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प्राचीन भारत के महान वैज्ञानिक जिन्होंने हजारों साल पहले ही कर दिए थे आधुनिक अविष्कार | 7 Great Scientists of Ancient India in hindi

प्राचीन भारत के महान वैज्ञानिकों के नाम क्या है? (Great Scientists of Ancient India in hindi, ancient India inventions in hindi, ancient India Scientist name in hindi)

प्राचीन काल से ही भारत विश्व गुरु की भूमिका निभाते हुए आ रहा है। भारत ने इस विश्व को एक से बढ़कर एक महान वैज्ञानिक और दार्शनिक दिए हैं जिन्होंने आधुनिक विज्ञान और तकनीकी से परे अभूतपूर्व आविष्कारों को जन्म दिया है।

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आज पाश्चात्य वैज्ञानिक भी मान रहे हैं कि भारत का प्राचीन विज्ञान विश्व के आधुनिक विज्ञान से कहीं ज्यादा विकसित और सम्पन्न था। लेकिन अफसोस की बात है कि विश्व भर के आधुनिक वैज्ञानिक जिन प्राचीन भारतीय वैज्ञानिकों से प्रेरणा लेकर अविष्कार करते हैं, उनके बारे में भारतीय लोगों को कोई खास जानकारी नहीं।

यहां तक कि हमारे देश के पाठ्यक्रमों में भी केवल पाश्चात्य वैज्ञानिकों की खोज अविष्कारों और उनके योगदान के बारे में बताया जाता है

जबकि हमारे देश के प्राचीन ऋषि महर्षि और विज्ञान में उनके योगदानों के बारे में आज की युवा पीढ़ी को कोई भी खास जानकारी नहीं है।

भारतीय पाठ्यक्रमों में विज्ञान के हर आधुनिक अविष्कार के लिए पाश्चात्य वैज्ञानिकों का योगदान बताया जाता है जबकि हकीकत तो यह है कि जिस परमाणु सिद्धांत की खोज जॉन डाल्टन द्वारा बताई जाती है, उसे महर्षि कणाद ने ईसा पूर्व में ही दे दिया था।

आज हम न्यूटन के जिस सिद्धांत को भौतिक विज्ञान का सबसे आधारभूत सिद्धांत मानते हैं उससे पहले ही भास्कराचार्य ने पूरी दुनिया को गुरुत्वाकर्षण के बारे में बता दिया था। ऐसे ही भारत में एक से बढ़कर एक प्राचीन और महान वैज्ञानिक पैदा हुए हैं जिन्होंने विज्ञान के आधुनिक सिद्धांतों की नींव पड़ने से पहले ही विज्ञान के महत्वपूर्ण सिद्धांत दे दिए हैं।

यह कहना भी बिल्कुल अतिशयोक्ति नहीं है कि विज्ञान के इन आधुनिक सिद्धांतों की नींव भारत के प्राचीन वैज्ञानिकों के सिद्धांतों पर ही पड़ी है।

आज इस लेख में हम आपके लिए प्राचीन भारत के 7 महान वैज्ञानिकों की सूची (List of 7 Great Scientists Of Ancient India) लेकर आए हैं।

प्राचीन भारत के ऋषि महर्षियों ने हजारों साल पहले ही कर दिए थे आधुनिक अविष्कार (List of 7 Great Scientists of Ancient India in hindi)

प्राचीन भारत के महान वैज्ञानिक महर्षि कणाद (600 ईसापूर्व-परमाणु सिद्धांत के जनक)

शायद बहुत कम ही लोग जानते होंगे कि आज विज्ञान के जिस आधारभूत परमाणु सिद्धांत का श्रेय जॉन डाल्टन को दिया जाता है, उसकी खोज भारत में पहले ही हो चुकी थी। परमाणु सिद्धांत की खोज महर्षि कणाद ने की थी।

महर्षि कणाद प्राचीन भारत के महान दार्शनिक और वैज्ञानिक थे जिन्होंने परमाणु सिद्धांत का प्रतिपादन किया था। इसीलिए महर्षि कणाद जी को परमाणु सिद्धांत का जनक (Father Of Atomic Theory) कहा जाता है।

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सबसे पहले महर्षि कणाद ने ही बताया था कि ब्रह्मांड का संपूर्ण द्रव्यमान एक सूक्ष्म कण से मिलकर बना हुआ है जिसे उन्होंने “परमाणु” नाम दिया।

प्राचीन भारत के महान वैज्ञानिक | Great-Scientists-of-Ancient-India-in-hindi

कुछ मान्यताओं के मुताबिक परमाणु जैसे सूक्ष्म कण की खोज के कारण इन्हें महर्षि कणाद नाम दे दिया गया। जबकि कुछ मान्यताओं के मुताबिक महर्षि कणाद अन्न कणों को इकट्ठा करके अपना जीवन यापन करते थे इसलिए उन्हें  “कणाद” या “कणभुक्” कहा जाने लगा।

महर्षि कणाद ने केवल परमाणु सिद्धांत ही नहीं बल्कि गति के नियम भी दिए थे। महर्षि कणाद ने न्यूटन से पहले ही गति के तीनों नियम प्रतिपादित कर दिए थे।

महर्षि कणाद जिस वैशेषिक दर्शन के प्रवर्तक थे उसमें गति के नियम इस श्लोक में दिए गए हैं।

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“वेगः निमित्तविशेषात कर्मणो जायते। वेगः निमित्तापेक्षात कर्मणो जायते नियतदिक क्रियाप्रबन्धहेतु। वेगः संयोगविशेषविरोधी॥”

इस श्लोक का अर्थ है, कि “वेग अर्थात Motion” यह परिचय द्रव्यमन निमित्त और विशेष कारण से उत्पन्न होते हैं। लेकिन इनकी क्रिया नियमित दिशा में होती है जिसके कारण यह संयोग से उत्पन्न और नष्ट दोनों हो सकता है।

महर्षि बौधायन-गणितज्ञ (800 ईसापूर्व)

बौधायन एक महान भारतीय गणितज्ञ और वैज्ञानिक थे जिन्होंने शुल्व शास्त्र की रचना की थी। प्राचीन काल में भारत में ज्यामिति और रेखा गणित को “शुल्व शास्त्र” के नाम से ही जाना जाता था।

भले ही आज पूरी दुनिया यूक्लिड को ज्यामिति का जनक मानती हो लेकिन यूनान के गणितज्ञ यूक्लिड के जीवन काल से पहले ही भारत में ज्यामिति और रेखा गणित से संबंधित विभिन्न प्रकार के प्रमेयों और सिद्धांतों की खोज हो चुकी थी।

आज हम गणित में समकोण त्रिभुज से संबंधित जिस पाइथागोरस प्रमेय को पढ़ते हैं वह भारत के महान गणितज्ञ बौधायन की ही देन है। पाइथागोरस एक यूनानी वैज्ञानिक थे जिन्होंने समकोण त्रिभुज के लिए प्रमेय की रचना की थी लेकिन उनसे पहले ही भारत के प्राचीन गणितज्ञ बौधायन ने इस प्रमेय की रचना कर दी थी।

बौधायन द्वारा इस प्रमेय का प्रतिपादन किया गया था इसीलिए इसे “बौधायन प्रमेय” भी कहा जाता है। आज पूरी दुनिया रेखागणित में समकोण त्रिभुज के इस प्रमेय को “बोधायन पाइथागोरस प्रमेय” के नाम से जानती है।

बौधायन के इस प्रमेय को इस श्लोक सूत्र के द्वारा समझा जा सकता है।

“दीर्घचतुरश्रस्याक्ष्णया रज्जुः पार्श्वमानी तिर्यग् मानी च यत् पृथग् भूते कुरूतस्तदुभयं करोति।”

इस श्लोक का अर्थ है कि, अगर किसी भी घर पर कोई रस्सी खींची जाए तो उस पर बनने वाले वर्ग का क्षेत्रफल, ऊर्ध्वाधर भुजा पर बने वर्ग तथा क्षैतिज भुजा पर बने वर्ग के के योग के बराबर होगा।

आचार्य सुश्रुत — प्लास्टिक सर्जरी और शल्य चिकित्सक (400 ईसापूर्व)

आज से कई हजारों साल पूर्व जब इस दुनिया के लोग शल्य चिकित्सा और सर्जरी ऑपरेशन के बारे में जानते तक नहीं थे उस दौरान भारत में प्लास्टिक सर्जरी और शल्य चिकित्सा की शुरुआत हो चुकी थी।

भारत में शल्य चिकित्सा विज्ञान को विकसित करने में “आचार्य सुश्रुत” का योगदान माना जाता है। आचार्य सुश्रुत को “प्लास्टिक सर्जरी और शल्य चिकित्सा का जनक” भी माना जाता है। उन्होंने आयुर्वेद और शल्य चिकित्सा से संबंधित महान ग्रंथ “सुश्रुतसंहिता” की रचना की थी। इन्हें आचार्य धन्वंतरिसे शिक्षा प्राप्त हुई थी जिन्हें आयुर्वेद का जनक भी माना जाता है।

शल्य चिकित्सा (Surgery) में आचार्य सुश्रुत 125 तरह के सर्जरी उपकरणों का इस्तेमाल करते थे और उन्होंने 300 से ज्यादा प्रकार की सर्जरी ऑपरेशंस की खोज की थी। सुश्रुत संहिता में आचार्य सुश्रुत ने मोतियाबिंद के ऑपरेशन की जानकारियां भी साझा की हैं। इसके अलावा आचार्य सुश्रुत शल्य चिकित्सा द्वारा प्रसव कराने का ज्ञान भी रखते थे।

महर्षि भास्कराचार्य — गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत की खोजकर्ता (1114-1185)

आमतौर पर हम सब यही जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांतों की खोज आइजैक न्यूटन ने की थी। लेकिन शायद बहुत ही कम लोगों को पता होगा कि आज से सैकड़ों हजारों साल पहले ही भारतीय “महर्षि भास्कराचार्य” ने गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत की खोज कर दी थी।

महर्षि भास्कराचार्य प्राचीन भारत के महान ज्योतिष, गणितज्ञ और वैज्ञानिक थे।

भास्कराचार्य जी ने “सिद्धांत शिरोमणि” नाम से एक ग्रंथ की रचना की थी जिसके भीतर उन्होंने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का प्रतिपादन किया था। सिद्धांत शिरोमणि में भास्कराचार्य जी ने लिखा है कि,

“पृथ्वी एक विशिष्ट बल से आकाशीय पदार्थों और पिंडों को अपनी ओर आकर्षित करती है, इसी कारण मुक्त रूप से छोड़ने पर आकाशीय पिंड पृथ्वी पर गिरते हैं।”

इतना ही नहीं भास्कराचार्य जी पहले ऐसे गणितज्ञ थे जिन्होंने संपूर्ण आत्मविश्वास के साथ यह बताया था कि किसी संख्या को शून्य से विभक्त करने पर उसका मान अनंत हो जाता है। इसके अलावा उन्होंने तात तात्कालिक वेग और गति के बारे में भी अवधारणाएं प्रस्तुत की।

“गुरुत्वाकर्षण का जनक” कहे जाने के अलावा आचार्य भास्कराचार्य जी को “अवकलन गणित” का संस्थापक भी माना जाता है।

आचार्य चरक—भारतीय चिकित्सा विज्ञान के पिता (600 ईसापूर्व )

भारतीय आचार्य चरक को भारतीय चिकित्सा विज्ञान का पिता कहा जाता है। महर्षि चरक ने आज से कई हजारों साल पहले ही जटिल से जटिल प्राकृतिक बीमारियों का इलाज खोज रखा था। भारतीय चिकित्सा विज्ञान के जनक चरक ने ही “चरक संहिता” नाम के ग्रंथ की रचना भी की है जिसमें उन्होंने कई सारी प्राकृतिक बीमारियों और उनके इलाज के बारे में विस्तार पूर्वक बताया है।

आचार्य चरक ने अग्निवेश द्वारा रचे गए अग्निवेश तंत्र में कई नए अध्याय जोड़ कर उसे चरक संहिता का रूप दिया। चरक संहिता में उन्होंने विभिन्न रोगों और रोग निदेशक औषधियों के अलावा सोना, चांदी, लोहा और पारा समेत कई सारी धातुओं का भस्म और उनकी उपयोगिता का वर्णन किया है।

आचार्य आर्यभट्ट—गणितज्ञ (475 ईस्वी)

जब बात भारत के महान वैज्ञानिकों और गणितज्ञों की हो तो उसमें “आर्यभट्ट” का नाम कभी नहीं भुलाया जा सकता। आचार्य आर्यभट्ट भारत भूमि के वह महान गणितज्ञ थे जिन्होंने संपूर्ण विश्व को “शून्य (Zero)” से परिचित कराया।

आचार्य आर्यभट्ट ने ही “शून्य” की खोज की थी और 0 संकेत के रूप में शून्य का अस्तित्व स्थापित किया था।

आचार्य आर्यभट्ट भारत के महान गणितज्ञ और ज्योतिषविद थे जिन्होंने “आर्यभटीय” नाम के ग्रंथ की रचना की थी। ऐसा माना जाता है कि अपने समय काल में आर्यभट्ट नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति भी थे। आचार्य आर्यभट्ट ने ही पाई (π) का मान 3.1416 निरूपित किया था जो आर्कमिडीज के मान से भी ज्यादा सटीक था।

इस श्लोक के जरिए आर्यभट्ट द्वारा दिए गए पाई के मान को समझा जा सकता है।

"चतुराधिकं शतमष्टगुणं द्वाषष्टिस्तथा सहस्राणाम्

अयुतद्वयस्य विष्कम्भस्यासन्नो वृत्तपरिणाहः॥"

उपरोक्त सूत्र को गणितीय रूप में इस तरह लिखा जा सकता है।

(100+ 4) × 8 + 62000÷20000 = 3.1416

इसके अलावा आचार्य आर्यभट्ट ने ही बताया था कि पृथ्वी अपनी धुरी पर परिक्रमा करती है। उन्होंने यह भी बताया था कि पृथ्वी और सूर्य के बीच दूरी कितनी है।

महर्षि भारद्वाज (600 ईसापूर्व) वैमानिक शास्त्र के रचयिता

आज पूरी दुनिया हवाई जहाज के जरिए केवल कुछ मिनटों में मीलों का सफर तय कर लेती है लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि इन हवाई विमानों की खोज किसने की?

अगर बात करें आधुनिक विज्ञान और इंटरनेट की दुनिया की तो हमें हमेशा यही बताया जाता है कि हवाई जहाज और विमानों की खोज राइट ब्रदर्स ने की थी। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है।

आज हवाई जहाज और लड़ाकू विमान जिन वैज्ञानिक पद्धतियों का इस्तेमाल करके बनाए और उड़ाए जाते हैं उनका इतिहास कई हजार साल पुराना है।

महर्षि भारद्वाज ने विमान उड़ाने की पद्धतियों से संबंधित “वैमानिक शास्त्र” की रचना की थी जिसका उपयोग करके उस दौरान विमान तैयार किए जाते थे। रावण का पुष्पक विमान भी वैमानिक शास्त्र के सिद्धांतों और पद्धतियों पर काम करता था।

इसीलिए महर्षि भारद्वाज को “विमान शास्त्र” का जनक माना जाता है। अगर बात करें आधुनिक काल में तो भी राइट ब्रदर्स से पहले भारत में विमान बनाए जा चुके थे।

आपको जानकर हैरानी होगी कि साल 1985 में ही अमेरिका के राइट ब्रदर्स से पहले भारत के शिवकर बापूजी तलपड़े ने बनाया था। उन्होंने न केवल 1985 में विमान बनाया था बल्कि इसे उड़ाया भी था।

आपको बता दें कि बाद में अमेरिका के एक वैज्ञानिक ने बाद में इसी वैज्ञानिक शास्त्र का उपयोग करके एक एयरक्राफ्ट मॉडल तैयार किया था।

निष्कर्ष (Conclusion)

तो दोस्तों आज इस लेख के जरिए हमने आपको भारत के साथ ऐसे प्राचीन महान वैज्ञानिकों के बारे में बताया जिन्होंने आधुनिक खोजों के पहले ही बड़े-बड़े अविष्कारों को अंजाम दे दिया था।

भारत का प्राचीन और पौराणिक इतिहास अपने आप में विश्व का सबसे समृद्ध इतिहास है। पौराणिक काल में भारत की उपलब्धियां आधुनिक विश्व से कहीं ज्यादा बेहतर थी यह भारतीय पुराण और उनसे मिले साक्ष्य बताते हैं।

हमें ही भी भारत के पौराणिक ग्रंथ हूं भारत के पौराणिक इतिहास और प्राचीन वैज्ञानिकों के बारे में जानना चाहिए और अपने समृद्धि इतिहास पर गर्व करना चाहिए।

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