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अक्षय तृतीया क्यों मनाई जाती है | Facts about Akshaya Tritiya 2023 in hindi

अक्षय तृतीया क्यों मनाई जाती है, अक्षय तृतीया क्या है? अक्षय तृतीया कब है? अक्षय तृतीया का महत्व एवं पौराणिक मान्यताएं (Akshaya Tritiya 2023 in hindi, meaning, importance, date, muhurat, time, story, akshaya tritiya kyu manaya jata hai)

हमारे भारत देश में विभिन्न प्रकार की धर्मों को मानने वाले लोग रहते है यहां के लोगों की धार्मिक आस्था एवं ऐतिहासिक संस्कृतिक विविधता देखने को मिलती है वैसी पूरी विश्व में कहीं नहीं मिलेगी। यहां के त्यौहारों में सांस्कृतिक एवं धार्मिक आस्था की नींव बहुत गहराई तक फैली नजर आती है। इन्हीं त्यौहारों में अक्षय तृतीया एक ऐसा पर्व है जिसकों हिंदु धर्म में बहुत ही पवित्र माना जाता है।

अक्षय तृतीया हिंदू पंचाग (कैलेंडर) के वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की तृतीय को मनाई जाती है।
हिंदू धर्म में यह दिन बहुत ही शुभ एवं मांगलिक कार्यो करने के लिये सबसे उचित दिन गया है। यह पर्व हिंदू धर्म के साथ-साथ जैन धर्म के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। दोस्तों आज के लेख में हम आपको इसकी मान्यताओं के विषय बारें में विस्तार से वर्णन करेंगे। जिनके बारें में बहुत कम लोग ही जानते हैं जैसे अक्षय तृतीया का धार्मिक महत्व क्या है इस दिन दान क्यों करना चाहिये? यह त्यौहार हमारें घर की बरकत, वैभव और समृद्धि से क्यों जुड़ा हुआ है तो आईये शुरु करते हैं।

अक्षय तृतीया 2023 का शुभ-मुहुर्त कब है?

अक्षय तृतीया का शुभमुहुर्त सुबह 07.49 से शुरु होकर 22 अप्रैल 2023 से 23 अप्रैल सुबह 7.47 बजे तक का मुहुर्त है। इस दिन आप दान आदि किसी भी समय किया जा सकता है, मांगलिक कार्यों के लिये यह दिन अति शुभ होता है।

अक्षय तृतीया के दिन सोने-चांदी की खरीदारी का शुभ मुर्हूत आठ बजे से शाम 5.50 तक का समय उचित व लाभकारी रहेगा। यह दिन लक्ष्मी व नारायण की आराधना का दिन है विधि-विधान पूर्वक पति-पत्नी द्वारा पूजा करने से धन-धान्य व सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

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कब मनाई जाती हैवैशाख माह में शुक्ल पक्ष की तृतीय को मनाई जाती है।
अक्षय तृतीया कब है?22-23 अप्रैल 2023
शुभ-मुहुर्त22 अप्रैल सुबह 07.49 23 से 23 अप्रैल सुबह 7.47 तक का मुहुर्त है।
खरीदारी करने का शुभ समय22 अप्रैल सुबह से 23 अप्रैल शाम 5.50 तक का समय उचित है।

अक्षय तृतीया क्यों मनाई जाती है? (Akshaya Tritiya in Hindi)

अक्षय तृतीया का अर्थ क्या है?

अक्षय तृतीया का अर्थ ‘‘जो कभी खत्म ना हो’’ है, जिसका कभी भी क्षय(हानि) न हो, इसलिए कहा जाता है कि इस दिन जो मनुष्य पुण्य कर्म और दान करता है उसका फल कई सौ गुना अधिक मात्र में शुभ फल देता है और वह कभी खत्म नहीं होता, अक्षय तृतीया को अखा तीज भी कहते हैं इस त्यौहार की मान्यता राजस्थान में सबसे अधिक मानी जाती है इसके अलावा मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश में भी बहुत धूमधाम से मनाया जाता है-

इस दिन सोने चांदी के आभूषण, वाहन, भवन, प्रॉपर्टी, घरेलु सामान आदि की खरीदारी करना बहुत ही शुभ माना जाता है इस दिन लक्ष्मी, धन, सम्पदा की गति स्थिर रहती है जिससे घर के वैभव एवं समृद्धि में बढ़ोत्तरी निरंतर बनी रहती है और धन क्षय नहीं होता है इसी कारण इस दिन को अक्षय फल देने वाला दिन भी कहते है।

अक्षय तृतीया क्यों मनाई जाती है

अक्षय तृतीया का महत्व एवं पौराणिक मान्यताएं-

इस दिन ब्रह्मा जी पुत्र अक्षयकुमार का जन्म हुआ था इस दिन भगवान विष्णु का अवतरण परशुराम के रुप में हुआ था। यह दिन पीतांबरा एवं हरग्रीव एवं नरनाराण ने अवतरित हुये थे। इस दिन भगवान विष्णु एवं लक्ष्मी की पूजा की जाती है इस दिन कियें गये पुण्य कर्मों एवं दान का फल कई गुना बढ़ जाता है। इस दिन विधि-विधान से पूजा करनी चाहिये।

सभी त्योहारों की तरह इस त्यौहार का एक अलग ही महत्व है, कहा जाता है कि इस दिन गंगा स्नान करके भगवान की पूजा करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं यह त्यौहार माता लक्ष्मी से जुड़ा माना जाता है, भारतीय ग्रंथों के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन माता लक्ष्मी का पूजन करके दान देना चाहिए जिससे मां लक्ष्मी प्रसन्न होकर कई गुना शुभ फल प्रदान करती हैं इस दिन मांगलिक कार्य जैसे, घर का उद्घाटन, नया व्यापार शुरू करना शुभ माना जाता है और इस दिन शादी करने वाले जुड़े जन्म जन्मांतर तक साथ रहते हैं और इस दिन व्यापार करने या कोई भी नया काम शुरू करने वाले मनुष्य को हमेशा तरक्की मिलती है, अन्य त्योहारों की तरह अक्षय तृतीया की भी कई सारी मान्यताएं प्रचलित है हिंदू धर्म की प्रचलित मान्यता है इस प्रकार हैं।

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अक्षय तृतीया की पौराणिक मान्यताएं-

भारतीय मान्यताओं के अनुसार इस दिन से ही शादी ब्याह का शुभ समय शुरु होता है भारतीय किसानों के लिए इसका एक अलग ही महत्व होता है, इस दिन बच्चों द्वारा गुड्डे गुड़ियों की शादी कराई जाती है अक्षय तृतीया के दिन अपने से बड़े का आशीर्वाद लेना अत्यंत शुभ माना जाता है, जैन धर्म में भी इस तिथि की काफी मान्यताएं हैं अक्षय तृतीया के दिन ही जैन धर्म के प्रथम स्थापना करने वाले प्रथम तीर्थ कर ‘‘भगवान ऋषभदेव’’ को 1 वर्ष की तपस्या के बाद गन्ने के रस से पारण कराया गया था इन्हें वैदिक और बौद्ध ग्रंथों में भी विशेष महत्व दिया गया है।

एक राजा होते हुए इन्होंने अपना सांसारिक सुख त्यागकर अंगीकार धारण कर लिया जैन ग्रंथों के अनुसार ऋषभदेव ज्ञान प्राप्त करने वाले पहले व्यत्तिफ़ थे इसी अनुसार अक्षय तृतीया के और भी कई मान्यताएं हैं जो इस प्रकार हैं-

1. हिंदू मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु जीने श्री परशुराम के रूप में धरती पर अवतार लिया था इसीलिए यह दिन परशुराम के जन्म दिवस के रूप में भी मनाया जाता है या ब्राह्मण कुल में जन्मे इसलिए अक्षय तृतीया तथा परशुराम दिवस सभी हिंदू बड़े धूमधाम से मनाते हैं।

2.इसी दिन धरती की सबसे पावन माने जाने वाली गंगा नदी स्वर्ग से धरती पर आई थी इस दिन गंगा में स्नान करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।

3. अक्षय तृतीया के दिन है मां अन्नपूर्णा का पूजन भी किया जाता है और वरदान मांगा जाता है मां अन्नपूर्णा पूजन से रसोई तथा भोजन का स्वाद कई गुना अधिक बढ़ जाता है।

4. इसी पावन दिन से चार-धाम यात्रा बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमनोत्री का शुभारम्भ हो जाता है।

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5. अक्षय तृतीया की पौराणिक मान्यता के अनुसार त्रेतायुग का आरम्भ और द्वापरयुग समाप्त होकर कलयुग का आरम्भ भी इसी दिन हुआ था।

6. अक्षय तृतीया के ही दिन पांडवों को निर्वासन के दौरान भगवान श्रीकृष्ण ने अक्षय पात्र भेट किया था जिसकी खास बात यह थी कि इसमें रखा भोजन कभी खाली समाप्त नहीं होगा।

7. दक्षिणी प्रांतों में भी इस त्यौहार की मान्यता है इस दिन कुबेर ने शिव भगवान की आराधना करके उन्हें प्रसन्न किया था और भगवान शिव के प्रसन्न होने पर उन्होंने अपना धन और संपत्ति लक्ष्मी जी से पुनः प्राप्त करने का वरदान मांगा तभी शिव जी ने कुबेर को लक्ष्मी जी का पूजन करने की सलाह दी इसीलिए उस दिन लक्ष्मी जी का पूजन किया जाता है, दक्षिण में इस दिन लक्ष्मी यंत्र का पूजन किया जाता है जिसमें लक्ष्मी जी के साथ साथ विष्णु और कुबेर का चित्र भी रहता है।

8. अक्षय तृतीया के दिन ही महर्षि वेदव्यास ने हीं महाभारत लिखना आरंभ किया था अक्षय तृतीया की एक कथा और भी प्रचलित है जिसमें महाभारत में इसी दिन दुशासन द्वारा द्रोपदी का चीर हरण
कर रहा था और द्रोपति को बचाने के लिए श्री कृष्ण ने कभी ना खत्म होने वाली साड़ी का दान दिया था।

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9. भारत के उड़ीसा में स्थित जगन्नाथ यात्रा के लिये हर वर्ष नये रथों को निर्माण किया जाता है इसी दिन अक्षय तृतीया से ही इन रथों निर्माण कार्य आरंभ हो जाता है।

10. अलग-अलग प्रांतों में इस दिन का अपना अलग ही महत्व होता है बंगाल में सभी व्यापारी इस दिन लक्ष्मी और गणेश का पूजन करते हैं। और अपनी नई ऑडिट लेखा बुक (Account Ledger) तैयार करते है। पंजाब में भी इस दिन का बहुत महत्व होता है इस दिन से खतों का काम शुरू किया जाता है और आज के दिन ही श्री कृष्ण से उनके मित्र सुदामा मिलने पहुंचे।

11. अक्षय तृतीया सभी मुहूर्त में में सर्वश्रेष्ठ माना गया है विद्वान पंडित और धर्म जानने वाले व्यत्तिफ़ भी कहते हैं कि इस तिथि के दिन पंचांग देखने की आवश्यकता नहीं पड़ती। अक्षय तृतीया हर पल हर घड़ी शुभ माना गया है इस दिन कोई भी शुभ कार्य बिना मुहूर्त के शुरू किया जाता है।

अक्षय तृतीया क्यों मनाई जाती हैं-

अक्षय तृतीया की काफी कहानियां है जिसमें हिंदू धर्म में सबसे ज्यादा कथा प्रचलित है जिसमें एक कथा धर्मदास की भी है, धर्मदास एक वैश्य होते हुए भी हिंदू धर्म में विश्वास रखता था और उसकी देवताओं और ब्राह्मणों में काफी श्रद्धा थी।

धर्मदास ने अपना जीवन सुधारने के लिए गंगा स्नान करके और पूजन करके अपना सब कुछ दान कर दिया और कहां जाता है कि वह अगले जन्म में एक महान राजा बना और वह महान राजा चंद्रगुप्त कहे जाते हैं इसी प्रभाव के कारण हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया बहुत धूमधाम से मनाया जाता है, और इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु परशुराम के रूप में अवतार लिया। और जैन धर्म की बात करें तो जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ने 1 साल बाद उपवास पारण किया था इसीलिए जैन धर्म में इस दिन अच्छे तृतीया को बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।

जैन धर्म में अक्षय तृतीया की मान्यता-

हिंदुओं के साथ-साथ जैन धर्म में भी अक्षय तृतीया की काफी मान्यताएं हैं जैन धर्म में अक्षय तृतीया की बहुत ही रोचक कथाएं हैं जिसमें एक कथा ऋषभदेव की है ऋषभदेव ने 6 महीने तक बिना भोजन और पानी के तपस्या की और अपना राज्य पाठ अपने 101 पुत्रें के बीच बांटकर संसार के मोह माया से मुक्त हुए।

अक्षय तृतीया की कथा सुनने का महत्व-

पुराणों में भी कहा गया है कि अक्षय तृतीया की कथा सुनने तथा पूजन करने से सुख, संपत्ति, धन, यश, वैभव की प्राप्ति होती है वैश्य धर्मदास ने इसी धन और यश की प्राप्ति से इसका महत्व जाना।

एक छोटे से गांव में धर्मदास अपने परिवार के साथ रहता था वह बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति का व्यक्ति था वह सदा अपने परिवार के भरण-पोषण के बारे में ही सोचता रहता था। एक दिन उसने अक्षय तृतीया का व्रत करने को सोचा फिर तृतीया के दिन सुबह जल्दी उठकर गंगा स्नान करके भगवान विष्णु का पूजा अर्चना और आरती किया नियमानुसार भरे घड़े, पंखें, सत्तू, चावल, नमक, गेहूं, दही, धी, तथा वस्तु आदि वस्तुएं भगवान के चरणों में अर्पित करके ब्राह्मणों को दान दिया। यह सब दान देता देख धर्मदास के परिवार वाले और उनकी पत्नी देने से रोकने की कोशिश की उन्होंने कहा कि अगर धर्मदास इतना सब दान दे देगा तो हमारे परिवार का पालन पोषण कैसे होगा।

फिर भी धर्मदास ने अपने पुण्य कर्म से विचलित नहीं हुआ और ब्राह्मणों को कई प्रकार का दान दिया, बुढ़ापे का रोग परिवार की परेशानी ने भी उसे उसके व्रत से विचलित नहीं कर पाई।
इस जन्म के पुण्य के प्रभाव से धर्मदास अगले जन्म में राजा कुशावती के रूप में जन्म लिया। राजा कुशावती बहुत ही प्रतापी थे उनके राज्य में किसी भी चीज की कोई कमी नहीं थी उनकी प्रजा बहुत ही खुश थी वह अक्षय तृतीया की पुण्य प्रभाव से वैभव और धन संपत्ति की प्राप्ति हुई और उन्हें उनके अक्षय तृतीया का पुण्य सदा मिलता गया।

जैसे भगवान ने धर्मदास पर अपनी कृपा बनाए रखें वैसे ही जो व्यक्ति अक्षय तृतीया की कथा और पूजा विधि से करता है उसे अच्छा पुण्य और यश की प्राप्ति होती है।

अक्षय तृतीया को क्या दान दिया जाता है-

मन से दिया गया हर वस्तु के दान का पुण्य लगता है इस दिन धी, अनाज, सोना, चांदी, शक्कर, वस्त्र, सब्जी, इमली, आदि दान देना चाहिए अक्षय तृतीया के दिन कई लोग पंखे और कूलर का भी दान देते हैं इसके पीछे या धारणा है कि यह पर्व गर्मी के दिनों में आता है, इसलिए गर्मी से बचने के लिए उपकरण दान में देने से भला होता है और दान देने वाले को पुण्य मिलता है।

अक्षय तृतीया के दिन सभी लोग ब्राह्मणों को भोजन भी कर आते हैं और उन्हें वस्त्र आदि वस्तुएं भी दान में देते हैं और कहा जाता है अक्षय तृतीया के दिन जो व्यक्ति दान करता है उसे शुभ पुण्य की प्राप्ति होती है और वह व्यक्ति जो ब्राह्मणों एवं गरीबों को भोजन कराता है वही भोजन प्रसाद के रूप में ग्रहण करता है।

FAQ

अक्षय तृतीया की पूजा का महत्व क्या है?

इस दिन भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की पूजा विधिविधान से करने पर घर में सुख-समृद्धी का वास होता है। इसी दिन विष्णु अवतार परशुराम, हरग्रीव एवं ब्रह्मा पुत्र अक्षय कुमार का जन्म हुआ है। इसी दिन त्रेतायुग समाप्त हुआ और द्वापरयुग का आंरभ हुआ था। इसी दिन दिया गया दान कई सौ गुना पुण्य फल देने वाला होता है।

अक्षय तृतीया 2023 में कब है?

इस वर्ष 2023 में अक्षय तृतीया 22 अप्रैल के दिन है यह बैसाख माह में शुल्कपक्ष के दिन होती है।

अक्षय तृतीया 2023 का शुभ-मुहुर्त क्या है?

22 अप्रैल 2023 सुबह 07.49 से आरम्भ होकर 23 अप्रैल सुबह 7.47 बजे तक का मुहुर्त है।

अक्षय तृतीया के दिन किन-किन चीजों का दान करना चाहिये?

इस दिन हमें ब्रह्माणों को भोजन एवं जरुरतमंदों, गरीबों को अपने सामर्थ के अनुसार अन्न(गेंहू, आटा, चावल) वस्त्र, पंखे, कूलर, मिट्टी के घड़े, सुराई आदि का भी दान कर सकते हैं।

अक्षय तृतीया के दिन क्या नहीं करना चाहिये?

यह दिन बहुत ही शुभ और अनंत फल देने वाला होता है। इस दिन क्रोध, अपमान, किसी की भी बुराई नहीं करनी चाहिये। इस दिन घर में कुछ न कुछ खरीदकर अवश्य लाये। बाजार से खाली हाथ न आये। घर के हर कोने को रोशन करें, घर में अंधेरा न रखें।

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