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जानिए करवा चौथ 2023 कब है, और क्यों मनाया जाता है? करवा चौथ व्रत कथा, निबन्ध | Poem Essay on Karva Chauth in Hindi

करवा चौथ व्रत कथा कहानी, पूजा का शुभ मुहूर्त, तिथि (Karva or Karwa Chauth Vrat katha, nibandh, poem, Speech, Essay on Karva Chauth in Hindi)

पूरे भारत में करवा चौथ का पर्व बड़े हर्ष उल्लास से मनाया जाता है। यह पर्व पति पत्नि के अटूट बंधन का का प्रतीक है। हिंदू धर्म की आस्था है कि महिलाएं जिस व्रत को निष्ठा के साथ रखती हैं उस व्रत का प्रयोजन सदैव सिद्ध होता है।

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जिस प्रकार माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कड़ी तपस्या और व्रत रखा था, जिस प्रकार सावित्री ने अपना पति व्रत रखकर यमराज से अपने पति के जीवन को बचाया था ठीक उसी प्रकार आज भी हिंदू धर्म की महिलाएं अपने पतियों की दीर्घायु और उनके जीवन की रक्षा करने के लिए पूरी निष्ठा के साथ करवा चौथ का व्रत रखती हैं।

करवा चौथ का कठिन निर्जला व्रत न केवल महिलाओं के पतिव्रत और निष्ठा का प्रतीक है बल्कि यह दांपत्य जीवन के पावन परिणय का भी प्रतीक है।

तो आइए आज इस आर्टिकल के जरिए आपको बताते हैं कि, करवा चौथ क्यों मनाया जाता है? इसके अलावा हम आपको इस आर्टिकल में करवा चौथ पर निबंध और कविता (Poem and Essay on Karva Chauth in Hindi) के बारे में भी बताएंगे।

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करवा चौथ कब है 2023, पूजा का शुभ मुहूर्त –

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत त्यौहार मनाया जाता है। इस बार साल 2023 में कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 31 अक्टूबर 2023 तथा 1 नवंबर 2023 दोनों दिन पड़ रही है।

चतुर्थी तिथि 2 दिन पड़ने के कारण काफी लोग कंफ्यूज है कि वह 31 अक्टूबर और 1 नवंबर में किस दिन करवा चौथ का व्रत रख सकते हैं और पूजन का शुभ मुहूर्त क्या है?

तो आपको बता दें कि इस बार कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत 31 अक्टूबर 2023 को रात्रि 9:30 पर प्रारंभ होगी जबकि चतुर्थी तिथि अगले दिन 1 नवंबर 2023 को रात्रि 9:09 पर समाप्त होगी।

हिंदू धर्म में उदया तिथि में ही व्रत त्यौहार मनाया जाता है इसीलिए 1 नवंबर 2023 को उदया तिथि में पडने के कारण इस बार 1 नवंबर 2023 को ही करवा चौथ का व्रत त्यौहार मनाया जाएगा।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि करवा चौथ 2023 पर पूजा का शुभ मुहूर्त 1 नवंबर 2023 की शाम 5:44 से लेकर रात 9:02 तक है। इस बीच करवा चौथ का व्रत रखने वाली महिलाएं पूजा आराधना कर सकती हैं। जबकि चांद निकलने का समय 1 नवंबर 2023 की रात 8:26 पर है हालांकि अलग-अलग जगह पर यह समय बदल सकता है।

आखिर क्यों मनाया जाता है करवा चौथ? करवा चौथ पर निबन्ध, व्रत कथा (Story Poem Essay on Karva Chauth in Hindi)

करवा चौथ का त्यौहार पति पत्नी के अटूट रिश्ते और उनके बीच प्रेम का प्रतीक है। हिंदू धर्म की महिलाएं पूरी निष्ठा के साथ करवा चौथ का व्रत रखती हैं। भारतीय महिलाओं का यह निर्जल व्रत उनके पतिव्रत और निष्ठा का प्रतीक है।

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वैसे तो करवा चौथ को लेकर कई सारी कथाएं प्रचलित हैं लेकिन लेकिन करवा चौथ को मनाने की सबसे लोकप्रिय मान्यता सावित्री से जुड़ी हुई है।

ऐसा कहा जाता है कि जब सावित्री के पति सत्यवान की मृत्यु हो गई और यमराज उसके प्राण को लेकर जाने लगे तो सावित्री यमराज से गिड़गिड़ा कर अपने पति के प्राण मांगने लगी।

लेकिन यमराज भी विधान के बंधन में थे इसलिए उन्होंने सत्यवान के प्राण लौटाने से इनकार कर दिया। सावित्री एक पतिव्रता स्त्री थी और सत्यवान से बहुत प्रेम करती थी। जब यमराज सत्यवान के प्राण को लेकर जाने लगे तो सावित्री हठ करने लगी।

जब यमराज ने सावित्री की एक न सुनी तो सावित्री अपने पति सत्यवान के मृत शरीर के पास अपना अन्न जल त्याग कर बैठ गई और करुण विलाप करने लगी। जब यमराज को लगा कि अब सावित्री नहीं मानने वाली तो उन्हें सावित्री पर दया आने लगी और उन्होंने सावित्री को कोई एक वर मांगने के लिए कहा।

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आइये जाने – हरियाली तीज क्यों मनाई जाती है? इसका महत्व व पौराणिक कथा

सावित्री ने अपने पति के प्राण बचाने के लिए एक युक्ति सोची और यमराज से गर्भवती होने का वरदान मांग लिया। क्योंकि सावित्री एक पतिव्रता स्त्री थी इसलिए वह सत्यवान के अलावा किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकती थी। होना क्या था यमराज को भी सावित्री के वरदान को पूरा करने के लिए मजबूर होना पड़ा और उन्होंने सत्यवान के प्राण वापस लौटा दिए।

तभी से हिंदू धर्म की महिलाएं सावित्री का अनुसरण करते हुए अपने पति के प्राणों की रक्षा और उनके दीर्घायु के लिए करवा चौथ का निर्जला व्रत रखती हैं।

कुछ लोग यह मानते हैं कि माता पार्वती ने भी भगवान शिव को पाने के लिए पूरी निष्ठा के साथ कई दिनों तक अन्न जल त्याग कर निर्जला व्रत रखा था जबकि कुछ लोग यह भी मानते हैं कि देवासुर संग्राम के दौरान इंद्र के प्राणों की रक्षा के लिए इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने यह व्रत रखा था।

इस प्रकार अलग-अलग स्थानों पर करवा चौथ को लेकर अलग-अलग मान्यताएं प्रचलित हैं लेकिन इनमें सावित्री की मान्यता सबसे अधिक प्रचलित है।

इस त्यौहार के अवसर पर पत्नियां पति के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और पूरा दिन अन्न जल त्याग कर रात को चंद्रमा और अपने पति का चेहरा चलनी में देखकर तब पति के हाथों अपना व्रत तोड़ती हैं। ऐसा नहीं है कि ऐसी महिलाएं यह व्रत नहीं रखती जिनके पति उनसे दूर रहते हैं बल्कि वह व्रत में अपने पति के छायाचित्र को छलनी में देखकर अपना व्रत तोड़ते हैं।

पूरी निष्ठा के साथ करवा चौथ का व्रत रख के महिलाएं अपने पति के लंबी उम्र की कामना करती हैं और उनके प्राणों की रक्षा के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं।

आइये पढ़ें-

कब मनाया जाता है करवा चौथ?

करवा चौथ की तिथि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चौथ तिथि को मनाया जाता है।

करवा चौथ के अवसर पर महिलाएं भोर से ही अपना व्रत शुरु कर देती हैं और रात में चांद का दर्शन करने के बाद अपना व्रत तोड़ते हैं।

इस दिन पत्नियां अपना संपूर्ण श्रृंगार करती हैं तथा अपने पति के लम्बी उम्र की कामनाएं करती हैं।

अपने हाथ पर मेहंदी रचाती हैं और उसने अपने पति का नाम लिखवाती हैं। लाल रंग की साड़ी और चुनरिया पहनती हैं। और गिन गिन कर अपना संपूर्ण 16 श्रृंगार करती हैं।

इस दिन महिलाएं देवी पार्वती, करवा देवी, चौथ माता और अपने पति की पूजा करती हैं और रात में व्रत तोड़ने से पहले छलनी में उनका मुंह देखकर दीपक जलाकर उनकी आरती उतारती हैं और उन्हीं के हाथों जलपान करके व्रत तोड़ते हैं।

करवा चौथ व्रत में क्यों देखा जाता है चांद?

करवा चौथ के दिन सबको चांद का इंतजार बेसब्री से रहता है क्योंकि इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं बिना चांद को देखे अपना व्रत नहीं तोड़ती।

चंद्रमा को शीतलता, मधुरता, प्रेम और दीर्घायु का प्रतीक माना जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि आखिर चांद को ही छलनी में देखकर महिलाएं करवा चौथ के दिन व्रत क्यों तोड़ती हैं?

दरअसल पौराणिक कथाओं के अनुसार वीरवती नाम की एक स्त्री ने करवा चौथ का व्रत रखा था। करवा चौथ के दिन निर्जल व्रत रखने के कारण शाम होते होते वीरवती भूख प्यास से व्याकुल हो गई।

जब उनके भाइयों ने उनकी इस दशा को देखा तो उनसे रहा नहीं गया और उन्होंने एक पेड़ की ओट के पीछे दिया जलाकर चांद उगने का भ्रम पैदा किया जिसे देखकर वीरवती ने अपना व्रत तोड़ लिया और उनके पति की मृत्यु हो गई।

वीरवती बहुत पतिव्रता स्त्री थी उसने अपने पति के शव का अंतिम संस्कार नहीं होने दिया बल्कि उसे अपने पास रखकर दिन प्रतिदिन करवा चौथ माता की पूजा करने लगी। धीरे-धीरे एक-एक दिन कटते गए और अगले साल करवा चौथ का समय आ गया। इस बार भी वीरवती ने पूरी निष्ठा के साथ अपना व्रत रखा और करवा चौथ के दिन उगते चांद को देखकर व्याकुलता से रोने लगी और करवा चौथ माता से अपने पति के प्राण मांगने लगी। इस पर करवा चौथ माता ने वीरवती को फिर से उसके पति के प्राण लौटा दिए। ऐसा माना जाता है कि तभी से ही हर करवाचौथ को चांद उगने के बाद ही उसे देखकर पत्नीयां अपना व्रत तोड़ती हैं।

करवा चौथ पर कविता –

पति-पत्नी का नाता जग में,
हर नाते से प्यारा है।

जब जब पति पर संकट आया,
पत्नियों ने उबारा है।

पार्वती ने तप व्रत रख कर,
शिव से परिणय पाया था।
इंद्राणी ने रखा था तो,
इंद्र सुरक्षित आया था।

नारी की निष्ठा के आगे,
यमराज भी उनसे हारा है।
पति-पत्नी का नाता जग में,
हर नाते से प्यारा है।

सत्यवान के प्राणों को जब,
लेने खुद यम आए थे।
किंतु सावित्री के व्रत को,
वो भी तो तोड़ न पाए थे।

पतिव्रता नारि के जीवन का,
पति ही सर्वदा सहारा है।

पति-पत्नी का नाता जग में,
हर नाते से प्यारा है।

करवा चौथ का व्रत रखती,
निज पति के पूजन करती है।
चांद देखकर ही पत्नी,
निज व्रत का खंडन करती है।

है धन्य प्रेम पति पत्नी का,
जो कभी किसी से न हारा है।

पति-पत्नी का नाता जग में,
हर नाते से प्यारा है।

FAQ

करवा चौथ कब मनाया जाता है?

कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी व दीपावली से 11 दिन पूर्व मनाया जाता है।

करवाचौथ का व्रत क्याें रखा जाता है?

यह व्रत सुहागिन स्त्री अपने पति की लंबी आयु व सुखी विवाहित जीवन के लिये रखती हैं।

2023 में करवाचौथ कब है?

इस साल 2023 में 1 नवंबर 2023 को करवा चौथ मनाया जाएगा।

करवाचौथ की पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है?

शाम 5.44 बजे से 7.02 बजे का है।

चाँद निकलने का समय क्या है?

इस बार करवा चौथ पर चाँद निकलने का समय 8.00 बजकर 26 मिनट है।

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