राम सेतु कहां पर स्थित है? इसका इतिहास एवं रोचक तथ्य, कहानी, निर्माण, लंबाई (Interesting Facts about Ram steu in hindi)
मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम को नारायण का सबसे महत्वपूर्ण अवतार माना जाता है। भगवान श्रीराम पुरुषार्थ के प्रतीक माने जाते हैं यही कारण है कि हिंदू धर्म के लोग सच्ची श्रद्धा और पूरी निष्ठा के साथ प्रभु श्री राम के बताए गए कर्तव्यों के मार्ग पर चलते हैं। हिंदुओं के इष्ट होने के कारण भगवान श्रीराम से जुड़ी हुई हर वस्तु, स्थान, और घटनाओं को बहुत विशेष महत्व दिया जाता है।
भारत और पड़ोसी देश श्रीलंका को जोड़ने वाला रामसेतु मार्ग (Adam’s Bridge) का इतिहास भी प्रभु श्रीराम से जुड़ा हुआ है जो अखिल भारत और विश्व के लिए प्रेम का अद्भुत प्रतीक है। हालांकि रामसेतु के अस्तित्व को लेकर कई सारे सवाल उठाए जाते हैं लेकिन रामसेतु आज भी मौजूद है। समुद्र के अंदर डूबे होने के कारण रामसेतु सीधा नहीं दिखाई देता लेकिन सैटेलाइट और गूगल मैप जैसे माध्यमों से इसे देखा जा सकता है।
रामसेतु की मौजूदगी को लेकर अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र NASA ने सेटेलाइट द्वारा इसका निरीक्षण किया और कुछ फोटोग्राफ्स भी प्रकाशित किए जिन से यह साफ जाहिर हो गया कि रामसेतु अभी समुद्र के अंदर मौजूद है। रामसेतु अपनी प्रकृति की भव्य संरचना का सजीव उदाहरण है।
अब आपके मन में राम सेतु को लेकर कई सारे सवाल उठ रहे होंगे जैसे कि रामसेतु कहां स्थित है? राम सेतु की लंबाई कितनी है? राम सेतु का निर्माण कब हुआ था? क्या रामसेतु अब भी मौजूद है ?
इस तरह के तमाम सवालों के जवाब हम आपको इस आर्टिकल में देने वाले हैं। इन सवालों के जवाब के साथ साथ हम आपको रामसेतु से जुड़े हुए कई सारे ऐसे रोचक तथ्य भी बताएंगे जो आपको हैरान कर देंगे। हो सकता है इन तथ्यों के बारे में आपने इससे पहले कभी ना सुना हो।
विषय–सूची
राम सेतु का इतिहास एवं रोचक तथ्य (Interesting Facts about Ram steu in hindi)
रामसेतु मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम के निर्मल प्रेम का प्रतीक है जिसे उनकी वानर सेना द्वारा लंका पर चढ़ाई करने के लिए बनाया गया था।
श्री वाल्मीकि रामायण के अनुसार राम सेतु मार्ग का निर्माण भगवान श्री राम की वानर सेना द्वारा किया गया था जिसने नल और नील ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। नल और नील को शिल्पकार विश्वकर्मा का पुत्र माना जाता है यही कारण था कि भगवान श्रीराम ने नल और नील से लंका तक पहुंचने के लिए रामसेतु निर्माण करने का आग्रह किया।
कहा जाता है कि विश्वकर्मा के पुत्र नल और नील को यह वरदान था कि उनके द्वारा रखे गए पत्थर पानी में तैरेंगे। परिणाम स्वरूप पत्थरों पर राम नाम लिखकर नल एवं नील द्वारा समुद्र में तैरते हुए पुल का निर्माण किया गया। ऐसा माना जाता है कि राम सेतु निर्माण के पूर्व भगवान श्री राम ने समुद्र से रास्ता देने के लिए अनुरोध किया था लेकिन समुद्र अपने कर्तव्यों के प्रति विवश था जिस कारण उसने भगवान श्रीराम को यह सुझाव दिया कि वह नल नील के पास जाएं और उनसे सेतु बनाने का अनुरोध करें।
इसी रामसेतु के सहारे भगवान श्री राम और हनुमान समेत उनकी पूरी वानर और भालूओं की सेना लंका पहुंची। लंका पहुंचने के बाद भगवान श्री राम और रावण के बीच घोर संग्राम हुआ अन्त में भगवान श्रीराम ने रावण का वध कर दिया और सीता माता को वापस लेकर अयोध्या चले आए। ऐसा माना जाता है कि नल नील द्वारा राम सेतु बनाने एक गिलहरी ने भी भगवान श्री राम की मदद की थी।
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राम सेतु कहां पर स्थित है?
राम सेतु एक ऐसा पुल है जो भारत और उसके पड़ोसी देश श्रीलंका को समुद्री मार्ग द्वारा एक दूसरे से जोड़ता है। राम सेतु पुल की शुरुआत तमिलनाडु के रामेश्वरम द्वीप से होती है।
रामेश्वरम के धनुष्कोड़ी में पंबन ब्रिज की नोक से शुरु हो कर राम सेतु श्रीलंका के मन्नार दीप में समाप्त होती है। इस प्रकार राम सेतु मार्ग भारत और श्रीलंका को समुद्री मार्ग से जोड़ता है।
राम सेतु की लंबाई कितनी है?
अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र NASA के मुताबिक राम सेतु की लंबाई 48 किलोमीटर है जबकि इसकी चौड़ाई 3 किलोमीटर के लगभग है। हालांकि कुछ अन्य आंकड़ों के मुताबिक राम सेतु की लंबाई 50 किलोमीटर तक मानी जाती है लेकिन नासा द्वारा प्रमाणित साक्ष्यों के आधार पर इसे 48 किलोमीटर ही माना जाता है।
रामेश्वरम द्वीप से शुरू होकर श्रीलंका के मन्नार द्वीप में समाप्त होने वाला राम सेतु ब्रिज समुद्र में कोछा स्थानों पर 3 फीट गहराई पर है तो कुछ स्थानों पर 30 फीट की गहराई पर स्थित है। रामसेतु पूरी तरह से समुद्र के भीतर डूबा हुआ है यही कारण है कि यह सीधे तरीके से दिखाई नहीं देता। हालांकि सैटेलाइट और गूगल मैप के माध्यम से इसे देखा जा सकता है।
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क्या राम सेतु अब भी मौजूद है?
शुरू से ही रामसेतु की मौजूदगी पर कई सवाल उठाए जा रहे थे हालांकि नासा के द्वारा किए गए शोधों के बाद इन सारे सवालों के जवाब मिल गए।
NASA ने साल 1993 में रामसेतु से जुड़े शोध के बाद सेटेलाइट द्वारा लिए गए फोटोग्राफ्स को प्रकाशित किया जिसमें रामसेतु का अस्तित्व साफ दिखाई दे रहा था। यह रामसेतु आज भी समुद्र के भीतर मौजूद है जिसके द्वारा भगवान श्री राम लंका नगरी गए थे।
सेटेलाइट की फोटोग्राफ्स में देखने से यह साफ पता चलता है कि रामसेतु के पत्थर समुद्र में तैर रहे हैं। इन बातों से यह साफ जाहिर है कि नल नील द्वारा पत्थरों पर राम नाम लिखकर तैराने की बात तर्क विहीन नहीं थी।
श्री बाल्मीकि रामायण के अलावा अन्य बहुत से पौराणिक ग्रंथों में रामसेतु का वर्णन किया गया है जिनमें कौटिल्य का अर्थशास्त्र, महाकवि कालिदास का रघुवंशम महाकाव्य आदि शामिल है। इन सबके अलावा सनातन संस्कृति के विष्णु पुराण अग्नि पुराण और ब्रह्म पुराण में भी राम सेतु का वर्णन किया गया है।
रामसेतु कितना पुराना है?
श्री बाल्मीकि रामायण के अनुसार रामसेतु लगभग 3500 वर्ष पुराना है। हालांकि कुछ लोग इसे 7000 साल पुराना भी मानते हैं। कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि रामसेतु की आयु को लेकर कोई स्पष्ट मत नहीं है लेकिन मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम से जुड़े होने के कारण 3500 वर्ष आयु को सर्वाधिक मान्यता दी जाती है।
रामसेतु से जुड़े हुए बहुत से शोध हुए और बहुत से होगी रहे हैं जिनके मुताबिक यह माना जाता है कि 10 वीं शताब्दी से 15 वी शताब्दी के आसपास तक रामसेतु के माध्यम से रामेश्वरम से श्रीलंका के मन्नार द्वीप तक जाया जा सकता था लेकिन 1480 में आए हुए समुद्री तूफान के कारण यह रामसेतु काफी क्षतिग्रस्त हो गया और समुद्र के जल स्तर में बढ़ाव के कारण गहराई में चला गया।
रामसेतु से जुड़े हुए रोचक तथ्य (Interesting Facts about Ram Steu in hindi)
- ऐसा माना जाता है कि रामसेतु के निर्माण में जिन पत्थरों का उपयोग किया गया था वह कहीं दूर से लाए गए थे। वैज्ञानिक मानते हैं कि यह ज्वालामुखी के पत्थर थे क्योंकि ज्वालामुखी के पत्थर पानी में तैर सकते हैं।
- विश्वकर्मा के पुत्र नल नील को रामसेतु का इंजीनियर कहा जाता है क्योंकि उन्होंने ही इस राम सेतु का निर्माण किया था।
- नल एवं नील द्वारा बनाए जाने के कारण भगवान श्रीराम ने इसे नल और नील सेतु की संज्ञा दी थी लेकिन वर्तमान में इसे रामसेतु के नाम से जाना जाता है।
- कहा जाता है कि श्रीलंका के मुसलमानों ने सबसे पहले रामसेतु को आदम पूल कहकर बुलाना शुरु किया जिसके बाद ईसाई और अन्य समुदाय के लोगों इसे Adam Bridge कहने लगे। क्योंकि उनका ऐसा मानना है कि आदम इसी पुल से होकर गुजरे थे। हालांकि भारत श्रीलंका को जोड़ने वाला यह ब्रिज रामसेतु ही कहा जाना चाहिए क्योंकि यह पूरी तरह से मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम से संबंधित है।
- नल नील और वानर सेना द्वारा राम सेतु का निर्माण महज 5 दिनों में किया गया था।
- वैज्ञानिक मानते हैं कि राम सेतु ब्रिज में लगे पत्थरों के उत्पत्ति वाला मुख्य के लावा विस्फोट से हुई थी। क्योंकि आज भी सेटेलाइट में देखने पर यह पत्थर तैरते दिखाई देते हैं।
- पुराणों में रामसेतु ब्रिज का वर्णन किया गया है जो ब्रह्म पुराण अग्नि पुराण और विष्णु पुराण में मौजूद है।
- पुराणों के अलावा कई सारे ग्रंथों में भी राम सेतु का वर्णन मिलता है जिनमें महाकवि कालिदास का रघुवंश महाकाव्य और कौटिल्य का अर्थशास्त्र शामिल है।
- राम सेतु की लंबाई 48 किलोमीटर और चौड़ाई 3 किलोमीटर है जो भारत और श्रीलंका को एक दूसरे से समुद्री मार्ग द्वारा जोड़ता हैं।
- राम सेतु मार्ग को लगभग 3500 वर्ष पुराना माना जाता है।
- राम सेतु का निर्माण करने वाले नल और नील को विश्वकर्मा का पुत्र माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि नल और नील को वरदान था कि उनके द्वारा रखे गए पत्थर पानी में तैरेंगे।
रामसेतु को मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम और उनकी अर्धांगिनी माता सीता के बीच प्रेम का प्रतीक माना जाता है। राम सेतु ब्रिज अखिल विश्व में प्रेम प्रतीक के रूप में विख्यात है। अमित करते हैं दोस्तों की आपको यह आर्टिकल बेहद पसंद आया होगा।