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वैद्यनाथ धाम ज्योतिर्लिंग मंदिर का महत्व व कथा का रहस्य | Baidyanath Dham Temple jyotirlinga History in Hindi

श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। वैद्यनाथ मंदिर में भगवान शिव का 9 वां ज्योतिर्लिंग श्री बैद्यनाथ जी के रूप में स्थापित है। सावन के महीने में जहां लाखों श्रद्धालु कांवड़ यात्रा करने आते हैं और भगवान वैद्यनाथ जी को जल अर्पित करते हैं।

श्री वैद्यनाथ धाम ज्योतिर्लिंग मंदिर हिंदुओं का प्रमुख एवं प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा आराधना बाबा वैद्यनाथ के रूप में की जाती है।यह मंदिर भारत के झारखंड राज्य के देवघर पर स्थित है, सिद्ध पीठ होने की वजह से यहां भक्तों की मुरादे जल्दी पूरी होती हैं इसलिए इस ज्योतिर्लिंग को “कामना लिंग” भी कहते हैं।

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शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों की गणना में श्री बैजनाथ धाम ज्योतिर्लिंग को नौवां स्थान प्राप्त है। इस बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का इतिहास और पौराणिक कथा दशकंधर रावण से जुड़ी हुई है।

भगवान शिव का वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग माता सती के 52 शक्तिपीठों में से भी एक है जहां माता सती का ह्रदय गिरा था इसलिए इस शक्तिपीठ को हार्दपीठ के नाम से भी जाना जाता है। तो चलिए आज इस लेख के जरिए हम आपको भगवान बैधनाथ ज्योतिर्लिंग के विषय में संपूर्ण जानकारी प्रदान करेंगे।

वैद्यनाथ धाम ज्योतिर्लिंग मंदिर का इतिहास (Baidyanath Dham Temple History, facts, story Hindi)

भारतीय पुराणों के अनुसार लोक कल्याण एवं प्रकृति कल्याण के लिए भगवान शिव 12 जगहों पर प्रकट हुए और लिंग के रूप में विराजमान रहे, उन 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग भी है जो नौवां प्रमुख ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाता है।

वैद्यनाथ धाम ज्योतिर्लिंग मंदिर का इतिहास

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग कहां स्थित है?

भारत में बैद्यनाथ नाम से तीन मंदिर स्थित है एक झारखंड के  देवगढ़ जिले में स्थित है, दूसरा महाराष्ट्र स्थित है, और तीसरा हिमांचल प्रदेश में स्थित है, वैद्यनाथ मंदिर विवादित बना हुआ है, शिव महापुराण के अनुसार वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना महादेव के परम भक्त महा पराक्रमी राक्षस राज रावण ने की थी। राक्षस राज रावण महादेव को कैलाश पर्वत से लंका ले जाना चाहता था ताकि वह अपना सारा जीवन भगवान की आराधना में बिता सकें।

वैद्यनाथ धाम ज्योतिर्लिंग मंदिर का महत्व-

देवघर को देवी देवताओं का घर कहा जाता है यहां हर साल सावन में बहुत बड़ा श्रावणी मेला लगता है और यहां लाखों शिवभक्तों एवं काँवरियों की भीड़ सुल्तानगंज से गंगा जल भर कर 108 किलोमीटर पैदल यात्रा करके भगवान शिव को जल अर्पित करते हैं। बैधनाथ धाम की यात्रा श्रावण माह से शुरु होकर भाद्रमास तक लगातार चलती रहती है

बाबा बैद्यनाथ ज्योर्तिलिंग मंदिर के बगल में एक विशाल तालाब है जिसके आस पास बहुत सारे मंदिर बने हुए हैं और यहां शिव मंदिर माता पार्वती के मंदिर से जुड़ा हुआ है पुराणों के अनुसार कहा जाता है। कि वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर के बाद वासुकी नाथ शिव मंदिर दर्शन किए जाते हैं जोकि देवघर से 42 किलोमीटर एक छोटे से गांव में स्थित है।

शिव के सुरक्षाकवच पंचशूल का महत्व

इस प्रसिद्ध वैद्यनाथ धाम के परिसर के सभी मंदिरों (शिव पार्वती, लक्ष्मी नारायण मंदिर) के शिखरों पर त्रिशूल की जगह पंचशूल लगा हुआ है जिसे एक अजय शक्ति माना जाता है जोकि एक सुरक्षा कवच की तरह है।
इस प्रकार का पंचशूल रावण ने अपनी लंका की सुरक्षा के लिये चारों ओर लगवाया था। इस विद्या का ज्ञान रावण को राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य से हुुआ था। यह इतना शक्तिशाली था कि भगवान राम भी इसे भेद नहीं पा रहे थे तो विभिषण ने इस रहस्य को उजागर किया था।

यह पंचशूल प्रतिवर्ष शिवरात्री के दो दिन पहले उतारकर इसकी विशेष पूजा की जाती है इस दौरान लाखों श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है इस पंचशूल को स्पर्श करके श्रद्धालु आर्शीवाद प्राप्त करते हैं। पूजा के उपरांत इन सभी को शिखरों पर पुनः लगा दिया जाता है। इस पूजा में शिव एवं पार्वती के मंदिरों के गठबंधन को हटाकर नया गठबंधन भी किया जाता है।

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर की जानकारी (Baidyanath Dham Temple history hindi)

बैद्यनाथ मंदिर जिस जगह स्थित है उस स्थान को देवघर कहा जाता है अर्थात देवताओं का घर कहा जाता है देवघर में बाबा भोलेनाथ का पवित्र एवं भव्य मंदिर स्थित है। यहां पर हर साल सावन के महीने में श्रावण मेरा लगता है जिसमें लाखों श्रद्धालु बोल बम का जयकारा लगाते हुए दर्शन को आते हैं।

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यह सभी श्रद्धालु अत्यंत कठिन पैदल यात्रा कर सुल्तानगंज से पवित्र गंगाजल लेकर बाबा को चढ़ाते हैं वैद्यनाथ की पवित्र यात्रा श्रावण मास में शुरू होती और सभी श्रद्धालु सुजानगंज से पवित्र गंगाजल अपने-अपने कांवर में भरकर बाबा बैद्यनाथ धाम चढ़ाने को जाते हैं एवं पवित्र गंगाजल ले जाते हुए सभी श्रद्धालु यह ध्यान रखते हैं कि जिस पात्र में गंगाजल है वह भूमि से ना सके, 1757 प्लासी के युद्ध के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों का ध्यान इस मंदिर पर पड़ा।

एक अंग्रेजी अधिकारी किटिंग ने अपने कुछ आदमियों को मंदिर का शासन प्रबंध देखने के  लिए भेजा अंग्रेजी कलेक्टर मिनिस्टर कीटिंग 1788 में  स्वयं बाबा धाम आए और उन्होंने पुजारी के प्रत्यक्ष हस्तक्षेप को जबरदस्ती बलपूर्वक बंद करवा दिया। मंदिर की सभी नियंत्रण की जिम्मेदारी सर्वोच्च पुजारी को सौंप दी।

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वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की कहानी व पौराणिक कथा-

राक्षस राज रावण एक समय कैलाश पर्वत पर भगवान शिव की भक्ति भाव से आराधना कर रहा था, बहुत दिनों तक आराधना करने पर जब भगवान शिव नहीं प्रसन्न हुए तब पुनः वह दूसरी विधि से तब साधना करने लगा हिमालय पर्वत से दक्षिण की ओर सघन वृक्षों से भरे जंगल में पृथ्वी को खोदकर एक गड्ढा तैयार किया उस गड्ढे में अग्नि की आस्थापना करके हवन प्रारंभ किया रावण ने कई तरीकों से अत्यंत कठिन तपस्या की इतने कठोर तपस्या से भी भगवान शिव प्रसन्न नहीं हुए कठिन तपस्या से जब रावण को सिद्धि नहीं प्राप्त हुई तब रावण अपना एक-एक सिर काटकर शिव की पूजा करने लगा।

शास्त्र विधि सेवा पूजा करता और उसके बाद अपना एक सिर काटकर भगवान को समर्पित करता इस प्रकार उसने 9 मस्तक अपना काट डाले जब वह अपना अंतिम मस्तक काटने ही वाला था तभी भगवान शिव उस पर प्रसन्न होकर प्रकट हुए और साक्षात प्रकट होते ही रावण के पूर्ववत मस्तक जोड़ दिए।

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 भगवान ने राक्षस राज रावण को बाला पर पराक्रम प्रदान किया भगवान शिव का प्रसाद करके नतमस्तक होकर विनम्र भाव से हाथ जोड़कर कहां-‘देवेश्वर! आप मुझ पर प्रसन्न होइए, मैं आपको लंका ले जाना चाहता हूं मेरी मनोरथ सिद्ध कीजिए’।

रावण के इस कथन को सुनकर भगवान शिव असमंजस में पड़ गए और कहां-राक्षस राज तुम मेरे इस उत्तम लिंग को भक्ति भाव पूर्वक अपनी राजधानी ले जाओ, किंतु ध्यान रखना रास्ते में इसे यदि पृथ्वी पर रखोगे तो यह वही आंचल हो जाएगा भगवान शिव द्वारा ऐसा कहने पर राक्षस राज रावण ने स्वीकार कर लिया और उस शिवलिंग को लेकर अपनी राजनीति और चल दिया।

भगवान शिव की माया शक्ति के प्रभाव से रास्ते में जाते समय उसे मुत्रोंत्सर्ग की प्रबल इच्छा हुई तब शिवलिंग को एक ग्वाल के हाथ में पकड़ा कर स्वयं लघुशंका (पेशाब) करने चला गया, एक मुहूर्त बीतने के बाद शिवलिंग के भार से पीड़ित उस ग्वाल ने शिवलिंग पृथ्वी पर रख दिया पृथ्वी पर शिवलिंग रखते ही वह वही स्थिर हो गया।

लोक कल्याण एवं प्रकृति कल्याण की भावना से शिवलिंग वही स्थिर हो गया तब रावण निराश होकर अपनी राजधानी चल दिया, इंद्र आदि देवताओं और ऋषियों ने लिंग के बारे में सुनकर उन लोगों ने अति प्रसन्नता के साथ शास्त्र विधि से शिवलिंग की पूजा और स्थापना की।

इस प्रकार रावण द्वारा किए जाने वाले तपस्या के फलस्वरूप श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव हुआ जिसे देवताओं ने स्वयं प्रतिष्ठित कर पूजन किया, जो मनुष्य श्रद्धा पूर्वक भगवान श्री वैद्यनाथ जी का अभिषेक करता है। उसका शारीरिक और मानसिक रोग अति शीघ्र नष्ट हो जाता है इसलिए श्री वैद्यनाथ धाम में लाखों की संख्या में दर्शनार्थियों की भीड़ दिखाई देती है। (source)

FAQ

सुल्तानगंज से देवघर के वैद्यनाथ धाम कितनी दूर है?

सुल्तानगंज से वैद्यनाथ की दूरी 108 किमी पर है यह वह स्थान है जहां से हर वर्ष शिवभक्त कांवर लेकर अपनी पैदलयात्र का आरंभ करते है और पवित्र गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करते हैं।

वैद्यनाथ धाम का ज्योर्तिलिंग किस राज्य में पड़ता है

बारह ज्योर्तिलिंग में नौवा धाम वैद्यनाथ है जोकि झारखंड के देवघर में स्थापित है।

वैद्यनाथ धाम कैसे पहुंचे?

वैद्यनाथ धाम झारखंड के देवधर में स्थापित एक प्रमुख ज्योर्तिलिंग मंदिर है यह देश के प्रमुख नगरों से अच्छी प्रकार से जुड़ा हुआ है यहां आप रेलमार्ग, हवाईमार्ग एवं सड़कमार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां का निकटतम हवाई अड्डा लोकनायक जयप्रकाश, पटना से 274 किमी की दूरी पर है और निकटतम रेलवे स्टेशन जसीडीह जंक्शन केवल 7 किलोमीटर की दूरी पर ही है जोकि देश के प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।

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