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Veer Savarkar Jayanti 2023: जानिए क्या है वीर सावरकर की माफी का सच?

सावरकर जयंती पर विशेष- वीर सावरकर की माफी का सच?: विनायक दामोदर सावरकर भारत के ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे जिन पर भारत की राजनीति में सबसे ज्यादा विवाद होते हैं।

भारतीय राजनीति और समाज का एक वर्ग जिन विनायक दामोदर सावरकर को “वीर सावरकर” के रूप में जानता है तथा उन्हें तपस्या और त्याग का प्रतीक मानता है तो वहीं दूसरी तरफ एक खास वर्ग विनायक दामोदर सावरकर को एक कायर क्रांतिकारी साबित करना चाहता है।

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विनायक दामोदर सावरकर वही क्रांतिकारी हैं जिन्हें ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह क्रांति के लिए 50 वर्षों तक काला पानी की सजा सुनाई गई और उनकी सारी चल अचल संपत्ति ज़ब्त कर ली गई।  

विनायक दामोदर सावरकर वही क्रांतिकारी हैं जिन्होंने मातृभूमि की स्तुति में 6000 कविताएं लिखी थी। लेकिन उन्होंने यह कविताएं कागज पर नहीं लिखी बल्कि अंडमान में काल कोठरी की उस चारदीवारी पर लिखी जिनमें कैद होकर वह काला पानी की सजा काट रहे थे।

उनकी यह कविताएं भारत की मातृभूमि के प्रति उनके प्रेम, तप और त्याग को दर्शाती हैं।

विनायक दामोदर सावरकर इस दुनिया के शायद पहले ऐसे लेखक होंगे जिनकी पुस्तक “1857 का स्वातंत्र्य समर” प्रकाशित होने के पहले ही ब्रिटिश हुकूमत द्वारा प्रतिबंधित कर दी गई।

वह विनायक सावरकर ही थे जिन्होंने 1857 की क्रांति को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का दर्जा दिया जिसे ब्रिटिश हुकूमत महज एक क्रांतिकारी विद्रोह की संज्ञा देना चाहती थी।

लेकिन जब विनायक दामोदर सावरकर 10 साल तक अंडमान की कालकोठरी में काला पानी की सजा काटकर जेल से बाहर आए तो कुछ लोग उनकी तपस्या और समर्पण को भूल कर उन पर अंग्रेजों से माफी मांगने का और आत्म समर्पण कर देने का आरोप लगाने लगे।

अंडमान के सेल्यूलर जेल में लगातार 10 वर्ष तक अमानवीय यातनाएं सहन करने के बाद भी कुछ लोगों ने सावरकर को उनकी क्षमा याचना के लिए कोसना शुरु कर दिया।

आज के इस लेख के जरिए हम आपके समक्ष ब्रिटिश हुकूमत के सामने रखी गई वीर सावरकर की याचनाओं के बारे में बताएंगे ताकि आपको भी पता चले कि आखिर वीर सावरकर की माफी का सच क्या है?

वीर सावरकर की माफी का सच | Veer-Savarkar-jayanti-special-savarkar-ki-maafi-ka-sach-kya-hai

वीर सावरकर की माफी का सच–

आज के दौर में वीर सावरकर की जिस क्षमा याचिका को लेकर राजनीतिक विवाद फैलाया जा रहा है वह एक ऐसी याचिका थी जिसका प्रावधान ब्रिटिश हुकूमत के दौरान राजनीतिक कैदियों के लिए किया गया था।

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विनायक दामोदर सावरकर द्वारा ब्रिटिश हुकूमत को दिया गया माफीनामा कुछ और नहीं बल्कि एक ऐसी ही याचिका थी जिसे उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के समक्ष रखा ताकि उन्हें काला पानी की सजा में हो रही अमानवीय यातना से मुक्ति मिल सके।

ब्रिटिश हुकूमत के दौरान केवल सावरकर ही नहीं बल्कि कई अन्य भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने भी ब्रिटिश हुकूमत के सामने यह याचिका दायर की थी जिनमें महान क्रांतिकारी अरविंद घोष के भाई पारिख घोष तथा सचिंद्र नाथ सान्याल जैसे क्रांतिकारियों का नाम भी शामिल है।

विनायक दामोदर सावरकर ने भी ब्रिटिश हुकूमत के सामने यही याचिका दायर की थी प्रथम विश्व युद्ध के बाद पूरी दुनिया में जिसका प्रावधान राजनीतिक कैदियों के लिए किया गया था।

कुछ खास वर्ग के लोगों का यह कहना है कि विनायक दामोदर सावरकर ने अपना माफीनामा छिपाने के लिए कभी इसका सार्वजनिक वर्णन नहीं किया लेकिन ऐसा नहीं है।

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विनायक दामोदर सावरकर ने अपनी क्षमा याचिका दायर करने  के विषय में अपने भाई नारायणराव सावरकर को भी जानकारी दी थी।

उन्होंने अपनी आत्मकथा में भी लिखा है कि जब-जब ब्रिटिश हुकूमत ने सहूलियत के साथ होने यह याचिका दायर करने का मौका दिया तब तक उन्होंने यह याचिका दायर की।

जेल के भीतर रहकर सावरकर बिल्कुल असमर्थ थे इसीलिए वह जेल से बाहर निकल कर मां भारती की सेवा में वापस आना चाहते थे।

जेल की इस काल कोठरी से बाहर निकलने का उनके पास केवल एक ही रास्ता था और वह था ब्रिटिश हुकूमत को दायर की गई याचिका।

विनायक दामोदर सावरकर इस बात से चिंतित थे कि जेल में रहकर उनका समय बर्बाद हो रहा है और वह जेल की सलाखों के पीछे से कुछ भी करने में असमर्थ हैं इसीलिए उन्होंने इस याचिका का सहारा लिया और ब्रिटिश हुकूमत से रिहाई की मांग की।

लेकिन बार-बार याचिका दायर करने के बावजूद भी उन्हें अंडमान की कालकोठरी से रिहाई नहीं मिली और वह काला पानी की सजा काटते रहे।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि साल 1920 में भी महात्मा गांधी द्वारा दिए गए सुझाव पर विनायक दामोदर सावरकर ने ब्रिटिश हुकूमत के सामने एक याचिका दायर की थी।

साल 1920 में महात्मा गांधी जी ने यंग-इंडिया नाम से जारी किए गए अपने एक लेख पत्र में विनायक दामोदर सावरकर जी का पक्ष लेते हुए कहा कि उन्हें ब्रिटिश हुकूमत के सामने याचिका दायर करनी चाहिए क्योंकि इस स्वतंत्रता का अधिकार व्यक्ति का प्राकृतिक अधिकार है।

साल 1921 में आखिरकार 10 वर्षों के निर्मम और कठोर आमानवीय यातनाएं सहने के बाद वीर सावरकर को अंडमान सेल्यूलर जेल से रिहा कर दिया गया।

सावरकर का माफीनामा (याचिका) –

साल 1909 में पहली बार नासिक के ब्रिटिश कलेक्टर ए.एम.टी जैक्सन की हत्या के षड्यंत्र के मामले में सावरकर को लंदन से गिरफ्तार कर लिया गया।

इस हत्या के षड्यंत्र के साथ-साथ उनके ऊपर यह भी आरोप था कि वह अपनी कूटनीतिज्ञ गतिविधियों द्वारा ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह भड़का रहे हैं। गौरतलब है कि ब्रिटिश हुकूमत उस समय सावरकर को एक बडे नेतृत्व कर्ता के रूप में देखती थी।

उस दौरान भारत में महात्मा गांधी भी मौजूद नहीं थे जब सावरकर ने भारतीय क्रांतिकारी संगठन का नेतृत्व करना शुरू किया था।

लंदन में उनकी गिरफ्तारी के पश्चात उन्हें साल 1911 में अंडमान निकोबार दीप समूह की सेल्यूलर जेल में भेज दिया गया। उस दौरान अंडमान द्वीप समूह की इस सेल्यूलर जेल की सजा को काला पानी की सजा नाम से जाना जाता था।

विनायक दामोदर सावरकर को ब्रिटिश हुकूमत ने 50 वर्षों तक काला पानी की सजा सुनाई थी तथा उनकी सारी चल अचल संपत्तियां भी ज़ब्त कर ली थी।

इस काला पानी की सजा के दौरान विनायक दामोदर सावरकर ने ब्रिटिश हुकूमत के समक्ष कुल 6 बार याचिकाएं दायर की थी।

30 अगस्त 1911 को उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के सामने पहली बार याचिका दायर की जो ब्रिटिश हुकूमत द्वाराखारिज कर दी गई।

उन्होंने पहली पांच याचिकाएं साल 1911-19 के बीच में भेजी जबकि छठवीं याचिका महात्मा गांधी के कहने पर साल 1920 में दायर की।

काला पानी की सजा काटने के दौरान विनायक दामोदर सावरकर ने कई सारी किताबें तथा राष्ट्र प्रेम से ओत पोत कविताएं भी लिखी।

जब सावरकर पर लगा था महात्मा गांधी की हत्या का आरोप–

अंडमान निकोबार के सेल्यूलर जेल से रिहाई होने के बाद भी विनायक दामोदर सावरकर जी महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में तकरीबन 13 वर्ष तक नजरबंद रहे।

30 जनवरी साल 1948 को जब नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी तो उसका आरोप भी विनायक दामोदर सावरकर पर लगाया गया हालांकि आरोप की छानबीन के बाद सबूत न मिलने के कारण फिर उन्हें रिहा भी कर दिया गया।

वीर सावरकर का आजादी में योगदान –

कहा जाता है कि विनायक दामोदर सावरकर ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने साल 1905 में बंग भंग अर्थात बंगाल का विभाजन होने के बाद साल 1906 में ‘स्वदेशी अपनाओ’ का नारा दिया और विदेशी वस्तुओं की होली जलाई।

विनायक दामोदर सावरकर पहले ऐसे लेखक थे जिनकी पुस्तक “1857 का स्वातंत्र्य समर” प्रकाशित होने के पहले ही ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया।सावरकर के द्वारा ही 1857 के विद्रोह को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का दर्जा मिला जबकि ब्रिटिश हुकूमत के लोग यह केवल एक सैनिक विद्रोह के रूप में लेते थे।

केवल इतना ही नहीं विनायक दामोदर सावरकर का भारत के तिरंगे की डिजाइनिंग में केसरिया रंग रखने का सुझाव और अन्य योगदान भी था।

जब विनायक दामोदर सावरकर को लंदन से गिरफ्तार किया गया उस दौरान भारत में महात्मा गांधी मौजूद नहीं थे। ऐसे में महात्मा गांधी की अनुपस्थिति में भारतीय क्रांतिकारियों के सबसे बड़े नेता विनायक दामोदर सावरकर की थी।

उनकी कूटनीतिज्ञ नेतृत्व के चलते ही ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें लंदन से गिरफ्तार कर लिया तथा काला पानी की सजा दे दी। इस दौरान विनायक दामोदर सावरकर की करोड़ों की संपत्ति ब्रिटिश हुकूमत के द्वारा जब्त कर ली गई थी।

ब्रिटिश हुकूमत से सावरकर को मिलने वाली पेंशन का सच–

कुछ लोगों का मानना है कि विनायक दामोदर सावरकर को ब्रिटिश हुकूमत ₹60 प्रति माह पेंशन दिया करती थी। लेकिन,

रणजीत सावरकर के मुताबिक – विनायक दामोदर सावरकर को दी जाने वाली यह राशि उन्हें नजरबंदी भत्ते के रूप में दी जाती थी ताकि वह अपनी रोजगुजारी कर सके। उनके मुताबिक यह अलायंस केवल सावरकर को ही नहीं बल्कि कई अन्य राजनीतिक कैदियों को भी मिल रहा था।

नजरबंदी के दौरान विनायक दामोदर सावरकर को वकालत की अनुमति भी नहीं थी क्योंकि मुंबई विश्वविद्यालय द्वारा उनकी एलएलबी की डिग्री पहले ही रद्द की जा चुकी थी।

तो क्या आपको भी यही लगता है कि जिस व्यक्ति की करोड़ों की संपत्ति ब्रिटिश हुकूमत द्वारा जब्त कर ली गई वह केवल 60 रूपए प्रतिमाह पेंशन के लिए ब्रिटिश शासन से समझौता करेगा?

अगर विनायक दामोदर सावरकर को सच में ही ब्रिटिश हुकूमत से पेंशन से समझौता करना होता तो क्या वह अपनी संपत्ति वापस नहीं मांगते?

सचमुच में बहुत वीर थे विनायक दामोदर सावरकर–

आज भी कुछ संकीर्ण मानसिकता के लोग इन बेबुनियादी बातों को लेकर विनायक दामोदर सावरकर पर उंगली उठाते हैं और उन्हें कायरता के कटघरे में खड़ा कर देते हैं।

विनायक दामोदर सावरकर का केवल नाम ही वीर सावरकर नहीं था बल्कि वह सचमुच में वीर थे जिन्होंने अपनी मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व निछावर कर दिया और काला पानी की सजा जैसी निर्मम कठोर यातनाएं सही।

जेल से रिहा होने के बाद भी विनायक दामोदर सावरकर को किसी प्रकार का सम्मान नहीं मिला और ना ही आजादी के बाद शुरुआती 70 साल के पाठ्यक्रम में उन्हें कोई स्थान दिया गया।

हमें खुद से विचार करना चाहिए कि जिन महान व्यक्तित्व के लोगों ने इस राष्ट्र की सेवा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया आज हम उन्हें ही कटघरे में खड़ा कर रहे हैं।

क्या यह उस कठोर तपस्या, त्याग और बलिदान का अपमान नहीं है?

आज इस लेख के जरिए हमने आपको “वीर सावरकर की माफी का सच” बताने का प्रयास किया। उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा यह लेख पसंद आया होगा

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