किसने जलाया था नालंदा विश्वविद्यालय, इतिहास, नालंदा विश्वविद्यालय कहाँ है? (Nalanda University History in hindi, kahan hai Nalanda University, Interesting Facts about Nalanda University, nalanda vishwavidyalay kahan hai) क्यों जलाया गया था नालंदा?
आज हमारे भारत के कॉलेज और विश्वविद्यालयों को विश्व के टॉप शैक्षणिक संस्थानों में भले शामिल नहीं किया जाता है, लेकिन एक समय ऐसा भी था, जब यह देश पूरे विश्व में शिक्षा का प्रमुख केंद्र हुआ करता था।
हमारा भारत ही था, जहां दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय खुला था, जिसका नाम नालंदा विश्वविद्यालय था। यह विश्वविध्यालय दुनिया के सबसे प्राचीन विश्वविध्यालयो मे से एक था।
450 ई. में स्थापित हुआ यह विश्वविद्यालय प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण और विख्यात केंद्र था।
आइए आज हम आपको हमारे भारत के प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के इतिहास से जुड़े कुछ किस्से बताते हैं। ताकि आपको पता चल सके कि आखिर नालंदा विश्वविद्यालय को क्यो जलाया गया था?
विषय–सूची
नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास (Nalanda University History in hindi)
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना किसने की थी?
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त काल के दौरान पांचवीं सदी में की गई थी। सम्राट कुमारगुप्त ने इस विश्वविद्यालय की स्थापना की थी।
लेकिन सन् 1199 में बख्तियार खिलजी के आक्रमण के बाद यह विश्वविद्यालय जलाकर तोड़ दिया गया था।
इतिहास के अनुसार, इस आक्रमण के दौरान विश्वविद्यालय में आग लगा दी गई थी और इस विश्वविद्यालय में उस वक्त इतनी किताबें थीं कि यह आग गई सप्ताह तक बुझ नहीं पाई थी।
इस हादसे में विश्वविद्यालय में कार्य करने वाले कई धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षुओं को भी मार दिया गया था।
वहीं, विश्वविद्यालय में मौजूद भव्य स्तूप, मंदिरों और बुद्ध भगवान की सूंदर-सूंदर मूर्तियों को भी नष्ट कर दिया गया था, लेकिन पटना से 90 किलोमीटर और बिहार शरीफ से 12 किलोमीटर दूर दक्षिण में फैले इस विश्वविद्यालय में आज भी प्राचीन खंडहर स्थित हैं।
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नालंदा विश्वविद्यालय कहां है?
दुनिया का प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय बिहार की राजधानी पटना से करीब 120 किलोमीटर दक्षिण-उत्तर में मौजूद है, जहां आज भी इसके अवशेष देखे जाते हैं।
आपको जानकर हैरानी होगी कि इस विश्वविद्यालय में 300 कमरे 7 बड़े-बड़े कक्ष और पढ़ने के लिए 9 मंजिला एक विशाल पुस्तकालय था, जिसमें लगभग 3 लाख से भी ज्यादा किताबें मौजूद हुआ करती थीं।
इस विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों को मेरिट के आधार पर चुना जाता था और यहां बच्चों को फ्री में शिक्षा दी जाती थी।
यही नहीं, इस विश्वविद्यालय में बच्चों का रहना और खाना भी पूरी तरह से निशुल्क होता था।
छात्रों और अध्यापकों की बात करें, तो यहां उस समय में 10 हजार से ज्यादा विद्यार्थी और 2700 से ज्यादा अध्यापक थे।
इस विश्वविद्यालय में उस समय पर केवल भारत के ही नहीं, बल्कि कोरिया, चीन, तिब्बत, जापान, ग्रीस, इंडोनेशिया, मंगोलिया समेत कई दूसरे देशों के छात्र भी पढ़ने आते थे।
नालंदा विश्वविद्यालय में कितनी लाइब्रेरी थी?
5वीं शताब्दी में गुप्त वंश के शासक सम्राट कुमारगुप्त द्वारा स्थापित हुए इस विश्वविद्यालय को सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला था।
इस विश्ववविद्यालय में केवल एक ही लाइब्रेरी थी, जिसका नाम ‘धर्म गूंज’ था, जिसका मतलब होता है ‘सत्य का पर्वत।’
जैसा कि हमने आपको ऊपर बताया कि इस लाइब्रेरी में 9 मंजिल थे और इन 9 मंजिलों में तीन भाग बनाए गए थे, जिनका नाम ‘रत्नरंजक’, ‘रत्नोदधि’, और ‘रत्नसागर’ था।
इस विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों को लिटरेचर, एस्ट्रोलॉजी, साइकोलॉजी, लॉ, एस्ट्रोनॉमी, साइंस, वारफेयर, इतिहास, मैथ्स, आर्किटेक्टर, लैंग्वेज साइंस, इकोनॉमिक, मेडिसिन समेत कई विषय पढ़ाए जाते थे।
इस विश्वविद्यालय में कई ऐसे महान विद्वानों ने पढ़ाई की थी, जिनमें हर्षवर्धन, धर्मपाल, वसुबन्धु, धर्मकीर्ति, आर्यवेद, नागार्जुन जैसे कई सम्राट शामिल हैं।
भारत के महान गणिज्ञ आचार्य आर्यभट्ट विश्ववविद्यालय का एक हिस्सा थे और गुप्त शसको द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय के प्रमुख बनाए गए थे। केवल इतना ही नही वराहमिहिर भी इसी विश्ववविद्यालय का एक हिस्सा थे।
नालंदा विश्वविद्यालय को किसने आग लगाई और क्यों?
भारत के इस प्राचीन विश्वविद्यालय को तुर्की शासक बख्तियार खिलजी ने आग लगवा दी थी। दरअसल, खिलजी ने उत्तर भारत में बौद्धों द्वारा शासित कुछ क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था।
फिर एक दिन बख्तियार खिलजी बहुत ज्यादा बीमार पड़ गए थे, उनके हकीमों ने उनकी बीमारी का काफी इलाज किया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। तब उन्हें नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्रजी से उपचार करवाने की सलाह दी गई।
जिसके बाद आचार्य को बुलवाया गया और उनके सामने इलाज से पहले शर्त रख दी की वह किसी हिंदुस्तानी दवाई का इस्तेमाल नहीं करेंगे। यही नहीं, आचार्य को यह भी कहा गया कि अगर वह ठीक नहीं हुए तो आचार्य की हत्या करवा दी जाएगी।
आचार्य ने खिलजी की शर्त को मानते हुए उनका उपचार किया और अगले दिन उनके पास कुरान लेकर गए और खिलजी से कहा कि कुरान के इस पृष्ठ को पढ़िए आप ठीक हो जाएंगे।
खिलजी ने आचार्य की बात को मानते हुए कुरान को पढ़ा और वो ठीक हो गए। खिलजी को अपने ठीक होने की खुशी तो हुई लेकिन उन्हें इस बात का गुस्सा था कि भारतीय वैद्यों के पास हकीमों से ज्यादा ज्ञान क्यों है?
आचार्य और बौद्ध धर्म का एहसान मानने की बजाय खिलजी ने गुस्से में सन् 1199 में नालंदा विश्वविद्यालय को आग लगवा दी।
विश्वविद्यालय में जितनी भी किताबें थी सब में आग लग गई थी और वह किताबें लगभग तीन सप्ताह तक जलती रही थी। खिलजी ने उस विश्वविद्यालय के हजारों धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षु को भी मार डाला था।
जिस खिलजी को आचार्य ने बचाया उसी खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय का नामो-निशान मिटाकर रख दिया था।
नालंदा विश्वविद्यालय क्यों प्रसिद्ध है?
नालंदा विश्वविद्यालय अपने प्राचीन इतिहास के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्धा है। यहां आज भी विश्वविद्यालय के अवशेष मौजूद है। यही कारण है कि नालंदा बिहार का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है।
यहां आप विश्वविद्यालय के अवशेष, संग्रहालय, नव नालंदा महाविहार और ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल देख सकते हैं। वहीं, इस विश्वविद्यालय के आस-पास में भी घूमने के लिए कई स्थल हैं, जो बेहद सुंदर है।
भगवान बुद्ध ने इसी विश्वविद्यालय में अपना उपदेश दिया था। भगवान महावीर भी यहीं रहे थे। इतनी ही नहीं, नालंदा में राजगीर में कई गर्म पानी के झरने है। इसके अलावा यहां पर ब्रह्मकुण्ड, सरस्वती कुण्ड और लंगटे कुण्ड भी मौजूद है।
इस विश्वविद्यालय के आस-पास कई विदेशी मंदिर भी हैं, जिनमें चीन का मंदिर, जापान का मंदिर और जामा मस्जिद भी है, जो बिहार में काफी पॉपुलर है। यह बिहार का बेहद पुराना और विशाल मस्जिद है।
नालंदा विश्वविद्यालय से जुड़े रोचक तथ्य (Interesting Facts about Nalanda University)
- नालंदा विश्वविद्यालय में 300 कमरे 7 बड़े-बड़े कमरे और अध्यन के लिए 9 मंजिला विशाल पुस्तकालय था, जिसमें 3 लाख से भी ज्यादा किताबें मौजूद थीं।
- नालंदा विश्वविद्यालय लगभग 800 साल तक अस्तित्व में रहा था।
- इस विश्वविद्यालय में छात्रों को नि:शुल्क शिक्षा दी जाती थी और बच्चों का खाना-रहना भी पूरी तरह से नि:शुल्क होता था।
- इस विश्वविद्यालय में 10 हजार से ज्यादा विद्यार्थी पढ़ाई करते थे और 2700 से ज्यादा अध्यापक इस विश्वविद्यालय में शिक्षा देते थे।
- जब नालंदा विश्वविद्यालय की खुदाई की गई थी, तब यहां कई मुद्राएं मिली थी, जिनसे इस बात की पुष्टि होती है कि सम्राट कुमारगुप्त के बाद यह विश्वविद्यालय कई सालों तक महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों के संरक्षण में रहा था।
- नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास चीन के हेनसांग और इत्सिंग ने तब खोज निकाला था, जब ये दोनों 7वीं शताब्दी में भारत देश आए थे। यहां से लौटने के बाद इन्होंने इस विश्वविद्यालय के बारे में विस्तार से लिखा था।
- इस विश्वविद्यालय में लोकतान्त्रिक प्रणाली से कार्य किया जाता था और यहां पर फैसले सभी की सहमति से लिए जाते थे, जिनमें सन्यासियों, बच्चों और टीचर्स की राय भी शामिल होती थी।
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