उत्तराखण्ड की छोटा चार धाम यात्रा में गंगोत्री धाम का का महत्व इतिहास एवं कहानी Gangotri Dham History in Hindi, Gangotri mandir ka itihas, char dham yatra name in hindi
सनातन संस्कृति के लिए गंगा नदी और गंगोत्री धाम का बहुत विशेष महत्व है – उत्तराखण्ड में स्थित चारों पवित्र धामों में केदारनाथ , बद्रीनाथ धाम के साथ-साथ यमुनोत्री और गंगोत्री की यात्रा का अपना विशेष पौराणिक महत्व है। गोमुख भागीरथी नदी का उद्गम स्थल है यह वह पवित्र स्थली है जहां भागीरथी नदीं का अवतरण हुआ।
गंगोत्री धाम हिमालय के भीतरी क्षेत्र की एक ऐसी पवित्र स्थली है जहां गंगा नदी की पावन धारा पहली बार पृथ्वी पर उतरती है।
हिंदुओं के धार्मिक पुराणों और ग्रंथों के अनुसार देवी गंगा ने कठोर तपस्या के पश्चात एक नदी का रूप लिया और महाराजा भागीरथ के पूर्वजों को उनके पापों से मुक्त किया। महाराजा भागीरथ की तपस्या से पृथ्वी पर आने के कारण गंगा जी का नाम भागीरथी पड़ा।
विषय–सूची
गंगोत्री धाम कहां स्थित है?
गंगोत्री धाम भारत के उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी जिले मैं हैं जहां से यह 100 किलोमीटर की दूरी पर उपस्थित है। इस धाम को गंगोत्री तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है जिसे गंगा का उद्गम स्थान माना जाता है। भारतीय हिंदुओं के चार धाम यात्रा में यह दूसरा पड़ाव है जबकि चार धाम यात्रा का पहला पड़ाव यमुनोत्री धाम है। यह गंगोत्री धाम भागीरथी नदी के तट पर स्थित है जो कि समुद्र तल से 3100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है जो ग्रेटर हिमालय रेंज में पड़ता है। गंगोत्री तीर्थ में गंगा का उद्गम स्रोत इस स्थान से लगभग 24 किलोमीटर दूर है जिसे गंगोत्री ग्लेशियर कहा जाता है और अनुमान लगाया जाता है कि यह 4225 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
गंगोत्री धाम का इतिहास एवं पौराणिक कथाएँ (Gangotri Dham History in Hindi)
हिंदुओं के प्रचलित पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्री रामचंद्र के पूर्वज रघुकुल के राजा भागीरथी ने अपने पूर्वजों को उनके किए गए पापों से भी मुक्त कराने के लिए एक पवित्र शिलाखंड पर ध्यान लगाकर भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। किंबदंतीयों के अनुसार रघुकुल के राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान किया था जिसमें राजाओं द्वारा अनुष्ठान के लिए जिसमें अश्व को चाराें दिशाओं में यात्रा करवायी जाने वाली थी
राजा सागर द्वारा जिस घोड़े को यज्ञ के लिये यात्रा की जाने जाने वाली थी। उसे अपने साथ लेकर राजा सागर के साठ हजार पुत्र और उनकी दूसरी रानी केसानी का पुत्र असमाजा पृथ्वी के चारों ओर निर्बाध यात्रा कर रहे थे। उस समय इंद्र देवता को ऐसा लगा कि यदि राजा सगर का यह यज्ञ सफल हो गया तो वह अपना सिंहासन खो देंगे इसलिए उन्होंने उनका यज्ञ भंग करने के लिए उस घोड़े को चुरा लिया और उसे महर्षि कपिल के आश्रम में ले जाकर बांध दिया। उस समय महर्षि कपिल कठोर ध्यान में लगे हुए थे जब उनके पुत्रों ने घोड़े को उनके आश्रम में पाया तो उन्होंने तुरंत उनके आश्रम पर आक्रमण कर दिया जिससे कि महर्षि कपिल की तपस्या भंग हो गई और उन्होंने आंखें खोलने के बाद राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को नष्ट होने का श्राप दे दिया। कहा जाता है कि राजा सगर के पोते महाराजा भगीरथ में अपने अपने इन्हीं पूर्वजों को पाप से मुक्त करके मोक्ष दिलाने के लिए देवी गंगा को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी।
उनकी कठोर तपस्या के परिणाम स्वरूप भगवान शिव उनसे काफी प्रसन्न हुए और उन्होंने उनके पूर्वजों को पाप से मुक्त करने के लिए गंगा माता को पृथ्वी पर उतरने का आदेश दिया।
गंगा माता की तीव्र और प्रचंड धाराओं को नियंत्रित करने के लिए भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटा में उतारा फिर उसके बाद वह पृथ्वी पर आई।
आइये जाने – उत्तराखण्ड की छोटा चार धाम के इतिहास बारे में जानकारी
गंगोत्री मंदिर का निर्माण –
वर्तमान समय में गंगोत्री मंदिर का नवीनीकरण जयपुर के राजघराने से कराया गया था जबकि इस मंदिर का निर्माण गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा के द्वारा 18वीं शताब्दी के दौरान करवाया गया था।
गंगोत्री धाम के विभिन्न दर्शनीय स्थल –
गंगोत्री धाम में विभिन्न प्रकार के दर्शनीय स्थल विराजमान है जहां श्रद्धालु आकर पूजा अर्चना करते हैं साथ ही साथ इस धाम में कई कुंड भी बनाए गए हैं
गंगा मंदिर –
गंगा मंदिर गंगोत्री धाम में उपस्थित पूजनीय स्थलों में से सबसे प्रमुख है इस स्थान पर देवी गंगा की मूर्ति स्थापित की गई है कहा जाता है कि इसे शंकराचार्य ने स्थापित किया था
साथ ही साथ इस मंदिर में शंकराचार्य यमुना सरस्वती जी और महाराज भगीरथ की मूर्तियां भी रखी गई है की मूर्तियां भी रखी गई हैl
इस मंदिर के पास एक भैरव मंदिर भी है इसके अलावा यहां पर 3 कुंड भी हैं जिनका नाम सूर्य कुंड, विष्णु कुंड , ब्रह्म कुंड हैl
भागीरथ शिला –
गंगा मंदिर के पास से एक शिला भी है जिसे भागीरथ शिला के नाम से जाना जाता है और इसकी पूजा की जाती हैl
कहा जाता है कि चक्रवर्ती महाराजा भागीरथ ने गंगा माता को प्रसन्न करने के लिए इसी शीला पर बैठकर उनकी तपस्या की थीl
मारकंडे क्षेत्र –
हर वर्ष ठंडी के समय पूरा गंगोत्री धाम बर्फ से ढक जाता है जिससे श्रद्धालुओं को दर्शन करने में और पूजा पाठ करने में दिक्कत होती है इसलिए यहां पर स्थित सभी चल मूर्तियों को शीत ऋतु में कुछ समय के लिए मारकंडे क्षेत्र में ले जाया जाता है कहा जाता है कि क्षेत्र मार्कंडेय ऋषि का क्षेत्र था और यही ही इन मूर्तियों की पूजा अर्चना की जाती हैl
गोमुख और ग्लेशियर –
यह वह स्थान है जहां से गंगा माता का उद्गम होता हैl इसी गोमुख के पास स्थित ग्लेशियर के नीचे से गंगा माता का उद्गम होता है यह वह स्थान है जहां हर समय हिमालय की चोटियां पिघलती रहती हैं जो बर्फ से ढकी हुई हैंl
गंगोत्री मंदिर का महत्व क्या है?
भारतीय हिंदुओं के लिए गंगोत्री धाम बहुत विशेष महत्व रखता है यह सनातन संस्कृति के मानने वाले लोगों के लिए तीर्थ क्षेत्र माना जाता है कहा जाता है कि अपने पूर्ण आयु काल में एक बार इन तीर्थ स्थलों पर पर तीर्थ जरूर करना चाहिएl
गंगोत्री मंदिर के पास एकत्रित गंगा जी के जल को अमृत के तुल्य माना जाता है और इससे सभी श्रद्धालु अपने घरों में लेकर जाते हैंl
कहा जाता है कि इसी गंगोत्री धाम में महाभारत युद्ध के दौरान पांडवों ने अपने हाथों से अपने पूर्वज और रिश्तेदारों की हत्या का प्रायश्चित करने के लिए देव यज्ञ किया था तब जाकर उन्हें इस पाप से मुक्ति मिली थीl
सर्दियों के दौरान गंगोत्री मंदिर के पश्चात शिवलिंगम जैसी एक संरचना दिखाई पड़ती है कहा जाता है कि अभय स्थान है जहां भगवान शिव ने गंगा माता को अपनी जटाओं में संकुचित करके पृथ्वी पर उतारा थाl
शाम के समय गंगोत्री मंदिर को बहुत ही भव्य तरीके से सजाया जाता है और गंगा नदी के तट पर गंगा आरती की जाती हैl गंगा आरती के समय छोटी-छोटी नावों में करके विभिन्न प्रकार के फल फूल और दीपक गंगा में विसर्जित किए जाते हैंl
मंदिर की वास्तुकला –
यह मंदिर देखने में बहुत ही भव्य है जिसमें 20 फिट के पांच छोटे शिखर हैं, इसके अलावा इस मंदिर का मुंह भी पूर्व की ओर हैl मंदिर की वास्तुकला कत्यूरी शैली से मिलती-जुलती है जो काफी सरल हैl
इस आर्टिकल में हमने आपको गंगोत्री धाम से संबंधित बहुत सारी जानकारियां उपलब्ध कराएं उम्मीद करता हूं यह जानकारी आपको पसंद आई होगी।