द्वारिकाधीश का दर्शन करने पहुंचे।

दर्शन करने के बाद महाराज को एक अद्भुत असीम सुख प्रदान हुआ। जीवन का असल मंजिल दिखाई दिया। और वे वही रोने लगे।

महाराज प्रेमानंद जी का स्वास्थ्य (Premanand ji Maharaj Health)

महाराज जी आज भी वृंदावन में रह रहे हैं इनकी उम्र इस वक्त 60 वर्ष है। उन्होंने अपना पूरा जीवन भगवान कृष्ण की भक्ति और उनकी सेवा में लगा दी है। वृद्धावस्था में पहुंचने के बाद भी वे आज स्वस्थ हैं।

 इन्हें अपने भारत देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी जाना जा रहा है, और इनके दर्शन के लिए भारत के ही नहीं बल्कि विदेशी लोग भी आते हैं। उनके पास आने वाले भक्तों की समस्या का हल भी बताते हैं उन्हें लोगों द्वारा काफी सम्मान और प्यार मिलता है।

कहा जाता है कि महाराज के दोनों गुर्दे खराब हो गए हैं, परंतु वे आज भी स्वस्थ है और आज भी निस्वार्थ अपना जीवन राधा और कृष्ण की भक्ति भाव में बिता रहे हैं। और सब कुछ उन्हीं पर छोड़ दिया है।

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