कौन था सम्राट अशोक, इतिहास, सम्राट अशोक का जीवन परिचय, जीवनी (Samrat Ashoka Biography in hindi , Samrat Ashoka History in hindi, Biography & Life Story, Death) अशोक की बौद्ध नीति, शिलालेख, स्तूप और स्तंभ
भारतीय इतिहास में मौर्य साम्राज्य का गौरवशाली इतिहास है, मौर्य साम्राज्य के सबसे महान राजा सम्राट अशोक भारतीय इतिहास में एक ऐसे महान राजा हुए जिन्होंने अपने शासनकाल में महत्वपूर्ण सुधार किए, धर्म की स्थापना की।
वह मौर्य साम्राज्य का तीसरा सम्राट था जिसने अपने शासनकाल में नैतिकता, संघर्ष और शान्ति के मुद्दों पर बहुत सोच विचार किया। उन्होंने बौद्ध धर्म को प्रचारित किया और भारतीय इतिहास के इस महत्वपूर्ण समय में भारतीय संस्कृति के लिए एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक आधार बनाया।
सम्राट अशोक दक्षिण एशिया में बौद्ध धर्म के विस्तार के लिए प्रयास करने वाले पहले शासकों में से एक थे। उन्होंने अपने शासनकाल के दौरान समाज, शिक्षा, आर्थिक विकास, और विदेशी संबंधों के क्षेत्र में अनेक सुधार किए। उनके समय में मौर्य साम्राज्य अपने शक्ति के शीर्ष पर था। आइए सम्राट अशोक के बारे में गहराई से जानते हैं –
विषय–सूची
कौन था सम्राट अशोक (Who was Ashoka in Indian History)
बौद्ध ग्रंथ दीप वंश के अनुसार बिंदुसार की 16 पत्नियां थी और 101 पुत्र थे। अशोक बिंदुसार और रानी सुभाद्रंगी का पुत्र था, उसका जन्म बिहार के पाटलिपुत्र में 304 ईसा पूर्व में हुआ था।
वह बचपन से ही अत्यंत मेधावी और युद्ध कला में निपुण था। अशोक बिंदुसार के सभी 101 पुत्रों में सबसे तेजस्वी और मेधावी था।
एक महान वंश में जन्म लेना और बचपन से ही गद्दी के लिए संघर्ष देखकर अशोक भी एक क्रूर और निर्दयी मनुष्य बन चुका था। कहा जाता है कि मौर्य साम्राज्य की राजगद्दी पर बैठने के लिए अशोक ने अपने 99 भाइयों का वध कर दिया था।
सम्राट अशोक का इतिहास, जीवन परिचय (Samrat Ashoka Biography in hindi History & Life Story)
पूरा नाम | चक्रवर्ती अशोक सम्राट |
जन्म | बिहार के पाटलिपुत्र में 304 ई.पू. |
शासन काल का समय | 269 ई.पू से 232 ई.पू |
वंशज | मौर्य राजवंश |
पिता | बिन्दुसार |
माता | रानी शुभदंग्री |
भाई | शुषेन और अन्य 99 भाई |
पत्नी | देवी, कारुवाकी, पद्मावती, तिष्यरक्षिता |
पुत्र -पुत्री | तीवल, कनाल,महेंद्र और संघमित्रा व चारुमती |
धर्म | बौद्ध |
मृत्यु | 232 ई. पू |
सम्राट अशोक का शासनकाल
सम्राट अशोक एक ऐसा राजा बना जिसमें अखंड भारत पर एक छत्र राज किया अपने शासनकाल में उसने भारतीय सीमा को विस्तृत किया। उत्तर के हिंदू कुश पर्वत से लेकर पश्चिम में ईरान अफगानिस्तान हो या फिर पूर्व में देश की सीमा, अशोक ने अखंड भारत की स्थापना की।
अपने शासनकाल के शुरुआती वर्षों में वह बेहद क्रूर और निर्दयी राजा हुआ करता था, उसके पिता बिंदुसार को उस पर बहुत भरोसा था, बचपन से ही वह उसे राज्य के कार्यों को करने के लिए प्रेरित करते रहते थे।
तक्षशिला में हुए विद्रोह से परेशान होकर ने जब अशोक को वहां भेजा तो अशोक शांति स्थापित करने और विद्रोह को दबाने में सफल हुआ। 273 ईसा पूर्व में जब बिंदुसार की मृत्यु हुई तो उस समय वह उज्जैन में सूबेदार था।
अशोक ने 4 साल का कड़ा संघर्ष किया और तब जाकर मौर्य वंश की गद्दी पर बैठा,उसके राज्याभिषेक में कई बाधाएं आई उसने सभी बाधाओं को पार किया और 269 ई पू औपचारिक रूप से राजा बना।
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कलिंग युद्ध ने डाला गहरा असर
अशोक की कुशल सेना संचालन और नीतियों के कारण सभी राज्यों ने मगध के आगे अपने घुटने टेक दिए, अशोक ने सभी राज्यों को अपने राज्य मगध में मिलाया।
लेकिन कलिंग एक ऐसा प्रदेश था जो किसी भी हाल में मगध की अधीनता स्वीकार करने को तैयार नहीं था। कलिंग के राजा ने सम्राट अशोक को चुनौती दी, चुनौती को देखते हुए और कलिंग को सबक सिखाने के उद्देश्य से अशोक ने कलिंग पर आक्रमण कर दिया। एक भीषण युद्ध हुआ जिसमें दोनों पक्षों का क्रूर नरसंहार हुआ।
राजा बनने के 7 वर्ष बाद जब अशोक ने कलिंग राज्य पर आक्रमण किया तो इसमें हुए भयंकर खून खराबे में उसके मस्तिष्क पर बहुत गहरा असर डाला। इस युद्ध में दोनों पक्षों में लगभग 1 लाख लोगों की मृत्यु हुई थी, कई हजार लोग घायल हो गए थे, अनगिनत हाथी घोड़े युद्ध में कुचल दिए गए थे। इस नरसंहार को देखकर अशोक इतना विचलित हुआ कि उसने इस युद्ध के बाद कभी शस्त्र नहीं उठाया।
उसने वही रणभूमि में कसम खाई कि आज के पश्चात वह कभी किसी युद्ध का हिस्सा नहीं बनेगा।
यह घटना उसे अपने शासन के दौरान धर्म और अहिंसा के पक्ष में खड़े होने के लिए प्रेरित करती है।
अशोक की बौद्ध नीति
कलिंग में हुए खून खराबे के बाद अशोक ने बौद्ध धर्म को अपना लिया, और विश्वभर में बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार कराया।
अशोक का इस धर्म को अपनाने का मुख्य उद्देश्य यह था कि वह हिंसा से अहिंसा के मार्ग पर चल पड़ा था।
बौद्ध धर्म अपनाकर उसने जीवो पर दया और मानव के प्रति दया भाव का संदेश दिया।
अशोक की बौद्ध नीति को धर्म विजय नीति भी कहा जाता है। उन्होंने अपने शासनकाल के दौरान धर्म विजय की जगह धर्म समझौते का अनुभव किया था और बौद्ध धर्म को अपनाया था। उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाने के बाद अपनी सेना के अधिकांश सदस्यों को धर्म शिक्षा दी और धर्म उनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया।
सम्राट अशोक ने अपनी बौद्ध नीति के अनुसार शासन का आधार धर्म, अनुशासन, समझौता और समानता पर रखा। उन्होंने धर्म को संरक्षण देने के लिए धर्ममहत्या कमीशन और धम्मा विहार जैसी अनेक नीतियों को लागू किया। उन्होंने भारत और उनके सम्पदाओं के बीच सड़कों और गुफाओं की निर्माण की भी नीतियां बनाई।
सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के अनुसार एक महत्वपूर्ण समाज को निर्माण किया जो अधिकांश लोगों को अधिक समझौता और शांति देने के लिए प्रेरित करता था।
अशोक द्वारा बनवाए गए स्तूप और स्तंभ
सम्राट अशोक ने पूरे भारत में मौर्य वंश का प्रचार प्रसार किया और कई शिलालेख और स्तंभों का निर्माण करवाया।
उसके शिलालेखों में मौर्य वंश का इतिहास मिलता है।
अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार और भगवान बुद्ध के अवशेषों का संग्रहण करने के लिए दक्षिण एशिया और मध्य एशियां में लगभग 84000 स्पूतों का निर्माण करवाया।
सम्राट अशोक के सबसे महत्वपूर्ण शिलालेखों में से कुछ निम्नलिखित हैं:
- बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए बोधगया में महाबोधि स्तूप का निर्माण किया था।
- सम्राट अशोक ने सांची में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए धम्मराजिका स्तूप का निर्माण किया था।
- उन्होंने शिकारीग्राम में धर्मशास्त्र के लिए लौरिया नंदंगर स्तूप का निर्माण करवाया था।
- सम्राट अशोक ने साम्राज्य के प्रत्येक कोने में धर्म का प्रचार करने के लिए कई शिलालेख बनवाए थे, जैसे गिरनार के लिए जुंगढ़ शिलालेख, सांची के लिए सांची शिलालेख और कालिंग नगर के लिए अशोकानुग्रह शिलालेख।
आज भारतीय तिरंगे में जिस चक्र का उपयोग किया जाता अशोक चक्र या धर्म चक्र के नाम से जाना जाता है उसे सम्राट अशोक द्वारा बनवाए गए अशोक स्तंभ से लिया गया है।
इसके अलावा भारत के राजकीय प्रतीक शेर मुख चिन्ह को भी अशोक स्तंभ से लिया गया है, यह मूर्ति आज भी सारनाथ के म्यूजियम में रखी गई है। >> अशोक स्तंभ से जुड़ें महत्वपूर्ण व रोचक तथ्य
सम्राट अशोक की मृत्यु (Samrat Ashoka Death)
मौर्य साम्राज्य की गद्दी पर उसने लगभग 40 वर्षों तक शासन किया, अपने शस्त्र ना उठाने के प्रण को लेकर वह अधिक समय तक शासन नहीं कर पाया। पड़ोसी राज्यों ने अशोक के इस प्रण का बहुत फायदा उठाया और उसके राज्यों को नुकसान भी पहुंचाया।
इतिहासकारों का मानना है कि 232 ईसा पूर्व में जब अशोक की मृत्यु हुई तब मौर्य साम्राज्य को देखने वाला कोई नहीं बचा और यहीं से उसका पतन शुरू हो गया।
कुछ इतिहासकार ऐसा भी मानते हैं कि जीवन के अंतिम क्षणों में अशोक ने बौद्ध धर्म के अनुसार सन्यास ग्रहण कर लिया था और खाना-पीना त्याग कर अपने शरीर का इच्छा से परित्याग कर दिया था। अपने महान कार्यों और धर्म के प्रचार के कारण अशोक आज भी प्रसिद्ध है।