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Hemkund Sahib Yatra 2023 : हेमकुंड साहिब की यात्रा कैसे करें और इसका इतिहास एवं मान्यता | Gurdwara Hemkund Sahib History Facts in hindi

हेमकुंड साहिब की यात्रा कैसे करें 2023, कब खुलेंगे हेमकुंड साहिब के कपाट, क्या है हेमकुंड साहिब का इतिहास एवं मान्यता (Gurdwara Hemkund Sahib History Facts in hindi)

दोस्तों आज किस आर्टिकल में हम आपको हेमकुंड साहिब के बारे में बताएंगे जो सीखों का एक धार्मिक पर्यटक स्थल है और यह गुरुद्वारा सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी को समर्पित है हर साल यहां पर लाखों श्रद्धालु आते हैं।

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यह गुरुद्वारा समुंदर तट से लगभग 15 हजार 200 फिट के ऊंचाई पर उत्तराखंड के चमोली में स्थित है श्री हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा चारों ओर से‍ ग्लेशियर की चादर ताने हुए हैं जलकुंड का निर्माण इसी ग्लेशियर के बर्फीले पानी से होता है इसे ही हम हेमकुंड यानी बर्फ के कुएं के नाम से जानते हैं।

देवभूमि उत्तराखंड़ में छोटे चार धाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री व यमोंत्री जैसे तीर्थ स्थल भी मौजूद है जहां लाखों के संख्यां में श्रद्धालु दर्शन करने जाते हैं।

विषय–सूची

कब खुलेंगे हेमकुंड साहिब के कपाट 2023?

हेमकुंड साहिब एक बहुत ही पवित्र स्थल है और इसके कपाट खुल चुके हैं इस पवित्र स्थल के कपाट 20 मई 2023 को खुल गए थे सेना के जवानों की तैनाती 20 मई से यहां पर शुरू कर दी गई थी और दर्शन करने का समय 12:00 से लेकर 10:00 बजे तक का होता है और वह यहां से बर्फ हटाने का कार्य शुरू कर देंगे हर साल यहां पर दर्शन करने के लिए लाखों श्रद्धालु आते है।

क्र.सं.हेमकुंड साहिब2023 में हेमकुंड साहिब खुलने की तारीख
1.हेमकुंड साहिब20 मई 2023
दर्शन करने का समय12:00 से लेकर 10:00
2.हेमकुंड साहिब2023 में हेमकुंड साहिब कपाट बंद की तारीख
10 अक्टूबर 2023
Gurdwara-Hemkund-Sahib-Yatra

गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब की जानकारी

हेमकुंड साहिब क्या हैसिखों का प्रमुख गुरुद्वारा व तीर्थ स्थान
हेमकुंड साहिब कहा है?चमौली जिला, उत्तराखंड
हेमकुंड साहिब किसको समर्पित है?सिख धर्म के 10वें गुरु गोविंदजी
यात्रा का सहीं समय व मौसममई माह से अक्टूबर तक
समुद्र तल से ऊंचाई15200 फीट
निकटतम हवाई अड्डा334 किमी दूर – जोलीग्रांट एयरपोर्ट (देहरादून),
निकटतम रेलवे स्टेशन334 किमी दूर – ऋषिकेश
Websiteshrihemkuntsahib.com

श्री हेमकुंड साहिब का इतिहास

  • यह हेमकुंड साहिब उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है यह  गुरुद्वारा अपने आप में एक बहुत ही अद्भुत और सुंदर गुरुद्वारा है और यह गुरुद्वारा सिखों के सभी पवित्र स्थानों में से एक है यहां पर गुरु गोविंद सिंह जी जो कि सिखों के 10 में और अंतिम गुरु थे उन्होंने यहां पर अपने पिछले जीवन का अध्ययन किया था और अपना वर्तमान जीवन व्यतीत किया था।
  • यह जगह बहुत ही पवित्र एवं मन को लुभा लेने वाली जगह है और आसपास के लोगों की भी यहां पर अनंत श्रद्धा है यहां पर एक बहुत ही सुंदर झील है और इसके आसपास मैं बसे क्षेत्र को “लोकपाल” के नाम से भी जानते हैं लोकपाल का अर्थ यानी लोगों का निर्वाह है। वास्तव में सिख समुदाय के लिए यह धरती बहुत ही पवित्र है और सिख समुदाय के इस गुरुद्वारे में अनंत श्रद्धा है।
  • लेकिन यहां पर जाने वाले श्रद्धालुओं को बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है क्योंकि हिमालय की बर्फ हेमकुंड जाने वाले सभी मार्गों को रोक देती है और यहां का तापमान बहुत ही कम रहता है इसी कारण यहां पर जाने वाले श्रद्धालुओं को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

श्री हेमकुंड साहिब की कुछ प्रमुख बातें।

जब भी भारत की पवित्र धरती पर खूबसूरती की बात आती है तो सबसे पहले कश्मीर का ही जिक्र किया जाता है लेकिन कश्मीर के अलावा भी भारत में और बहुत सारी जगह देखने लायक है और यह जगह जन्नत से कम नहीं है जन्नत से मेरा मतलब कश्मीर नहीं है।

जन्नत है यहां पर मेरा मतलब है सिखों के अटूट विश्वास से सुंदरता की मिसाल को कायम रखने वाला श्री हेमकुंड साहिब गुरुद्वारे का जिक्र कर रहा हूं यह गुरुद्वारा उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है श्री हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा 15200 फिट के ऊंचाई पर बना है और इस गुरुद्वारे के कपाट साल में 6 महीने ही खुलते हैं और यहां पर श्रद्धालुओं का एक बड़ा सैलाब उमड़ता है।

यह गुरद्वारा देश के सभी प्रमुख गुरुद्वारों में से एक है और यह अपनी सुंदरता के लिए बखूबी जाना जाता है इस गुरुद्वारे के पास एक सरोवर स्थित है इस सरोवर को हम अमृत सरोवर के नाम से जानते हैं इसका मतलब है अमृत का तालाब

इस सरोवर की लंबाई 400 गज है और इसकी चौड़ाई 200 गज है और यह गुरुद्वारा हिमालय की सातों चोटियों से गिरा हुआ है और इन चोरियों का रंग मौसम के अनुसार अपने आप बदलता रहता है।

यहां पर अलग-अलग समय के अनुसार अलग-अलग रंग बदलते रहते हैं कभी लाल कभी लीला तो कभी हरा रंग यहां पर देखने को मिलता है और कभी कबानी यहां पर बर्फ की सफेद चादर भी व्हिच जाती है।

कहा जाता है कि यह पवित्र स्थल रामायण काल से ही यहां पर स्थित है और यह भी कहा जाता है कि यह वही स्थान है जहां पर लक्ष्मण जी अपना मनभावन होने के कारण यहां पर ध्यान लगाकर बैठे थे।

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गुरु गोविंद सिंह ने अपने अनुभव का उल्लेख अपने आत्मकथा विचित्र नाटक में किया है हेमकुंड साहिब के बारे में यह भी कहा जाता है कि यह जगह दो सदियों तक विलुप्त रही है इसका जिक्र गुरु गोविंद सिंह ने अपने आत्मकथा विचित्र नाटक में किया है उसके बाद यह देगा अस्तित्व में आई।

प्रमुख तीर्थ स्थल के रूप में से एक

श्री हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा भारत में प्रमुख तीर्थ स्थलों के रूप में एक है  यह पवित्र स्थल भारत की देवभूमि उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है यह एक बहुत ही प्रसिद्ध गुरुद्वारा है।

यह गुरुद्वारा सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह को (1666 -1708) समर्पित है गुरुजी ने इसका जिक्र दसम ग्रंथ में किया है सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार यह गुरुद्वारा हिमालय की साथ चोटियों से गिरा हुआ है और यह गुरुद्वारा 4632 मीटर की ऊंचाई पर हिमालय में स्थित है।

इन पर्वतों के 7 चोटियों पर एक निशान साहिब सजाया गया है गोविंदघाट से होते हुए यहां से बद्रीनाथ धाम और ऋषिकेश भी जाया जा सकता है गोविंद घाट के पास ही एक गांव स्थित है जिसका नाम जोशीमठ है।

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हेमकुंड एक  संस्कृत भाषा का नाम है जिसका हिंदी में अनुवाद हेम (बर्फ) और कुंड (कटोरा) है और माना जाता है कि यह वह जगह है जहां पांडु राजा प्रतिदिन योग करते थे।

और दमन ग्रंथ में यह बात भी लिखी गई है कि जब पांडव यहां गौर ध्यान साधना में लीन थे तब भगवान ने उन्हें सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह के रूप में जन्म लेने का आदेश दिया।

हेमकुंड की खोज करने वाला व्यक्ति

हेमकुंड गुरुद्वारे की भौगोलिक परिस्थिति का पता लगाने वाले पहले शख्स पंडित तारा सिंह नरोत्तम थे यह सिख समुदाय से थे पंडित तारा सिंह जी ने 508 सिखों के पवित्र स्थानों में से हेमकुंड को उनमें से एक बताया है।

श्री हेमकुंड साहिब की खोज

प्रसिद्ध सिख विद्वान भाई वीर सिंह ने हेमकुंड साहिब की खोज मैं महत्वपूर्ण भूमिका अदा की भाई वीर सिंह राणा जी का संपूर्ण वर्णन पढ़कर सत सोहन जी नामक एक रिटायर्ड आर्मी मैन थे इन्होंने हेमकुंड साहिब को खोजने का निर्णय लिया आखिरकार उन्होंने 1934 में सफलता हासिल कर ली।

आसपास के लोगों के से पूछताछ के बाद और कुछ अन्य जानकारी एकत्रित करने के बाद सत साहिब ने वह जगह खोजली जहां पर पांडव ने बैठकर तपस्या की थी और साथ ही साथ उन्होंने उस दिल को भी खोज लिया जो कि जो कि लोकपाला के नाम से जानी जाती है।

श्री हेमकुंड साहिब जी की संरचना

गुरु ग्रंथ साहिब को 1937 में यहां पर स्थापित किया गया यह गुरुद्वारा दुनिया में सबसे ज्यादा माने जाने वाला गुरुद्वारा है और यहां पर श्रद्धालु अपने अनंत शरदा लेकर आते हैं सत सोहन जी ने 1939 मैं अपनी मौत से पहले हेमकुंड साहिब के गुरुद्वारे का काम मोहन सिंह जी के हाथों में दे दिया।

गोविंद सिंह जी ने इस गुरुद्वारे का संचालन बहुत ही अच्छे ढंग से किया और 1960 में उनका देहांत हो गया लेकिन उनके देहांत से पहले उन्होंने 7 लोगों की एक कमेटी बनाई और इस पवित्र तीर्थ यात्रा के निगरानी उन्हें सौंप दी पर आने वाले सभी श्रद्धालुओं को भोजन और आवास की सुविधा इस कमेटी ने उपलब्ध करवाई।

गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब जी की यात्रा

ऋषिकेश से श्री हेमकुंड साहिब का पहला पड़ाव शुरू होता है श्रद्धालु यहां पर रात्रि को विश्राम करके वह भोजन करके सुबह अपनी यात्रा को आरंभ करते हैं यात्रियों की सुविधा का तमाम इंतजाम यहां श्री हेमकुंड साहिब ट्रस्ट की ओर से किया गया है यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ता।

इसके बाद गोविंदगढ़ से यात्रा का अगला पड़ाव शुरू हो जाता है जो ऋषिकेश से 300 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है देवप्रयाग इस रास्ते में सबसे पहले आता है और बाद में अलकनंदा और भागीरथी तो पवित्र नदियां मिलकर गंगा का निर्माण करती है।

इसके बाद कर्ण प्रयाग, रुद्र प्रयाग, और फिर जोशीमठ प्रयाग, और विष्णु प्रयाग, से होती हुई श्रद्धालुओं की यात्रा गोविंदघाट पहुंचती है रस्ते में श्रद्धालुओं के लिए सभी ग्रुपों में भोजन पानी का अच्छा इंतजाम किया गया होता है इसमें श्रद्धालुओं को बिना कुछ खर्च किए उनकी यात्रा अच्छे ढंग से हो जाती है।

दूसरे दिन गोविंदघाट से विश्राम कर लेने के बाद तीर्थ यात्रा का अगला पड़ाव चालू हो जाता है 19 किलोमीटर की दूरी पर है यहां से हेमकुंड साहिब पड़ता है यह दूरियां पैदल चलकर या घोड़ों पर सवार होकर क्या कर सकते हैं ग्लेशियर के अंतिम 3 किलोमीटर का हिस्सा आपको पैदल ही तय करना होता है।

हटे कट्टे आदमी या फिर कहा जाए तो सक्षम आदमी यह दूरी एक ही दिन में तय कर लेते हैं तो कुछ यात्री अपनी सुविधा के अनुसार 13 किलोमीटर गोविंद धाम से जाते जाते समय रात्रि विश्राम कर लेते हैं हेलीकॉप्टर की भी सेवा गोविंदघाट से गोविंद धाम तक उपलब्ध कराई गई है।

गोविंद धाम के आगे का रास्ता आपको पैदल चलकर या 4 किलोमीटर घोड़ों पर चलकर तय करना होता है और बाकी का बचा हुआ रास्ता आपको पैदल ही तय करना होता है।

गोविंद घाट तक जाने का रास्ता बहुत ही अच्छा है वहां तक आप अपनी गाड़ी लेकर जा सकते हैं या कोई भी मस्त लेकर जा सकते हैं लेकिन गोविंदगढ़ से आगे आप अपना कोई भी प्राइवेट व्हीकल नहीं ले जा सकते क्योंकि गोविंदघाट से घांघरिया तक की 13 किलोमीटर की चढ़ाई एकदम खड़ी चढ़ाई है और वही उससे आगे 6 किलोमीटर का सफर और भी कठिन हो जाता है।

ट्रैकिंग करते हुए कैसे पहुंचे?

  • ट्रैकिंग करते हुए आपको अलकनंदा नदी को पार करके गोविंदघाट पहुंच जाओगे इसके बाद आपका टेढ़ा मेढ़ा रास्ता खत्म हो जाता है  और सीधा हो जाता है जो कि नीचे जाती हुई घाटी की ओर जाता है यहां पर आपको खेत खलियान और कुछ पेड़ पौधे देखने को मिल जाएंगे
  • 3 किलोमीटर आगे चलने के बाद गंगा और लक्ष्मण नदी आपस में मिलकर जो आगे जाकर अलकनंदा में मिल जाती है आगे जाकर एक छोटा सा गांव है जिसका नाम पुलना है पर इसके बाद का रास्ता आपके लिए बहुत ही रोमांचक हो जाता है इस रास्ते में आपको पथरीले पहाड़ और बर्फ से ढकी हुई चोटियों का सामना करना पड़ता है।
  • पुलना से भयंदर गांव के बीच का सफर 7 किलोमीटर का है यह सफर बहुत ही खूबसूरत है और यहां पर आपको प्राकृतिक का अच्छा सुंदर या देखने को मिल जाता है इस रास्ते में आपको कई सारे सुंदर झरने देखने को मिल जाते हैं 2 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद आपको घांघरिया बेसकैंप मिल जाता है यहां से आगे वैली ऑफ फ्लावर और हेमकुंड साहिब जाने का रास्ता निकल जाता है।
  • गागरिया और हेमकुंड साहिब के बीच की दूरी 6 किलोमीटर है लेकिन पहाड़ों के कठिन मार्ग की वजह से इस दूरी को तय करने में हमें अधिक से अधिक समय लग जाता है।

इस तरीके से पहुंचे…

थोड़ी ही दूरी पर देहरादून का जाली ग्रांट एयरपोर्ट स्थित है गोविंदघाट से जाली ग्रांट की दूरी लगभग 292 किलोमीटर है यहां से गोविंदगढ़ पहुंचने के लिए आप बस या टैक्सी का प्रयोग कर सकते हैं गोविंदगढ़ से हेमकुंड जाने के लिए हमें 19 किलोमीटर की चढ़ाई करनी पड़ती है

ऋषिकेश में हेमकुंड साहिब का नजदीकी रेलमार्ग है गोविंदगढ़ से इसकी दूरी 273 किलोमीटर है आप ऋषिकेश से टैक्सी या बस के जरिए श्रीनगर रुद्रप्रयाग, चमेली और जोशीमठ होते हुए आप गोविंदघाट की यात्रा को आराम से कर लेंगे।

हेमकुंड की यात्रा की सड़कमार्ग से दूरी

हेमकुंड की यात्रा की शुरुआत हरिद्वार, ऋषिकेश व देहरादून से हो जाती है इसके लिये आपको गोविंदघाट पहुंचना होता है। सड़कमार्ग से इसकी दूरी नीचे सूची में दी गई है।

स्थानदूरी
गोविंदघाट – हेमकुंड 6 किमी
हरिद्वार – हेमकुंड 316 किमी
ऋषिकेश – हेमकुंड 295 किमी
देहरादून – हेमकुंड 316 किमी
दिल्ली से हेमकुंड 518 किमी
गाजियाबाद – हेमकुंड 497 किमी
मेरठ – हेमकुंड 466 किमी
चंडीगढ – हेमकुंड 493 किमी
लुधियाना – हेमकुंड 576 किमी
अमृतसर – हेमकुंड 717 किमी
जालंधर – हेमकुंड 637 किमी
शिमला – हेमकुंड 554 किमी
जयपुर – हेमकुंड 791 किमी

निष्कर्ष (Conclusion)

तो दोस्तों आज कैश आर्टिकल में मैंने आपको श्री हेमकुंड साहिब जाने की संपूर्ण जानकारी से अवगत कराया अगर आप भी हेमकुंड जाना चाहते हैं तो हमारी दी गई जानकारियों को अवश्य फॉलो करें हमने इस आर्टिकल में हेमकुंड की यात्रा का भी विस्तार से वर्णन किया है तो आप हमारे इस आर्टिकल को ध्यानपूर्वक पढ़ें।

और अगर आपको हमारा यह आर्टिकल पसंद आया है तो इसे लाइक शेयर कमेंट अवश्य करें और साथ ही इसे अपने व्हाट्सएप ग्रुप पर शेयर करें और इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें ताकि उन्हें भी हेमकुंड जाने की संपूर्ण जानकारी मिल सके और इसे अपनी सोशल मीडिया साइट पर शेयर करना ना भूले।

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FAQ

हेमकुंड साहिब के कपाट कब खुलेंगे?

20 मई 2023 को 12 बजे से कपाट खोल दिये गये हैं।

हेमकुंड साहिब क्यों प्रसिद्ध है?

हेमकुंड साहिब उत्तराखंड के चमोली जिले में 15000 फीट पर स्थित है इस स्थान के बारे में सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि उन्होंने अपने पिछले जन्म में यहां पर तपस्या की है। यह स्थान गुरु गोविंद सिंह जा को समर्पित सिखों का प्रमुख तीर्थ स्थल हैं।

हेमकुंड यात्रा कब से शुरु हो रही हैं?

2023 में हेमकुंड गुरुद्वारे के कपाट 20 मई को खुल गये है तभी से यात्रा शुरु हो गई है।

हेमकुंड यात्रा कैसे शुरु करें?

आप रेलमार्ग, सड़कमार्ग व हवाईजहाज से यात्र आरंभ कर सकते हैं। हेमकुंड यात्र के लिये आपको गोविंदघाट पहुंचना होता है इसके लिये आपकों देहरादून, हरिद्वार ऋषिकेष जाना पड़ेगा यहां से आपको गोविंदघाट के लिये बस, टैक्सी आसानी से उपलब्ध हो जाएगी। यह ऋषिकेष से 266 किलोमीटर दूर है जिसका सफर लगभग 8 से 10 घंटे का हैं।

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