दुर्गा पूजा 2025 कब है? : भारत में नवरात्रि और दुर्गा पूजा का इंतजार पूरे साल लोग करते हैं। खासकर पश्चिम बंगाल, असम, झारखंड, बिहार और ओडिशा जैसे राज्यों में यह पर्व किसी बड़े उत्सव से कम नहीं होता। इस बार दुर्गा पूजा 28 सितंबर 2025 रविवार से शुरू होगी और 2 अक्टूबर 2025 गुरुवार को मां दुर्गा के विसर्जन और विजयादशमी के साथ समाप्त होगी। पूरे पांच दिन तक चलने वाले इस त्योहार में हर दिन का अपना अलग महत्व और परंपरा है, जिसे श्रद्धा और धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
विषय–सूची
दुर्गा पूजा 2025 का पूरा कैलेंडर
महापंचमी | 27 सितंबर 2025, शनिवार |
महा षष्ठी | 28 सितंबर 2025, रविवार |
महा सप्तमी | 29 सितंबर 2025, सोमवार |
महा अष्टमी | 30 सितंबर 2025, मंगलवार |
महा नवमी | 1 अक्टूबर 2025, बुधवार |
विजयादशमी / दशहरा | 2 अक्टूबर 2025, गुरुवार |
1. महापंचमी से शुरुआत
दुर्गा पूजा की असली धूम महा षष्ठी से मानी जाती है, लेकिन तैयारी महापंचमी से ही शुरू हो जाती है। इस दिन तक मूर्तियां लगभग पूरी हो जाती हैं और पंडालों में सजावट अपने अंतिम चरण में होती है। जगह-जगह लोग ढोल-नगाड़ों की ताल पर नाचते-गाते दिखाई देते हैं। बच्चे, बूढ़े और महिलाएं सभी नए कपड़े खरीदने में व्यस्त रहते हैं। बंगाल में तो ऐसा माहौल हो जाता है मानो पूरा राज्य किसी शादी की तैयारी कर रहा हो।
2. महा षष्ठी का महत्व
महाषष्ठी को दुर्गा पूजा का असली आगाज माना जाता है। इस दिन मां दुर्गा की मूर्ति का अनावरण किया जाता है और पंडालों में पूजा का क्रम शुरू हो जाता है। इस दिन बिल्व निमंत्रण और अकाल बोधन जैसे विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं। मान्यता है कि महा षष्ठी पर ही मां दुर्गा कैलाश पर्वत से अपने मायके यानी धरती पर आती हैं। भक्त उनका स्वागत ढोल-नगाड़ों, धुनुची नृत्य और घंटियों की आवाज से करते हैं।
3. महा सप्तमी और कोलाबोऊ पूजा
महासप्तमी को दुर्गा पूजा का पहला दिन माना जाता है। इस दिन खास परंपरा है, नवपत्रिका पूजा, जिसे बंगाल में कोलाबोऊ पूजा कहते हैं। इसमें केले के पौधे को लाल बॉर्डर वाली साड़ी पहनाई जाती है, उसे स्नान कराया जाता है और फिर गणेश जी के पास स्थापित किया जाता है।
इसका अर्थ होता है कि मां दुर्गा अपने पूरे परिवार के साथ आई हैं। इस दिन लोग सुबह-सुबह पंडालों में जुटते हैं, ढाक की आवाज गूंजती है और वातावरण भक्तिमय हो जाता है।
4. महाअष्टमी का महत्व
महा अष्टमी दुर्गा पूजा का सबसे खास दिन होता है। इस दिन को महिषासुरमर्दिनी की पूजा का दिन कहा जाता है क्योंकि पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। इस दिन की खास पूजा होती है। कुमारी पूजन, जिसमें छोटी बच्चियों को देवी का स्वरूप मानकर पूजते हैं। पंडालों में इस दिन सबसे ज्यादा भीड़ होती है, महाआरती होती है और ढोल-नगाड़ों की आवाज चारों ओर गूंजती है। बंगाल में लोग इस दिन खास पकवान बनाते हैं और पूरे परिवार के साथ त्योहार का आनंद उठाते हैं।
5. महानवमी की पूजा
महानवमी को पूजा का चरम माना जाता है। इस दिन सुबह-सुबह संधि पूजा और नवमी हवन किया जाता है। मान्यता है कि नवमी पर मां दुर्गा ने असुरों पर अपनी पूरी शक्ति का प्रयोग किया था और बुराई का अंत किया था। इस दिन पंडालों में इतनी भीड़ होती है कि लोग लाइन में खड़े होकर मां के दर्शन करते हैं। रात को महाआरती होती है और भक्त ढाक की धुन पर थिरकते हैं।
6. विजयादशमी और दुर्गा विसर्जन
2 अक्टूबर 2025 को विजयादशमी और दुर्गा विसर्जन होगा। इस दिन सुहागन महिलाएं मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं और एक-दूसरे के माथे पर भी सिंदूर लगाती हैं। इसे सिंदूर खेला कहते हैं। इसके बाद मां की मूर्तियों को ढोल-नगाड़ों और नृत्य के साथ पास के तालाब या नदी में विसर्जित किया जाता है।
भक्त मां से अगली साल फिर आने की प्रार्थना करते हैं। यह दृश्य भावुक कर देने वाला होता है, क्योंकि इसमें विदाई का दुख और अगले साल के मिलन की उम्मीद दोनों शामिल होते हैं।
दुर्गा पूजा से जुड़ी मान्यताएं
दुर्गा पूजा केवल त्योहार ही नहीं बल्कि आस्था और विश्वास का प्रतीक है। मान्यता है कि दशमी के दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का वध करके धर्म और न्याय की स्थापना की थी। इसी कारण दशहरा भी इस दिन मनाया जाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवान राम ने रावण का वध करने से पहले मां दुर्गा की पूजा की थी और उनकी कृपा से विजय प्राप्त की थी। तभी से दशमी को विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है।
दुर्गा पूजा का धार्मिक महत्व
दुर्गा पूजा शक्ति की उपासना का पर्व है। यह हमें सिखाती है कि चाहे बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अच्छाई की जीत निश्चित है। मां दुर्गा साहस, शक्ति और भक्ति का स्वरूप हैं। इस पर्व से समाज में एकता और भाईचारे का संदेश मिलता है।
दुर्गा पूजा का सांस्कृतिक रूप
आज के समय में दुर्गा पूजा सिर्फ धार्मिक पर्व नहीं बल्कि सांस्कृतिक उत्सव भी बन चुका है। पंडालों की भव्य सजावट, लाइटिंग, नृत्य, संगीत और खाने-पीने के स्टॉल लोगों को आकर्षित करते हैं। खासकर कोलकाता में दुर्गा पूजा के दौरान पर्यटक विदेशों से भी आते हैं। यहां की पंडाल सजावट और थीम वर्ल्ड लेवल पर फेमस हैं।
एक रोचक तथ्य
क्या आप जानते हैं कि भारत में पहली सार्वजनिक दुर्गा पूजा 1910 में कोलकाता में आयोजित की गई थी? उससे पहले लोग केवल अपने घरों में ही दुर्गा पूजा करते थे। धीरे-धीरे यह परंपरा सामूहिक उत्सव में बदल गई।
निष्कर्ष
दुर्गा पूजा 2025 की शुरुआत 28 सितंबर से होगी और 2 अक्टूबर को विजयादशमी व विसर्जन के साथ इसका समापन होगा। यह पर्व केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है बल्कि यह शक्ति, साहस, भक्ति और सांस्कृतिक धूमधाम का प्रतीक है। मां दुर्गा का यह उत्सव हर साल हमें याद दिलाता है कि बुराई कितनी भी बड़ी क्यों न हो, अच्छाई हमेशा जीतती है।