200 वीं स्वामी महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती आर्य समाज के संस्थापक, जीवन परिचय, जीवनी, समाज सुधारक, जन्म, मृत्यु कब हुई, कारण (Swami Dayanand Saraswati Biography and Jayanti 2023 in Hindi), दयानंद सरस्वती के राजनीतिक, सामाजिक विचार, शिक्षा संबंधित विचार
19 वीं सदी भारत के लिए बेहद स्वर्णिम सदी रही क्योंकि इसी दौरान भारत में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का क्रांतिकारी विरोध हुआ था। भारत के लिए 19 वीं सदी का दौर एक ऐसा दौर था जिसमें कई महान पुरुषों ने भारत में जन्म लिया और अपने ज्ञान तथा अनुभव से न केवल आजादी की लड़ाई का नेतृत्व किया बल्कि पूरी दुनिया को धर्म और वेदों का पाठ पढ़ाया।
स्वामी विवेकानंद से लेकर महर्षि दयानंद सरस्वती तक एक से बढ़कर एक महापुरुष 19वीं सदी में पैदा हुए l महर्षि दयानंद सरस्वती एक ऐसे महापुरुष थे जिन्होंने न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया को वेदों का पाठ पढ़ाया और वेदों की ओर लौटने के लिए कहा।
महर्षि दयानंद सरस्वती एक महान समाज सुधारक थे जिन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त रूढ़िवादी कुरीतियों को दूर करने के लिए अनेक कदम उठाए और आर्य समाज की स्थापना भी की।
अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक महर्षि दयानंद सरस्वती 12 फरवरी के दिन पैदा हुए थे जबकि हिंदू पंचांग के मुताबिक उनका जन्म फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी के दिन हुआ था।
विषय–सूची
महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती 2023 –
अगर बात करें अंग्रेजी कैलेंडर की, तो महर्षि दयानंद सरस्वती जी 12 फरवरी 1824 को पैदा हुए थे जबकि हिंदू पंचांग के मुताबिक इनका जन्म फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष की दशमी के दिन हुआ था।
इस बार 12 फरवरी 2023 को महर्षि दयानंद सरस्वती की 200 वीं जयंती के खास मौके पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी दिल्ली के इंदिरा गांधी इनडोर स्टेडियम में वर्ष भर चलने वाले समारोह का उद्घाटन करेंगे। 12 फरवरी 2023 को सुबह 11:00 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी इस कार्यक्रम का उद्घाटन करेंगे और सार्वजनिक सभा को संबोधित भी करेंगे।
हिंदू पंचांग के मुताबिक इस बार 15 फरवरी 2023 को महर्षि दयानंद सरस्वती की जयंती पड़ रही है, क्योंकि इसी दिन फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि है।
ऐसे में हिंदू पंचांग को मानने वाले लोग 15 फरवरी 2023 के दिन ही महर्षि दयानंद सरस्वती की जयंती मनाएंगे। हालांकि भारत सरकार ने 12 फरवरी 2023 को ही महर्षि दयानंद सरस्वती की 200 वीं जयंती को एक खास समारोह के शुभारंभ के तौर पर मनाने का निर्णय लिया है।
महर्षि दयानंद सरस्वती का जीवन परिचय (Swami Dayanand Saraswati Biography in hindi)
पूरा नाम (Full Name) | महर्षि दयानंद सरस्वती |
जन्म का नाम (Birth Name) | मूल शंकर अंबा शंकर तिवारी |
प्रसिद्दि | आर्य समाज के संस्थापक |
कार्य | समाज सुधारक, आर्य समाज के संस्थापक |
गुरु | विरजानन्द |
जन्म (Date of Birth) | 12 फरवरी 1824 |
जन्म स्थान (Place of Birth) | टंकारा, काठियावाड़, गुजरात |
पिता (Father Name) | करशनजी लालजी कपाड़ी |
माता का नाम (Mother Name) | यशोदाबाई |
मृत्यु का कारण (Reason of Death) | हत्या |
निधन (Death) | 30 अक्टूबर 1883 |
मृत्यु का स्थान | अजमेर, राजस्थान |
उम्र (age) | 59 वर्ष |
धर्म (Religion) | हिंदु |
जाति | ब्राह्मण |
वैवाहिक स्थिति | अविवाहित |
पत्नी का नाम (Wife) | शादी नहीं की |
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महर्षि दयानंद सरस्वती जी के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें।
- महर्षि दयानंद सरस्वती जी आर्य समाज के संस्थापक थे। एक समाज सुधारक होने के साथ-साथ स्वामी दयानंद सरस्वती जी एक सच्चे देशभक्त भी थे जिन्होंने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 की क्रांति में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
- इनका जन्म 12 फरवरी 1824 को गुजरात के टंकारा में हुआ था। दयानंद सरस्वती जी का जन्म गुजरात के एक ब्राम्हण परिवार में हुआ था। उनके बचपन का नाम मूल शंकर अंबा शंकर तिवारी था।
- 1846 में इन्होंने सन्यासी जीवन जीने का फैसला किया और महज 21 साल की उम्र में संन्यास के पथ पर निकल पड़े।
- महर्षि दयानंद सरस्वती जी के जीवन में एक ऐसी घटना घटित हुई जिन्होंने एक साधारण इंसान से उन्हें महापुरुष बना दिया। इस रोचक घटना ने उनका पूरा जीवन बदल कर रख दिया। कहा जाता है कि एक बार महाशिवरात्रि की रात जागरण करने के दौरान महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने अपनी आंखों से एक दृश्य देखा जिसने उनका जीवन सार्थक कर दिया।
- कहा जाता है कि स्वामी जी ने देखा कि कुछ चूहे भगवान शिव की प्रतिमा को घेर कर उनको चढ़ाए गए प्रसाद को खा रहे हैं। इस साधारण से दृश्य को देखने के बाद स्वामी दयानंद सरस्वती जी के मन में यह सवाल उठा कि भगवान शिव की यह प्रतिमा केवल एक पत्थर की शिला है जो अपनी और अपने ऊपर चढ़ाए गए प्रसाद की भी रक्षा नहीं कर सकती? फिर इस मूर्ति की आराधना करने का क्या अर्थ है? और इससे क्या अपेक्षा की जा सकती है?
- इस घटना के बाद महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने अपने जीवन को बदलने का एक निर्णायक फैसला लिया और आत्म की खोज के लिए निकल पड़े। इन्होंने वेदों उपनिषदों का कहां का अध्ययन किया और अपने अनुभवों तथा ज्ञान से पूरी दुनिया को वेदों का पाठ पढ़ाया।
- महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने ही वेदों की ओर लौटो का नारा दिया था। सरस्वती जी का मानना था कि संसार का संपूर्ण ज्ञान वेदों में निहित है। वेद ही नैतिकता का पाठ पढ़ा सकते हैं और शिक्षा दे सकते हैं। वेदों अनुसरण करने से ही हमें आत्मज्ञान की प्राप्ति हो सकती है और हमारा जीवन सार्थक हो सकता है।
- साल 1875 में समाज में व्याप्त कुरीतियों और रूढ़िवादी परंपराओं से समाज को निजात दिलाने के लिए महर्षि दयानंद जी ने आर्य समाज की स्थापना की थी। आर्य समाज के जरिए महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने भारतीय समाज में व्याप्त सभी पाखंडो को दूर करने का सार्थक प्रयास किया।
- एक महान समाज सुधारक और देशभक्त होने के साथ-साथ स्वामी दयानंद सरस्वती जी एक महान लेखक भी थे जिन्होंने सत्यार्थ प्रकाश नामक ग्रंथ की रचना की।
- महर्षि दयानंद सरस्वती जी हिंदी को भारत की मातृभाषा बनाने के लिए संकल्पित थे। उन्होंने अपने पूरे जीवन में आर्य भाषा हिंदी को बढ़ावा देने के लिए इसका प्रचार प्रसार किया।
- 1857 की क्रांति में भी महर्षि दयानंद सरस्वती जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा। भारतीय प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के स्वतंत्रता सेनानी दयानंद सरस्वती जी से प्रेरित थे। दयानंद सरस्वती जी ने खुलकर अंग्रेजों का विरोध करना शुरू किया और उनकी गलत नीतियों का पर्दाफाश किया।
- 1857 की क्रांति में उन्हीं से प्रेरणा लेकर तात्या टोपे और वीरांगना लक्ष्मीबाई समेत कई भारतीय क्रांतिकारियों ने पहले क्रांतिकारी विद्रोह को जन्म दिया।
- 19 वीं सदी में भारतीय समाज रूढ़वादी विचारधारा में जकड़ा हुआ था। उस दौर में बाल विवाह सती प्रथा और जाति तथा वर्ग भेद जैसी कुरीतियां चरम पर थी। आर्य समाज की स्थापना और अभियान के जरिए स्वामी दयानंद सरस्वती ने इन सभी कुरीतियों से जमकर लोहा लिया और उन्हें समाप्त करने का भरपूर प्रयास किया
- दयानंद सरस्वती जी मूर्ति पूजा के भी विरोधी थे। वह मूर्ति पूजा और बलि को एक पाखंड मानते थे। उनका मानना था कि ईश्वर का स्वरूप साकार नहीं है बल्कि ईश्वर एक निराकार स्वरूप में रहता है जो संसार की सभी वस्तुओं में निवास करता है। ईश्वर एक ऐसा निराकार ब्रह्म है जो जल की तरह जिस पात्र में जाता है, उसी की आकृति ले लेता है।
- स्वामी दयानंद सरस्वती जी का मानना था कि जीवन में वेदों का अनुसरण करना बेहद आवश्यक है।
- क्योंकि वेद ही हमें उचित अनुचित सत्य असत्य और सही गलत का पाठ पढ़ाते हैं। इसीलिए उन्होंने वेदों की ओर लौटने की बात भी कही थी।
- 30 अक्टूबर 1883 को स्वामी दयानंद सरस्वती जी धरती माता की गोद में सदा के लिए सो गए।
तो दोस्तों आज इस लेख के जरिए हमने आपको महर्षि दयानंद सरस्वती जी के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें बताई। उम्मीद करते हैं कि हमारा यह लेख आपको पसंद आया होगा।
महर्षि दयानंद सरस्वती कौन थे?
आर्य समाज की स्थापना किसने की थी?
महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने।
महर्षि दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना कब की?
सन 1875 में महर्षि दयानंद सरस्वती द्वारा आर्य समाज की स्थापना की गई थी।
महर्षि दयानंद सरस्वती क्यों प्रसिद्ध है?
महर्षि दयानंद सरस्वती अपने धर्म समाज सुधार और आंदोलन के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिए आर्य समाज की स्थापना की।
महर्षि दयानंद सरस्वती के गुरु कौन थे?
महर्षि दयानंद सरस्वती ने किस पुस्तक की रचना की?
महर्षि दयानंद सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश की रचना की थी।
वेदों की ओर लौटो का नारा किसने दिया?
महर्षि दयानंद सरस्वती ने ही वेदों की ओर लौटने का नारा दिया था।
आइये इन्हें भी जानें–