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कोणार्क सूर्य मंदिर का रहस्य: जानिए कोणार्क सूर्य मंदिर कहां स्थित है? इसकी विशेषता और इतिहास | History & Facts About Konark Sun Temple In Hindi

आज के इस लेख में हम कोणार्क सूर्य मंदिर का रहस्य ओर इतिहास के बारे में जानेंगे। कोणार्क का सूर्य मंदिर अपने अद्भुत रहस्यों के लिए जाना जाता है। यह मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है।

कोणार्क का यह अद्भुत सूर्य मंदिर दुनिया भर में अपनी भव्य शिल्प कला के लिए जाना जाता है। साल 1984 में UNESCO द्वारा कोणार्क सूर्य मंदिर को विश्व की धरोहरों में शामिल कर लिया गया। इस मंदिर की संरचना इतनी अद्भुत है कि कई बारी इस मंदिर को भारत का अजूबा भी कहा जाता है।

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Konark Sun Temple In Hindi पर आज के इस लेख में हम आपको कोणार्क सूर्य मंदिर का रहस्य इतिहास, विशेषताएं आदि सबसे जुड़ी जानकारियां देंगे।

अनगिनत वर्षों से चले आ रहे सनातन धर्म के वेदों व ग्रंथों में वर्णितआदि पंच देवों में भगवान सूर्य नारायण भी आते हैं। वहीं आदि पंच देवों में से कलयुग में सूर्य ही प्रत्यक्ष देव जिनके हम साक्षात दर्शन कर सकते है। धर्म वेदों में भी सूर्य की पूजा के बारे में बताया गया है। वहीं हर प्राचीन ग्रंथों में सूर्य की महत्वता व लाभों का वर्णन मिलता है।

ज्योतिष शास्त्र में भी सूर्य को ग्रहों का राजा बताया गया है। ऐसा भी कहा गया है कि रविवार को सूर्य की पूजा से सभी इच्छाए पूर्ण होती हैं। इनकी पूजा अर्चना से स्वास्थ्य, ज्ञान, सुख, पद, सफलता, प्रसिद्धि व बुद्धि आदि की प्राप्ति होना निश्चित है।

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यही कारण है कि भारतीय समुदाय के लोगों के लिए कोणार्क का सूर्य मंदिर बहुत विशेष महत्व रखता है। हर साल लाखों लोग इस भव्य मंदिर को देखने आते हैं और इसके रहस्यों को टटोलते हैं।

इंटरनेट पर रोजाना हजारों लोग कोणार्क के सूर्य मंदिर की विशेषताएं जानने के लिए इससे जुड़े हुए लेखों की तलाश करते हैं। तो हमने सोचा क्यों ना आज हम आपको इस मंदिर से जुड़ी हुई संपूर्ण जानकारियां साझा करें।

कोणार्क सूर्य मंदिर का रहस्य और इतिहास (Konark Sun Temple Facts & History in Hindi)

आज हम आपको ओडिशा में स्थित भगवान सूर्य के कोणार्क मंदिर के बारे में तथा उससे जुड़ी कथाओं और उनके रहस्यों के बारे में आपको अवगत कराएँगे।

सूर्य देव को समर्पित, इस मंदिर का नाम दो शब्दों कोण और अर्क से जुड़कर बना है कोण यानि कोना और अर्क का अर्थ सूर्य है। यानि सूर्य देव का कोना। इसे कोणार्क सूर्य मंदिर के नाम से दुनियाभर में जाना पहचाना जाता है। यह अपनी भव्यता और अद्भुत शिल्पकारी के लिए प्रसिद्ध है।

कुछ लोग इसको भारत का आठवां अजूबा भी कहते हैं। सन् 1984 में यूनेस्कों के वर्ल्ड हेरिटेज की सूची में शामिल किया गया है।

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कोणार्क सूर्य मंदिर कहां स्थित है? किसने बनवाया था? (Konark Sun Temple History in Hindi)

कोणार्क में स्थित भगवान सूर्य का मंदिर, पुरी शहर से लगभग 37 किलोमीटर दूर चंद्रभागा नदी के तट पर स्थित है जो की ओडिशा राज्य में है। इस मंदिर को पूरी तरह से सूर्य भगवान के लिए ही बनाया गया है इसीलिए इस मंदिर का संरचना भी भगवान सूर्य से जुड़ी कलाकृतिया आप देख पाएंगे।

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इसका निर्माण 13वीं शताब्दी 1236 से 1264 ईसवी के मध्यकाल में गंगवंश के प्रथम नरेश नरसिंहदेव ने अपने शासनकाल में करवाया था। इस मंदिर के निर्माण में मुख्यत बलुआ, ग्रेनाइट पत्थरों व किमती धातुओं का इस्तेमाल किया गया है।

इस मंदिर को 1200 मजदूरों ने दिन-रात एक करके लगभग 12 वर्षाें में बनाया था। यह मंदिर 229 फीट ऊंचा है इसमें एक ही पत्थर से निर्मित भगवान सूर्य की तीन मूर्तिया स्थापित की गई है। जो दर्शको को बहुत ही आर्कषित करती है। यह सूर्य के उगने, ढलने व अस्त होने  सुबह की स्फूर्ति, सांयकाल की धकान और अस्त होने जैसे सभी भावों को समाहित करके सभी चरणों को दर्शाया गया है।

कोणार्क सूर्य मंदिर, अद्भुत शिल्पकारी का नमूना

इस मंदिर में शिल्पकारी व कारीगरी इस प्रकार की गई है इस मंदिर का स्वरूप व बनावट एक बहुत बड़े और भव्य रथ के समान है जिसेे 12 पहियों के जोडे़, रथ को 7 बलशाली घोड़े खीच रहे है और मानों इस रथ पर स्वयं सूर्यदेव बैठे है। इस मंदिर से आप सीधे सूर्य भगवान के दर्शन भी कर सकते हैं। यह मंदिर अपनी अनूठी कलाकृतियों और भव्यता के लिए प्रसिद्ध है। जोकि कंलिगशैली से मिलती जुलती है।

वहीं इस मंदिर के आधार को सुन्दरता प्रदान करते 12 चक्र, साल के बारह महीनों को परिभाषित करते हैं और प्रत्येक चक्र, आठ पहर से मिलकर बना है, जो हर, एक दिन के आठ पहरों को प्रदर्शित करता हैं। और यहां पर स्थित सात घोड़ें में से केवल एक ही घोड़ा शेष है। यह हफ्ते के सात दिनों को दर्शाता है।

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एक बहुत रोचक बात यह है कि इस मंदिर के लगे चक्रों पर पड़ने वाली छाया से हम समय का सही और सटीक अनुमान लगा सकते है। यह प्राकृतिक धुप घड़ी का कार्य करते हैं।

भगवान सूर्य के इस मंदिर की ये एक आकर्षक विशेषता है कि मंदिर के उपरी छोर से भगवान सूर्य का उदय व अस्त देख जा सकता है जो की मनभावन है। ऐसे लगता है मानों सूरज की लालिमा ने पूरे मंदिर में लाल रंग बिखेर दिया हो और मंदिर के प्रांगण को लाल सोने से मढ़ा हों।

यहां पर स्थानीय लोग भगवान सूर्या नारायण को बिरंचि-नारायण भी कहते थे। यह मंदिर अपनी चमत्कारिक वास्तुकला के लिए विश्वभर में मशहूर है और यह मंदिर ऊंचे प्रवेश द्वारों से घिरा है। इसका मुख पूर्व की ओर है और इसके तीन महत्वपूर्ण हिस्से – देउल गर्भगृह, नाटमंडप और जगमोहन (मंडप) एक ही दिशा में हैं। सबसे पहले नाटमंडप में वह द्वार है जहा से प्रवेश किया जा सकता है। इसके बाद जगमोहन और गर्भगृह एक ही जगह पर है।

कोणार्क मंदिर का चुम्बकीय रहस्य क्या है? (Konark Sun Temple Mystery In Hindi)

प्राचीन दंतकथाओं में यहाँ तक कहा गया है कि मंदिर के ऊपर चुंबक 51 मिट्रिक टन लगा हुआ था। जिसका प्रभाव इतना अधिक प्रबल था जिससे समुंद्र से गुजरने वाले जहाज इस चुंबकीय क्षेत्र के चलते भटक जाया करते थे और इसकी ओर खींचे चले आते थे। इन जहाजों में लगा कम्पास (दिशा सूचक यंत्र) गलत दिशा दिखाने लग जाता था। इसलिए उस समय के नाविकों ने उस बहुमूल्य चुम्बक को हटा दिया और अपने साथ ले गये। जो की सुनने में थोडा अटपटा भी लगता है। जिसके बाद ही अंग्रेजों के यहाँ आने का रास्ता साफ हुआ।

इसमें एक आश्चर्यजनक व अद्भुत बात ये भी है की इस मंदिर का निर्माण इस प्रकार किया गया था जैसे कोई सेंडविच हो जिसके बिच में लोहे की प्लेट थे जिसपर मंदिर के पिल्लर अटके हुए थे। कही-कही ऐसा भी सुनने में आता है कि मंदिर के ऊपर एक बहुत भारी चुम्बक रखा गया था जो वजन में टनों के अनुसार भारी था, और वह केवल इनके खम्बों के मध्य संतुलित था। जिसके परिणामस्वरूप भगवान सूर्यनारायण की भारी भरकम मूर्ती हवा में तैरती हुई दिखाई देती थी।

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कोणार्क से जुड़ी पौराणिक कथा (Konark Sun Temple Story hindi)

कोणार्क मंदिर से जुड़ी कई धार्मिक कथाएं सुनी गई है कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को श्राप से कोढ़ की बीमारी हो गयी थी। उन्हें ऋषि कटक ने श्राप से बचने के लिये सूर्य भगवान की पूजा करने की नसीहत दी।

साम्ब ने मित्रवन में चंद्रभागा नदी के संगम पर स्थित कोणार्क में बारह वर्ष तप किया और सूर्य देव को प्रसन्न किया। सूर्यदेव सभी रोगों के नाशक थे, अतः साम्ब के रोग का भी अन्त कर दिया। जिसके बाद साम्ब ने सूर्य भगवान का एक मन्दिर निर्माण का निश्चय किया।

अपने रोग-नाश के उपरांत, चंद्रभागा नदी में स्नान कर रहे थे तभी उन्हें सूर्य देव की मूर्ति प्राप्त हुई जिसके बाद उन्होंने इसे स्थापित करवा दिया। सुनने में आता है कि देवशिल्पी श्री विश्वकर्मा जी ने यह मूर्ति स्वयं भगवान सूर्यनारायण के अपने एक भाग से बने थी। साम्ब ने अपने बनवाये मन्दिर में, इस मूर्ति की स्थापना की। तभी से लोग अपने रोग निवारण और अपनी मनोकामना पूर्ण करने व दर्शन करने आते हैं और इसका धाार्मिक महत्व बहुत अधिक बढ़ गया।

कोणार्क सूर्य मंदिर के बारे में रोचक तथ्य (Konark Sun Temple Facts In Hindi)

कई आक्रमणों और प्राकृतिक आपदाओं के कारण जब मंदिर जर्जर होने लगा तो सन् 1901 में उस समय के गवर्नर जॉन वुडबर्न ने जगमोहन मंडप के चारों दरवाजों पर दीवारें उठवा दीं और इसे पूरी तरह रेत से भर दिया। ताकि ये सलामत रहे और इस पर किसी प्राकृतिक या मानवीय आपदा का प्रभाव ना पड़े।

यह काम 1903 में जाकर संपन्न हो सका। वहां जाने वालों को कई बार यह पता नहीं होता था कि मंदिर का अहम हिस्सा जगमोहन मंडप बंद करवा दिया गया है। बाद में आर्कियोलॉजिक के कई खोजकारों ने कई मौकों पर मंदिर के अंदर के हिस्से को देखने की जरूरत बताई और रेत बाहर निकालने का सुझाव दिया।

यह मंदिर दो हिस्सों में बना हुआ है जिसमे प्रथम भाग में भगवान सूर्यनारायण की किरने मंदिर तक पहुँचती है और मंदिर के अन्दर स्थित मूर्ति पर पड़ती है जिससे बनने वाला नजारा अत्यंत ही मनोहारी होता है। उसी ओर मंदिर में एक कलाकृति में एक इंसान, हाथी और शेर से दबा है जो की पैसे और घमंड व अंहकार का घोतक है और ज्ञान बढाने वाला भी है।

कोणार्क के बारे में एक बात यह भी कही जाती है कि यहां आज भी नर्तकियों की प्रेत आत्माए आती हैं और नृत्य करती है। अगर कोणार्क में रहने वाले पुराने लोगों की मानें तो आज भी यहां आपको शाम में उन नर्तकियों के पाजेबों की आवाज सुनाई देगी जो कभी यहां राजा के दरबार में नृत्य करती थीं।

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निष्कर्ष

आज के इस लेख में हमने कोणार्क सूर्य मंदिर के रहस्य (Konark Sun Temple in Hindi) के बारे में रोचक जानकारी प्राप्त करी है। उसके साथ ही उन तथ्यों को जाना और समझा जिन्हें एक रहस्य के रूप में देखा जाता था। हम आशा करते है आपको हमारा लेख पसंद आया होगा। यदि लेख पसंद आया हो तो इस लेख को अपने मित्रें व सगे सम्बन्धियों तक जरूर शेयर करे।

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FAQ

कोणार्क मंदिर कहां पर स्थित है?

यह मंदिर पुरी, ओड़िसा में स्थित है यह मंदिर भगवान जगन्नाथ से लगभग 37 किमी दूर चंद्रभागा नदी के निकट स्थित हैं।

कोणार्क का सूर्य मंदिर किसने बनवाया था?

राजा नरसिम्हदेव प्रथम ने 1250 ई. में इसका निर्माण करवाया था।

कोणार्क मंदिर का दूसरा लोकप्रिय नाम क्या है?

काला पैगोडा

कोणार्क मंदिर कब खुलता है

यह हफ़्तें के सभी दिन खुला रहता है आप इसमें सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक घूम सकते हैं।

कोणार्क मंदिर क्यों प्रसिद्ध है?

यह मंदिर अपनी अद्भुत कलाकृति एवं शिल्पकारी के लिये प्रसिद्ध है। यह मंदिर सूर्य के भव्य रथ को प्रर्दशित करता है यह समय चक्र के 12 पहियों को 7 घोड़े से खिचते हुये दिखाया गया है। इसके चक्र दिन के 8 पहरों दर्शाता है।

कोणार्क मंदिर किस देवता को समर्पित है?

सूर्यदेव

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