गुड़ी पड़वा कब है?, क्यों मनाया जाता है? जानिए शुभ मुहूर्त (History & Story Facts of Gudi Padwa Festival in Hindi)
भारत एक ऐसा देश है जहां आए दिनों कोई ना कोई त्यौहार मनाया जाता रहता है। होली और दिवाली देश के दो प्रमुख त्योहार है। हालांकि इसके अलावा भी वर्ष भर में कई महत्वपूर्ण त्यौहार आते हैं जिन्हें मुख्य रूप से कुछ विशेष क्षेत्रों में ही मनाया जाता है।
गुड़ी पड़वा भी एक ऐसा ही त्यौहार है जो मुख्य रूप से महाराष्ट्र में मनाया जाता है। हालांकि फिर भी देशभर में इस त्यौहार का प्रभुत्व कुछ कम नहीं है। देश भर लोग इसे अलग-अलग रूप में पूरे देश में मनाते हैं। अन्य त्योहारों की तरह गुड़ी पड़वा त्यौहार के भी अपने कुछ पौराणिक इतिहास हैं तथा अपना विशेष महत्व भी है।
गुड़ी पड़वा का त्यौहार इसलिए भी कुछ ज्यादा विशेष महत्त्व रखता है क्योंकि इसी दिन हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है। इसलिए लोग विभिन्न प्रकार की पौराणिक और ऐतिहासिक मान्यताओं के साथ इस त्यौहार को मनाते हैं।
अब आपके मन में यह सवाल ज़रूर उठता होगा कि आख़िर ‘गुड़ी पड़वा क्यों मनाया जाता है? गुड़ी पड़वा का इतिहास और महत्व क्या है?’
आज इस लेख में हम आपके इन सभी सवालों के जवाब देने वाले हैं। केवल इतना ही नहीं बल्कि आज इस लेख के जरिए हम आपको गुड़ी पड़वा 2024 कब है? गुड़ी पड़वा 2024 की तिथि और शुभ मुहूर्त के बारे में भी बताएंगे।
अपने नये अंदाज में भेजें > हिंदू नववर्ष एवं गुड़ी पड़वा 2024 की हार्दिक शुभकामनाएं
विषय–सूची
गुड़ी पड़वा क्या है? (History & Story Facts of Gudi Padwa Festival in Hindi)
गुड़ी पड़वा हिंदुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। यह मुख्य रूप से महाराष्ट्र में मनाया जाता है हालांकि देश के दूसरे हिस्सों में भी अलग-अलग तरीकों से यह त्यौहार मनाने की परंपरा चली आ रही है। गुड़ी पड़वा के दिन नहीं हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है।
गुड़ी पड़वा की तिथि नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि होती है जब 9 दिन की चैत्र नवरात्रि की शुरुआत होती है। भारत में अलग-अलग प्रदेशों में यह त्यौहार अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है।
गुड़ी पड़वा को ‘संवत्सर पड़वो’ ‘उगादी’ ‘युगादि’ और चेटीचंद आदि विभिन्न अलग अलग नामों से भी जाना जाता है। हालांकि यह त्यौहार मुख्य रूप से मराठा समुदाय के लोगों द्वारा मनाया जाता है।
गुड़ी पड़वा का अर्थ (Gudi Padwa Meaning in Hindi) –
गुड़ी पड़वा शब्द दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है जिसमें गुड़ी शब्द का अर्थ ‘विजय पताका’ होता है जबकि पड़वा शब्द का अर्थ ‘चंद्रमा का पहला दिन’ है। अर्थात गुड़ी पड़वा को हिंदू नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है और असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है।
केवल इतना ही नहीं है ऐसा भी कहा जाता है कि गुड़ी पड़वा के दिन भगवान सूर्य पहली बार उदित हुए थे। इसीलिए इस त्यौहार को अंधकार पर प्रकाश की जीत के रूप में भी स्थापित किया गया है।
गुड़ी पड़वा कब मनाया जाता है?
गुड़ी पड़वा का त्यौहार चैत्र महीने की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। इसी दिन हिंदू नववर्ष की शुरुआत भी होती है। चैत्र मास, शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को एक ओर जहां नवरात्रि की शुरुआत होती है, तो वहीं गुड़ी पड़वा का त्यौहार भी मनाया जाता है।
हिंदू कैलेंडर के मुताबिक यह चैत्र मास की शुरूआत का पहला दिन होता है। इसी दिन नए विक्रम संवत की शुरूआत होती है इसलिए इस त्यौहार को हिंदू नववर्ष के रूप में भी मनाया जाता है।
गुड़ी पड़वा क्यों मनाया जाता है?
गुड़ी पड़वा त्यौहार के साथ विभिन्न पौराणिक तथा ऐतिहासिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं और यह प्रति वर्ष बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
गुड़ी पड़वा को सृजन के बाद संसार का पहला दिन माना जाता है। गुड़ी-पड़वा को लेकर ऐसी मान्यता है कि इसी तिथि को भगवान ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि ब्रह्मांड की रचना की थी। मान्यता है कि गुड़ी पड़वा के दिन ही पहली बार सूर्योदय हुआ था और पूरी पृथ्वी पर भगवान सूर्य का प्रकाश फैल गया था। इसीलिए गुड़ी पड़वा का यह त्यौहार अंधकार पर प्रकाश की जीत का प्रतीक मानकर मनाया जाता है।
कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार गुड़ी पड़वा के दिन ही भगवान श्रीराम ने किष्किंधा नरेश बाली का वध भी किया था और उसके भाई सुग्रीव को किष्किंधा का राजा घोषित किया था।
परिणाम स्वरूप इसी दिन बुराई पर अच्छाई की जीत हुई थी इसलिए यह त्यौहार विजय दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।
महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा क्यों मनाया जाता है?
गुड़ी पड़वा एक ऐसा त्यौहार है जिसके साथ केवल पौराणिक मान्यताएं ही नहीं बल्कि कुछ ऐतिहासिक मान्यताएं भी जुड़ी हुई हैं।
महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा मनाए जाने के पीछे एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक मान्यता प्रचलित है। कहा जाता है कि गुड़ी पड़वा के दिन ही हिंदू हृदय सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज ने मुगलों के साथ हो रहे युद्ध में विजय प्राप्त की थी।
इसीलिए महाराष्ट्र में मुख्य रूप से इस दिन गुड़ी पड़वा को शिवाजी महाराज की विजय दिवस के तौर पर मनाने की शुरुआत हुई।
गुड़ी पड़वा का पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व–
गुड़ी पड़वा का पौराणिक इतिहास एक से बढ़ कर एक रोचक प्रसंगो से भरा हुआ है।
गुड़ी पड़वा को इस अद्भुत ब्रह्मांड और सृष्टि का पहला दिन माना जाता है। मान्यता है कि इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी।
महाभारत काल की बात करें तो यहां भी गुड़ी पड़वा की तिथि विशेष महत्व रखती है। क्योंकि गुड़ी पड़वा के दिन ही युधिष्ठिर का राज्याभिषेक माना जाता है।
ऐसा माना जाता है कि गुड़ी पड़वा के दिन ही युग का आरंभ हुआ था। इसीलिए इस त्यौहार को युगादि के प्रचलित नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि गुड़ी पड़वा के दिन ही सतयुग का आरंभ हुआ था।
केवल इतना ही नहीं बल्कि गुड़ी पड़वा के दिन ही भगवान विष्णु द्वारा मत्स्य अवतार का दिन भी माना जाता है। इस दिन भारतीय एवं हिंदू नव वर्ष की शुरुआत होती है। इसीलिए कई बार गुड़ी पड़वा त्यौहार को नवसंवत्सर के नाम से भी जाना जाता है।
गुड़ी पड़वा के दिन ही चैत्र नवरात्रि की शुरुआत होती है। प्रतिपदा तिथि को गुड़ी पड़वा के साथ साथ चैत्र नवरात्रि के लिए शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना भी होती है।
अगर बात करें ऐतिहासिक महत्व की तो गुड़ी पड़वा के दिन ही छत्रपति शिवाजी महाराज जी ने युद्ध में विजय हासिल की थी और अपनी विजय पताका फहराई थी।
गुड़ी पड़वा का दिन भारतीय इतिहास की अन्य कई महत्वपूर्ण घटनाओं के साथ भी जुड़ा हुआ है। गुड़ी पड़वा के दिन महर्षि दयानंद सरस्वती जी द्वारा आर्य समाज की स्थापना की गई थी।
गुड़ी पड़वा के दिन ही भारत के राष्ट्रीय पंचांग शालिवाहन शक की शुरुआत होती है। केवल इतना ही नहीं बल्कि गुड़ी पड़वा के दिन से ही महाराजा विक्रमादित्य द्वारा विक्रम संवत की भी शुरुआत होती है।
गुड़ी पड़वा कैसे मनाया जाता है?
गुड़ी पड़वा जैसा कि नाम से ही जाहिर हो रहा है कि यह त्यौहार विजय पताका से संबंधित है। इसीलिए गुड़ी पड़वा के दिन गुड़ी अर्थात झंडा या पताका बनाकर फहराया जाता है। ऐसा माना जाता है कि गुड़ी पड़वा के दिन गुड़ी की पूजा करने तथा फहराने से घर में सुख समृद्धि आती है।
गुड़ी पड़वा के दिन लोग महिलाएं विशेष रूप अपने घर पर गुड़ी लगाकर सजाते हैं। तथा गुड़ी की पूजा करते हैं। गुड़ी पड़वा के दिन घर की साफ सफाई को विशेष महत्व दिया जाता है और मुख्य रूप से घर सजाया जाता है। गुड़ी पड़वा के दिन महाराष्ट्र में कुछ बेहतरीन पकवान बनाने की परंपराएं भी चली आ रही है।
गुड़ी पड़वा के दिन मराठी समुदाय के लोग पूरन पोली नाम का पकवान बनाते हैं। विभिन्न स्थानों पर पूरनपोली के साथ श्रीखंड और पूरी सब्जी बनाने की परंपरा भी है। गुड़ी पड़वा के दिन घर को सजाने के लिए मुख्य रूप से आम के पत्तों की बंदनवार बनाई जाती है और फिर दरवाजे पर लटकाया जाता है। तथा गुड़ी पड़वा के दिन लोग अपने घरों पर गुड़ी लगाते हैं।
गुड़ी पड़वा 2024 की तिथि एवं शुभ मुहूर्त–
इस साल 09 अप्रैल 2024 को गुड़ी पड़वा का त्यौहार मनाया जाएगा। 9 अप्रैल 2024 को चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि शुरू होगी और इसी दिन हिंदू नव वर्ष के साथ-साथ चैत्र नवरात्रि की शुरुआत भी होगी।
इस बार चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 8 अप्रैल 2024 की रात 11.50 बजे शुरूआत हो जाएगी और 09 अप्रैल 2024 को रात 08:30 मिनट पर समाप्त होगी। हालांकि 08 अप्रैल के दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि के निशिता काल में होने के कारण गुड़ी पड़वा का त्यौहार नहीं मनाया जाएगा इसलिए गुड्डी पड़वा का त्यौहार 09 अप्रैल 2024 की तिथि को ही उदया स्थिति में मनाया जाएगा।
क्योंकि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार त्योहार मनाने के लिए उदया तिथि शुभ फलदाई होती है। जबकि निशिता काल में त्यौहार को मनाना शुभ माना जाता है। इसीलिए 09 अप्रैल को उदया तिथि में गुड़ी पड़वा एवं उगादि का त्यौहार मनाया जाएगा।
दोस्तों आज इस लेख के माध्यम से हमने आपको बताया कि Gudi Padwa 2024 कब है? तिथि शुभ मुहूर्त: जानिए गुड़ी पड़वा क्यों मनाया जाता है? इसका इतिहास और महत्व क्या हैं? (History & Facts of Gudi Padwa Festival in Hindi)
FAQ
Gudi Padwa 2024 कब है?
चैत्र मास, शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 09 अप्रैल 2024 को गुड़ी पड़वा का त्यौहार मनाया जाएगा।
गुड़ी पड़वा 2024 की तिथि एवं शुभ मुहूर्त क्या है?
09 अप्रैल 2024 को उदया तिथि में गुड़ी पड़वा एवं उगादि का त्यौहार मनाया जाएगा।
गुड़ी पड़वा क्यों मनाया जाता है?
हिन्दू मान्यता के अनुसार इसी दिन पहली बार सूर्योदय हुआ था। यह दिन अंधकार पर प्रकाश की विजय के तौर पर मनाया जाता है। श्रीराम जी ने इसी दिन राजा बलि का वध किया था। गुड़ी पड़वा को हिंदू नववर्ष के रूप में भी मनाया जाता है।
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