केदारनाथ मंदिर कहां पर स्थित है? इतिहास, महत्व, रहस्य व पौराणिक कथा, कहानी (Kedarnath Temple history in hindi, Kedarnath ki pouranik katha, stroy in hindi, facts about kedarnath temple hindi)
आज का हमारा यह आर्टिकल भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक श्री केदारनाथ मंदिर पर आधारित है। इस आर्टिकल में हम आपको केदारनाथ मंदिर का इतिहास (Kedarnath Temple history in hindi) और अन्य मुख्य बातो से संबंधित जानकारी देंगे।
जब भी भारत के तीर्थ स्थलों का नाम लिया जाता है तो उसमें केदारनाथ धाम का नाम मुख्य रूप से लिया जाता है। भगवान शिव का यह भव्य ज्योतिर्लिंग धाम हिमालय की गोद में उत्तराखंड में स्थित है। भगवान शिव का यह केदारनाथ धाम केवल भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग की श्रृंखला में ही नहीं बल्कि भारत और उत्तराखंड के चार धाम और पंच केदार की श्रृंखला में भी गिना जाता है।
कहा जाता है कि केदारनाथ मंदिर का इतिहास पांडवों से जुड़ा हुआ है जिसका निर्माण पांडव वंश के जन्मेजय ने करवाया था लेकिन कुछ मान्यताएं ऐसी भी हैं कि भगवान शिव के इस भव्य धाम की स्थापना आदिगुरु शंकराचार्य नके द्वारा की गई थी। हालांकि केदारनाथ का इतिहास क्या है? इस लेख में हम इस बात पर पूरी चर्चा करेंगे।
केदारनाथ मंदिर पौराणिक सनातन सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक है और स्थल हिंदू धर्म में बहुत ही महत्व रखता है। केदारनाथ मंदिर से हिंदुओं की आस्था जुड़ी हुई है। आइए केदारनाथ मंदिर का इतिहास और उससे जुड़ी अन्य बातें जानते हैं।
विषय–सूची
केदारनाथ मंदिर का इतिहास, महत्व (Kedarnath Temple history in hindi)
केदारनाथ मंदिर कहां है और केदारनाथ मंदिर का निर्माण किसने और कब करवाया था?
केदारनाथ मंदिर हिंदू धर्म में प्रचलित है तथा यह मंदिर भारत के राज्य उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है। केदारनाथ मंदिर हिमालय पर्वत की गोद में स्थित 12 ज्योतिर्लिंग में शामिल है। इस मंदिर का निर्माण कत्यूरी शैली से किया गया है और इसके निर्माता पांडव वंश जनमेजय है। केदारनाथ मंदिर का निर्माण द्वापर युग में हुआ था। इस मंदिर में स्थित स्वयंभू शिवलिंग बहुत ही प्रचलित एवं प्राचीन है।
केदारनाथ मंदिर के इतिहास की बात की जाए तो यह मंदिर बहुत ही प्राचीन है और विद्वानों एवं ऋषियों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 80वीं शताब्दी में द्वापर युग के समय हुआ था।
इस मंदिर के चारों ओर बर्फ के पहाड़ हैं। केदारनाथ मंदिर मुख्य रूप से पांच नदियों के संगम का मुख्य धाम माना जाता है और यह नदियां मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी है।
ऐसी मान्यताएं हैं कि ब्राम्हण गुरु शंकराचार्य के समय से ही स्वत: उत्पन्न हुए इस शिवलिंग की आराधना करते हैं।
केदारनाथ मंदिर के समक्ष मंदिर के पुरोहित एवं यजमानों तथा तीर्थ यात्रियों के लिए धर्मशाला उपस्थित है। मंदिर के मुख्य पुजारी के लिए मंदिर के आसपास भवन बना हुआ है।
केदारनाथ मंदिर का निर्माण व वास्तुशिल्प (kedarnath ki pouranik katha)
मंदिर के मुख्य भाग में मंडप तथा गर्भ ग्रह के चारों और प्रदक्षिणा पथ बना हुआ है। मंदिर के बाहरी हिस्से में नंदी बैल वाहन के रूप में विराजित हैं। मंदिर के मध्य भाग में श्री केदारेश्वर स्वयंभू ज्योतिर्लिंग स्थित है जिसके अग्र भाग पर भगवान गणेश जी की प्रतिमा और मां पार्वती के यंत्र का चित्र है। ज्योतिर्लिंग के ऊपरी भाग पर प्राकृतिक स्फटिक माला विराजित है। श्री ज्योतिर्लिंग के चारों और बड़े-बड़े चार स्तंभ विद्यमान हैं और यह चार स्तंभ चारों वेदों के आधार माने जाते हैं।
इन विशालकाय चार स्तंभों पर मंदिर की छत टिकी हुई है। ज्योतिर्लिंग के पश्चिमी भाग में एक अखंड दीपक विद्यमान है और हजार सालों से इसकी ज्योति का प्रकाश मंदिर की आस्था को बनाए हुए हैं। इस अखंड दीपक की ज्योति का रखरखाव मंदिर के पुरोहित सालों से करते आ रहे हैं ताकि यह अखंड दीपक की ज्योति सदैव मंदिर के भाग में और पूरे केदारनाथ धाम में अपने प्रकाश को बनाए रखें। मंदिर की दीवारों पर सुंदर एवं आकर्षक फूलों की आकृति को हस्तकला द्वारा उकेरा गया है।
केदारनाथ मंदिर की पौराणिक कथा/कहानी (Kedarnath temple story hindi)
कहा जाता है कि केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना का ऐतिहासिक आधार तब निर्मित हुआ जब एक दिन हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार एवं महातपस्वी नर और नारायण तप कर रहे थे। उनकी तपस्या से भगवान शंकर प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन दिए तथा उनकी प्रार्थना के फल स्वरूप उन्हें आशीर्वाद दिया कि वह ज्योतिर्लिंग के रूप में सदैव यहां वास करेंगे।
केदारनाथ मंदिर के बाहरी भाग में स्थित नंदी बैल के वाहन के रूप में विराजमान एवं स्थापित होने का आधार तब बना जब द्वापर युग में महाभारत के युद्ध के दौरान पांडवों की विजय पर तथा भातर हत्या के पाप से मुक्ति के लिए भगवान शंकर के दर्शन करना चाहते थे। इसके फलस्वरूप वह भगवान शंकर के पास जाना चाहते और उनका आशीर्वाद पाना चाहते थे परंतु भगवान शंकर उनसे नाराज थे।
पांडव भगवान शंकर के दर्शन के लिए काशी पहुंचे परंतु भगवान शंकर ने उन्हें वहां दर्शन नहीं दिए। इसके पश्चात पांडवों ने हिमालय जाने का फैसला किया और हिमालय तक पहुंच गए परंतु भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे इसलिए भगवान शंकर वहां से भी अंतर्ध्यान हो गए और केदार में वास किया। पांडव भी भगवान शंकर का आशीर्वाद पाने के लिए एकजुटता से और लगन से भगवान शंकर को ढूंढते ढूंढते केदार पहुंच गए।
भगवान शंकर ने केदार पहुंचकर बैल का रूप धारण कर लिया था। केदार पर बहुत सारी बैल उपस्थित थी। पांडवों को कुछ संदेह हुआ इसीलिए भीम ने अपना विशाल रूप धारण किया और दो पहाड़ों पर अपने पैर रख दिए भीम के इस रूप से भयभीत होकर बैल भीम के पैर के नीचे से दोनों पैरों में से होते हुए भागने लगे परंतु एक बैल भीम के पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं थी।
भीम बलपूर्वक उस बैल पर हावी होने लगे परंतु वेल धीरे-धीरे अंतर्ध्यान होते हुए भूमि में सम्मिलित होने लगा परंतु भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। पांडवों के इस दृढ़ संकल्प और एकजुटता से भगवान शंकर प्रसन्न हुए और तत्काल ही उन्हें दर्शन दिए। भगवान शंकर ने आशीर्वाद रूप में उन्हें पापों से मुक्ति का वरदान दिया। तब से ही नंदी बैल के रूप में भगवान शंकर की पूजा की जाती है।
क्यों कहा जाता है, पन्च केदार
ऐसी मान्यता है कि जब भगवान शंकर नंदी बैल के रूप में प्रकट हुए थे तो उनका धड़ से ऊपरी भाग काठमांडू में प्रदर्शित हुआ था तथा वहां अब पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर स्थापित है। भगवान शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, भगवान शिव का मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में तथा भगवान शंकर की जटाएं कल्पेश्वर में प्रकट हुई थी। इन्हीं विशेषताओं के फलस्वरुप श्री केदारनाथ को पंचकेदार भी कहा जाता है।
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केदारनाथ मंदिर के रोचक तथ्य (Interesting Facts about kedarnath Temple in hindi)
- स्थानीय लोगों का मानना है कि केदारनाथ मंदिर धाम के पीछे शंकराचार्य की समाधि है मान्यताओं के अनुसार गुरु शंकराचार्य ने केदारनाथ धाम में ही महा समाधि ली थी।
- 2013 में आई बाढ़ के बाद केदारनाथ धाम क्षेत्र सर्वाधिक प्रभावित हुआ था लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि इस आपदा में केदारनाथ धाम को किसी भी प्रकार की क्षति नहीं हुई शरणार्थी श्रद्धालुओं के लिए केदारनाथ धाम को पूरे 1 वर्ष के लिए बंद कर दिया गया था।
- मंदिर के सामने एक छोटा सा स्तंभ स्थित है जिस पर माता पार्वती और पांचो पांडव के चित्र अंकित है।
- प्राचीन मान्यताओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि अभिमन्यु के प्रपौत्र जन्मेजय जोकि परीक्षित के पुत्र थे उन्हीं ने केदारनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार अर्थात पुनर्निर्माण करवाया था>
400 साल बर्फ के भीतर दबा था केदारनाथ धाम –
वादिया इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन जियोलॉजी के रिपोर्ट के अनुसार ऐसा माना जाता है कि केदारनाथ मंदिर ने न केवल 2013 की बाढ़ आपदा का सामना किया बल्कि यह भी कहा जाता है केदारनाथ धाम लगभग 400 वर्षों तक बर्फ से दबा हुआ था।
रिपोर्ट के अनुसार जब13वीं शताब्दी से लेकर 14 वी शताब्दी के बीच हिम युग की शुरुआत हुई थी उस समय पूरा केदारनाथ धाम बर्फ के भीतर दबा हुआ था।
दरअसल इस बात की पुष्टि इस प्रकार हुई की इस मंदिर की दीवार पर पीली रेखाएं अंकित है जोकि लगातार ग्लेशियर के पिघलने से अंकित हुई हैं। इसी आधार पर रिपोर्ट में कहा गया कि केदारनाथ मंदिर हिम युग के दौरान 400 वर्ष तक बर्फ के नीचे दबा रहा।
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केदारनाथ मंदिर की यात्रा कैसे करें?
छोटा चार धाम यात्रा में 4 मंदिरों की यात्रा कराई जाती है जिसमें विशेष रूप से केदारनाथ मंदिर भी शामिल है। केदारनाथ मंदिर के अलावा अन्य तीन मंदिर बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री है। हर वर्ष मंदिर के दर्शन करने की तिथि तय की जाती है और यह हिंदू पंचांग के अनुसार ओंकारेश्वर मंदिर के पुरोहितों द्वारा तय की जाती है।
अक्षय तृतीया और महाशिवरात्रि के दिन पुरोहितों द्वारा केदारनाथ में स्थित स्वयंभू शिवलिंग की आराधना के लिए तिथि सुनिश्चित की जाती है।
केदारनाथ मंदिर में दर्शन का समय क्या है?
यदि आप केदारनाथ की यात्रा पर गए हैं तो आपको केदारनाथ मंदिर के दर्शन के समय का ज्ञान होना चाहिए। केदारनाथ मंदिर के दर्शन की समय प्रक्रिया इस प्रकार है-
- केदारनाथ मंदिर के द्वार आम भक्तों के दर्शन के लिए सुबह 6:00 बजे खुल जाते हैं।
- भगवान शंकर की पूजा में मुख्य रूप से प्रातः कालिक पूजा, महाभिषेक पूजा, अभिषेक, रुद्राभिषेक षोडशोपचार पूजन, अष्टोंपाचार पूजन, संपूर्ण आरती, पांडव पूजा, गणेश पूजा, श्री भैरव पूजा, शिव सहस्त्रनाम आदि शामिल हैं।
- केदारनाथ मंदिर में दोपहर 3:00 से 5:00 के मध्य एक विशेष पूजा होती है तथा इसके पश्चात भगवान के विश्राम के लिए फलस्वरुप मंदिर के कपाट को बंद कर दिया जाता है।
- मंदिर के कपाट पुनः शाम 5:00 बजे खुल जाते हैं तथा आम जनता एवं भक्तजन दर्शन कर सकते हैं।
- इसके पश्चात पांच मुख वाले भगवान शिव की प्रतिमा का श्रृंगार होता है और संध्या काल की आरती का समय 7:30 से 8:30 के बीच तय किया गया है जिसमें भगवान शिव की आरती की जाती है। इसके पश्चात मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं।
- शीतकाल में केदारनाथ घाटी बर्फ से लग जाती है इसीलिए पुरोहितों द्वारा नवंबर 15 से लेकर शीतकाल के अंत यानी 14 या 15 अप्रैल तक केदारनाथ मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं।
- शीतकाल के दौरान भगवान शंकर की पांच मुख वाली प्रतिमा को उखीमठ में स्थापित किया जाता है।
इस आर्टिकल में हमने आपको केदारनाथ मंदिर का इतिहास (Kedarnath Temple history in hindi), ऐतिहासिक व पौराणिक कथा, दर्शन का समय केदारनाथ मंदिर की वास्तुशिल्प आदि के बारे में जानकारी दी है।