आज हम आपको इस लेख के जरिए जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी की जीवनी (Jagadguru Rambhadracharya Biography in Hindi) के बारे में बताने वाले हैं।
रामभद्राचार्य जी रामानंद संप्रदाय के चार जगतगुरु में से एक माने जाते हैं। इन्हें श्रीमद भगवद्गीता, रामचरितमानस, वेद तथा उपनिषद, आदि कंठस्थ है। जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी मौजूदा समय में भारत के सबसे महान कथावाचक और आचार्य में से एक हैं।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी जन्म से ही सूर है। वह एक आध्यात्मिक संत है, जिनके नाम में ही भगवान श्री राम बसते हैं और इनके दर्शन मात्र से ही आपको परमात्मा के दर्शन हो जाएंगे। आश्चर्य की बात है कि दृष्टि न होने के बाद भी जगतगुरु रामभद्राचार्य को वेद पुराण सभी कंठस्थ हैं। केवल इतना ही नहीं वेद पुराण के अलावा उन्हें भारतीय संविधान इत्यादि की जानकारियां भी कंठस्थ हैं।
आपके मन में उठने वाले सभी आध्यात्मिक सवालों के जवाब जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी बड़ी सरलता से देते हैं।
हिंदू धर्म के जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी एक ऐसे गुरु व शिक्षक हैं, जो गुरु के साथ साथ संगीतकार, दार्शनिक, लेखक, संस्कृत विद्वान, आदि भी हैं।
कई असाधारण कार्यों से रामभद्राचार्य महाराज जी ने अपनी एक अलग पहचान समाज में बनाई है। रामभद्राचार्य महाराज जी को परमात्मा का अवतार माना जाता है।
वह एक ऐसे महान दिव्य संत हैं, जिनको 22 भाषाओं का ज्ञान है तथा इन्होंने 80 ग्रंथो की रचना भी की है। रामभद्राचार्य जी अपने अद्वितीय ज्ञान और प्रतिभा के कारण संपूर्ण भारतवर्ष में पूजे जाते हैं। रामभद्राचार्य जी सनातन संस्कृति के प्रखर पक्षधर हैं। नीचे चलो
आज राम भद्राचार्य जी विश्व का पहला विकलांग विश्वविद्यालय अपने दम पर धार्मिक कार्यों के करने के साथ-साथ चला रहे हैं।
विषय–सूची
जगदगुरु रामभद्राचार्य का जीवन परिचय (Jagadguru Rambhadracharya Biography in Hindi)
रामभद्राचार्य महाराज जी का जन्म उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में सांडीखुर्द नामक गांव में 14 जनवरी 1950 मकर संक्रांति के दिन एक सरयूपारीण ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
पंडित राजदेव मिश्रा इनके पिता का नाम और शची देवी इनकी माता का नाम था। आचार्य रामभद्राचार्य जी सुजानगंज संस्कृत महाविद्यालय उत्तर प्रदेश से पढ़े लिखे हैं।
स्वामी जी के पिता की चचेरी बहन कृष्ण की अनन्य भक्त थी जिस प्रकार अपने काव्यो में मीराबाई ने श्री कृष्ण को गिरधर नाम से संबोधित किया था।
उसी प्रकार स्वामी जी के पिता की चचेरी बहन इनको प्यार से गिरधर नाम से बुलाती थी। धार्मिक एवं आध्यात्मिक ज्ञान इनको बचपन से ही प्राप्त हुआ है।
स्वामी जी के आंखों की रोशनी 24 मार्च 1950 में ट्रेकोमा से संक्रमित होने की वजह से खो गई उसे समय उनकी उम्र केवल 2 महीने की थी।
अपने धार्मिक नजरिए से इन्होंने समाज में अपनी एक अलग जगह बनाते हुए यह साबित किया की जीवन जीने व समाज में अपनी पहचान बनाने के लिए नजर नहीं बल्कि नजरिये की जरूरत होती है।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी के दर्शन के लिए नरेंद्र मोदी जी को भी लाइन लगाना पड़ता है। दूर दृष्टि के बल पर जब भी स्वामी जी ने कोई भविष्यवाणी की है, तो पूरी दुनिया उन पर विश्वास करती है। अब तक इन्होंने 80 ग्रंथों की रचना की है।
15 अगस्त पर विशेष:-
- 15 अगस्त : शायरी के साथ 76th स्वतंत्रता दिवस पर छोटा बड़ा भाषण हिंदी में
- स्वतंत्रता दिवस पर कोट्स सुविचार तथा शुभकामना संदेश
- आजादी का अमृत महोत्सव पर निबंध 500 शब्द
- विदेश में पहली बार भारत का झंडा फ़हराने वाली महिला – भीकाजी कामा
- कोहिनूर हीरा का इतिहास और इससे जुड़े रोचक तथ्य
जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी का प्रारंभिक जीवन –
स्वामी रामभद्राचार्य जी के पिता मुंबई में रहते थे, इसलिए इनकी प्रारंभिक शिक्षा इनके दादा जी द्वारा प्राप्त हुई।
दोपहर के समय जगतगुरु रामभद्राचार्य जी के दादाजी इनको रामायण और महाभारत के प्रसंग को सुनाया करते थे।
इन्होंने अपनी पहली कविता अवधी भाषा में महज 3 वर्ष की आयु में लिखी थी जो भगवान श्री कृष्ण से संबंधित थी।
700 छंदों की संपूर्ण भगवत गीता सुनकर स्वामी जी ने 5 वर्ष की आयु में 15 दिन के अंदर कंठस्थ कर ली थी। और दादाजी की सहायता से तुलसीदास जी द्वारा रचित संपूर्ण रामचरितमानस 7 वर्ष की आयु में केवल 60 दिनों में कंठस्थ कर ली।
इसके साथ ही साथ कुछ ही वर्षों में इन्होंने छह शास्त्र, चार वेद, अष्टदश पुराण, उपनिषद, व्याकरण, एक संस्कृत आदि ग्रंथों को सुनकर कंठस्थ कर लिया था।
जगदगुरु रामभद्राचार्य की प्रारंभिक शिक्षा-
17 वर्ष की आयु तक स्वामी जी ने कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी, लेकिन इन्होंने सिर्फ कानों से सुनकर ही सारे आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर लिए थे।
स्वामी जी के परिवार वाले इनको एक प्रसिद्ध कथावाचक बनाना चाहते थे परंतु स्वामी जी को आगे पढ़ने की इच्छा थी।
स्वामी जी के पढ़ने की इच्छा को देखते हुए उनके पिताजी ने इनको नेत्रहीन बच्चों के विशेष स्कूल में भेजने का निर्णय लिया परंतु इनकी माता ने मना कर दिया और कहा नेत्रहीन बच्चों के साथ वहां अच्छा बर्ताव नहीं होगा।
जौनपुर जिले के नजदीकी गांव में स्वामी जी 7 जुलाई 1967 गौरी शंकर संस्कृत महाविद्यालय में हिंदी, संस्कृत, व्याकरण, गणित, इतिहास आदि विषय पढ़ने के लिए दाखिला लिया। अपने जीवन का स्वर्णिम सफर रामभद्राचार्य महाराज जी खुद बताते हैं।
पढ़ाई के दौरान स्वामी जी लगातार हर कक्षा में सर्वश्रेष्ठ रहे, और इनमें केवल एक बार सुनकर याद करने की अद्भुत क्षमता थी।
इन्होंने इंटरमीडिएट की परीक्षा उच्च माध्यमिक संस्कृत में उत्तीर्ण की और उसके बाद आचार्य की डिग्री संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी में अव्वल आते हुए हासिल की।
जगदगुरु रामभद्राचार्य जी ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के प्रस्ताव को ठुकराया-
रामभद्राचार्य महाराज जी अपने जीवन में कभी भी हार ना मानते हुए ऑल इंडिया संस्कृत कॉन्फ्रेंस प्रतियोगिता दिल्ली में भाग लिया और वहां सफलता पाते हुए इन्होंने कुल आठ मेडल में से वेदांत, गीत, संस्कृति और संस्कृत अंताक्षरी में 5 गोल्ड मेडल जीता था।
उस समय भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी ने इनकी क्षमताओं से प्रभावित होकर इनके आंख के इलाज के लिए अपने पैसे पर अमेरिका भेजने की पेशकश की।
परंतु रामभद्राचार्य महाराज जी ने उनके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
व्याकरण के अंतिम आचार्य परीक्षा में गिरधर ने 1976 में शीर्ष स्थान पाते हुए कुलाधिपति स्वर्ण पदक हासिल करते हुए सात स्वर्ण पदक जीते और सभी विषयों के आचार्य 30 अप्रैल 1976 विश्वविद्यालय में घोषित किये गये।
सभी कठिनाइयों को पार करते हुए स्वामी जी ने 1981 में 31 वर्ष की आयु में डॉक्टर की डिग्री प्राप्त की थी।
जगदगुरु रामभद्राचार्य द्वारा तुलसी पीठ की स्थापना-
चित्रकूट में जगदगुरू रामभद्राचार्य जी ने एक तुलसी पीठ की स्थापना की जिस स्थान पर भगवान श्री राम अपनी 14 वर्षों में 12 वर्ष व्यतीत किए थे।
वह स्थान एक धार्मिक और सामाजिक संस्थान है। उसी स्थान पर रामभद्राचार्य (गिरधर) को 1 वर्ष बाद जगतगुरु की उपाधि से सम्मानित किया गया था। और तभी से सभी लोग गिरधर को जगतगुरु रामभद्राचार्य से संबोधित करने लगे।
इन्होंने विकलांग बच्चों की निशुल्क शिक्षा के लिए 2001 में विकलांग विश्वविद्यालय बनवाने का निर्णय किया और फिर इन्होंने “जगत गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय”की स्थापना की।
स्वामी जी द्वारा खोले गए इस विकलांग विश्वविद्यालय में स्नातक में नेत्रहीन, विकलांग बच्चों को , B.ED, BSc, B,Tech, M.A, MBA, कंप्यूटर कोर्सेज MCA, BCA, Phd आदि की शिक्षा निशुल्क दी जाती है।
जगदगुरू रामभद्राचार्य द्वारा किए गए सम्मान और कार्य-
स्वामी रामभद्राचार्य जी ने अब तक कई सारी रचनाएं की है। वह अबतक कई सारी धार्मिक पुस्तकें लिख चुके हैं
इन्होंने 50 से ज्यादा साहित्य की रचना तथा 200 से ज्यादा धार्मिक पुस्तक की रचना की है।
इन्होंने विश्व शांति व हिंदू धर्म के लिए अमेरिका, सिंगापुर, इंग्लैंड आदि देशों में धार्मिक प्रचार की यात्राएं भी हैं।
व्याकरण, हिंदी साहित्य और हिंदी भाषा के गौरव की रक्षा के लिए रामभद्राचार्य जी को सम्मानित भी किया गया है।
भागलपुर बिहार में अखिल भारतीय हिंदी भाषा सम्मेलन में स्वामी रामभद्राचार्य जी को महाकवि की उपाधि दी गई।
राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा स्वामी रामभद्राचार्य जी को साहित्य अकादमी पुरस्कार 2004 से सम्मानित किया गया।
और फिर उसके बाद तुलसी अवॉर्ड से भी पूज्य संत मुरारी बापू द्वारा जगतगुरु रामभद्राचार्य जी को 2011 में नवाजा गया।
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा श्री जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी को यश भारतीय सम्मान से 2015 में सम्मानित किया गया।
भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व राष्ट्रपति डॉ प्रणव मुखर्जी द्वारा सम्मानित किया गया।
जगदगुरु रामभद्राचार्य द्वारा न्यायालय में दिया गया था राम जन्मभूमि का शास्त्रीय साक्ष्य –
जब उच्चतम न्यायालय ने राम जन्मभूमि मामले को लेकर सवाल उठाया था कि क्या वेदों में रामलाल के जन्म का कोई प्रमाण है? अयोध्या का कोई प्रमाण है?
उस वक्त सभी धर्म आचार्यों न्यायालय में जाने से मना कर दिया।
उस समय साक्ष्य देने के लिए न्यायालय में पत्र लिखकर स्वामी जी ने कहा कि वह राम जन्मभूमि का शास्त्रीय साक्ष दे सकते हैं।
उस पर स्वामी जी से न्यायालय ने कहा कि बिना देखे आप कैसे साक्ष्य देंगे।
न्यायालय के इस प्रश्न पर रामभद्राचार्य जी ने कहा कि आप किस चीज का साक्ष्य चाहते है? तब न्यायालय ने शास्त्रीय साक्ष्य की मांग की।
इस पर स्वामी जी ने कहा कि शास्त्री साक्ष्य के लिए भौतिक आंखों की आवश्यकता नहीं होती बल्कि शास्त्र ही सबकी आंखें हैं।
इशास्त्र के बिना व्यक्ति दृष्टिहीन होता है। इस पर न्यायालय ने भी स्वामी जी के बात का समर्थन किया और फिर उनसे पूछा कि राम जन्मभूमि का वैदिक प्रमाण उपलब्ध है?
तब जगतगुरु रामभद्राचार्य ने अथर्ववेद के 31 अनुवाक्य में दशम कांड के दूसरे मंत्र में उपलब्ध प्रमाण दिए, जो इस प्रकार है –
अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या। तस्यां हिरण्ययः कोशः स्वर्गो ज्योतिषावृतः।।
441 साक्ष्य प्रस्तुत करते हुए जगदगुरू रामभद्राचार्य जी ने बताया कि वेदों में स्पष्ट कहा गया है कि, 9 द्वार वाली, 8 चक्र वाली, 300 धनुष उत्तर में सरयू नदी के तट पर राम जन्मभूमि अयोध्या विराजमान है।
तब वहां खुदाई करने पर 437 साक्ष्य स्पष्ट हुए, और रामलला के प्रमाण 4 स्पष्ट थे।
न्यायालय ने जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी का साक्ष्य स्वीकार करते हुए 8 नवंबर 2019 को मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने सुप्रीम कोर्ट के जज अशोक भूषण से निर्णय देने के पहले जगदगुरु रामभद्राचार्य जी का बयान पढ़ने के लिए कहा।
जिसे पढ़ने पर ही हमारे देश की दिशा और दशा दोनों बदली और 9 नवंबर 2019 को राम जन्मभूमि के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय लिया।
FAQ
जगदगुरु रामभद्राचार्य कौन है?
जगदगुरु रामभद्राचार्य रामानंद संप्रदाय के चार जगतगुरु में से एक हैं, छोटी सी उम्र में ही वह दृष्टिहीन हो गये थे।
उन्हें श्रीमद भगवद्गीता, रामचरितमानस, वेद तथा उपनिषद, सभी ग्रंथ एवं कंठस्थ है। जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी मौजूदा समय में भारत के सबसे महान कथावाचक और आचार्य हैं।
रामभद्राचार्य के शिष्य कौन है?
बागेश्वर धाम के पं. धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री
रामभद्राचार्य जी का असली नाम क्या है?
गिरधर मिश्रा
रामभद्राचार्य जी का जन्म कब हुआ था?
14 जनवरी 1950
रामभद्राचार्य जी को कितनी भाषाएं आती हैं?
22 भाषा ओं का ज्ञान हैं
इन्हें भी पढ़ें –