त्र्यंबकेश्वर मंदिर का रहस्य, त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग कहां स्थित है facts and Mystery of Trimbakeshwar Temple in Hindi
त्र्यंबकेश्वर मंदिर हिंदुओं के पवित्र और प्रसिद्ध तीर्थ स्थल में से एक है। यह भारत में स्थित भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में 10वां स्थान रखता है। यह मंदिर भारत के महाराष्ट्र राज्य के नासिक जिले से करीब 35 किलोमीटर की दूरी पर गौतमी नदी के तट पर स्थित है।
इस मंदिर की खासियत है कि यह सदाशिव, ब्रह्मा विष्णु भगवान के तीन लिंगों के रुपों में त्रिदेव विद्यमान है। जिनके दर्शन मात्र से त्रिदेव की पूजा का फल मिलता है और मोक्षद्वार खुल जाते हैं। इसके अलावा इस मंदिर के निकट तीन पर्वत है जिसमें 1- ब्रह्मगिरी पर्वत 2- नीलगीरी पर्वत 3 गंगाद्वार पर्वत है। यह भगवान शिव के स्वयभूं ज्योतिर्लिंग मंदिर होने के कारण तथा अपनी पौराणिक महत्ता एवं भव्यता से हर वक्त सुर्खियों में रहता है। आइये जानते है त्र्यंबकेश्वर र्ज्योतिलिंग महादेव के रहस्यों एवं इससे जुड़ी पौराणिक कथा व मान्यताओं के बारे में।
आईये इन्हें भी जानें शिव के 12 ज्योतिर्लिंग के नाम व कहां-कहां स्थित हैं ।
विषय–सूची
त्र्यंबकेश्वर (ज्योतिर्लिंग) मंदिर का महत्व एवं पौराणिक मान्यताएं (Mystery of Trimbakeshwar Temple in Hindi)
त्र्यंबकेश्वर मंदिर का निर्माणः-
इस प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण नानासाहेब पेशवा ने करवाया था। भगवान शिव के इस ज्योतिर्लिंग का निर्माण 1755 से शुरू हुआ था। जो 1786 तक पूर्ण किया गया था। लेखों के अनुसार इस प्रसिद्ध, भव्य तथा आकर्षित मंदिर का निर्माण कार्य के लिए लगभग 18 लाख खर्च किए गए थे। कहा जाता है कि त्र्यंबकेश्वर मंदिर का निर्माण काले पत्थरों से किया गया है, इस मंदिर का निर्माण कार्य बहुत ही अद्भुत, अनोखी तथा आकर्षित है। यह मंदिर का भव्य इमारत सिंधु आर्यशैली का अद्भुत उदाहरण है। इस मंदिर के गर्भगृह में से देखने के पश्चात सिर्फ आंख ही दिखाई देती है, ना की लिंग। यदि ध्यानपूर्वक देखा जाए तो 1 इंच के तीन लिंग दिखाई देते हैं, जिसे त्रिदेव लिंग कहा जाता है,जो ब्रह्मा विष्णु महेश का अवतार माना जाता है।
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की मान्यताएंः-
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक होने के कारण इसे अन्य ज्योतिर्लिंग की तरह पवित्र और वास्तविक माना जाता है। त्र्यंबकेश्वर मंदिर हिंदू धर्म की वंशावली का पंजीकरण माना जाता है। इस मंदिर में वंशावली पंजीकरण के साथ ही इस मंदिर के पंचकोशी में काल सर्प शांति ,त्रिपिंडी विधि और नारायण नागवली विधि आदि भी करवाई जाती है। यह आयोजन भत्तफ़ों द्वारा अपनी मनोकामना पूरी या अपनी इच्छा पूर्ण होने के बाद किया जाता है। त्र्यंबकेश्वर मंदिर भगवान शिव की मंदिर होने के कारण इस मंदिर से लाखों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। इस मंदिर में ब्रह्मा, विष्णु, और शिव एक ही स्वरूप में विराजित है, जिस कारण इसे त्रिदेव स्वयं विराजित मंदिर कहा जाता है। भगवान शिव की मंदिर होने के कारण यह हिंदू धर्म की मान्यता कही जाती है। कहां जाता है इस स्थल पर मां गंगा जी ने पुनः अवतार लिया था।
त्र्यंबकेश्वर महादेव की साही सवारी एवं पूजनः-
त्र्यंबकेश्वर मंदिर की पूजन विधि में उज्जैन और ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग की भांति =बंकेश्वर महादेव की एक राजा की भांति प्रत्येक सोमवार को शाही सवारी निकाली जाती है त्र्यंबकेश्वर महाराज के पंचमुखी सोने के मुखोटे को पालकी में बिठा कर गांव में भ्रमण कराया जाता है। पुराणों के अनुसार कहा गया है कि, गांव में घुमाने के पश्चात कुशावर्त घाट तीर्थ में स्नान कराया जाता है।
पुराणों के अनुसार गोदावरी नदीं पहले गायब हो जाया करती थी। कुशवत कुंड वह स्थान है जहां गौतम ऋषि ने गोदावरी नदी को अपने तप के बल से एक कुशा से बांध दिया था। तभी से इस स्थान पर कुशावर्त नामक कुंड है।
इसके बाद मुखोटे को वापस मंदिर में लाकर हीरे जड़ित स्वर्ण मुकुट पहनाया जाता है। इस यात्र से एक अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है। =यंबकेश्वर मंदिर में भत्तफ़ों की भीड़ शिवरात्रि तथा सावन सोमवार के दिनों में ज्यादा देखने को मिलती है। इन दिनों में आने वाले भत्तफ़ अपने आराध्य देवता भगवान शिव जी की पूजा करने के लिए सुबह के समय स्नान करके मंदिर में दर्शन करने के लिए जाते हैं।
त्र्यंबकेश्वर मंदिर की विशेषताः-
त्र्यंबकेश्वर मंदिर भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। सभी ज्योतिर्लिंगों में से इस ज्योतिर्लिंग का अलग ही महत्व है। इस ज्योतिर्लिंग का अलग होने का कारण है कि इसमें त्रिदेव की स्थापना है जिसमें ब्रह्मा,विष्णु,महेश तीनों देव निवास करते हैं। इस मंदिर की यह विशेषता है कि इसका निर्माण कार्य बहुत ही अद्भुत अलौकिक तथा भव्य निर्माण है।
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त्र्यंबकेश्वर मंदिर का रहस्य व पौराणिक कथा (Mystery of Trimbakeshwar Jyotirlinga Temple in Hindi)
इस प्राचीन मंदिर का रहस्य महर्षि गौतम के साथ जुड़ा हुआ है। पुराणों की लेख अनुसार कहा जाता है कि, महर्षि गौतम की मठ में ब्राह्मणों तथा उनकी पत्नियों का निवास था। ब्राह्मण की पत्नियां महर्षि गौतम की पत्नी अहिल्या से किसी कारणवश नाराज थी। इस निराशा के कारण उन्होंने अपने पतियों से अनुरोध किया कि वे महर्षि गौतम को अपमान करें तथा इस आश्रम से निकाले। इस अनुरोध को स्वीकार करते हुए सभी ब्राह्मणों ने भगवान श्री गणेश जी की आराधना की। भगवान श्री गणेश जी ब्राह्मणों के द्वारा की गई श्रद्धा पूर्वक उपासना से प्रसन्न होकर उनके सामने प्रगट हुए और उनसे अपनी इच्छा पूर्वक वर मांगने का प्रस्ताव किया।
भगवान श्री गणेश का वरदानः-
भगवान श्री गणेश जी की वर मांगने की बात सुनकर सभी ब्राह्मणों ने कहा कि,यदि वह उनकी उपासना या श्रद्धा पूर्वक आराधना से प्रसन्न है तो, वे उनकी महर्षि गौतम को अपमान करने की इच्छा पूर्ण करें तथा इस आश्रम से बाहर निकाल दीजिए। भगवान श्री गणेश जी ने यह इच्छा सुनकर उन्हें समझाने का अत्यंत प्रयास किया किंतु ब्राम्हण अपनी पत्नी के कथन अनुसार अपने इस विचार पर से ना हटने का दृढ़ निश्चय किये हुए थे। उनके इस विचार से पीछे ना हटने के कारण भगवान श्री गणेश जी को उनके द्वारा मांगी गई इच्छा की पूर्ति करनी पड़ी।
इस इच्छा की पूर्ति करने हेतु भगवान श्री गणेश जी ने दुर्बल गाय का रूप धारण किया तथा महर्षि गौतम जी के खेत में चरने लगे। जब गौतम ऋषि ने दुर्बल गाय को अपने खेत में चरते हुए देखा। तो वे क्रोध में आकर उन्होंने अपना तृण उठाया और उस गाय को भगाने के लिए जैसे ही, उन्होंने तृण से गाय को स्पर्श किया। गाय जमीन पर मूर्छित होकर गिर गयी। जिससे उसकी मृत्यु हो गई। जब यह दुर्घटना ब्राह्मणों को पता चला तो सभी ब्राह्मण गौतम ऋषि का अपमान करने लगे और उन्हें आश्रम छोड़कर जाने को कहा।
यह वाक्य सुनते ही महर्षि गौतम अत्यंत दुखी होकर ब्राह्मणों से अनुरोध करने लगे की है ब्राम्हण, मुझे इस गौ हत्या पाप से बचाइए मुझे इस पाप से मुक्ति के लिए मार्ग दिखाइए। सभी ब्राह्मणों ने विचार करके। महर्षि गौतम को पृथ्वी की तीन बार पूरी परिक्रमा करने को कहा तथा इस परिक्रमा को पूर्ण करने के पश्चात एक माह तक ब्रह्मागिरी पर्वत पर व्रत रख के 101 बार परिक्रमा करने के लिए कहा। इस विचार को सुनते ही महर्षि गौतम ने अपने पाप से मुत्तिफ़ पाने के लिए यह विधि को श्रद्धा पूर्वक पूर्ण किया।
भगवान शिव का वरदानः-
श्रद्धा पूर्वक विधि को पूर्ण करने के पश्चात भगवान शिव ने प्रसन्न होकर गौतम ऋषि को दर्शन दिए। उनसे कहा कि वह अपनी इच्छा पूर्वक कोई वरदान मांग सकते हैं। ऋषि ने अपनी वॉइस इच्छा में गौ हत्या के पाप से मुत्तिफ़ पाने के लिए वरदान मांगा। यह वाक्य सुनते ही शिवजी ने बताया कि यह कोई पाप नहीं है, ब्राह्मणों के द्वारा मांगे गए वरदान को पूर्ण करने के लिए श्री गणेश जी ने यह किया था। जिसके लिए शिव जी कहते हैं, कि वह ब्राह्मणों को दंड देना चाहते हैं। तो महर्षि गौतम ने भगवान शिव जी से अनुरोध किया कि वह ऐसा ना करें क्योंकि ब्राह्मणों के कारण ही मुझे आपके दर्शन प्राप्त हुए।
वहां उपस्थित ऋषि-मुनियों एवं देवताओं ने महर्षि गौतम का समर्थन किया। आदिशंकर से उस स्थान पर सदा के लिए विराजित होने की इच्छा प्रकट की। जिसके पश्चात यह स्थान त्रिदेव एवं शिवशंभू महादेव के 10 वें ज्योतिर्लिंग त्रंबकेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है।