दुर्गा पूजा पर निबंध एवं कविता (Durga Puja Poem in Hindi, Essay on Durga Puja in Hindi, Durga Pooja par nibandh, poem, kavita hindi )
भारत में हिंदुओं के लिए दुर्गा पूजा भी दिवाली और होली जैसा ही महत्वपूर्ण त्यौहार है। हर साल नवरात्रि के दौरान खासकर शारदीय नवरात्रि में दुर्गा पूजन का त्योहार मनाया जाता है।
इस दौरान भारत के पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, असम, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों में दुर्गा पूजन के लिए पंडाल सजाया जाता है जहां दुर्गा माता की मूर्तियां स्थापित कर उनकी पूजा की जाती है।
शारदीय नवरात्रि के पावन अवसर पर भव्य पंडाल बनाकर मूर्तियां स्थापित करने के साथ रामलीला रावण दहन तथा दशहरा के अवसर पर मेले का आयोजन भी किया जाता है।
दुर्गा पूजन का उत्सव 10 दिनों तक चलता है जिसमें 9 दिनों तक देवी दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा होती है जबकि 10 वें दिन मूर्ति का विसर्जन होता है। इसी दसवें दिन को विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है।
इस बार शारदीय नवरात्रि में दुर्गा पूजन की शुरुआत 15 अक्टूबर 2023 को हुई थी जो आने वाले 24 अक्टूबर 2023 तक चलेगी।
दुर्गा पूजा का पर्व भारतीय हिंदुओं के लिए असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। आज हमने इस आर्टिकल के जरिए आपके साथ दुर्गा पूजा पर निबंध Essay on Durga Puja in Hindi और दुर्गा पूजा पर कविता (Poem On Durga Puja) साझा करने वाले हैं।
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विषय–सूची
नवरात्रि दुर्गा पूजा पर निबंध (Essay on Durga Puja in Hindi)
प्रस्तावना –
हमारा भारत त्योहारों का देश है। यहां आए दिनों कोई ना कोई त्यौहार मनाया जाता रहता है। हालांकि हिंदुओं के ज्यादातर त्यौहार एक दिवसीय होते हैं लेकिन नवरात्रि के अवसर पर मनाया जाने वाला दुर्गा पूजन का त्यौहार पूरे 10 दिनों तक चलता है।
दुर्गा पूजा का त्यौहार अखिल भारत में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस उत्सव के अवसर पर लोग बड़ी धूमधाम से दुर्गा पूजा का पांडाल बनाते हैं जिसमें दुर्गा माता की मूर्ति स्थापित की जाती है।
मूर्ति स्थापना के साथ ही पवित्र कलश की स्थापना भी की जाती है और अखंड ज्योति जलाई जाती है जो अगले 10 दिनों तक जलती रहती है जब तक की दुर्गा माता की मूर्ति का विसर्जन नहीं हो जाता। मूर्ति विसर्जन के दिन भी भव्य भंडारा और मेले का आयोजन करके दुर्गा पूजा का भव्य समापन किया जाता है।
वैसे तो भारत में नवरात्रि अर्थात दुर्गा पूजा का त्यौहार सार्वजनिक रूप से दो बार मनाया जाता है जिसमें चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्र शामिल हैं। हालांकि वर्ष में आषाढ़ नवरात्रि और पौष नवरात्रि दो नवरात्रि और होती है जिसे गुप्त नवरात्रि कहा जाता है।
भले ही चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि का महत्त्व एक समान हो लेकिन शारदीय नवरात्र के दौरान मुख्य और भव्य रूप से दुर्गा पूजा का त्यौहार मनाया जाता है।
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नवरात्रि कब और क्यों मनाया जाता है?
शारदीय नवरात्रि अर्थात दुर्गा पूजा की शुरुआत अश्विन मास की प्रतिपदा तिथि से होती है और यह महा नवमी के दिन समाप्त हो जाती है जिसके अगले दिन विजयदशमी का त्यौहार आता है। दुर्गा सप्तशती के अनुसार महिषासुर नाम के राक्षस को शिवजी का वरदान था कि कोई भी देवता या दानव उसका संहार नहीं कर सकता। लेकिन अभिमान के कारण जब पृथ्वी और देवताओं पर असुर महिषासुर का अत्याचार बढ़ने लगा तो देवता भगवान शिव नारायण और ब्रह्मा से अपने रक्षा की प्रार्थना करने लगे। तब त्रिदेवों ने अपनी उर्जा से शक्ति का सृजन किया जिन्हें देवी दुर्गा के नाम से जाना जाता है।
ऐसा माना जाता है कि प्रतिपदा की तिथि से ही देवी दुर्गा और राक्षस महिषासुर के बीच युद्ध आरंभ हुआ था तथा अगले 9 दिनों तक घमासान युद्ध चलने के बाद विजयदशमी के दिन दुर्गा माता ने महिषासुर का वध कर दिया। इसी विजयदशमी के दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध भी किया था।
इस तरह भारतीय समाज में दुर्गा पूजा की छवि बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मानी जाती है और हर साल दुर्गा पूजा का त्यौहार मनाया जाता है। भले ही चैत्र नवरात्रि के दौरान दुर्गा पूजन का व्रत कठिन व्रत माना जाता हो लेकिन शारदीय नवरात्र के दौरान दुर्गा पूजन का उत्सव भव्य और संगीतमय होता है क्योंकि इस दौरान लोग भक्ति भाव में लीन रहते हैं और देवी दुर्गा का भजन कीर्तन और जागरण करते हैं।
आइये पढ़ें-
खासकर उत्तर प्रदेश के लोग दुर्गा पूजा के दौरान रात्रि जागरण करते हैं जिनमें वह दुर्गा माता के भजन कीर्तन गाते हैं। जबकि गुजरात में गरबा और डांडिया जैसे नृत्यों की प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। हालांकि भले ही भारत के विभिन्न राज्यों में दुर्गा पूजा का त्यौहार मनाया जाता हो लेकिन पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा का त्यौहार सबसे भव्य होता है। पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा के अवसर पर माचिस की तीलियों से पंडाल बनाए जाते हैं। पश्चिम बंगाल में आपको दुर्गा पूजा के एक से बढ़कर एक पंडाल देखने को मिलेंगे।
लोग नवरात्रि में दुर्गा पूजन का उपवास रखते हैं इस दौरान लोग अपने घरों में कलश स्थापना करते हैं और दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि दुर्गा सप्तशती और दुर्गा चालीसा का पाठ करने से उपासक के सारे संकट कट जाते हैं और परिवार में सुख समृद्धि आ जाती है।
शारदीय नवरात्र की शुरुआत से लेकर विजय दशमी तक दुर्गा पूजा की रौनक चारों तरफ फैली रहती है। दुर्गा पूजन के दौरान प्रतिपदा तिथि पर स्थापित की गई मूर्ति को विजयदशमी के अवसर पर जल में विसर्जित कर दिया जाता है। विभिन्न स्थानों पर मूर्ति विसर्जन के बाद भंडारे का आयोजन भी किया जाता है।
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निष्कर्ष –
दुर्गा पूजा केवल एक त्यौहार नहीं बल्कि असत्य पर सत्य बुराई पर अच्छाई के जीत की भावना है। लोग मानते हैं कि जिस प्रकार 9 दिनों का संघर्ष करके देवी दुर्गा ने महिषासुर की बुरी शक्तियों का विनाश किया था ठीक उसी तरह नवरात्रि के दौरान हमारे समाज में फैली हुई बुरी शक्तियों का विनाश भी करेंगी। दैवीय शक्तियों में आस्था ही भारत की सबसे बड़ी शक्ति है और इसी आस्था की उपासना के लिए दुर्गा पूजा मनाया जाता है।
दुर्गा शब्द शक्ति और ऊर्जा का पर्यायवाची होता है यानी कि अपने नाम के अनुरूप ही दुर्गा पूजन का त्यौहार लोगों में एक नई ऊर्जा का संचार करता है और उन्हें अधर्म और बुराई के खिलाफ लड़ने की शक्ति प्रदान करता है। हमें प्रतिवर्ष सामूहिक रूप से संगठित होकर दुर्गा पूजा का त्यौहार मनाना चाहिए और अपनी आस्था एवं विश्वास को और भी दृढ़ बनाना चाहिए क्योंकि यही आस्था और विश्वास हमें कुछ करने की शक्ति प्रदान करते हैं।
दुर्गा पूजा पर कविता (Durga Puja Poem in Hindi)
इन आंखों से तेरी दरस कैसे पाऊं? आंखों में भरा है मेरे अश्रुधार मां, इन आंखों से तेरी दरस कैसे पाऊं? मन में है पीड़ा और संताप मां, अधरों से मैं किस तरह मुस्कुराऊं? पैरों में जकड़ी है दुखों की बेड़ियां, तू ही बता कैसे दर तेरे आऊं? इन आंखों से तेरी दरस कैसे पाऊं। भंवर में हूं अटकी, कोई ना किनारा। मुझे मेरी मां बस तेरा ही सहारा। किस तरह अपनी नैया को पार लगाऊं? इन आंखों से तेरी दरस कैसे पाऊं ? तू ही है जननी, तू ही है सहेली, मां तेरी बेटी पड़ी है अकेली। तू बन मेरी मैया, मैं बेटी बन जाऊं। इन आंखों से तेरी दरस कैसे पाऊं? आ गया नवरात्र का त्यौहार माता, अब तो करा दे तू दीदार माता। आ मैया तेरा पंडाल सजाऊं। इन आंखों से तेरी दरस कैसे पाऊं। – सौरभ शुक्ला