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क्यों रखा जाता है, वट सावित्री व्रत, कथा, पूजाविधि, शुभ मुहूर्त, क्या है इसका पौराणिक महत्व | Vat Savitri Vrat 2023 Vrat Katha, Date, Shubh Muhurt, Puja Vidhi

वट सावित्री व्रत 2023 कब है, क्यों मनाया जाता है? (Vat Savitri Vrat 2023 Importance of Vat Purnima, Vrat katha, puja vidhi in hindi) वट सावित्री व्रत क्यों किया जाता है। वट सावित्री की कथा व पौराणिक कहानी, सत्यवान सावित्री की कथा

हमारी भारतीय संस्कृति में वट सावित्री पूजा की बहुत ही मान्यता है। वट सावित्री पूजा के दिन सभी महिलाएं व्रत रखती है और वृक्ष की पूजा करती हैं। माना जाता है कि इस व्रत को रखने से संतान प्राप्ति तथा सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
वट सावित्री व्रत के बारे में बहुत लोगों ने सुना होगा लेकिन कुछ लोग वट सावित्री पूजा के बारे में नहीं जानते। इसलिए आज के इस लेख में हम आपको वट सावित्री पूजा क्या है? सावित्री पूजा क्यों मनाया जाता है? वट सावित्री की पौराणिक कहानी, सभी चीजों की जानकारी देने वाले हैं। वट सावित्री पूजा के बारे में जानने के लिए हमारे साथ इस लेख में अंत तक बने रहे।

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विषय–सूची

आइये जाने वट सावित्री व्रत के बारें में पूर्ण जानकारी

वट सावित्री व्रत 2022 | Vat-Savitri-Pooja-katha-story

वट सावित्री व्रत किस दिन है?

अमावस्या की तिथि शुभारंभ, अमावस्था, 18 मई 2023 गुरुवार रात 09:42 PM से 19 मई 2023 रात 09:22 PM तक।
भारतीय हिंदी कैलेंडर के अनुसार वट सावित्री व्रत हर साल ज्येष्ठ महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। इस साल 2023 में ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की अमावस्या की तिथि अंग्रेजी कैलेंडर के दिन में पड़ेगी जिसके कारण लोग वट सावित्री व्रत को लेकर काफी कन्फ्यूज है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि साल 2023 में जेष्ठ कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि 18 मई 2023 को गुरुवार के दिन रात 09:42 PM पर प्रारंभ होगी और अगले दिन 19 मई 2023 को शुक्रवार के दिन रात 09:22 PM तक रहेगी।

क्योंकि हम सभी जानते हैं कि हिंदुओं की धार्मिक मान्यता के अनुसार उदया तिथि में ही त्यौहार या व्रत रखना शुभ होता है इसीलिए इस साल वट सावित्री का व्रत 19 मई 2023 को उदया तिथि में रखा जाएगा।

वट सावित्री व्रत क्या है?

वट सावित्री पूजा पति की लंबी उम्र के लिए की जाने वाली पूजा है। इस पूजा में सभी सुहागन औरतें अपने पति की लंबी आयु के लिए पूरा दिन व्रत रखती है। वट सावित्री व्रत जेष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जाता है और वर्ष 2023 में यह व्रत 19 मई 2023 को मनाया जाएगा।

वट सावित्री व्रत का यह त्यौहार जेष्ठ माह के 15 दिन बीतने के बाद मनाया जाता है। उत्तरी भारत में तो वट सावित्री व्रत का यह त्यौहार अमावस्या की तिथि को मनाया जाता है लेकिन दक्षिणी भारत में वट सावित्री व्रत का त्यौहार जेष्ठ माह के शुक्ल पक्ष में पूर्णिमा तिथि को भी मनाया जाता है। विष्णु भगवान को मानने वाले लोग इस व्रत को पूर्णिमा तिथि के दिन करना ज्यादा शुभ मानते हैं।

वट सावित्री व्रत क्यों किया जाता है?

आपने सावित्री तथा सत्यवान की कथा तो सुनी ही होगी तो ऐसा माना जाता है कि इसी अमावस्या के दिन सावित्री यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस ले आई थी। इसके कारण कि इसे वट सावित्री का नाम दिया गया और इसी कथा को स्मरण करते हुए वट सावित्री व्रत का यह त्यौहार मनाया जाने लगा। वट सावित्री व्रत के लिए सभी औरतों के मन में बहुत ही अधिक आस्था है क्योंकि सभी औरतों के मन विश्वास है कि इस व्रत को रखने से पति की आयु लंबी होती है तथा संतान का सुख प्राप्त होता है।

वट सावित्री व्रत का क्या महत्व है?

वट सावित्री व्रत में वट तथा सावित्री दोनों का ही बहुत अधिक महत्व है। वट को बरगद का पेड़ कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि बरगद के पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों त्रिदेवों का वास होता है। इस पेड़ के जड़ में ब्रह्मा, बीच में विष्णु तथा ऊपर सामने की तरफ शिव का वास है इसलिए वट सावित्री व्रत का महत्व सभी सुहागन औरतों के लिए सबसे ज्यादा होता है। इसके साथ ही बरगद के पेड़ को सावित्री देवी का रूप भी माना जाता है।

वट सावित्री पूजा कैसे की जाती है?

वट सावित्री की पूजा में बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। ऐसे तो यह पूजा सामुदायिक स्तर पर की जाती है लेकिन कुछ औरतें इससे अकेले घर पर भी करती हैं। इस पूजा के लिए महिलाएं अमावस्या तिथि को पूरा दिन व्रत रखती हैं और सुबह-सुबह बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं।

महिलाएं प्रात:काल सोलह श्रृंगार करके बरगद के पेड़ के पास जाती हैं और जल चढ़ाकर पूजा की विधि का आरंभ करती हैं। जल, मौली, रोली आदि पूजा की सामग्री के साथ पूजा की विधि को पूर्ण करती है। उसके पश्चात बरगद के पेड़ में कच्चे सूत को लपेटते हुए पेड़ की 108 बार परिक्रमा करती हैं। परिक्रमा करने के बाद सभी महिलाएं बरगद के पेड़ के पत्तों को गहना बनाकर अपना श्रृंगार करती हैं।
कई राज्यों में वट सावित्री पूजा अलग-अलग तरीके से भी की जाती है। किन्ही राज्यों में इस पूजा के लिए चार दिनों का व्रत रखा जाता है।

वट सावित्री की कथा व पौराणिक कहानी (सत्यवान सावित्री की कथा)

भद्र देश में अश्वपति नामक राजा राज करता था सभी चीजों से परिपूर्ण होने के बाद भी राजा दुखी रहता था। इसका कारण, उसके घर किसी संतान का ना होना था। राजा अश्पति ने संतान प्राप्ति के लिए रोज 1 लाख आहुतियों एवं मंत्रें का उच्चारण किया करता था। उसनें 18 वर्षों तक तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर सावित्री देवी ने उनको दर्शन दिए और यह वर दिया कि राजन तुम्हारे एक प्रभावशाली कन्या पैदा होगी। देवी के लिए वरदान के कारण कन्या का नाम भी सावित्री ही रखा गया वह बहुत सुंदर थी उसके लिए योग्य वर ना मिलने के कारण राजा बहुत दुखी रहने लगा।

उन्होंने सावित्री को अपने लिये वर तलाशने भेज दिया, सावित्री वनों में भटकने लगी जहां साल्व देश के राजा द्यूमत्सन रहते थे उनका राजपाट किसी ने छीन लिया था सावित्री ने उनके पुत्र सत्यवान को देखकर अपने पति के रूप में उनको पति के रूप में स्वीकार किया। नारद जी को यह बात पता चली तो उन्होंने राजा अश्वपति के पास जाकर कहा कि हे राजन यह क्या अनंर्थ करने जा रहे हो, सत्यवान गुणवान, धर्मात्मा है, बलवान है परंतु वह अल्पायु है उसकी मृत्यु 1 वर्ष बाद निश्चित है।

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नारद जी के यह वचन सुनकर राजा अश्वपति चिंतित हो गए। सावित्री के पूछने पर राजा ने बताया कि तुमने जिसे अपना जीवनसाथी चुना है वह अल्पायु है तुम्हें अपना वर किसी और को चुनना चाहिए सावित्री ने अपने पिता से कहा कि पिताजी आर्य कन्याएं अपने पति का वरण एक ही बार करती है। सावित्री ने उनकी बात नहीं मानी।

सावित्री और सत्यवान का विवाह करा दिया गया। ससुराल जाकर सावित्री अपने सास-ससुर की सेवा करने लगी, समय बीतता गया। सत्यवान की मृत्यु का दिन नजदीक आ गया जैसे-जैसे दिन करीब आ रहा था सावित्री चिंतित होने लगी उसने 3 दिन पहले से ही उपवास रखना प्रारंभ कर दिया हर दिन की तरह सत्यवान उस दिन भी लकड़ी काटने गया। सास ससुर की आज्ञा लेकर सावित्री भी उसके साथ चली गई सत्यवान लकड़ी काटने के लिए पेड़ पर चढ़ गया तभी उसके सिर में दर्द होने लगा, सत्यवान पेड़ से नीचे उतरा और अपना सर सावित्री की गोद में रख कर सो गया, तभी वहां यमराज आते दिखे जब यमराज सत्यवान को ले जाने लगे तभी सावित्री भी उनके पीछे पीछे चल पड़ी।

यमराज सावित्री को समझानें का बहुत प्रयत्न किया कि यह विधि का विधान है परन्तु सावित्री ने यमराज की एक न मानी। सावित्री के पतिवर्ता गुण, निष्ठा व प्रेम को देखकर कहा सावित्री को तीन वरदान देने का वचन दिया।

सावित्री ने अपने पहले वरदान में अपने सास-ससुर की आंखों की ज्योति मांगी। दूसरे वरदान ने ससुर का छिना हुआ राज्य मांग लिया।

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तीसरे वरदान में सौ पुत्रों और सौभाग्यवती होने का वरदान मांगा। यमराज ने सारे वरदान पूर्ण होने का आर्शीवाद दे दिया। इस पश्चात भी सावित्री यमराज के पीछे आने लगी। तब यमराज ने कहां देवी आप जाइये अब तो मैंने आपकी बात मान ली है तब सावित्री ने कहां हे देव मैं एक पतिवर्ता स्त्री हूं आपने मुझे पुत्रवान होने का वरदान दिया है बिना पति के यह संभव नहीं है। यह सुनकर यमराज प्रसन्न हो गये और सत्यवान के प्राणों का छोड़ दिया। इसके पश्चात सावित्री ने अपने पति को वटवृक्ष के निकट जीवित अवस्था में पाया। तभी से ही यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन रखा जाता है। माना जाता है जो भी वैवाहिक स्त्री इस दिन व्रत रखती है कथा सुनती है उसके पति की आयु दिर्घायु व जीवन सुखमय हो जाता है।

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वट सावित्री व्रत के दिन क्यों होती है बरगद की पूजा?

आपको इस बात की तो जानकारी है ही की वट सावित्री व्रत के दिन बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि वट सावित्री व्रत के दिन बरगद की पूजा करने का धार्मिक एवं वैज्ञानिक दोनों का ही अलग अलग महत्व है।

बरगद की पूजा का धार्मिक महत्व-

ऐसा माना जाता है कि सावित्री के पति सत्यवान के प्राण बरगद के पेड़ के पास ही निकले थे और उसी बरगद के पेड़ के पास तपस्या करके सावित्री ने सत्यवान के प्राण को बचाया था। इसलिए वट सावित्री व्रत में बरगद की पूजा की जाती है। बरगद की पूजा को लेकर दूसरी मान्यता यह है कि इस बरगद के पेड़ में त्रिदेवों का वास है और बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर पूजा करने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती है।

बरगद की पूजा का वैज्ञानिक महत्व –

बरगद की पूजा का वैज्ञानिक महत्व इसलिए है, क्योंकि बरगद का पेड़ हमें सबसे अधिक ऑक्सीजन प्रदान करता है और यह पेड़ मानव जीवन के लिए बहुत ही लाभदायक है। 80% ऑक्सीजन होने के साथ-साथ बरगद के पेड़ में सबसे अधिक औषधीय गुण भी पाए जाते हैं। इसकी बड़ी पत्तियां, छाल, तना एवं दूध से अलग-अलग प्रकार की औषधियां बनाई जाती हैं। बरगद का पेड़ सबसे विशालकाय होता है और यह फैलने के लिए सबसे अधिक जगह लेता है। जिसके कारण हमारा मौसम भी हरा भरा होता है। इसलिए बरगद की पूजा का वैज्ञानिक महत्व भी सबसे अधिक होता है।

निष्कर्ष

आज के इस लेख में हमने आपको वट सावित्री पूजा तथा वट सावित्री व्रत के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी। उम्मीद करते हैं कि आज का यह लेख आपके लिए मददगार साबित होगा। यदि आपके मन मे कोई प्रश्न है तो कमेंट बॉक्स में पूछ सकते हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न/FAQ –

प्रश्न- 2023 में वट सावित्री पूजा कब है?

उत्तर- 2023 में वट सावित्री पूजा 19 मई 2023 को मनाई जाएगी।

प्रश्न- वट सावित्री व्रत कितने दिन का होता है?

उत्तर – वट सावित्री व्रत एक दिन का होता है लेकिन कई राज्यों में इसे 4 दिन तक भी मनाया जाता है।

प्रश्न- वट सावित्री व्रत के दिन किसकी पूजा की जाती है?

उत्तर – वट सावित्री के दिन बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है।

प्रश्न – वट सावित्री व्रत क्यों रखा जाता है?

उत्तर – वट सावित्री पूजा वाले दिन सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस लेकर आई थी। सावित्री की इस तपस्या के याद रखने के लिए वट सावित्री व्रत रखा जाता है।

प्रश्न – वट सावित्री व्रत करने से क्या होता है?

उत्तर – वट सावित्री व्रत करने से संतान का सुख प्राप्त होता है तथा पति की आयु लंबी होती है।

वट सावित्री व्रत 2023 कब है?

वट सावित्री व्रत 2023 में 19 मई 2023 को रखा जाएगा क्योंकि इसी दिन ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की अमावस्या उदया तिथि में पड़ेगी।

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