क्या है रुद्राभिषेक, रुद्राभिषेक क्या होता है? रुद्राभिषेक कब करना चाहिए? रुद्राभिषेक कब एवं क्यों किया जाता है? रुद्राभिषेक मंत्र , विधि इन हिंदी, रुद्राभिषेक के फायदे, नियम, रुद्राभिषेक पूजन सामग्री लिस्ट (Rudrabhishek kya hota hai, kyon kiya jata hai, kab kiya jata hai, Rudrabhishek ke fayde)
हिंदू संस्कृति में भगवान शिव की आराधना के लिए सावन के महीने को सर्वोत्तम माना जाता है। इस सावन के महीने में पूरे विधि विधान के साथ भगवान शिव जी को प्रसन्न करने के लिए रुद्राभिषेक किया जाता। सावन में रुद्राभिषेक को अधिक महत्व इसलिए भी दिया जाता है क्योंकि माना जाता है कि भगवान शिव इस महीने धरती पर अवतरित हुए थे।
सावन मास में सोमवार की तिथियां रुद्राभिषेक के लिए बेहद उत्तम मानी जाती हैं साथ ही साथ श्रावण मास की शिवरात्रि भी रुद्राभिषेक के लिए उतना ही खास महत्व रखती है जितना कि सावन के सोमवार रखते हैं। ऐसी मान्यता है कि सावन की शिवरात्रि की मौके पर केवल जल द्वारा रुद्राभिषेक किया जाता है। सावन की शिवरात्रि पर जल द्वारा भगवान शिव का अभिषेक बेहद शुभ फलदाई होता है।
हमारे धर्म ग्रंथो में यह अवधारणा है कि श्रावण में भगवान शिव का रुद्राभिषेक करने से न केवल पुण्य फल की प्राप्ति होती है बल्कि कुंडली में ग्रह दोष तथा कालसर्प दोष आदि से भी मुक्ति मिलती है। खासकर सावन की शिवरात्रि पर भगवान शिव का अभिषेक करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
अगर आप भी अपने घर या निवास स्थान पर रुद्राभिषेक करवाना चाहते हैं, तो इस आर्टिकल को पूरा पढ़े क्योंकि इस आर्टिकल में सावन 2025 में रुद्राभिषेक की शुभ तिथियां और शुभ मुहूर्त दोनों के बारे में भी बताया गया है।
तो आइए जानते हैं रुद्राभिषेक से जुड़ी पूरी जानकारी- रुद्राभिषेक क्या होता है, रुद्राभिषेक क्यों किया जाता? रुद्राभिषेक कैसे किया जाता है? रुद्राभिषेक की पूजन, विधि, नियम, मंत्र एवं पूजन सामग्री।
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विषय–सूची
रुद्राभिषेक क्या है? इसका महत्व(Meaning of Rudrabhishek)
सबसे पहले हम जानते हैं कि रुद्राभिषेक क्या होता है? रुद्राभिषेक का शाब्दिक अर्थ है रूद्र का अभिषेक। रूद्र अर्थात भगवान शिव एवं अभिषेक का अर्थ स्नान से है।
रुद्राभिषेक का अर्थ है भगवान रुद्र का अर्थात शिवलिंग पर रूद्र के मंत्रों द्वारा अभिषेक करना। भगवान शिव को अत्यंत दयालु माना गया है और कहते हैं कि जो भी भक्त भगवान शिव की श्रद्धा के साथ पूजा अर्चना करता है तो भगवान से उसकी मनोकामना को अवश्य ही पूर्ण करते हैं।
माना जाता है कि सावन मास या श्रावण मास में अगर भगवान शिव का रुद्राभिषेक किया जाता है तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।
माना जाता है कि रुद्राभिषेक के करने से हमारी कुंडली के सभी दोषों से मुक्ति मिलती है। सभी प्रकार के सांसारिक सुखो की प्राप्ति होती हैं।
रुद्राभिषेक अलग-अलग रूपों में किया जाता है। अपनी मनोकामना के अनुसार अलग-अलग प्रकार के द्रव्य एवं पूजन सामग्री द्वारा रुद्राभिषेक किया जाता है।
रूद्रहृदयोपनिषद में कहा गया है कि – ” सर्वदेवात्मको रूद्रः सर्वे देवाः शिवात्मका:” इसका अर्थ है सभी देवताओं की आत्मा में रुद्र उपस्थित है और सभी देवता रूद्र की आत्मा है।
तो आइए जानते हैं रुद्राभिषेक क्यों किया जाता है एवं रुद्राभिषेक की विधि
रुद्राभिषेक क्यों किया जाता है?
रुतम् – दुखम्, द्रावयति- नाश्यती तिरुद्रः अर्थात रूद्र रूप में प्रतिष्ठित भगवान शिव हमारे सभी दुखों को शीघ्र ही समाप्त कर देते हैं।
रुद्राभिषेक करने से हमारे जीवन के कष्ट दूर होते हैं एवं हमारी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र भगवान शिव के पूजन से ही सभी देवताओं की पूजा भी स्वत: हो जाती है।
रुद्राभिषेक द्वारा हमें भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है रुद्राभिषेक के करने से कम ही समय में हमारी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है तथा इच्छानुसार फल की प्राप्ति होती है।
अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि दोष राहु दोष मांगलिक दोष या अंगारक दोष होता है तो भगवान शिव का रुद्राभिषेक अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है।
भगवान शिव का अभिषेक करने से उस व्यक्ति की कुंडली से इन सभी दोषों को दूर करने में महत्वपूर्ण होता है।
पुराणों में भी किया गया है रुद्राभिषेक का वर्णन :
पुराणों में रुद्राभिषेक से संबंधित अनेक कथाएं प्रचलित हैं।
प्रथम कथा – प्राचीन पौराणिक ग्रंथों में वर्णित कथानुसार भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न कमल में ब्रह्मा जी का जन्म हुआ तत्पश्चात ब्रह्मा जी ने अपने जन्म के रहस्य को जानने की इच्छा जागृत हुई। इस जिज्ञासा को लेकर व विष्णु से अपने जन्म के रहस्य के बारे में पूछा। तब पालनहार विष्णु जी ने कहां की आप का जन्म मेरी नाभि से उत्पन्न कमल से हुई है यह सुनकर ब्रह्मा जी क्रोधित हो गये।
बहुत बहस करने पर दोनों में भयंकर युद्ध छिड़ गया। इस युद्ध को समाप्त करने के लिये भगवान शिव ने रौद्र रुप धारण कर लिया और एक अनंत ज्योर्तिलिंग में परिवर्तित हो गये। दोनों को लिंग का अंतिम छोर ढूंढने को कहां, परन्तु दोनों इस कार्य में असफल हो गये। अंत में दोनों ने हार मान ली और भगवान शिव के ज्योर्तिलिंग का अभिषेक करके महादेव को प्रसन्न किया। तभी से रुद्राभिषेक परंपरा प्रारंभ हुई।
एक कथा के अनुसार कहा जाता है कि रावण ने अपने 10 सिर काटकर उसके रक्त से शिवलिंग का अभिषेक किया, तथा अपने सिरों को हवन की अग्नि में समर्पित कर दिया जिससे रावण त्रिलोकजयी हो गया था।
भस्मासुर ने अपनी आंखों के आंसू से शिवलिंग का अभिषेक किया था जिससे वह भगवान के वरदान का पात्र बन गया था।
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रुद्राभिषेक कब करना चाहिए?
सामान्यतः सोमवार के दिन रुद्राभिषेक किया जाता है लेकिन सावन के महीने में रुद्राभिषेक करना और भी शुभ माना जाता है ।
इसके अलावा हम शिवरात्रि के दिन भी रुद्राभिषेक कर सकते हैं। सावन के महीने में भगवान शिव के रुद्राभिषेक का विशेष महत्व माना जाता है। महाशिवरात्रि मासिक शिवरात्रि तथा सावन की शिवरात्रि पर भगवान शिव का रुद्राभिषेक करना पुण्य फलदाई होता है।
इन सभी शिवरात्रियों में सबसे महत्वपूर्ण होती है सावन माह की शिवरात्रि क्योंकि सावन के पवित्र मास मे पड़ने के कारण शिवरात्रि का महत्व अन्य मासिक शिवरात्रि की तुलना में कई गुना ज्यादा हो जाता है।
और यह एकमात्र ऐसी शिवरात्रि है जब केवल जल अभिषेक से भगवान रुद्र को प्रसन्न किया जा सकता है, इसके अतिरिक्त किसी भी सोमवार को आप सामान्य लघु रूद्र अनुष्ठान करवा सकते हैं।
रुद्राभिषेक कब नहीं करना चाहिए?
रूद्र संहिता के अनुसार कुछ ऐसी विशेष तिथयां हैं जिनमें रुद्राभिषेक कराना बिल्कुल वर्जित माना जाता है।
यह विशेष तिथियां कृष्ण पक्ष की सप्तमी, कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी एवं पूर्णिमा है। रूद्र आचार संहिता के अनुसार शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा एवं अष्टमी तिथि के दिन भी रुद्राभिषेक नहीं कराना चाहिए।
क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इन दिनों भगवान शिव समाधि में लीन रहते हैं, और रुद्राभिषेक का मतलब है कि भगवान शिव को उनकी समाधि से जगाना। जो कि किसी भी प्रकार से उचित नहीं है इसीलिए हमें इन दिनों का खास ध्यान रखना चाहिए।
रुद्राभिषेक पूजन सामग्री लिस्ट –
रुद्राभिषेक करने से पहले अभिषेक में लगने वाली सभी सामग्रियों को एक स्थान पर एकत्र कर लेना चाहिए।
रुद्राभिषेक में विशेषता दीया तेल बाती सिंदूर, चंदन धूप कपूर अगरबत्ती सफेद फूल बेल पत्र दूध दही घी शहद एवं चीनी एवं गंगाजल का प्रयोग किया जाता है।
क्र. | रुद्राभिषेक सामग्री लिस्ट (List of Rudrabhishek Samagri) |
---|---|
1. | रुद्राक्ष, भस्म |
2. | भांग, धतूरा |
3. | कनैल फूल |
4. | चावल – अक्षत |
5. | पान, सुपारी |
6. | शुद्ध गंगाजल |
7. | फूलों की माला, फूल (गुलाब, गेंदा, संतराज आदि) |
8. | पंचमेवा, मिठाई |
9. | पंचामृत (घी, दूध, दही, शक्कर, शहद) |
10. | नैवेद्य, फल, केले आदि। |
11. | इलायची (छोटी), लौंग। |
12. | इत्र |
13. | भगवान के लिए वस्त्र व उपवस्त्र |
14. | गणेशजी के वस्त्र |
15. | गणेशजी के लिए दूर्वा |
16. | पंचपात्र लोटा |
17 | अर्घ्य पात्र |
18. | धूप – अगरबत्ती |
19. | कपूर, रुई, दीपक, तेल |
20. | केसर,चंदन, कुमकुम, रोली |
21. | यज्ञोपवीत , नाला (मौली) |
रुद्राभिषेक के नियम –
जब कभी भी किसी व्यक्ति को रुद्राभिषेक करवाना हो तो सबसे पहले उचित समय एवं मुहूर्त अवश्य देखना चाहिए।
क्योंकि किसी गलत मुहूर्त में रुद्राभिषेक करने से आपको भगवान शिव का आशीर्वाद नहीं मिलेगा एवं उचित फल की प्राप्ति नहीं होगी।
आइए जानते हैं रुद्राभिषेक से जुड़े नियम –
- रुद्राभिषेक करने के लिए आपको किसी शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए।
- अगर भगवान शिव का कोई मंदिर किसी नदी के तट पर स्थित हो तो उस स्थान पर शिवलिंग के रुद्राभिषेक करने से उचित फल की प्राप्ति होती है।
- यदि आप चाहें तो अपने घर पर स्थित शिवलिंग पर भी रुद्राभिषेक कर सकते हैं ।
- किसी मंदिर में गर्भ ग्रह में स्थित शिवलिंग का अभिषेक करना अधिक फलदायक होता है।
- यदि आप जल्द से रुद्राभिषेक कर रहे हैं तो उसके लिए तांबे के बर्तन का ही प्रयोग करें ।
- रुद्राभिषेक के दौरान रुद्राष्टाध्यायी मंत्रों का जाप करना चाहिए
रुद्राभिषेक की पूजा विधि –
- रुद्राभिषेक विद्वान ब्रहाम्ण के परामर्श द्वारा विधि-विधान के साथ, अपनी धर्मपत्नी एवं संपूर्ण परिवार सहित किया जाता है।
- रुद्राभिषेक शुरू करने से पहले भगवान गणेश जी की श्रद्धा भाव से पूजा अर्चना की जाती है।
- इसके बाद रुद्राभिषेक करने का संकल्प लिया जाता है और फिर इसकी विधि शुरू की जाती है।
- इसके बाद भगवान शिव पार्वती एवं अन्य देवताओं तथा नौ ग्रहों का मनन करके रुद्राभिषेक का उद्देश्य बताया जाता है। इस पूजा विधि के संपन्न होने के बाद रुद्राभिषेक की प्रक्रिया शुरू की जाती है।
- इसके बाद शिवलिंग को उत्तर दिशा में स्थापित किया जाता है यदि शिवलिंग पहले से ही उत्तर दिशा में स्थापित है तो और भी उचित है।
- रुद्राभिषेक करने के लिए आपको पूरब दिशा की ओर मुख करके बैठे एवं गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करते हुए विधि को शुरू करें।
- आप सबसे पहले शिवलिंग को गंगाजल से स्नान कराने के बाद जिन भी वस्तुओं से रुद्राभिषेक करना चाहते हैं उन सभी चीजों को शिवलिंग पर अर्पित करें।
- इस पूरी प्रक्रिया के दौरान भगवान शिव का मंत्र “ओम नमः शिवाय” का जाप करें। इसके बाद से भगवान शिव को को प्रसाद चढ़ाकर उनकी आरती करें ।
- रुद्राभिषेक मैं अर्पित किए गए जल को सभी पर छिड़कें।
रुद्राभिषेक में इन मंत्रों का करें जाप (Rudrabhishek mantra)-
रुद्राभिषेक के दौरान इन मंत्रों का जाप करना उत्तम माना जाता है। –
रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: ॐ नम: शम्भवाय च मयोभवाय च नम: शंकराय च मयस्कराय च नम: शिवाय च शिवतराय च ॥ ईशानः सर्वविद्यानामीश्व रः सर्वभूतानां ब्रह्माधिपतिर्ब्रह्मणोऽधिपति ब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदाशिवोय् ॥ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥ अघोरेभ्योथघोरेभ्यो घोरघोरतरेभ्यः सर्वेभ्यः सर्व सर्वेभ्यो नमस्ते अस्तु रुद्ररुपेभ्यः॥ वामदेवाय नमो ज्येष्ठारय नमः श्रेष्ठारय नमो रुद्राय नमः कालाय नम: कलविकरणाय नमो बलविकरणाय नमः बलाय नमो बलप्रमथनाथाय नमः सर्वभूतदमनाय नमो ।। सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः । भवे भवे नाति भवे भवस्व मां भवोद्भवाय नमः ॥ नम: सायं नम: प्रातर्नमो रात्र्या नमो दिवा । भवाय च शर्वाय चाभाभ्यामकरं नम: ॥ ओम त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिबर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात् ॥ सर्वो वै रुद्रास्तस्मै रुद्राय नमो अस्तु । पुरुषो वै रुद्र: सन्महो नमो नम: ॥ विश्वा भूतं भुवनं चित्रं बहुधा जातं जायामानं च यत् । सर्वो ह्येष रुद्रस्तस्मै रुद्राय नमो अस्तु ॥
रुद्राभिषेक के फायदे –
शिव पुराण में बताया गया है कि आप जब जब वे से भगवान शिव का अभिषेक करते हैं उसी के अनुरूप आपको फल की प्राप्ति होती है।
अर्थात आप अपने जो भी उद्देश्य से भगवान शिव का अभिषेक कर रहे हैं आपको उसी के अनुरूप विधि का पालन करना।
रुद्राभिषेक के करने से कालसर्प योग, गृह क्लेश, व्यापार में नुकसान जैसी समस्याओं से मुक्ति मिलती है। इसके साथ-साथ ही संतान सुख तथा धन-संपत्ति में वृद्धि होती है।
- भगवान शिव का जल से अभिषेक करने पर वर्षा होती है
- भगवान शिव का दही से अभिषेक करने पर भवन एवं वाहन की प्राप्ति में सफलता मिलती है।
- गन्ने के रस से रुद्राभिषेक करने से धन की प्राप्ति होती है।
- शहद एवं घी से रुद्राभिषेक करने से धन संपदा में वृद्धि होती है।
- अगर आप किसी तीर्थों के जल से अभिषेक करते हैं तो मोक्ष की प्राप्ति होती है ।
- सरसों के तेल से रुद्राभिषेक करने से शत्रुओं पर जीत हासिल होती है।
- गाय के दूध एवं शुद्ध घी से रुद्राभिषेक करने से आरोग्यता प्राप्त होती है।
- दूध और चीनी से अभिषेक करने से मूर्ख प्राणी भी विद्वान हो जाता है।
- इत्र एवं जल के अभिषेक करने से बीमारियों का नाश होता है।
- रुद्राभिषेक से संतान की प्राप्ति होती है।
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रुद्राभिषेक कैसे किया जाता है?
किसी विशेष अवसर एवं शिवरात्रि जैसे पर्व में मंत्र दूध एवं फलों के द्वारा भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है। इसके साथ-साथ पूजा में दूध दही घी शहद और चीनी को मिलाकर पंचामृत से भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है।
रुद्राभिषेक में सामान्यता 3 से 4 घंटे लगते हैं।
रुद्राभिषेक की विधियां –
जल द्वारा अभिषेक:
भगवान शिव का जल से अभिषेक करने के लिए तांबे के एक साथ बर्तन में शुद्ध जल भरकर भगवान शिव का ध्यान करते हुए उसमें कुमकुम का तिलक लगाकर भगवान शिव को जल चढ़ाना चाहिए। जल चढ़ाते हुए “ओम इंद्राय नमः” मंत्र का जाप करना चाहिए।
सावन शिवरात्रि के खास मौके पर जल द्वारा भगवान शिव का रुद्राभिषेक करना बेहद पुण्य फलदाई माना जाता है। अगर आप सावन की शिवरात्रि पर अपने करीबी प्रिय जनों को शुभकामना संदेश भेजना चाहते हैं तो सावन शिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं पढ़ सकते हैं।
दूध द्वारा अभिषेक:
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव का दूध से अभिषेक करना चाहिए। इसके लिए एक स्वच्छ बर्तन में दूध भरकर कुमकुम का तिलक लगाकर “ओम् श्री कामधेनुवे नमः” का जाप करते हुए भगवान शिव को जल अर्पित करें।
प्रायः दूध द्वारा भगवान शिव का रुद्राभिषेक सभी प्रकार के अभिषेक से सर्वोत्तम माना जाता है। इसलिए ज्यादातर भगवान शिव का रुद्राभिषेक दूध के माध्यम से ही किया जाता है।
फलों के रस से अभिषेक
कर्ज से मुक्ति एवं धन लाभ के लिए भगवान शिव का अभिषेक फलों के रस से करना चाहिए।
तांबे के पात्र में गन्ने का रस भरकर उसमें कुमकुम से तिलक लगाकर ओम कुबेराय नमः का जाप करते हुए मौली बांधे। गन्ने द्वारा भगवान शिव का रुद्राभिषेक भी बेहद शुभ माना जाता है इसीलिए ग्रामीण इलाके में गन्ने का रस लेकर तांबे के बर्तन वाला भगवान शिव का रुद्राभिषेक किया जाता है।
सरसों के तेल से अभिषेक:
ग्रह बाधा के नाश हेतु भगवान शिव का सरसों के तेल से अभिषेक करें।
ॐ भं भैरवाय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली को बांधें। ऐसा माना जाता है कि सरसों के तेल से भगवान शिव का रुद्राभिषेक करने पर व्यक्ति के ऊपर संपूर्ण ग्रह बाधाएं कट जाती हैं।
काले तिल से अभिषेक:
बुरी नजर एवं तंत्र बाधा के नाश हेतु पात्र में जल भरकर और उसमें काले तिल डालकर भगवान शिव को अर्पित करें। काले तिल से भगवान शिव का रुद्राभिषेक करने पर भूत प्रेत, डरावनी स्वप्न, भय तथा प्रेत बाधाए कट जाती हैं।
ॐ हुं कालेश्वराय नम: का जाप करें।
घी एवं शहद से अभिषेक:
रोग और बीमारियों के नाश हेतु तथा लंबी आयु के लिए रुद्राभिषेक में घी एवं शहद का प्रयोग किया जाता है। शहद तथा देशी घी से भगवान शिव का रुद्राभिषेक करने वाला व्यक्ति जटिल बीमारियों से निदान पाता है तथा स्वास्थ्य का लाभ होता है।
भगवान शिव के त्र्यंबक स्वरूप का ध्यान करते हुए पात्र में जी एवं शहद डालकर भगवान शिव को समर्पित करें।
ॐ धन्वन्तरयै नम: का जाप करें।
केसर हल्दी एवं कुमकुम से अभिषेक:
भगवान शिव के नीलकंठ स्वरूप को ध्यान में रखते हुए पात्र में केसर हल्दी कुमकुम तथा पंचामृत को रखें। पात्र में कुमकुम का तिलक करें।
‘ॐ उमायै नम:’ मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को केसर हल्दी और कुमकुम समर्पित करें।
इनके अभिषेक से आकर्षक व्यक्तित्व की प्राप्ति होती है।
रुद्राभिषेक में कितना खर्च आता है?
रुद्राभिषेक कराने के अलग-अलग तरीके है और हर एक व्यक्ति अपनी इच्छा अनुसार एवं अपनी सामर्थ्य के अनुरूप रुद्राभिषेक करवा सकता है।
सामान्यतः रुद्राभिषेक में 2000 से 5000 तक का खर्च आता है। जल द्वारा भगवान शिव का रुद्राभिषेक सबसे कम खर्च में होता है।
अगर आप पारिवारिक या सामूहिक तरीके से रुद्राभिषेक करवाना चाहते हैं तो उसमें सामान्यतः 10000 से 15000 तक का खर्च आता है।
इसके अतिरिक्त अगर आप किसी बड़े अनुष्ठान का आयोजन करते हैं तो उसमें 50,000 से 100000 तक का खर्च आ सकता है।
यदि आप शिव महापुराण के साथ रुद्राभिषेक करवाना चाहते हैं तो उसमें सामान्यतः 200000 से 4 लाख तक का खर्च आ सकता है।
रुद्राभिषेक शुभ मुहूर्त 2025
सावन मास 2025 में भगवान शिव का रुद्राभिषेक बेहद पुण्य फलदाई होगा। श्रावण मास के किसी भी सोमवार की तिथि को रुद्राभिषेक किया जा सकता है।
इस बार श्रावण मास के पांच प्रमुख सोमवार की तिथियां क्रमशः 14 जुलाई, 21 जुलाई, 28 जुलाई, 4 अगस्त तथा 9 अगस्त को पड़ रहीं हैं। इसके अलावा श्रावण मास की शिवरात्रि के दिन भी रुद्राभिषेक का अत्यधिक पुण्य फल मिलेगा।
इस बार सावन मास की पहली शिवरात्रि 23 जुलाई 2025 को पड़ रही है। इस दिन शुभ मुहूर्त में भगवान शिव का जल द्वारा रुद्राभिषेक किया जा सकता है। सावन की शिवरात्रि के दिन जल द्वारा भगवान शिव का रुद्राभिषेक बहुत शुभ होता है। ब्रह्म मुहूर्त में भगवान रुद्र का अभिषेक करना सर्वोत्तम माना जाता है।
इस 23 जुलाई 2025 को सावन की शिवरात्रि के उपलक्ष्य में सूर्योदय से पूर्व स्नान दान से निवृत होकर ब्रह्म मुहूर्त में सुबह 4:15 से लेकर सुबह 4:56 तक भगवान का जल द्वारा अभिषेक सर्वोत्तम होगा। इसके अलावा भी चारों पहर के शुभ मुहूर्त में जलाभिषेक किया जा सकता है।
इस सावन शिवरात्रि 2025 के चारों पहर का शुभ मुहूर्त जानने के लिए ऊपर दिया गया यह ब्लू लिंक टच करें।
इसलिए सावन शिवरात्रि के पावन उपलक्ष में भगवान शिव का जल द्वारा अभिषेक जरूर करना चाहिए
दोस्तों उम्मीद है आपको आज का यह लेख “रुद्राभिषेक क्या होता है, कब करना चाहिए? रुद्राभिषेक क्यों किया जाता है नियम विधि एवं इसके फायदे” पसंद आया होगा ।
अगर आप रुद्राभिषेक से जुड़ी अन्य कोई जानकारी चाहते हैं तो कमेंट करके जरूर बताएं।
FAQ –
रुद्राभिषेक क्या होता है?
रुद्राभिषेक का अर्थ रुद्र का अभिषेक होता है। रूद्र से तात्पर्य भगवान शिव तथा अभिषेक से तात्पर्य उनका स्नान अर्थात रुद्राभिषेक में भगवान शिव का स्नान कराया जाता है।
रुद्राभिषेक कब करना चाहिए?
श्रावण का महीना भगवान शिव के लिए सबसे प्रिय माना जाता है इसलिए सावन महीने में रुद्राभिषेक का विशेष महत्व होता है। इसके अलावा महाशिवरात्रि, श्रावण मास की शिवरात्रि, मासिक शिवरात्रि तथा सोमवार के दिन भी रुद्राभिषेक शुभ माना जाता है
रुद्राभिषेक क्यों किया जाता है?
ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव का रूद्र रूप उनके भक्तों के सभी कष्टों का नाश करता है तथा उन्हें सुख समृद्धि प्रदान करता है। इसीलिए भगवान शिव के रूद्र रूप से करने से पुण्य फल की प्राप्त होती है।
रुद्राभिषेक कैसे किया जाता है?
भगवान शिव का रुद्राभिषेक दूध, गंगा जल, गन्ने का रस, सरसों के तेल तथा कई अन्य द्रव पदार्थों से किया जाता है। हालांकि दूध द्वारा रुद्राभिषेक सर्वोत्तम माना जाता है।