श्रीनिवास रामानुजन कौन थे, रामानुजन की गणित साधना, जीवन संघर्ष, रामानुजन पर निबंध (Srinivasa Ramanujan Biography in Hindi, Essay on Srinivasa Ramanujan hindi)
भारत में हमेशा से ही विश्व गुरु बनने की अपार क्षमताएं थी। योग और अध्यात्म से लेकर विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी तलक हर क्षेत्र में भारत ने सदैव अपनी पहल की है और पूरी दुनिया का नेतृत्व किया है। भारत के पौराणिक काल में ही ऋषि महर्षियों ने विज्ञान के कई ऐसे महत्वपूर्ण सिद्धांत बता दिए थे जिन सिद्धांतों के लिए आज हम विदेशी वैज्ञानिकों को श्रेय देते हैं।
उदाहरण के तौर पर महर्षि कणाद ने डाल्टन से पहले ही परमाणु का सिद्धांत दे दिया था इसके अलावा उन्होंने न्यूटन से पहले ही गति के तीनो नियम भी संस्कृत के सूक्तियों में फिरो दिए थे। शल्य चिकित्सा (Surgery) और पूर्ण संख्याओं का आधार शून्य भी भारत की ही देन है।
भारत की भूमि पर एक से बढ़कर एक अर्थशास्त्री और गणितज्ञ पैदा हुए उन्हीं में से एक थे श्रीनिवास रामानुजन जिन्हें आधुनिक काल में भारत का सबसे महान गणितज्ञ माना जाता है।
विषय–सूची
श्रीनिवास रामानुजन कौन थे?
श्रीनिवास रामानुजन इस दुनिया के ऐसे महान गणितज्ञ थे जिन्होंने खुद से गणित ही सीखा। इनकी महान गणितज्ञता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इन्होंने महज 33 वर्ष के अल्प जीवनकाल में गणित के 3,884 प्रमेयों का संकलन किया और विश्लेषण तथा संख्या सिद्धांतों में अपना गहन और विशेष योगदान दिया।
तो चलिए आज Great Mathematician Srinivasa Ramanujan Biography in Hindi के जरिए उनके जीवन और गणित में उनके योगदान पर चर्चा करते हैं।
श्रीनिवास रामानुजन जीवन परिचय, सक्षिप्त परिचय (Srinivasa Ramanujan Biography in hindi)
पूरा नाम (Full Name) | श्रीनिवास अय्यंगर रामानुजन |
प्रसिद्ध नाम | श्रीनिवास रामानुजन |
जन्म स्थान (Birth Place) | ईरोड, तमिलनाडु |
जन्म (Date of Birth) | 22 दिसम्बर 1887 |
धर्म (religion) | हिंदू |
पेशा (Profession) | गणितज्ञ |
मृत्यु (Death) | 26 अप्रैल 1920 |
उम्र (Age) | 33 साल |
शिक्षा (Education) | कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय |
मृत्यु का स्थान (Place of Death) | चेटपट चेन्नई तमिलनाडु |
मृत्यु का कारण (Reason of Death0 | क्षयरोग (TB) |
पिता (Father Name) | श्रीनिवास अय्यंगर |
माता (Mother Name) | श्रीनिवास अय्यंगर |
पत्नी (Wife) | जानकी |
श्रीनिवास रामानुजन का जीवन परिचय, प्रारम्भिक जीवन (Srinivasa Ramanujan Biography in Hindi)
श्रीनिवास रामानुजन भारत के ऐसे महान गणितज्ञ थे जिनकी गिनती आज आधुनिक काल के महानतम गणित विचारकों में की जाती है। श्रीनिवास रामानुजन 22 दिसंबर 1887 को तमिलनाडु के कोयम्बटूर के इरोड गांव में पैदा हुए थे। इनका पूरा नाम श्रीनिवास रामानुजन अयंगर था। इनके पिता का नाम श्रीनिवास अयंगर था जबकि इनकी माता का नाम कोमलताम्मल था।
उनके बचपन का दौर तमिलनाडु के कुंभकोणम में बीता जिसे भव्य पौराणिक मन्दिरों के लिए जाना जाता है। बचपन से ही श्रीनिवास रामानुजन के लक्षण सामान्य बच्चों से काफी अलग थे। अपने जीवन के शुरुआती 2-3 सालों में भी श्रीनिवास रामानुजन बोलना नहीं सीख पाए थे इसलिए उनके परिवार को यह डर था कि कहीं वह गूंगे तो नहीं।
श्रीनिवास रामानुजन की शिक्षा–
रामानुजन को उनकी प्रारंभिक शिक्षा कुंभकोणम के प्राथमिक विद्यालय से मिली जिसे पूरा करने के बाद उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई करने के लिए टाउन हाई स्कूल में दाखिला ले लिया।
रामानुजन को विद्यालय में अपने अध्यापकों से प्रश्न पूछना बहुत अच्छा लगता था हालांकि कभी-कभी उनके अध्यापन को उनके प्रश्न कुछ उटपटांग भी लगते थे। रामानुजन अपने अध्यापकों से अजीबोगरीब सवाल पूछा करते थे जैसे कि धरती और आसमान के बीच की दूरी कितनी है? दुनिया का सबसे पहला इंसान कौन रहा होगा? ऐसे ही तमाम अजीब सवाल रामानुजन अपने अध्यापकों से किया करते थे।
विद्यालय में निचले स्तर की शिक्षा ग्रहण करते समय ही इन्हें स्नातक स्तर के गणित का काफी ज्ञान हो चुका था। यहां तक कि एक बार इनके विद्यालय के प्रधानाध्यापक ने भी इनके लिए परीक्षा के सभी मापदंड लागू न होने की बात कह दी थी। हाई स्कूल की परीक्षा में गणित और अंग्रेजी में अच्छे अंक प्राप्त करने के कारण इन्हें पढ़ने के लिए सुब्रमण्यम छात्रवृत्ति दी जाने लगी।
धीरे-धीरे रामानुजन का गणित के प्रति प्रेम इतना ज्यादा बढ़ गया कि इन्हें गणित के अलावा दूसरे विषयों में रुचि ही नहीं रही। इस दौरान वह गणित विषय में इतने दिन हो गए कि उन्होंने अपने दूसरे विषयों पर ध्यान देना ही छोड़ दिया। नतीजा यह निकला कि रामानुजन को 11वीं में अनुत्तीर्ण यानि की फेल भी होना पड़ा। 11वीं कक्षा में फेल होने के कारण इन को मिलने वाली छात्रवृत्ति भी बंद हो गई। साल 1907 में रामानुजन ने इंटरमीडिएट यानी की 12वीं की प्राइवेट परीक्षा दी और इसमें भी फेल हो गए। इसी अनुत्तीर्णता के साथ रामानुजन की पारंपरिक शिक्षा भी स्थगित हो गई।
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श्रीनिवास रामानुजन का विवाह–
1908 में केवल 10 साल की आयु में श्रीनिवास रामानुजन का विवाह जानकी नाम से हो गया था। विवाह के बाद रामानुजन को नौकरी की तलाश के लिए कुंभकोणम छोड़कर मद्रास जाना पड़ा लेकिन इन्हें कोई ढंग की नौकरी नहीं मिली और इनकी तबीयत भी बिगड़ गई। तबीयत बिगड़ने के कारण रामानुजन वापस कुंभकोणम लौट आए और तबीयत ठीक होने के बाद फिर से मद्रास गए।
दोबारा मद्रास जाने के बाद श्रीनिवास रामानुजन की मुलाकात वहां के डिप्टी कलेक्टर श्री वी. रामास्वामी अय्यर से हुई जो गणित के जाने-माने विद्वान थे। डिप्टी कलेक्टर और कलेक्टर दोनों ही रामानुजन और उनकी प्रतिभा से काफी प्रभावित हुए तथा उन्हें 25 रूपए की मासिक छात्रवृत्ति देने का प्रबंध किया।
रामानुजन की गणित साधना–
मद्रास में डिप्टी कलेक्टर और कलेक्टर के माध्यम से ₹25 की छात्रवृत्ति पाते हुए श्रीनिवास रामानुजन ने अपना पहला शोध पत्र लिखा। इस शोध पत्र का शीर्षक बरनौली संख्याओं के कुछ गुण था। इसी दौरान इन्हें मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में क्लर्क की नौकरी भी मिल गई जिससे इनके लिए गणित की साधना का काम और आसान हो गया। मद्रास में नौकरी के दौरान रामानुजन रात को देर तक जाग कर गणित के सूत्रों पर काम किया करते थे।
श्रीनिवास रामानुजन की वैश्विक स्तर पर गणित की उपलब्धियों को प्रकाशित करने में प्रोफ़ेसर हार्डी की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही। प्रोफेसर हार्डी उस समय के विश्व के जाने माने और महान गणितज्ञ थे। एक बार श्रीनिवास रामानुजन ने प्रोफ़ेसर हार्डी के द्वारा अनुत्तरित प्रश्न का उत्तर खोज निकाला और प्रोफेसर हार्डी से पत्रा चार की शुरुआत की। प्रोफ़ेसर हार्डी रामानुजन से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने गणितज्ञों को मापने के लिए बनाए गए 100 के पैमाने में से रामानुजन को 100 अंक दिए।
प्रोफेसर हार्डी ने रामानुजन से प्रभावित होगा उन्हें इंग्लैंड की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में आने का न्योता भी भेज दिया। हालांकि शुरू में पर्याप्त धन इकट्ठा ना कर पाने की वजह से रामानुजन में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी जाने से इंकार कर दिया लेकिन जब मद्रास यूनिवर्सिटी से इन्हें शोध कार्य के लिए पैसे मिले तो यह कैंब्रिज यूनिवर्सिटी जाने के लिए राजी हो गए।
इंग्लैंड की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में जाने से पहले ही श्रीनिवासन रामानुजन में 3000 से अधिक गणित के प्रमाणों पर काम पूरा कर लिया था। बाद में अपने उत्कृष्ट शोध के लिए इन्हें कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से बैचलर ऑफ आर्ट्स में स्नातक की डिग्री मिली। इतना ही नहीं कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में शोध के दौरान इन्हें इंग्लैंड की रॉयल सोसायटी में सदस्यता भी मिली जो कि उस समय बहुत बड़ी बात थी। इस सोसाइटी में श्रीनिवास रामानुजन से कम उम्र का कोई भी सदस्य नहीं बना था।
श्रीनिवास रामानुजन की मृत्यु –
इंग्लैंड जाने के बाद वहां का रहन सहन श्री निवास रामानुज के लिए ज्यादा अनुकूल नहीं था यही कारण था कि इंग्लैंड जाने के दौरान वह काफी बीमार पड़ गए। चिकित्सकों ने उन्हें उनके क्षय रोग की शिकायत के बारे में बताया। उस समय क्षय रोग की कोई दवा नहीं थी। स्वास्थ बिगड़ने के बाद श्रीनिवास रामानुजन स्वदेश लौट आए और यहां आने के बाद 26 अप्रैल 1930 को महज 33 साल की अल्पायु में उनकी मृत्यु हो गई।
गणित में श्रीनिवास रामानुजन का योगदान –
- रामानुजन ने गणित में ऐसे प्राकृतिक संख्या की खोज की जिसे दो अलग-अलग तरीकों से दो अलग संख्याओं के घनो के योग में दर्शाया जा सकता था। उदाहरण के तौर पर 1729, रामानुजन द्वारा खोजी गई इन प्राकृतिक संख्याओं को रामानुजन संख्या नाम दिया गया।
- महज 33 साल की अल्प जीवन आयु में श्रीनिवास रामानुजन ने गणित के 3884 प्रमेयोंका संकलन किया था।
- इन सबके अलावा श्रीनिवास रामानुजन जी ने लैंडा रामानुजन स्थिरांक, रामानुजन थीटा फलन, रामानुजन योग और रामानुजन अभाज्य जैसी गणितीय प्रेमेंयों का संपादन किया।
तो दोस्तों आज इस लेख के जरिए हमने भारतवर्ष में जन्मे महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के बारे में बताया जिन्हें आज आधुनिक काल के महानतम गणित विचारों में गिना जाता है। उम्मीद करते हैं कि Srinivasa Ramanujan Biography In Hindi का यह आर्टिकल आपको बेहद पसंद आया होगा।
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