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ISRO Founder Vikram Sarabhai Facts in hindi : ISRO के जनक विक्रम साराभाई से जुड़ी कुछ खास बातें

Vikram Sarabhai 2023: भारत के महान वैज्ञानिक विक्रम साराभाई को भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों (Indian Space Programs)  का जनक माना जाता है।

ISRO Founder Vikram Sarabhai Facts in hindi : विक्रम साराभाई ने ही भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की स्थापना की थी जिसकी बदौलत आज पूरा हिंदुस्तान अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए दुनिया भर में जाना जा रहा है। विक्रम साराभाई ने अंतरिक्ष को लेकर भारत के लिए कई सारे ख़्वाब देखे थे और उनके इसी सपने ने आज भारत को चांद पर पहुंचा दिया है।

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भारत में अंतरिक्ष की दुनिया में जितनी भी उपलब्धियां हासिल की है उन सभी का श्रेय केवल एक आदमी को जाता है और वह हैं भारतीय स्पेस प्रोग्राम के जनक विक्रम साराभाई।

52 साल की उम्र में 30 दिसंबर 1971 को विक्रम साराभाई का निधन हो गया था। हर साल 30 दिसंबर को उनकी पुण्यतिथि पर भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों में उनके योगदानों को याद किया जाता है। विक्रम साराभाई ने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत से लेकर ISRO की स्थापना तक अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके अलावा भी उन्होंने कई सारी प्रमुख संस्थाओं की स्थापना की थी जिनके बारे में शायद बहुत कम ही लोगों को पता होगा।

23 अगस्त 2023 को भारत ने चन्द्रयान-3 मिशन के लैंडर को सफलतापूर्वक चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतार दिया है इसके साथ ही हमारा देश आज चांद के दक्षिणी ध्रुव तक पहुंचने वाला पहला देश बन गया है। पूरे विश्व में इसरो ने अपनी काबिलियत के झंडे गांड दिये है। इस गौराविंत करने के मौके पर हम आपको इसरो के जनक व संस्थापक विक्रम साराभाई के जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें बताते हैं।

भारतीय अंतरिक्ष प्रोग्राम के जन्मदाता विक्रम साराभाई से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

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विक्रम साराभाई ने ही की थी भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों की शुरुआत (Story and Facts about Vikram Sarabhai in hindi)

12 अगस्त 1919 को गुजरात के अहमदाबाद में जन्मे विक्रम साराभाई न केवल ISRO के पहले चेयरमैन थे बल्कि उनकी बदौलत ही भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत भी हुई थी।

विक्रम साराभाई ने ही मौजूदा भारत सरकार को अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत के लिए प्रेरणा दी थी। कहा जाता है कि जब रूस ने अपने पहले अंतरिक्ष यान स्पूतनिक का प्रक्षेपण किया था उस दौरान विक्रम साराभाई ने मौजूदा सरकार से भारत के अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों की शुरुआत के लिए आग्रह किया। विक्रम साराभाई की सलाह पर भारत सरकार ने साल 1962 में INCOSPAR अर्थात Indian National Committee For Space Research की स्थापना की थी जिसके बाद अंतरिक्ष की दुनिया में भारत के नए युग का प्रारंभ हुआ।

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ISRO के संस्थापक थे विक्रम साराभाई –

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ISRO की स्थापना विक्रम साराभाई ने ही की थी। विक्रम साराभाई ने 15 अगस्त 1969 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर ISRO की स्थापना की थी। हालांकि इसकी नींव साल 1962 मेंही INCOSPAR के रूप में पड़ गई थी जिसे बाद में पुनर्गठित कर के ISRO नाम दिया गया।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ISRO की स्थापना के बाद विक्रम साराभाई को ही ISRO का पहला चेयरमैन नियुक्त किया गया। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों में अपने इन्हीं योगदानों के कारण विक्रम साराभाई को भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों का जनक (Father Of Indian Space Programs) कहा जाता है।

परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष भी थे विक्रम साराभाई –

साल 1966 में डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा की मृत्यु के बाद विक्रम साराभाई को ही परमाणु ऊर्जा आयोग का कार्यभार सौंपा गया इन्हें परमाणु ऊर्जा आयोग का अगला अध्यक्ष नियुक्त किया गया।

सपने देखने और सच करने का जज्बा रखते थे विक्रम साराभाई –

डॉ. विक्रम साराभाई स्वप्नदृष्टा व्यक्तित्व के आदमी थे। उनके अंदर सपने देखने और उन्हें सच करने का भरपूर हौसला था।

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फ्रांस के भौतिक वैज्ञानिक पियरे क्यूरी जिन्होंने अपनी पत्नी मैडम क्यूरी के साथ पोलोनियम और रेडियम का आविष्कार किया था उनका मानना था कि विक्रम साराभाई का उद्देश्य अपने जीवन को सपना बना देना है लेकिन वह इन सपनों को वास्तविक रूप देने और पूरा करने का जज्बा भी रखते हैं। उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों को लेकर भी कई सारे सपने सजाए थे जो आज सच हो गए हैं। उनके सपनों की बदौलत ही आज भारत ने चांद की धरती पर कदम रखा है और मंगल समेत कई ग्रहों तक अपनी पहुंच बना रहा है।

ISRO के अलावा कई प्रमुख संस्थानों के संस्थापक थे विक्रम साराभाई –

विक्रम साराभाई ने अपने जीवन में विभिन्न प्रमुख संस्थानों की स्थापना की थी जिनमें ISRO का नाम शामिल है।

इसके अलावा भी कई सारे ऐसे प्रमुख संस्थान हैं जिन की अस्थापना विक्रम साराभाई द्वारा की गई थी लेकिन ज्यादातर लोगों को इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।

विक्रम साराभाई के सुझाव पर ही INCOSPAR की स्थापना हुई थी जिसने बाद में इसरो का रूप ले लिया। इसके अलावा विक्रम साराभाई ने भारतीय प्रबंध संस्थान (IIM) Ahmedabad, भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (PRL), भारतीय इलेक्ट्रॉनिक निगम लिमिटेड, हैदराबाद और भारतीय यूरेनियम निगम लिमिटेड जादूगुड़ा, बिहार की स्थापना की थी।

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विक्रम साराभाई को मिले सम्मान (Vikram Sara Bhai Awards)

भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों के जनक विक्रम साराभाई को जीवन में विभिन्न उत्कृष्ट पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। साल 1962 में उन्हें शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से नवाजा गया था। जबकि साल 1966 में विक्रम साराभाई को अंतरिक्ष कार्यक्रमों की पहल और योगदान के लिए पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनकी मृत्यु के पश्चात साल 1972 में उन्हें पद्म विभूषण पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।

30 दिसंबर 1972 के दिन विक्रम साराभाई की पहली पुण्यतिथि पर भारतीय डाक विभाग में उनके नाम से एक डाक टिकट भी जारी किया था। इतना ही नहीं डॉ विक्रम साराभाई की मृत्यु के पश्चात उनके सम्मान में तिरुअनंतपुरम के थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लाँचिंग स्टेशन (टीईआरएलएस) का नाम बदलकर विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र रख दिया गया।

विक्रम साराभाई की मौत मानी जाती है एक पहेली –

30 दिसंबर 1971 की रात तिरुवनंतपुरम, केरल के कोवलम में विक्रम साराभाई का देहांत हो गया।

विक्रम साराभाई की मौत को कई बार अंतरराष्ट्रीय साजिश के तौर पर भी बताया जाता है। विक्रम साराभाई की मौत एक पहेली बन कर रह गई।

कहा जाता है कि 30 दिसंबर 1971 जिस रात विक्रम साराभाई की मौत हुई थी उस दिन उन्होंने देश के विभिन्न वैज्ञानिकों के साथ कई बैठकों में हिस्सा लिया था। इतना ही नहीं मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यह भी बताया जाता है कि विक्रम साराभाई ने मौत के ठीक एक से डेढ़ घंटे पहले उस समय भारत के मौजूदा राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम से बातचीत भी की थी।

विक्रम साराभाई के बैठकों में शामिल होने के दौरान उनकी तबीयत नहीं कोई असंतुलन नहीं था और वह अपनी सेहत का भी काफी विशेष ध्यान देते थे लेकिन 30 दिसंबर 1971 की रात हृदय गति रुक जाने के कारण उनकी मौत हो गई और अगले दिन कोवलम के एक होटल में उनका शव बरामद हुआ। भारतीय वैज्ञानिक नंबी नारायण की आत्मकथा में भी उन्होंने विक्रम साराभाई की मौत को एक संदिग्ध घटना के तौर पर जताया है। नंबी नारायण के मुताबिक उन्हें विश्वास ही नहीं था कि विक्रम साराभाई की मौत इतनी अकस्मात हो जाएगी। अपनी आत्मकथा में उन्होंने विक्रम साराभाई की मौत के पीछे अंतरराष्ट्रीय साजिशों का संदिग्ध तौर पर हाथ भी बताया था।

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