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मकर संक्रांति का त्यौहार क्यों मनाया जाता है, जानिए इसका इतिहास व धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व | Makar Sankranti 2024 date, history, Story in hindi

मकर संक्रांति का त्यौहार क्यों मनाया जाता है, मकर संक्रांति का इतिहास, पौराणिक व वैज्ञानिक महत्व Makar Sankranti celebration, history, Story, Makar Sankranti Festival 2024 in hindi

भारत में प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति का त्यौहार मनाया जाता है। भारत के ज्यादातर हिस्सों में यह त्यौहार 14 एवं 15 जनवरी को मनाया जाता है लेकिन कहीं-कहीं यह त्यौहार 13 जनवरी को भी मनाया जाता है।

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मकर संक्रांति वर्ष भर में पूरे देश में मनाए जाने वाले भारतीय त्योहारों ऐसे एक महत्वपूर्ण त्यौहार है जो भारतीय संस्कृति का प्रतीक है।

लेकिन ज्यादातर लोग मकर संक्रांति से जुड़ी हुई बहुत सारी बातों के बारे में नहीं जानते जबकि वह प्रत्येक वर्ष इस त्योहार को मनाते हैं। आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको मकर संक्रांत के त्यौहार और उसके महत्व के बारे में बताएंगे साथ ही साथ हम त्यौहार के धार्मिक और वैज्ञानिक कारणों पर भी चर्चा करेंगे जिनके कारण यह त्यौहार मनाया जाता है।

मकर संक्रांति का त्यौहार-Makar-Sankaranti

विषय–सूची

सूर्य देव को समर्पित है मकर संक्रांति का त्यौहार, आइये जाने इसका इतिहास व धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

भारत के हिंदू पंचांग में ज्यादातर तिथियां चंद्रमा की गति पर आधारित होती हैं लेकिन भारत में प्रत्येक वर्ष मनाया जाने वाला मकर संक्रांति का दिन सूर्य की गति पर निर्भर होता है।

मकर संक्रांति का त्यौहार हिंदू मान्यताओं का एक प्रमुख त्योहार है इसे भारत और नेपाल में बहुत प्रसन्नता के साथ मनाया जाता है।

मकर संक्रांति का अर्थ क्या है? (Makar Sankranti Kya Hai)

दरअसल मकर संक्रांति दो शब्दों से मिलकर बना होता है मकर संक्रांति मकर का अर्थ राशि से है जबकि संक्रांति का अर्थ संक्रमण होता है अर्थात जब कभी सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में जाता है तो इसे संक्रांति कहते हैं। जब सूर्य की यह संक्रांति एक राशि से दूसरी राशि में होती है तो इसके बीच में जो समय लगता है उसे सौर मास कहां जाता है।

1 वर्ष के भीतर कुल 12 संक्रांतिया होती हैं यानी कि 12 बार सूर्य एक राशि को छोड़कर दूसरे राशि में प्रवेश करता है। इन 12 संक्रांतिओं में से मकर संक्रांति, कर्क संक्रांति, मेष संक्रांति, और तुला संक्रांति यह चारों प्रमुख हैं और इनमें से सबसे अधिक मान्यता मकर संक्रांति को दी जाती है जिसके पीछे कई पौराणिक और वैज्ञानिक कारण है जिन पर आज हम चर्चा करेंगे।

मकर संक्रांति 2024 का शुभ मुहूर्त कब है?

15 जनवरी 2024 को रात्रि 02:54 मिनट समय पर मकर राशि में आ जायेगी, इसलिए उदया तिथि पर यह त्यौहार 2024 में 15 जनवरी को मनाया जाएगा।

पुण्यकाल प्रातः 07:15 से शाम 06:21 बजे तक
महा पुण्यकाल प्रात काल 07:15 से 09:06 बजे तक

कुछ इस तरह मनाई जाती है मकर संक्रांति –

इस दिन हिंदू परिवारों में गुड़ तिल आदि जैसी सामग्रियों से लड्डू बनाकर तैयार किए जाते हैं और गंगा स्नान या तिल के जल स्नान करने के बाद लोग इन सामग्रियों से बने हुए लड्डुओं को ग्रहण किया जाता है।

श्री रामचरितमानस में उल्लेख किया गया है कि इस दिन प्रभु श्री राम पतंग उड़ा रहे थे जो उड़ते उड़ते इंद्रलोक में जा पहुंची थी। कहा जाता है कि भगवान श्रीराम ने जिस दिन पतंग को उड़ाया था उस दिन मकर संक्रांति का पर्व था तभी से श्री राम को अपना आदर्श मानने वाले भारतीय संस्कृति के लोग मकर संक्रांति को पतंग उड़ाकर मनाते हैं।

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गंगा स्नान और दान से मिलता है पुण्य –

लोग इस दिन अलग-अलग तटों पर जाकर गंगा स्नान करते हैं और स्नान करने के बाद सूर्यदेव को अर्घ्य देते है। उचित विधि विधान से पूजा आदि करने के पश्चात, अन्न दान किया जाता है भारतीय हिंदू संस्कृति में कहा गया है कि मकर संक्रांति के दिन स्नान करने के बाद अन्न दान करने से बहुत पुण्य की प्राप्ति होती है और दिए गए दान का 100 गुना पुण्य अर्जित हो जाता है।

मकर संक्रांति का भगवान सूर्य और माता गंगा से विशेष संबंध है। पहली बात तो यह कि सूर्य के मकर राशि में  संक्रमण से ही दिवस को मकर संक्रांति कहा जाता है और दूसरी मान्यता यह है कि इस दिन गंगा माता भागीरथी का अनुसरण करते हुए गंगासागर में जा मिली थी इसलिए हिंदुओं की परंपराएं हैं कि इस दिन गंगा स्नान और भगवान सूर्य की उपासना बहुत अच्छे परिणाम देती है।

तिल का विशेष महत्व –

मकर संक्रांति के दिन तिल का भी विशेष महत्व होता है इसलिए लोग इस दिन जल में तिल मिलाकर स्नान करते है। इसके साथ ही साथ भोजन में तिल से बने हुए भोजन सामग्रियों का भोग लगाया जाता है इसके बाद इसको ग्रहण किया जाता है।

भारत के प्रत्येक राज्य में मकर संक्रांत का यह त्यौहार किसी न किसी रूप में मनाया जाता है जिसे सभी हम लोग अपनी मान्यताओं के अनुसार अलग अलग नाम से भी मनाते हैं।

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उत्तर भारत में इस दिन को मकर संक्रांति, गढ़वाल में खिचड़ी, पंजाब में लोहड़ी, गुजरात में उत्तरायण और तमिलनाडु में पोंगल के नाम से मनाया जाता है। हालांकि केरल और कर्नाटक में इसे केवल संक्रांति का नाम दिया जाता है।

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मकर संक्रांति की पौराणिक कथा (Makar Sankranti Story)

जैसा कि मकर संक्रांति का त्यौहार विशेषकर भारत में हिंदू भारतीय संस्कृति जिसे सनातन संस्कृति भी कहा जाता है उसके द्वारा मनाया जाता है इसलिए इस त्यौहार के बहुत से पौराणिक महत्व भी हैं जो हिंदी पौराणिक कथा में से संबंध रखते हैं।

इस दिन शनि देव से मिलने जाते हैं भगवान भास्कर –

ऐसा कहा जाता है कि भगवान सूर्य के पुत्र शनि देव हैं जो कि मकर राशि के स्वामी हैं और यह भी कहा जाता है कि आज के दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि देव से मिलने के लिए मकर राशि में प्रवेश करते हैं यही कारण है कि इस दिन को मकर संक्रांति कहा जाता है।

भारतीय हिंदू संस्कृति की मान्यता है कि देवी देवताओं के लिए आज से ही दिन की गणना शुरू होती है क्योंकि कुल 6 महीने सूर्य के दक्षिणायन में रहने के कारण इसे देवताओं की रात्रि माना जाता है जबकि मकर संक्रांति के बाद 6 महीने सूर्य के उत्तरायण में रहने के कारण वश इस अवधि को देवताओं का दिन माना जाता है।

श्रीमद्भागवत में भी हुआ है उल्लेख –

श्रीमद्भागवत में भी मकर संक्रांति से जुड़ी हुई बातें कही गई हैं श्रीमद्भागवत के आठवें अध्याय में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि उत्तरायण का समय ब्रह्म की गति प्राप्त करने का समय होता है जबकि दक्षिणायन का समय जन्म और मृत्यु के बंधनों से संबंध रखता है।

महाभारत की ही घटना है जब भीष्म पितामह अपने सरसैया पर लेटे रहते हैं और अपने प्राण को त्यागने के लिए मकर संक्रांति की प्रतीक्षा करते हैं ताकि वह ब्रह्म की गति को प्राप्त कर सकें और ब्रह्मलीन हो सके।

इसलिए किया जाता है गंगा स्नान –

सनातन संस्कृति के लोग यह भी मानते हैं कि मकर संक्रांति के दिन ही गंगा माता भागीरथी का अनुसरण करते हुए कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थी। लोग मानते हैं कि गंगा माता बंगाल में गंगा सागर जहां पर कपिल मुनि का आश्रम है वही सागर में विलीन हुई थी इसलिए बंगाल के हिंदू गंगासागर पर इस दिन भव्य मेले का आयोजन करते हैं और साथ ही यह भी मान्यता रखते हैं कि गंगासागर में स्नान करने से एक नई ऊर्जा का संचार होता है।

इसी क्रम में भारत के कोने कोने से सनातन संस्कृति को मानने और समझने वाले लोग आज के दिन से लगातार महीनों कुंभ नहाने जाते हैं। प्रयागराज में आयोजित होने होने वाले 1 माह के कुंभ मेले में आज के दिन से लाखों-करोड़ों लोग आकर स्नान करते हैं।

मकर संक्रांति का ज्योतिष, वैज्ञानिक तथ्य व महत्व (Makar Sankranti Scientific facts hindi)

हम सब जानते हैं कि 1 वर्ष में 12 संक्रांति या होती हैं अर्थात सूर्य सभी राशियों को अपने संक्रमण से प्रभावित करता है, लेकिन मकर और कर्क राशि में सूर्य का संक्रमण अपना अलग महत्व रखता है।

इन दोनों राशियों में सूर्य के संक्रमण की अवधि में छह छह माह का अंतराल होता है। हमारी पृथ्वी अपने अक्ष से 23:30 अंश झुकी हुई है इसलिए सूर्य की स्थिति आधे वर्ष पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में और आधे वर्ष दक्षिणी गोलार्ध में होती है।

लेकिन मकर संक्रांति की घटना में मकर संक्रांति के दिन सूर्य दक्षिणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध की ओर गति करने लगता है। इसलिए मकर संक्रांति के दिन से उत्तरी गोलार्ध में दिन बड़ा होने लगता है जबकि रातें छोटी होने लगती हैं और साथ ही साथ उत्तरी गोलार्ध के भीतर सूर्य की की उपस्थिति के कारण यहां का तापमान भी बढ़ने लगता है।

इसलिए प्रायः आपने लोगों के मुंह से सुना होगा की मकर संक्रांति के दिन से भारत की ठंडी का एक हिस्सा चला जाता है जिसे गांव में ‘डेलरी’ कहा जाता है। उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में आपको यह सुनने को मिलेगा कि मकर संक्रांति के दिन से एक डेलरी ठंडी चली जाती है।

अर्थात मकर संक्रांति का दिन एक ऐसा दिन होता है जब उत्तरी गोलार्ध पर प्रकाश का प्रभुत्व बढ़ने लगता है और अंधकार मिटने लगता है यही कारण है कि यह दिन हमारी भारतीय हिंदू संस्कृति में बहुत महत्वपूर्ण है।

मकर संक्रांति विश्व कल्याण से जुड़ा है यह पर्व –

हमारी संस्कृति प्रकाश को ज्ञान का जबकि अंधकार को अज्ञान का स्वरूप मानते हैं इसलिए यह दिवस हमारे लिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि इस दिन से हमारे जीवन में प्रकाश का प्रभुत्व बढ़ने लगता है और यही प्रकाश हमें ज्ञान चेतना और नई ऊर्जा देती है। विश्व की लगभग 90% आबादी उत्तरी गोलार्ध में अपना जीवन व्यतीत करती है और इस समग्र आबादी के लिए मकर संक्रांति का उतना ही महत्व है जितना कि भारतीय संस्कृति के लिए।

भगवान सूर्य के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए मकर संक्रांति के दिन भारत में सूर्य भगवान की पूजा आराधना की जाती है।

मकर संक्रांति संपूर्ण विश्व के मनाए जाने वाले पर्व और त्योहारों में से एकमात्र ऐसा पर्व है जिसका किसी घटना या किसी क्षेत्र विशेष से कोई संबंध नहीं बल्कि यह संपूर्ण मानव जाति के लिए उतना ही महत्व रखती है।

हालांकि संपूर्ण विश्व में इस पर्व को उतना महत्व नहीं दिया जाता जितना कि भारतीय संस्कृति में दिया जाता है विदेशी लोग इसे भारतीय संस्कृति का पर्व समझते हैं और उसी संस्कृति का प्रतीक भी मानते हैं लेकिन भारतीय संस्कृति इस पर्व को पूरे लोक कल्याण के लिए मनाता है यही भारतीय संस्कृति की विशेषता है।

मकर संक्रांति के त्यौहार में विविधता

भारत के अलग-अलग हिस्सों में मकर संक्रांति को अलग-अलग रूप में मनाया जाता है जैसे कि पंजाब में लोहड़ी गुजरात में उत्तरायण और गढ़वाल में खिचड़ी के रूप में मकर संक्रांति मनाई जाती है।

वैसे तो मकर संक्रांति की तिथि 14 से 15 जनवरी की बीच की होती है लेकिन पंजाब और हरियाणा जैसे कुछ राज्यों में मकर संक्रांति 13 जनवरी को ही मनाई जाती है हालांकि मकर संक्रांति का कैलेंडर से कुछ लेना देना नहीं है बल्कि इसे उस तिथि पर मनाया जाता है जब सूर्य दक्षिणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध की ओर वृद्धि करता है।

पंजाब में मकर संक्रांति लोहरी के नाम से मनाई जाती जिसमें अंधेरा होते ही उसे दूर करने के लिए आग जलाई जाती है और अग्नि देव की पूजा की जाती है साथ ही साथ इस जलाई गई आग में तिल गुड़ जैसी सामग्रियां डाली जाती हैं जिसे तिलचौली कहा जाता है।

बंगाल में मकर संक्रांति के अवसर पर गंगा सागर तट पर भव्य मेले का आयोजन किया जाता है क्योंकि हिंदू संस्कृति में यह भी माना जाता है कि इसी दिन गंगासागर में गंगा माता का विलय हुआ था।

उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति के दिन प्रयागराज में कुंभ मेले का भव्य आयोजन होता है इस कुंभ का आयोजन संगम के तट पर होता है दरअसल प्रयागराज में संगम में तीन नदियों का समागम है जिनमें गंगा यमुना और सरस्वती शामिल हैं हालांकि सरस्वती अब नहीं है इन तीनों नदियों के मेल के कारण ही इसे त्रिवेणी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन संगम के तट पर सभी श्रद्धालुओं स्नान करके गंगा तट पर लोगों को अन्न दान करते हैं।

बिहार और बंगाल में मकर संक्रांति को खिचड़ी भी कहा जाता है इस दिन लोगों की मान्यता है कि वह खिचड़ी पका कर स्नान करने के बाद ग्रहण करते हैं और साथ ही दान पुण्य भी करते हैं।

गुजरात में मकर संक्रांति को उत्तरायण के नाम से मनाया जाता है जिसे देवताओं के दिन की संज्ञा दी गई है इस दिन गुजरात में भी लोग स्नान करके दान करते हैं और साथ ही साथ पतंग उड़ाने की कई सारी प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं।

असम में मकर संक्रांति को बिहू के नाम से जाना जाता जिस दिन तिल के बनाए हुए भोजन रात्रि के समय साथ खाए जाते हैं।

तमिलनाडु में मकर संक्रांति का दिन पोंगल के नाम से मनाया जाता है। पोंगल का अर्थ खीर होता है अर्थात तमिलनाडु में पोंगल त्यौहार के दिन जगह-जगह खीर बनाई जाती है और जलीकट्टू जैसी प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है जिसमें बैल और आदमी की लड़ाई होती है। दरअसल बैल के नियंत्रण परिणाम घोषित किया जाता है जो भी व्यक्ति इसे नियंत्रित कर लेता है उसे इनाम दिया जाता है।

नेपाल में मकर संक्रांति को माघे संक्रांति तथा माघी  के रुप में बुलाया जाता है और वहां के हिंदू भी इस मकर संक्रांति के त्यौहार को धूमधाम से मनाते हैं।

हालांकि नेपाल के कुछ हिस्सों में इसे सूर्य उत्तरायण भी कहा जाता है इस दिन नेपाल के हिंदू लोग भगवान सूर्य की पूजा करते हैं स्नान करते हैं और दानकुनी भी करते हैं।

मकर संक्रांति की  विविधता और महत्व  ही इसे भारतीय संस्कृति का सबसे प्रमुख त्यौहार बनाता है जो संपूर्ण विश्व के कल्याण के लिए भारतीय संस्कृति मनाती है भले ही विदेशी लोग इसे नहीं मनाते हो।

मकर संक्रांति का संबंध प्रकाश के प्रभुत्व से है ज्ञान के सृजन से है ऊर्जा के सृजन से है इसलिए यह त्यौहार भारतीय संस्कृति में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रखता है और विश्व कल्याण के लिए संपूर्ण विश्व में मनाया जाना चाहिए।

FAQ

प्रश्न- मकर संक्रांति 2024 में किस दिन है?

उत्तर – 2025 में 15 जनवरी के दिन मनाई जायेगी ।

प्रश्न- मकर संक्रांति के दिन दान का क्या महत्व है?

उत्तर – इन दिन गंगा में स्नान करने व दान देने से सौ गुना ज्यादा फल मिलता है?

प्रश्न- इस दिन किस देवता की पूजा की जाती है?

उत्तर – सूर्य देव की पूजा अर्चना की जाती है?