आचार्य रजनीश ओशो का जीवन परिचय, उम्र, शादी, धर्म, रजनीश ओशो से जुड़ी कुछ रोचक तथ्य (rajneesh Osho Biography in Hindi, OSHO facts in hindi)
भारत हमेशा से ही ऐसे महान पुरुषों की जन्मभूमि रही है, जिनके भीतर नेतृत्व की अपार क्षमताएं थी।
समय आने पर जब जब इस दुनिया को आध्यात्मिक दर्शन की जरूरत पड़ी हैं, भारतीय विचारकों ने सदैव ही उन्हें जीवन जीने का एक नया मार्ग दिखाया है। फिर चाहे वह गौतम बुद्ध रहे हों या स्वामी विवेकानंद।
भारत में एक से बढ़कर एक विचारक, आध्यात्मिक गुरु और दार्शनिक पैदा हुए हैं, उन्हीं में से एक थे आचार्य रजनीश, जिन्हें पूरी दुनिया ओशो के प्रसिद्ध नाम से जानती है।
ओशो एक आध्यात्मिक गुरु और महान भारतीय विचारक थे जिन्होंने रजनीश आंदोलन की शुरुआत की और पूरी दुनिया को अध्यात्म दर्शन की एक नई चेतना प्रदान की।
ओशो रजनीश एक ऐसे महान व्यक्तित्व थे जिन्होंने अपने जीवन में तकरीबन डेढ़ लाख किताबें पढ़ी थी और अपने इसी अद्भुत ज्ञान के बल पर पूरी दुनिया में अपने विचारों से एक नई क्रांति की शुरुआत की।
हालांकि ओशो का जीवन काफी विवादास्पद और रहस्यमय रहा। कहा जाता है कि ओशो का जीवन ही नहीं बल्कि उनकी मृत्यु भी उतनी ही रहस्यमय थी।
आज भारत समेत विश्वभर की युवा पीढ़ी के लोग ओशो के आधुनिक क्रांतिकारी विचारों से प्रेरणा लेते हैं और उनके रहस्यमय जीवन बारे में जानना चाहते हैं।
इसलिए आज हम आपको आचार्य रजनीश, ओशो का जीवन परिचय (Rajneesh Osho Biography In Hindi) पर आधारित इस लेख के ज़रिए आचार्य ओशो रजनीश के रहस्यमय जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में बताने वाले हैं।
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विषय–सूची
आचार्य रजनीश ओशो का जीवन परिचय (Rajneesh Osho Biography in Hindi)
कौन थे ओशो रजनीश?
ओशो (Osho) एक आध्यात्मिक गुरु और भारतीय विचारक थे जिन्हें आचार्य रजनीश, ओशो रजनीश और भगवान रजनीश के नाम से जाना जाता है।
ओशो दार्शनिक होने के साथ साथ रजनीश आंदोलन के प्रणेता थे।
ओशो राजनीश ने अपनी आध्यात्मिक क्रांति के जरिए एक नई विचारधारा को जन्म दिया।
वह धार्मिक रूढ़िवादिता के कठोर आलोचक थे, जिसके कारण उनका पूरा जीवन विवादास्पद रहा।
धार्मिक रूढ़िवादिता के मुखर विरोध के कारण केवल भारत में ही नहीं बल्कि पश्चिमी देशों में भी ओशो को विरोध और आलोचना का सामना करना पड़ा।
इतना ही नहीं ओशो ने मानव कामुकता और मैथुन के प्रति भी बेहद खुला रवैया अपनाया और संभोग से समाधि के संदेश दिए।
यह भी एक विशेष वजह थी जिसके कारण देशभर में उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए और उनकी कठोर आलोचना हुई। आखिरकार विरोधियों से मजबूर होकर ओशो भी को देश छोड़कर भी जाना पड़ा।
ओशो रजनीश का संक्षिप्त परिचय (Who is Rajneesh biography in hindi, bio, age, caste, Education, family, father, mother name)
पूरा नाम (Full Name) | चंद्र मोहन जैन |
प्रसिद्ध नाम | ओशो, आचार्य रजनीश |
जन्म (Date of Birth) | 11 दिसंबर, 1931 |
जन्म स्थान (Place of Birth) | गांव: कुछवाड़ा , तहसील: बरेली, रायसेन, मध्य प्रदेश |
निधन | 19 जनवरी, 1990 |
उम्र (age) | 58 वर्ष |
मृत्यु का कारण (Reason of Death) | हृदयाघात, दिल की धड़कन रुकना |
राष्ट्रीयता (Nationality) | भारतीय |
गृहनगर (Home Town) | बरेली, रायसेन, मध्य प्रदेश |
पेशा, कार्यक्षेत्र | आध्यात्मिक धर्मगुरु |
पिता (Father Name) | बाबूलाल जैन |
माता का नाम (Mother Name) | सरस्वती बाई जैन |
कॉलेज | डी. एन. जैन. कॉलेज, जबलपुर सागर विश्वविद्यालय, सागर (MP) हितकारिणी कॉलेज जबलपुर |
शिक्षा | परास्नातक (दर्शनशास्त्र) |
धर्म (Religion) | हिन्दू धर्म |
वैवाहिक स्थिति | अविवाहित |
शादी की तारीख | शादी नहीं की |
ओशो का शुरुआती जीवन परिचय (Osho Biography In Hindi)
ओशो रजनीश 11 दिसंबर 1931 को मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के कुच्वाडा गांव में पैदा हुए थे। उनके बचपन का मूल नाम चंद्र मोहन जैन था।
बचपन से ही ओशो रजनीश दर्शन में बेहद रूचि रखते थे और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करना चाहते थे। ओशो रजनीश के पिता का नाम बाबूलाल जैन और माता का नाम सरस्वती जैन था, जो तैरापंथी दिगंबर जैन परिवार से संबंध रखते थे। वह बचपन से ही बेहद सरल और गंभीर स्वभाव के थे।
किशोरावस्था में पहुंचते पहुंचते आचार्य रजनीश नास्तिक प्रवृत्ति के हो गए।
ओशो का अर्थ (Osho Meaning In Hindi)
1960 के दशक में ओशो “आचार्य रजनीश” के नाम से प्रचलित थे। जबकि 1970 से लेकर 1980 तक उन्हें “भगवान रजनीश” के नाम से ख्याति मिली। लेकिन बाद में इन्हें Osho के नाम से जाना जाने लगा और अब भी वह इसी नाम से मशहूर हैं।
ओशो नाम से जुड़ी एक प्रचलित मान्यता के अनुसार Osho शब्द का उद्गम “ओशनिक” से हुआ है, जिसका प्रयोग विलियम जेम्स ने अपनी कविता में किया था। जेम्स की इस कविता का शीर्षक था “ओशनिक एक्सपीरियंस”
“ओशनिक” शब्द का मतलब होता है, “सागर में विलीन हो जाना”
ऐसे में “ओशो” शब्द का अर्थ निकलता है, “सागर में विलीन हो जाने वाला”
ओशो की शिक्षा–
ओशो रजनीश की प्रारंभिक शिक्षा उनके ननिहाल से हुई। अपनी आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने जबलपुर विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और दर्शनशास्त्र में अपनी शिक्षा पूरी की।
कहा जाता है कि 21 मार्च 1953 को महज़ 21 साल की उम्र में ओशो को ज्ञान संबोधी की प्राप्ति हुई।
इसीलिए ओशो के भक्तों और ओशो धाम द्वारा 21 मार्च का यह खास दिन ओशो संबोधि दिवस के रूप में मनाया जाता है।
ओशो का जीवनकाल–
जबलपुर यूनिवर्सिटी से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद साल 1957 में ओशो रायपुर विश्वविद्यालय में दर्शन शास्त्र के प्राध्यापक नियुक्त किए गए।
लेकिन कुछ वक्त के बाद ही विश्वविद्यालय के कुलपति ने उनका स्थानांतरण कर दिया क्योंकि उनकी धारणाएं गैर परंपरागत थी,जिसके कारण कुलपति को लगा कि इसका विश्व विद्यालय छात्रों के नैतिकता पर गलत प्रभाव पड़ सकता है।
स्थानांतरित होने के बाद ओशो जबलपुर विश्वविद्यालय में दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर के रूप में दाखिल हुए। इस दौरान उसने जगह-जगह जाकर अपने विचारों को मंचो के माध्यम से अभिव्यक्त करना शुरु कर दिया।
ओशो ने इस दौरान समाजवाद और गांधीवाद पर आलोचनाएं की जिसके कारण वह विवादास्पद हो गए। ओशो मानव कामुकता और मैथुन को लेकर भी काफी खुले विचार रखते थे और इन पर खुल कर बातें किया करते थे।
और शायद यही कारण भी था कि कई भारतीय और विदेशी पत्रिकाओं में ओशो को “सेक्स गुरु” कह कर भी संबोधित किया गया।
बाद में Osho ने अपनी नौकरी छोड़ दी और अपने शिष्यों को नव सन्यास आंदोलन के बारे में बताना शुरु की। उन्होंने ही नाव सन्यास आंदोलन की शुरुआत की।
ओशो रजनीश के जीवन से जुड़ी कुछ ख़ास बातें (Osho Rajneesh Interesting facts in hindi)
ओशो एक विवादास्पद रहस्य दर्शी आध्यात्मिक गुरु थे। उनके जीवनकाल में बहुत सारी महत्वपूर्ण घटनाएं घटित हुई।
ओशो की विरासत –
ओशो के आश्रम की संपत्ति कई हजार करोड़ रुपए हैं। यहां तक कि किताबों समेत अन्य संसाधनों से आश्रम को 100 करोड़ रुपए रॉयल्टी भी मिलती है।
ओशो की यह पूरी वसीयत ओशो इंटरनेशनल के नियंत्रण में है।
ओशो की प्रेमिका–
कहा जाता है कि वह ओशो एक लड़की से बेहद प्रेम करते थे। उसकी तस्वीर ओशो के बटुए में रखी हुई थी। हालांकि समय ही उस लड़की की मृत्यु हो गई।
ओशो एक बेहतरीन बांसुरी वादक भी थे लेकिन कहा जाता है कि उस लड़की की मृत्यु के बाद उन्होंने बांसुरी बजाना भी छोड़ दिया।
ओशो की कुण्डली–
कहा जाता है कि एक बार ओशो जब अपने ननिहाल में थे तब उनकी नानी ने एक सुप्रसिद्ध ज्योतिषी से उनकी कुंडली बनाने के लिए कहा था। ज्योतिषी ने कहा कि वह 7 वर्ष बाद ही ओशो की कुंडली बनाएंगे क्योंकि उनका मानना था कि वह 7 वर्ष से ज्यादा जीवित नहीं रह पाएंगे।
लेकिन ज्योतिषी ने आखिर में यह बात भी कही थी कि अगर यह लड़का 7 वर्ष से अधिक जीवित रह गया तो एक महान व्यक्तित्व बनकर उभरेगा और आखिरकार यही हुआ।
ओशो रजनीश ने पढ़ी थी डेढ़ लाख किताबें–
कहा जाता है कि ओशो रजनीश ने अपने जीवन काल में तकरीबन 1 लाख 50 हजार किताबें पढ़ी थी।
ओशो ने दुनियाभर के लेखकों और दार्शनिकों के विचारों को पढ़ने और समझने का प्रयास किया और आखिर में उसे ही आत्मसात किया जिसे जरूरी समझा। और जो चीजें उन्हें पसंद नहीं आई उन्होंने उसे पीछे छोड़ दिया।
कहा जाता है कि ओशो केवल पत्र और कविताएं लिखा करते थे। उन्होंने स्वयं कभी कोई किताब नहीं लिखी। हालांकि आज मार्केट में जितनी भी किताबें उनके नाम से बिक रही हैं वह सब उनके दिए गए भाषणों के स्रोत से ली गई हैं, उन्हें ओशो ने नहीं लिखा।
ओशो का अमेरिका प्रवास–
साल 1980 में तत्कालीन सत्तासीन राजनीतिक पार्टी जनता पार्टी के साथ मतभेद होने के कारण ओशो अमेरिका चले गए।
अमेरिका जाने के बाद इन्होंने वहां के ओरेगॉन प्रांत में अपने आश्रम की स्थापना की जिसे “रजनीशपुरम” नाम दिया गया।
ओशो का आश्रम तकरीबन 65 हज़ार एकड़ में फैला हुआ था। आपको जानकर हैरानी होगी कि यह जमीनें ओशो को उनके भक्तों ने खरीद कर दी थी और उन्हें यहां अपना आश्रम स्थापित करने के लिए आमंत्रित किया था।
ओशो के शिष्य ओशो के इस आश्रम को एक शहर के रूप में रजिस्टर कराना चाहते थे लेकिन वहां के स्थानीय लोगों ने इसका विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दिया।
अमेरिका आने के बाद उसने 1981 से लेकर 1985 तक का समय यही व्यतीत किया। ओशो महंगी घड़ियां, महंगी रोल्स रॉयस कारें और डिजाइनर कीमती पहनावे के कारण हमेशा सुर्खियों में बने रहते थे।
अमेरिका में भी ओशो का जीवन बेहद विवादास्पद रहा। साल 1985 में उनके आश्रम में सामूहिक फूड प्वाइजनिंग की घटना घटित हुई जिसके कारण ओशो को संयुक्त राज्य अमेरिका से बाहर निष्कासित कर दिया गया।
अक्टूबर 1985 में ही अमेरिकी सरकार ने ओशो के ऊपर प्रवास नियमों के उल्लंघन का आरोप लगाकर उन्हें न्यायिक हिरासत में ले लिया गया। इस दौरान ओशो रजनीश को 4 लाख अमेरिकी डॉलर पेनाल्टी भुगतनी पड़ी और 5 साल तक अमेरिका वापस न लौट आने की भी सजा मिली।
अमेरिका से बाहर निकलने के बाद ओशो कई सारे यूरोपीय देशों में गए लेकिन अमेरिकी सरकार के दबाव के कारण किसी भी राष्ट्र ने उन्हें शरण नहीं दी। तकरीबन 21 देशों ने ओशो को अपने देश से निष्कासित कर दिया। आखिरकार नेपाल में उन्हें कुछ समय के लिए जगह मिली। आखिरकर साल 1985 में ही वह भारत वापस लौट आए।
ओशो की रहस्यमय मृत्यु–
ओशो को देश निकाला देना और देश में उनका लौटना प्रतिबंधित कर देना यहां तक तो ठीक था लेकिन कहा जाता है कि तत्कालीन अमेरिकी सरकार ने ओशो को जान से मारने की पूरी प्लानिंग कर रखी थी।
ऐसा कहा जाता है कि जेल में हिरासत के दौरान ओशो को जेल के अधिकारियों ने थेलियम नाम का धीमा जहर दे दिया था। जिसका असर 6 महीने में ही उनके ऊपर दिखाई देने लगा।
साल 1987 में ओशो महाराष्ट्र के पुणे स्थित अपने आश्रम में लौट आए। आश्रम लौटने के बाद उनकी तबीयत लगातार बिगड़ती गई और शारीरिक रूप से कमजोर होते गए।
आखिरकार 19 जनवरी 1989 को ओशो की मृत्यु हो गई।
“सू एपलटन” नाम की एक लेखिका ने ओशो की मृत्यु को लेकर एक पुस्तक लिखी है, जिसका शीर्षक है “दिया अमृत पाया ज़हर।” इस पुस्तक के भीतर से लेखिका ने रोनाल्ड रीगन सरकार द्वारा ओशो को थेलियम जहर देने की बात कही है।
ओशो की मृत्यु के दिन की घटना–
कहा जाता है, कि 19 जनवरी 1989 को ओशो के आश्रम से डॉक्टर गोकुल गोकाणी को फोन कॉल आया था। फोन कॉल पर उनसे कहा गया कि वह अपना इमरजेंसी किट लेकर तुरंत ओशो के आश्रम पहुंचे।
कहा जाता है कि जब डॉक्टर ओशो के आश्रम पहुंचे तो उनसे उनसे यह कहा गया कि ओशो अपना देह त्याग रहे हैं। लेकिन उन्हें ओशो के पास नहीं जाने दिया गया इस दौरान वह आश्रम के बाहर ही टहलते रहे।
घटना के तकरीबन कुछ घंटों बाद डॉक्टर गोकुल गोकाणी को यह खबर मिली कि ओशो की मौत हो गई है। वहां मौजूद लोगों ने डॉक्टर को ओशो का डेथ सर्टिफिकेट जारी करने के लिए कहा और साथ ही यह भी दबाव डाला कि मृत्यु के कारण में दिल का दौरा लिखा जाए।
ओशो की मौत के महज़ एक घंटे के अन्दर ही उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया जबकि उनके आश्रम में सन्यासियों की मृत्यु को उत्सव की तरह मनाया जाता था।
कहा जाता है कि उस दौरान को ओशो की मां भी आश्रम में मौजूद थी लेकिन उन तक भी हो ओशो के मृत्यु की तुरंत खबर नहीं पहुंची।
शायद इसीलिए कहा जाता है कि ओशो का जीवन जितना रहस्यमय था उनकी मृत्यु भी उतनी ही रहस्यमय थी। ओशो ने दुनिया को नव सन्यास की प्रेरणा दी और अपने दार्शनिक विचारों को खुलकर दुनिया के सामने रखा। भले ही इसका खामियाजा विरोध से लेकर उनकी मौत तक निकला।
तो दोस्तों आज इस आर्टिकल के जरिए हमने आपको आचार्य रजनीश ओशो का जीवन परिचय Rajneesh Osho Biography in Hindi के बारे में बताया। उम्मीद करते हैं, कि आपको यह आर्टिकल बेहद पसंद आया होगा।